बुधवार, 16 जून 2021

पुत्री-जमाई की लम्बी आयु की कामना का पर्व जमाई षष्ठी

जमाई षष्ठी का पर्व कल था यानी 16 जून 2021 को यह ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह बंगाल का एक परम्परागत हर घर में मनाया जाने वाला बड़ा ही आत्मिक पर्व है, यह पुत्री जमाई की लम्बी उम्र की कामना के लिए होता है, घर की पुत्री की शादी हो चुकी हो, उसके पति को आज के दिन बुला कर अच्छे अच्छे पकवान बना कर जमाई और बेटी को आसन देकर पहले पूजा की जाती है फिर भोजन कराया जाता है यह कार्य सिर्फ बेटी की माँ यानी जमाई की सास ही करती है बड़े भी आर्शीवाद देते हैं वह वाद में करते हैं। इस प्रकार से बंगाल में यह एक दिन जमाई की अच्छे से खातिर दारी का दिन होता है, उसका मान सम्मान करने का दिन होता है, जमाई भी अपनी सामर्थ्य अनुसार मिठाई फल इत्यादी लेकर ससुराल जाते हैं, वहां हर घर में इस दिन जमाई आते हैं खूब आनन्द करते है हंसी मजाक के साथ पूरा दिन ससुराल में गुजारते हैं। यह शायद सामाजिक समरसता को बढाने का एक पारम्परिक पारिवारिक उत्सव के रूप मे मनाया जाता है। 


भारत की संस्कृति में और भारत के हर समाज में ही जमाई को ज़्यादा महत्व दिया जाता है, बंगाल इसी को दर्शाता है। जिसमें बंगाल में इस पर्व को बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व पर यहां के जनमानस का आचरण बंगाल की संस्कृति का अविभाजित अंग है।

कहते हैं की एक बार एक लालची बूढी औरत थी। वह हमेशा सारा खाना खा जाती थी और दोष बिल्ली पर डाल देती थी। बिल्ली माँ षष्ठी का वाहन है और उसने जाकर माँ षष्ठी से बूढी औरत की शिकायत की। माँ षष्ठी ने उस औरत को सबक सिखाने के लिये उसकी बेटी और दामाद को ले जाति है। तभी अपनी गलती मानते हुए बूढी औरत माँ की पूजा अर्चना करती है और माँ उसे उसकी बेटी और दामाद को लौटा देती है। इसी से प्रेरणा ले कर आज तक हजारों माँ और सासु माँ इस त्योहार को निरन्तर मनाती चली आ रहे हैं।


जामाई षष्ठी बंगाल का पारिवारिक पर्व है जो अपने जमाई के लिये मनाया जाता है। यह पर्व गर्मी के मौसम में ही आता है (बंगाल मे जैष्ट मास में पडता है)। बंगाल की उपजाऊ धरती पर इस महिने में आम, लीची, कृष्ण बदररी, पके कटहैल आदि फल होते है। इस शुभ दिन के अवसर पर बंगाल के परिवारों मे जमाई के लिये जशन का माहौल होता है पूरा परिवार ही इस दिन जश्न मनाता है।

बंगाल में इस पर्व को बडे ही अनोखे तरीके से मनाया जाता है। सास अपने जमाई और बेटी को घर पर बुलाती है और सास इस समय अनेक रसम रिवाज को पूरा करती है। सुबह जल्दी स्नान आदि करके, व्रत रखते हुए एक कूलो (सूप)  में धान, दुर्बा (घास) दही, मिठाई के साथ पांच तरह के फल को कूलो (सूप) में सजा कर एक हाथ का पंखा भी रख कर चन्दन आदि के साथ और षष्ठी देवी की पूजा करती हैं। षष्ठी पूजा के बाद पवित्र जल को बेटी दामाद पर धीरे धीरे छिडका जाता है और सास अपने बेटी और जमाई की लम्बी आयु की कामना षष्ठी देवी से करती है। पूजा के बाद सास जमाई को खूब सारे उपहार देती है और उनके सिर पर हाथ रख कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। इस दिन जमाई भीं अपने ससुराल जाते समय खूब मिठाई, फल इत्यादि लेकर जाते हैं और अपनी अपनी सासु माँ के लिए भी उपहार लेकर जाते हैं।


ऐसा कहा जाता है कि आदमी के दिल तक का रास्ता उसके पेट से हो कर गुजरता है। भारत में भोजन से बढ़ कर कुछ नहीं है, भोजन इस पर्व का एक महत्वपूर्ण भाग है। लूची (पूडी) और आलू की तरकारी, मोयदा (मैदा) की लूची या दाल पूड़ी कचौड़ी और हींग दही आलू की तरकारी आदि सुबह का नाश्ता दोपहर में चावल, बैंगुन भाजा, मूँग दाल, प्याज के पकोडे, मच्छली करी, या अन्ड़ा करी या मटन चिकिन, पापड़, खट्टे आम की चटनी आदि दोपहर का भोजन। इसके वाद मिठाई में रसगुल्ला, गुलाबजामुन, पांतुआ, आम दोइ, मिष्टि दोई, आदि बनता है। जमाई लोग खूब मजे से खाते पीते हैं मौज मस्ती करते हैं खूब हंसी मजाक हाय हल्ला करते हैं यह एक दिन सुसराल में जमाई की जमकर खातिरदारी होती है।