बुधवार, 29 अप्रैल 2020

मध्यम वर्ग के विना ही जीवन हो जायेगा व्यर्थ।

अभिशाप से गरीब का जन्म, आर्शीवाद से धनी,
मध्यम वर्ग को सदा रहना ही होगा ऋणी।
अच्छे दिन आयें या आयें र्दुदिन, चित्र एक ही रहेगी हमेशा।
छाती फटे मगर मुंह नही फटे। सम्मान बोध ही रहेगा हमेशा।
गरीब के तो पास खड़ी सरकार हमेशा, वह रहते विन्दास हमेशा।
सरकारी व दाताओं के सहारे कट जायेंगे कई महिना।
उनको मिलते आलू, दाल, चाबल और मिलती गैस।
बाकी जरुरत मिटाने को उनको मिलता है कैश।


वो कर्म विहीन, अर्थ विहीन वो दो हाथ फैला कर ले सकते है दान।
शिक्षा की झौली शून्य उनकी, लगता नही उनको सम्मान।
धनी के पास तो है अगाध अर्थ, खाद्य की न कोई परेशानी।
अभाव की समस्या से रोती मध्यम वर्ग बैचारी।
उनको नही कोई सरकारी दान, न ही मिलता दृव्य कम मूल्य पर।
धनी के मूल्य पर ही खरीदना पड़ता है, जरूरत का सामान भर।
कवि अकेला ही रोता खाली पन्नों के सहारे।
बाकी शिल्पी भी रोते पेट बांधे।
गृह शिक्षक भी हैं वेतन विहीन परेशान नहीं जा पा रहे पढ़ाने।
पत्नी भी देख हो रही परेशान कि कैसे गृहस्थी चलेगी सामने।
शिल्पी के कैनवास पर रंगों का मूल्य भारी।
ईश्वर की छवि पड़ी कोने में, कौन देगा मूल्य इसकी।
मृत्यु के भय से सबने छोड़े, गली और रास्ते,
श्रोता, दर्शक के अभाव में हो गये हैं देवालये।
देव प्रतिमाएं खड़ीं ज्यों कि त्यों, वाट भक्तों की जौहते।
नित्य प्रति मसजिद से होती अजानें, घरों में पढ़ी जाती नमाजें।
शिल्पी के सुर हो गये अन्धे, तवलची घर में समय अकेला काटे।
कैसे सोचे, रहा समय सुरताल के बिना कट जाये।
मन में हो रहा हा हाकार क्या होगा कल।
खत्म हो रहा आटा, दाल कैसे, कटेगा यह साल।
विद्या के धनी जितने भी हों धनी, जव तक न हो अर्थ।
मध्यम वर्ग के विना ही जीवन हो जायेगा व्यर्थ।