मंगलवार, 12 सितंबर 2023

निर्मला सुन्दरी से श्री श्रीमाँ आनन्दमयी

ब्रज में न जाने कितने ही लोग प्रतिदिन ब्रज और वृन्दावन में दर्शन करने आते कुछ तो यहीं बसने की आश लिए यहां आते हैं। भौतिक सुख सुविधाओं को त्याग कर कितने ही लोग यहां रह कर साधना में रत रहते हैं, असंख्य सन्तों ने इस दिव्य भूमि को अपनी साधना स्थली बना लिया और यहां पर रह कर आश्रम, मठ, मंदिरों का निमार्ण कर लोक कल्याण का काम किया है। इनमें एक नाम आनन्दमयी माँ का भी है जिन्होंने वृन्दावन में विशाल मंदिर का निमार्ण कराया और असंख्य लोगों को धार्मिक आस्था और भक्ति के मार्ग से जोड़ने का कार्य किया। आनन्दमयी माँ का जन्म 30 अप्रैल सन् 1886 ई. वृहस्पतिवार के दिन रात्रि 3 बजे त्रिपुरा जिलान्तर्गत अभिवाजित बंगाल प्रान्त के ’सेउड़ा’ नामक ग्राम में हुआ था। पिता श्री विपिनबिहारी भट्टाचार्य“ तथा माँ का नाम “मोक्षदा सुन्दरी“ था। पूर्व जन्म की इन्हें स्मृति बनी रही। बचपन में माँ को खिला पिला देने पर भी वह हमेशा आकाश की ओर ही निहारती रहती थीं बाल्यावस्था में स्वाभाविक उदासीन स्वरूप देख लोग इन्हें ’ढेला’ या ’विदिशा’ भी कहने लगे थे। जिसका मतलब आजल या पागल कहते थे। इन्हें अपने देह की कोई सुधबुध नहीं रहती थी।
माँ ने बचपन में इनका नाम निर्मला सुन्दरी रखा था। आनन्दमयी माँ नाम तो बाद में ढाका के प्रसिद्ध ज्योतिष चन्द्र राय के साथ एक बार ’सिद्धेश्वरी ससान’ में जाने पर वहाँ के सन्यासी स्वामी मौनानन्द महाराज ने रखा था। शैशवकाल में अपने पितामह की सान्निध्य में गाँव की एक पाठशाला में अल्प शिक्षा ग्रहण की थी क्योंकि उस समय शिक्षा, देशकाल की सीमा तक ही सीमित थी। फिर भी तीव्र प्रतिभा एवं विलक्षण स्मरण शक्ति की धनी होने के चलते आप शिक्षा के प्रति अब जैसी इतनी जागरूकता न थी। उस समय की प्रथानुसार 13 वर्ष की आयु में सन् 1909 में ढाका विक्रमपुर आटपाड़ा गाँव के ’रमणी मोहन चक्रवर्ती’ के साथ आपका विवाह हो गया था। इनकी लघु वैवाहिक जीवन यात्रा में भी अन्तर्मुखी साधना प्रवाहित रही। माँ के कारण ही पतिदेव ’रमणीमोहन’ का नाम ’भोलानाथ’ के नाम से विख्यात हुए। विवाह के कुछ समय बाद ही पतिदेव की पुलिस नौकरी की छूट गई। परिस्थितिवश ऐसे में 4 वर्ष तक जेठ के साथ साधन निरत रहते हुए रहना पड़ा। भोजन बनाते ही कभी समाधी लग जाती। ऐसी दशा देखकर आपसे जेठ बड़े प्रसन्न थे। चूल्हे पर चढ़ा सब कुछ जल जाता तो जेठानी प्रायः नाराज रहती थीं। पर कुछ बस न चलता। कुछ वर्षो बाद पतिदेव की नौकरी नवाब की रियासत अष्टग्राम में पुनः सर्वे विभाग में लग गई। तब वहाँ जयशंकर सेन के बाड़े में आकर आप रहने लगीं थीं। सेन की पत्नी का आपके प्रति इतनी श्रद्धा थी कि आपका नाम खुशी की माँ कह कर पुकारती थीं। आप भागवत आदि सुनते-सुनते भावावेश में आ जाती थी। इसी बीच 18 वर्ष की आयु में कई बार नौकरी से स्थानान्तरण