घोडों के टाप की टक टक टक टक की आवाज अब मथुरा-वृन्दावन की सडकों पर सुनाई नही देती है अब यह वीते जमाने की वात बन कर रह गई है बच्चे भी कितावों में ही टमटम घोडा गाडी देखेंगे। एक जमाना था जब मथुरा शहर के चौक बाजार के गुडहाई बाजार से घोडा गाडी वृन्दावन और स्टेशन के लिये जाया करते थे। व्यस्त सडकों के बीच से होकर यह घोडा गाडी चला करती थी। बाहर से आने वाले तीर्थ यात्री, पर्यटक, इन घोडा गाडी में बेठ कर सेर करने निकल जाते थे वृन्दावन के रास्ते में ठन्डी ठन्डी हबा का आनन्द भी और वृन्दावन-मथुरा के बीच हरियाली का आनन्द भी लेते थे। यही व्यवस्था वृन्दावन के तांगा अडडा पत्थर पुरा में और रंगजी मंदिर के सामने से तांगे चला करते थे। यह तांगे की सबारी कर लोग मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, महावन दाउजी, गोवर्धन, बरसाना, नन्दगांव तक जाया करते थे। एक समय था जब मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर भी घोडा गाडी में ही चला करते थे। कई जगह इसका वर्णन भी मिलता है। मुगलकाल में भी घोडा गाडी का चलन था शासक घोडा गाडी में ही शहर का भ्रमण करते थे। घोडा गाडी का चलन मथुरा में बग्घी के रूप में भी हुआ पहले शहर के रहीशों के यहां घोडा गाडी यानी बग्घी के रूप में थी। जिसमें बेठकर नगर के गण्मान्य सेठ लोग अपने मील कारखाने या किसी आयोजन में जाया आया करते थे। कुछ घराने ऐसे भी थे जिनके बच्चे भी स्कूल बग्घी में बैठ कर जाते थे उस समय की शान शौकत का हिस्सा थी बग्घी लोगों की हैसियत भी घोडा बग्घी से ही होती थी। समय के साथ मोटर कार ने यह जगह ले ली।
घोडा गाडी रखने वालों का कहना हैं कि अब हर चीज के इतने दाम हो गये हैं कि इन्हें रखना और इनका रख रखाव काफी महंगा हो गया है उपर से पशु क्रूरता अधिनियम का डर, घोडे को खिलाना उसकी देख रेख करना जगह का अभाव हारी बीमारी अलग से है। इस लिये इस धन्धे को छोड कर किसी और काम में लग गये हैं। अब केबल शगुन के लिये वारात चढाने के लिये केबल घोडा ही रखते हैं। दुल्हे की वारात की चढाई के लिये काम में आ रहे हैं घोडे गाडियों का अब पता नही। एक समय ऐसा भी था जब आगरा से मथुरा नरी सेमरी तक घोडा गाडियों की दौड. हुआ करती थी। जिसमें बडी रकम का सटटा तक होता था। प्रशासन ने घोडा गाडी दौड. को बन्द करा दिया। पुलिस भी मेले आदि में घोडे से निगरानी रखती थी अब यह व्यवस्था भी धीरे धीरे समाप्ति के कगार पर है। एतिहासिकता को बनाये रखने के लिये घोडा गाडी को हेरीटेज प्लान में शामिल किया जाना चाहिये।
सुनील शर्मा, मथुरा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें