वृन्दावन के जंगलकट्टी क्षेत्र में यमुना किनारे से करीब दो सौ मीटर अन्दर राधाबल्लभ मंदिर मार्ग पर एक और प्राचीन मंदिर है, जिसे श्री राधा गोपाल मंदिर के नाम से जाना जाता है, यह मंदिर भी गुजराती धर्मशाला के सामने गली में बांयीं तरफ पड़ता है, यह भी राधा मोहन घेरा में एक अति प्राचीन मंदिर है, मंदिर के अन्दर की बनावट को देख कर लगता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है।
जैसा कि इस स्थान के नाम से ही जाना जा सकता है कि जंगलकट्टी क्षेत्र जो कभी घने जंगलों से घिरा रहा रहा होगा और इस स्थान के जंगलों की कटाई उस समय में की गई होगी। इस लिये इस स्थान का नाम 1930 में नगर पालिका परिषद् के गठन के वाद से यह स्थान जंगलकट्टी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और राधामोहन घेरा का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से गायब हो गया। इस मंदिर में स्थित बंगला भाषा में लिखा एक षिला लेख से ज्ञात होता है कि यह पश्चिम बंगाल के जिला बर्धमान के किसी दत्त परिवार के लोगों ने इस मंदिर को बनवाया होगा और यहां सेवायतों को सेवापूजा करने के लिए सेवायतों को ही दे दिया। षिलालेख के अनुसार सन् 1299 साल लिखा हुआ है।
1870 के दशक में ब्रिटिश शासन में मथुरा के कलेक्टर रहे एफ. एस. ग्राउस ने भी अपनी पुस्तक ‘‘मथुरा-ए-डिस्ट्रिक मेमॉयर’’ में ठाकुर श्री राधागोपाल मंदिर का उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने इन बस्तियों के बीच में स्थित राधामोहन घेरे का उल्लेख भी नहीं किया है।
श्री राधागोपाल मंदिर को भी आज न के बरावर लोग जानते हैं, इस मंदिर में पष्चिम बंगाल के बर्धमान जिला से अधिकांष भक्त आज भी वृन्दावन में आते हैं। मंदिर में चारों तरफ की दीवारों पर बंगाल के भक्तों के नाम उनके पते वाले पत्थर लगे हुए हैं यह भक्त बंगाल से आकर सेवायतों को सेवा पूजा के लिए दान देते हैं और अपने नाम से एक पत्थर अपने पूर्वर्जों के साथ-साथ अपना भी लिखवा कर लगवा देते हैं, ऐसी मान्यता है कि वृन्दावन या ब्रज में आने वाले श्रद्धालु यहां मंदिर में आयेंगे और उनके चरण इन पत्थरों पर पडेंगे जिससे उनका उद्धार हो जायेगा। इसी भावना को लेकर यह पत्थर लगाये जाते रहे हैं। मंदिर में उपर नीचे दीवारों पर भी नाम लिखे पत्थर ही लगे हुए हैं। मंदिर में लगे सभी पत्थर बंगला भाषा में ही बनाये गये हैं।
आज जब बॉंके बिहारी जी मंदिर के लिए कॉरिडोर की व्यवस्था सरकार द्वारा प्रस्तावित है, जिसको लेकर वृन्दावन में कॉरिडोर को लेकर समर्थन और विरोध में एक गतिरोध बना हुआ है। पॉंच एकड़ भूमि पर कॉरिडोर का निर्माण किया जाना है, जिसको लेकर आसपास के क्षेत्र की नाप तोल किये जाने पर मंदिर के सेवायत अच्छे खासे डरे हुए हैं। क्या होगा, क्या नहीं होगा यही चिन्ता इन्हें घेरे हुए है। जरजर दशा में पहुंच चुके इस मंदिर के पीछे का हिस्सा पूरी तरह से खण्डहर में बदल चुका है। पीढ़ियों के बदल जाने के कारण अब बंगाल से भी श्रद्धालुओं का आना कम हो गया है जिससे मंदिर व उसमें विराजमान विग्रहों की स्थिति भी दयनीय बनी हुई है।
श्री राधा गोपाल मंदिर के सेवायत विवेक गौतम ने मंदिर के सम्बन्ध में बताया कि यह मंदिर पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के श्री षिव नाथ दत्त ने सन् 1299 साल में बनबाया था जोकि मंदिर में प्राप्त एक षिलालेख से ज्ञात होता है, इस मंदिर में इनके बाबा प्रेम लाल ब्रजवासी और पिता जी गोविन्द लाल गौतम और चाचा उमाकान्त गोतम आज इस मंदिर की देखरेख कर रहे हैं।
श्री राधागोपाल जी मंदिर के सेवायत विवेक गौतम ने बताया कि जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि क्या होगा और क्या नहीं होगा हम मंदिर का जीर्णाद्धार भी नहीं करा पा रहे हैं हमें डर है कि कहीं हमारा मंदिर भी कॉरिडोर की सीमा में न चला जाये।
वृन्दावन बॉके बिहारी मंदिर में आने बाले श्रद्धालुओं की भींड़ को देखते हुए उ0प्र0 सरकार ने कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया था, जिसके आधार पर मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर बाँके बिहारी जी मंदिर में एक समिति का गठन किया गया है जो कि बाँके बिहारी जी मंदिर के आसपास के पुरातत्व की दृष्टि से प्राचीन व अतिप्राचीन मंदिरों को भी संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग के अधिकारी को भी समिति में रखा गया है।
प्रदेश सरकार ने इस दिशा में कार्य करना प्रारम्भ भी किया तो कॉरिडोर के विरोध करने वाले लोगों ने कॉरिडोर की सीमा में आ रहे श्री राधा मोहन मंदिर को तथा पास में ही मौजूद एक समाधि को भी बचाने की कबायद शुरू कर दी थी।
पुरातत्व की दृष्टि से भवन इमारतों और प्राचीन मंदिरों समाधियों को संरक्षित करने की आवष्यकता है ताकि इनका प्राचीन स्वरूप बचा रह सकेगा।
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