भी हुआ। आपके अन्दर तीव्र प्रकट ज्योति होते देखकर कितने ही तान्त्रिकों एवं ओझाओं को आपके पतिदेव ने दिखाया किन्तु सभी नतमस्तक होकर वापस चले जाते थे। तब कहीं पतिदेव को भी ज्ञान हुआ कि यह पूर्व अर्जित भावदशा ईश्वरीय प्रदत्त महत स्थिती है। सन् 1922 ई. श्रावण झूलन पूर्णिमा को स्वतः दीक्षा सम्पन्न हुई। एवं योगिक, तांत्रिक क्रियाओं के साथ संस्कार आदिक मंत्र जप करना चलता रहा। आपने कोई सम्प्रदाय नहीं चलाया। हिन्दू सभी देवी देवताओं में आस्था और उनका समान करती थी। इसी बीच सन् 1924 ई. में पुनः नौकरी छूट गई। अबकी बार नवाब के द्वारा ढाका मैनेजरी मिली। आप यहाँ शाहबाग में अपने देवर ’माखन’ एवं भतीजे ’आशु’ के साथ रहती थीं। यहीं पर आपकी अनन्य उपासिका गुरूप्रिया दीदी से भी प्रथम भेंट हुई। आगे चलकर माँ के चरणों में आजीवन बनी रहीं। इनके द्वारा मूलतः बंगाल में छपी ’श्री श्री माँ आनन्दमयी’ नामक संस्मरणात्मक रचनाएँ सन् 1964 ई. तक की अनुभूतियाँ 20 खण्डों में छपी है। इन रचनाओं की हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। माँ की बाहरी यात्रा सन् 1927 ई. से हरिद्वार तीर्थो के कुम्भ मेले से प्रारम्भ हुई। लौटते समय मथुरा वृन्दावन आई। फिर तो काशी आदि विभिन्न तीर्थों की यात्राएँ होती रहीं। बंगीय परिवेश के कारण आप शक्ति की विशेष उपासिका थीं। किंतु साथ में गौड़ीय सम्प्रदाय चैतन्य महाप्रभु के प्रति निष्ठा थी। माँ के सम्पर्क में आने में आगे चलकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, आचार्य जे. पी. कृपलानी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. गोविन्दबल्लभ पंत, युगल किशोर विड़ला, यमुनालाल बजाज, श्रीमती अपर्णा रे, श्रीमती कमला नेहरू, श्री दिलीप कुमार राय, श्री महादेव देसाई, श्रीगोपाल स्वरूप पाठक, श्रीमती सुचेता कृपलानी, जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इन्द्रा गाँधी आदि थे। वृन्दावन धाम आश्रम में एक बार मैंने भी साक्षात् दर्शन किये थे। उस समय उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था मैंने दर्शन किये और फिर 27 अगस्त सन् 1982 ई. 96 वर्ष की आयु में माँ ने देहरादून स्थित अपने किशनपुरा आश्रम में इस धाम को छोड़ कर हमेशा के लिए सभी को छोड़ कर चलीं गयीं। चमत्कार की वात तो यह थी कि इतनी वृद्धावस्था होने पर भी आपके एक भी बाल सफेद नहीं बल्कि स्याह काले ही बने रहे। आपके आश्रम वृन्दावन में छलिया राधाकृष्ण की सेवा पूजा होती है
