शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

अतिप्राचीन राधामोहन मंदिर वृन्दावन कॉरिडोर की सीमा में

आज वृन्दावन के इस प्राचीन मंदिर को कोई जानता तक नहीं

            वृन्दावन के जंगलकट्टी क्षेत्र में यमुना किनारे से करीब दो सौ मीटर अन्दर राधाबल्लभ मंदिर के निकट गुजराती धर्मशाला के सामने राधा मोहन घेरा में एक अति प्राचीन मंदिर स्थित है, यह मंदिर राधामोहन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

            जैसा कि इस स्थान के नाम से ही जाना जा सकता है कि जंगलकट्टी क्षेत्र जो कभी घने जंगलों से आच्छादित रहा होगा और इस स्थान के जंगलों की कटाई उस समय में की गई होगी। इस लिये इस स्थान का नाम 1930 में नगर पालिका परिषद् के गठन के वाद से जंगलकट्टी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और राधामोहन घेरा का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से गायब हो गया। 1870 के दशक में ब्रिटिश शासन में मथुरा के कलेक्टर रहे एफ0एस0 ग्राउस ने भी अपनी पुस्तक ‘‘मथुरा-ए-डिस्ट्रिक मेमॉयर’’ में भी ठाकुर राधामोहन मंदिर का उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने इन बस्तियों के बीच में स्थित राधामोहन घेरे का उल्लेख भी नहीं किया गया है।


            श्री राधामोहन मंदिर को आज कम ही लोग जानते हों परन्तु पुराने समय में यह हितकुल का अत्यंत शोभनीय स्थल रहा है। श्रीराधामोहन मंदिर को आज कोई जानता तक नहीं है, इसका प्रमुख कारण है कि यह मंदिर सड़क से लगभग 10 फुट उंचाई पर है तथा इसमें सीढ़ियां भी हैं इस कारण से यात्री परदेशी इस मंदिर में दर्शन करने को नहीं जाते हैं। इस मंदिर से सटे कम से कम दस से बीस होटल, गेस्टहाउस भी बन गये हैं तथा मंदिर के चारों तरफ कई मकान बन जाने के कारण यह मंदिर दिखाई भी नहीं देता है। मंदिर के आसपास अनेक स्थानीय लोगों से पता करने पर भी वह बता नहीं पाते हैं। कोई कहता है कि इधर चले जाओ कोई उधर चले जाओ कह कर श्रीराधा मदनमोहन मंदिर की तरफ इशारा कर देते हैं, बहुत मश्किल से गुजराती धर्मशाला को खोजते-खोजते पहुंचना पड़ा।


            आज जब बॉंके बिहारी जी मंदिर के लिए कॉरिडोर की व्यवस्था सरकार द्वारा प्रस्तावित है, जिसको लेकर वृन्दावन में कॉरिडोर को लेकर समर्थन और विरोध में एक गतिरोध बना हुआ है। पॉंच एकड़ भूमि पर कॉरिडोर का निर्माण किया जाना है, जिसको लेकर आसपास के क्षेत्र की नाप तोल किये जाने पर स्थानीय लोगों द्वारा इस मंदिर के विषय में स्थानीय प्रशासन के पास यह मांग की गई कि इस मंदिर और इसके पास ही बनी एक समाधि को सुरक्षित किया जाये।


            राधा मोहन मंदिर के सेवायत मृदुल बल्लभ गोस्वामी ने मंदिर के सम्बन्ध में बताया कि श्री हित हरिवंश महाप्रभु के द्वितीय पुत्र गोस्वामी श्री कृष्ण चन्द्र जी महाराज जी के सेव्य ठाकुर श्रीराधामोहन जी महाराज हैं, और यह मंदिर 1584 ई. में बन कर तैयार हुआ था।

            श्री राधामोहन जी महाराज के अनन्य भक्त एवं वाणीसेवी श्री किशोरी शरण अलि जी अपनी रचना ‘‘हिंदी भक्ति काव्य में रस भक्ति धारा और उसका वाणी साहित्य’’ में प्राचीन स्थलों के भ्रमण को सहज व सरल मार्ग प्रदर्शित कर उल्लेखित करते हैं कि जुगल घाट के दाहिने पार्श्व में एक ऊँचे स्थान पर गोस्वामी श्री हित हरिवंशात्मज गोस्वामी श्री कृष्णदास जी के सेव्य ठाकुर श्री राधामोहन जी महाराज विराजे हैं। ठाकुर श्री राधामोहन जी महाराज के इस मंदिर को भव्य रूप देने और आसपास की भूमि को राधामोहन घेरे के नाम अभिसंज्ञात करने का श्रेय हितात्मज गोस्वामी श्री कृष्णदास जी के पौत्र गोस्वामी श्री सुखदेव जी को जाता है।