मन्दिर का निर्माण सन् 1950 ई. के लगभग सुश्री माँ आनन्दमयी जी के द्वारा किया गया। मंदिर में ठाकुर छलिया राधाकृष्ण विराजते हैं। बगल में गौर निताई भी है। मंदिर एक विशालकाय अहाते के में बना हुआ है। ठाकुर के छलिया नाम पड़ने का कारण बड़ा विचित्र है एकबार ग्वालियर के महाराज जियाजी राव सिंधिया ने अपने लिए अष्टधातु निर्मित एक भव्य मूर्ति बनवायी। स्थापना उत्सव में माँ को भी बुलवाया किन्तु उत्सव के पहले ही अचानक महाराज परलोकवासी हो गये। घटना से पत्नी जियाजी राव सिंधिया बड़ी मर्माहत हो गयीं। माँ के समझाने बुझाने पर अचानक यह आया कि छलिया यह वृन्दावन धाम में ही वसना चाहते है। माँ से वार्तालाप हुयी। माँ ने स्वीकार कर लिया। और वृन्दावन स्थित रामकृष्ण मिशन हास्पीटल के सामने आनन्दमयी माँ का आश्रम है। जहां राधारानी विग्रह, छलिया ठाकुर के साथ गौर निताई विग्रह भी स्थापित किये गए। तभी से ठाकुर का नाम छलिया पड़ गया। एकबार काशी पक्के मोहल्ले में कोई बंगीय भक्त जमींदार का गोपाल मंदिर था। गरीबी के कारण आने वाला खर्च बन्द हो गया। भक्तराज तीन बार गोपालजी को गंगाजी में पधराने का प्रयास किया। दो बार व्यवधान पड़ने से गोपाल रुक गये। तीसरी बार ठाकुर ने स्वप्न दिया मुझे आनन्दमयी माँ को भेंट कर दो। माँ के आश्रम का पता लगाते हुए भक्त पहुँच गया। और घटना सुनाते हुए माँ को भेंट कर दिया। माँ ने वहीं काशीपुरी में गंगा के तट पर आनन्द ज्योति नामक मंदिर का निर्माण कराकर वहीं लड्डू गोपाल का विग्रह विराजित कर दिया। माँ के जीवन की ऐसी ही अनेक घटनाऐं है। राधाकृष्ण एवं गौर निताई विग्रह पूना आश्रम, उत्तरकाशी एवं देहरादून आदि सभी आश्रमों में विराजमान है। दीपावली कृष्णाष्टमी, एवं राधाष्टमी पर्व पर वृन्दावन में धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।

रविवार, 10 सितंबर 2023

मथुरा वृन्दावन रेल लाइन का परिवर्तन समस्या या समाधान

मथुरा और वृन्दावन के बीच चलने वाली रेलवे की नयी व्यवस्था के वारे में कुछ वात कर लें। जानकारी के अनुसार इस रेलवे लाइन का निर्माण वृन्दावन स्थित राधा माधव जयपुर मंदिर के निर्माण के लिए उस समय पत्थरों की ढुलाई के लिए किया गया था। करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले मथुरा-वृंदावन के बीच यह मीटर गेज रेल लाइन डाली गयी थी, कुछ सालों के वाद यह इतिहास में यादगार बन कर रह गई। जयपुर घराने के राजा सवाई माधव सिंह (द्वितीय) द्वारा वृंदावन में जयपुर मंदिर (राधा माधव) का निर्माण कराया गया था। इसके लिए 1905 से 1908 के बीच जयपुर और धौलपुर से लाल पत्थरों की ढुलाई के लिए राजा सवाई माधव सिंह द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश शासकों से विशेष अनुमति लेकर यह मीटर गेज लाइन बिछाई गई थी। मंदिर परिसर में ही अस्थायी रूप से स्टेशन भी बनाया गया था। राधा माधव मंदिर के निर्माण में रेल से पत्थरों की ढुलाई के कारण मंदिर का निर्माण 23 मई 1917 में पूरा हुआ और इस अवसर पर ठाकुरजी का पाटोत्सव मनाया गया। इस मंदिर के निर्माण में 40 वर्ष का समय लगा था।
इस रेल लाइन को अब डेढ़ सौ वर्ष के वाद गेज परिवर्तन करने का काम उत्तर मध्य रेलवे ने शुरू किया। यह रेलवे लाइन मथुरा वृंदावन के बीच 12 किलोमीटर के मीटर गेज रेल ट्रैक के रूप में थी, जिस पर कभी वृन्दावन से बैशाली एक्सप्रेस नोर्थ बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेषन तक सवारी गाड़ी के रूप में अप एण्ड डाउन किया करती थी तथा मालगाड़ी भी वृन्दावन के कुछ व्यापारियों के लिए नोर्थ बंगाल से कुछ माल लेकर आती व जाती थी। दिलचस्प बात यह है कि वृन्दावन में नगरवासी कुंज, छोटे पागल बाबा मंदिर में दुर्गा पूजा के लिए गौर कृष्ण दास उर्फ सुरेस्वरानन्द जी ने सन् 1963 में प्रथम बार एक दुर्गा की प्रतिमा को जलपाईगुड़ी से बनवा कर यहां पूजा के लिए मंगाई थी। मंदिर के सेवायत नवद्वीप दास ने बताया कि मूर्ति प्रतिवर्ष वृन्दावन इसी ट्रेन के लगेज में लाई जाती रही, सन् 2000 के बाद मूर्ति अब यहां नहीं आती है, क्यों कि अब सवारी गाड़ी व माल गाड़ी का चलन इस रूट पर बन्द कर दिया गया। इसके कुछ समय के बाद इस रेल रूट पर बैटरी से चलने वाली दो डिब्बों की रेल बस को शुरू किया गया जिसे तत्कालीन रेलमंत्री रामविलास पासवान ने शुरू किया था। कुछ समय तक ठीक से चलने के बाद आयदिन इसमें खराबी आने लगी। कभी इसे चालू किया जाता फिर खराब होने पर बन्द कर दिया जाता था। रेल बस दिन में केवल तीन चक्कर लगाती थी, तथा इसमें एक समय में 72 से अधिक यात्रियों को नहीं ले जाया जा सकता था। इसलिए दोनों शहरों के बीच पूरे यातायात का भार मथुरा-वृंदावन मार्ग पर पड़ने लगा। इस स्थिति को देखते हुए यातायात को आसान बनाने की दृष्टि से एक अन्य विकल्प को विकसित करना अत्यावश्यक हो गया। अब मथुरा-वृंदावन रेल लाइन को डबल रोड के रूप में बदला जाएगा, साथ ही एलिवेटेड को ट्विन मेट्रो ट्रैक के रूप में विकसित किये जाने की योजना है। मथुरा-वृंदावन मेट्रो जो भाजपा सांसद (मथुरा) हेमा मालिनी का लंबे समय से सपना रहा है, जल्द ही यह वास्तविकता बदलने जा रही है। इसके लिए रेल मंत्रालय और संबंधित अधिकारियों ने कम उपयोग में आ रही मथुरा-वृंदावन रेल लाइन को डबल रोड में बदलने और एलिवेटेड पाथवे को मेट्रो ट्रैक के रूप में विकसित करने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
श्रीमती हेमा मालिनी और ब्रज तीर्थ विकास परिषद् के उपाध्यक्ष शैलजा कांत मिश्रा ने रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल को मथुरा वृन्दावन में अनियंत्रित यातायात के समाधान के रूप में मेट्रो चलाने का प्रस्ताव दिया था, जो मथुरा और वृंदावन के बीच यात्रा को असुविधाजनक और कम समय लेने वाला बनाना है। यूपी के तत्कालीन ऊर्जा मंत्री वर्तमान विधायक श्री श्रीकांत शर्मा ने उनसे ‘ब्रज हेरिटेज मेट्रो ट्रेन कॉरिडोर’ पर भी चर्चा की थी। मंत्रालय से मंजूरी अनिवार्य थी क्योंकि संपत्ति रेलवे की है। रेल भूमि विकास प्राधिकरण (दिल्ली) के अधिकारी अंजनी कुमार और आगरा के डीआरएम ने स्थिति और परियोजना के दायरे का अध्ययन करने के लिए जिला प्रशासन