            पूर्व में श्री हितहरिवंश महाप्रभु के पिताजी श्री व्यास मिश्र जी के निवास देववन्द में ठाकुर श्रीराधामोहन जी महाराज की सेवा विराजमान थी।

            श्रीहित हरिवंश महाप्रभु जी 16 वीं शताव्दी में वृन्दावन आये थे। महाप्रभु के अंतर्ध्यान होने के पश्चात श्री कृष्ण चन्द्र जी महाराज सन् 1552 के लगभग वृन्दावन आए। इन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें से एक ‘‘करणानन्द महाकाव्य’’ को यहां पर लिखा था, इसके पश्चात उन्होंने टीका लिखना प्रारम्भ किया। किन्तु वह अपने जीवनकाल में इस टीका को पूर्ण नहीं कर सके थे। श्री प्रवोधानन्द सरस्वती जी ने 1578 में इस ‘‘करणानन्द महाकाव्य’’ की टीका को पूर्ण किया।

             सन् 1585 में दिल्ली के अब्दुल रहीम खानखाना के खजांची सुन्दर दास कायस्थ ने एक लाल पत्थर का मंदिर श्री राधाबल्लभ जी के लिए बनवाया था, उसी मंदिर के बचे पत्थरों से श्री राधामोहन मंदिर का निर्माण भी किया गया था। राधाबल्लभ मंदिर में स्थित नक्काशी की तरह ही इस मंदिर में भी लाल पत्थरों पर नक्काशी की गई है। 


            श्रीराधामोहन मंदिर श्री ठाकुर बांके बिहारी जी के वर्तमान मंदिर से लगभग 300 साल पूर्व में बना बताया जाता है। बांके बिहारी जी का मंदिर सन् 1864 के आसपास में बना था। 


            सन् 1552-1578 के बीच वृन्दावन की लता-पताओं की कुंज में राधामोहन घेरा से अभिसंज्ञात कर ठाकुर जी की सेवा पधराई गई। अकबर के शासन काल में अबुफजल के द्वारा इम्प्रीरीयल ग्रान्ट के तहत ब्रज के 35 मंदिरों को चुन कर उन्हें जगह दी गई थी, उसी क्रम में 30 बीघा जमीन राधामोहन मंदिर को भी दी गयी थी। 1980 में प्रो0 तारापद मुखर्जी ने इस पर रिसर्च किया था जो कि भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार एवं अलीगढ़ मुसलिम यूनीवसिर्टी में आज भी सुरक्षित है।

            राधामोहन घेरे में हितात्मज गोस्वामी श्रीहित मोहनचन्द्र जी के वंशज श्रीहित चैन किशोर गोस्वामी जी की समाधि है जिसका निर्माण विक्रम सम्वत् 1874 में वैध श्री कृष्णप्रसाद मिश्र ने करवाया था, इसी समाधि पर एक शिलालेख को देखा जा सकता है किन्तु इस समाधि को चारों तरफ से इस प्रकार से घेर दिया गया है कि उसके पास जाना भी मुश्किल से हो पाता है, वर्तमान में एक दुकान के अन्दर से जाकर बमुश्किल ही देखा जा सकता है।   

            वृन्दावन बॉके बिहारी मंदिर में आने बाले श्रद्धालुओं की भींड़ को देखते हुए उ0प्र0 सरकार ने कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया है, जिसके आधार पर मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर कॉरिडोर के निर्माण को हरि झण्डी मिलने पर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में कार्य करना प्रारम्भ किया तो कॉरिडोर के विरोध करने वाले लोगों ने कॉरिडोर की सीमा में आ रहे श्री राधा मोहन मंदिर को तथा पास में ही मौजूद एक समाधि को भी बचाने की कबायद शुरू कर दी।

            मृदूल बल्लभ गोस्वामी ने कहा कि वृन्दावन बॉके बिहारी जी मंदिर कॉरिडोर सीमा में आने वाले सांस्कृतिक व पुरातत्व महत्व के हिसाब से सर्वे करा कर ही कार्य को शुरू किया जाना चाहिए।

            


राधामोहन घेरा का जो क्षेत्रफल 200-300 साल पहले राधाबल्लभीय सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता था जो एक विशाल वन था एक कॉरिडोर जैसी संरचना पहले भी थी। राधाबल्लभ सम्प्रदाय के गोस्वामी लोगों की अपरस व उसके इतिहास को जानकर तथा उनकी सेवा को दृष्टिगत रखते हुए वर्तमान व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि गोस्वामी लोग विधिवत ठाकुर जी की सेवा कर सकें।