के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की जिसमें यह निर्णय लिया गया कि रेल लाइन को डबल रोड में बदल दिया जाएगा, साथ ही एलिवेटेड का उपयोग मेट्रो के लिए किया जाएगा। मेट्रो के दो ट्रैक मथुरा और वृन्दावन के बीच आने-जाने से सहायता मिलेगी। मथुरा के लोगों के लिए मेट्रो की सवारी अपने आप में एक आकर्षण के रूप में देखा जा रहा है जो यात्रियों को मथुरा-वृंदावन के प्रतिष्ठित मंदिरों जैसे श्री कृष्ण जन्मस्थान, बिड़ला मंदिर और पागल बाबा मंदिर को उपर से देखने का अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा, मेट्रो लाइन के दोनों ओर जहां स्टेशनों की योजना है, वहां शॉपिंग मॉल और पार्किंग सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी। मथुरा वृंदावन के बीच रेल ट्रैक 12 किमी. का है मथुरा वृंदावन के बीच करीब 12 किलोमीटर का रेल ट्रैक है। इस मीटर गेज को परिवर्तित करने के लिए रेलवे ने प्रोजेक्ट तैयार कर काम भी शुरू कर दिया था। रेलवे द्वारा तैयार प्रोजेक्ट के अनुसार इस ट्रैक के ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करने के दौरान 2 आरओबी, 17 आरयूबी के अलावा 23 छोटे ब्रिज भी बनाए जाने की योजना थी। इस ट्रैक पर 6.6 किलोमीटर का एलिवेटेड इंबैंकमेंट ट्रैक रहेगा इसके अलावा 4.5 किलोमीटर लेबल ट्रैक बनाया जायेगा यानी जमीन के लेबल पर बनाया जाता फिलहाल इसका काम बन्द करा दिया गया है। 2 स्टेशनों के साथ 4 हॉल्ट स्टेशन भी बनाए जाने थे मथुरा वृंदावन के बीच गेज ट्रैक परिवर्तन के बाद इस रूट पर 4 हॉल्ट स्टेशन के साथ 2 रेलवे स्टेशन बनाए जाने की योजना थी। मथुरा जंक्शन से शुरू होने वाले इस रेल ट्रैक पर पहला हॉल्ट स्टेशन शिव ताल पर होता। इसके बाद श्री कृष्ण जन्मस्थान और फिर मसानी पर क्रॉसिंग रेलवे स्टेशन बनाया जाना था। यहां से आगे चामुंडा देवी मंदिर के पास और चैतन्य बिहार वृन्दावन में हॉल्ट स्टेशन बनना था। अंत में वृंदावन स्टेशन टर्मिनल विकसित करने की योजना थी। गेज ट्रैक परिवर्तन का काम जनवरी 2023 सें शुरू हो चुका था गेज कन्वर्ट करने का काम 14 जनवरी 2023 से शुरू किया गया था। 10 चरण में शुरू होने वाले इस गेज परिवर्तन का काम 14 जनवरी 2025 को काम पूरा किया जाना था। इसके लिए अर्थ वर्क और ब्लैंकेटिंग का काम शुरू किया गया। यह काम 15 जुलाई 2024 तक पूरा होना था। तथा मार्च 2023 से सितम्बर 2024 तक पुल बनाने का काम भी पूरा करना था। स्टेशन की इमारत और प्लेटफार्म बनाने का काम भी इसी दौरान पूरा किया जाना था। ट्रैक लिंक करने का काम फरवरी 2024 से नवम्बर 2024 तक किया जाना था। इस ट्रैक पर विद्युतीकरण भी किया जाना था। यह काम अप्रैल 2023 से शुरू होकर दिसंबर 2024 तक पूरा करना था। इस दौरान सिगनल और टेलीग्राफ सिस्टम पर भी काम किया जाना था। इसके बाद टेस्टिंग, ट्रायल आदि का काम जनवरी 2025 तक पूरा कर लिये जाने की योजना थी, यानी 2 साल के भीतर गेज परिवर्तन कर रेलवे इस ट्रैक को पूरी तरह से चालू कर देता। श्रद्धालुओं को मिलती सुबिधाएं स्थानीय व्यापारियों को होता फायदा गेज परिवर्तन होने के बाद मथुरा वृंदावन आने वाले श्रद्धालुओं को बड़ी राहत मिलती। अभी श्रद्धालु मथुरा जंक्शन स्टेशन पर उतरते हैं और उसके बाद वह विभिन्न माध्यम से वृंदावन तक आते हैं। वृंदावन स्टेशन से लंबी दूरी की ट्रेन शुरू होने से न केवल श्रद्धालुओं को राहत मिलती बल्कि स्थानीय लोगों और स्थानीय व्यापारियों को भी पुनः सहूलियत मिल सकती थी। मथुरा वृंदावन में करोड़ों श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शन करने आते हैं। इस ट्रैक के परिवर्तन के बाद श्रद्धालुओं को जहां राहत मिलने की सम्भावना थी वहीं शहर में लगने वाले जाम की समस्या से भी निजात मिल सकती थी। रेलवे वंदे भारत की तरह की ट्रेन चलाने की योजना बना रहा था रेलवे मथुरा वृंदावन के बीच कम कोच की वंदे भारत जैसी ट्रेन चलाने की योजना बना रहा था। इसके साथ ही वृंदावन स्टेशन से लंबी दूरी की भी कुछ ट्रेन चला कर श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को भी सुबिधा मिल सकती थी। हालांकि मथुरा वृंदावन के बीच चलने वाली ट्रेन के नाम और इसकी टाइमिंग क्या होती इस पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया। मथुरा वृन्दावन के मध्य गेज परिवर्तन कर रेलवे ट्रैक को पूरी तरह से चालू करने में 402 करोड़ 88 लाख के इस गति शक्ति प्रोजेक्ट पर उत्तर मध्य रेलवे ने काम करना शुरू कर दिया था कुछ लोगों को यह विकास कार्य रास नहीं आया और विरोध के चलते फिलहाल इस योजना को ब्रेक लग गया है।
रेलवे को पूरे ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा क्षेत्र को रेल ट्रेक से जोड़ना चाहिए रेलवे को ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में पड़ने वाले पडाव स्थलों को जोड़कर तीन फेज में मेट्रो की तर्ज पर पिलर्स डाल कर यहां भी मेट्रो चलाने की योजना बनानी चाहिए। प्रथम फेज में मथुरा से वृन्दावन तक मेट्रो ट्रेक डालने पर विचार किया जाना चाहिए। दूसरे चरण में वृन्दावन से राधाकुण्ड़ बरसाना होते हुए गोवर्धन से मथुरा तक मेट्रो ट्रेक डालना चाहिए, तीसरे चरण में मथुरा से गोकुल महावन बलदेव होकर वृन्दावन तक का मेट्रो ट्रेक विकसित किया जाना चाहिए। जिससे रेलवे को अत्यधिक आय का अवसर मिलेगा, क्यों कि मथुरा वृन्दावन में प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं तथा ब्रज के सभी प्राचीन धार्मिक व आस्था के केन्द्रों में जहां-जहां श्रीकृष्ण राधारानी की लीला स्थलियों का दर्षन करते हैं। इस योजना से रेलवे को भारी लाभ का अनुमान लगाया जा सकता है तथा मथुरा वृन्दावन तथा ब्रजचौरासी कोस परिक्रमा का विकास भी सम्भव है जिससे रोजगार की अपार सम्भावनाओं की आषा की जा सकती है।