शनिवार, 25 जनवरी 2014

ब्रजवासियों को चेतावनी वृन्दावन अव वनेगा वृन्दानगर।

ब्रजवासियों को चेतावनी
वृन्दावन अव वनेगा वृन्दानगर। 
लता-पता, कुण्ड-सरोवर, बाग-बगीचे, कुंज-निकुंज के अस्तित्व को मिटा फ्लैट संस्कृति में बदलता वृन्दावन।
(सुनील शर्मा)
श्री राधाकृष्ण की रासस्थली वृन्दावन का नाम लेते ही लोगों के मन में यह विचार उमड़ते हैं कि वृन्दा अर्थात तुलसी और वन अर्थात जंगल होगा तुलसीवन यानी वृन्दावन अर्थात राधाजी की वह रासस्थली जहां नूपूरों की वह मधुर आहट आने वाले हर भक्त को राधाकृष्ण की भक्तिमें लीन होने के लिए विवश कर देगी।
इसी वृन्दावन के उन वृन्दादलों की सुगन्ध ने अपनी पविव्रता और मधुरता के लिये न जाने कितने महान ऋषि-मुनियों और महान कवियों, संत-महात्माओं को और अवतारों को यहां आने के लिए प्रेरित नहीं किया, भारतवर्ष के हर कोने से असंख्य लोग यहां आते हैं। यहां की माटी ने देश के लोगों को ही नहीं विदेशी कृष्ण भक्तों को भी प्रेरित किया है।
जिस काल में उसकी गरिमा अपनी वास्तविकता और कालमहत्वता को इतिहास के अतीत में समेटे हुए लुप्त हो चुकी थी। इस समय श्री कृष्ण के अन्यन्य भक्त श्री चैतन्य महाप्रभु का जब इस स्थान पर प्रथम वार आगमन हुआ तो वह विह्वल हो उठे, और उस अज्ञात आशक्ति से बंधे हुए खिंचे चले आये और आज के वृन्दावन के उस पुरातन स्वरूप की खोज की जो कृष्ण राधा के नाम से कण-कण में विंधा हुआ था।
यह कृष्ण नाम कोई एक समय रेखा से आबद्ध नहीं है कि कुछ समय के पश्चात कृष्ण का नाम वृन्दावन के साथ लुप्त या स्थिर हो जायेगा शायद यह कुछ सिरफिरों की साजिश का अंग प्राय हो सकता है।
लेकिन उस अचिर और अन्नत कृष्ण के नाम को समाप्त करना किसी की ताकत की बात नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान भी अपनी शक्ति हनुमान जी की शक्ति की तरह भूल गये हैं।
वृन्दावन से प्राचीन प्रतिमाओं की तस्करी होती थी और सुनियोजित ढंग से हो भी रही है। वर्तमान में उसका बदला हुआ स्वरूप वृन्दावन के ऐतिहासिक स्वरूप को मिटाने का एक बहुत बड़ा षड़यन्त्र चल रहा है। जिसमें बाहरी ताकतों का मिश्रण भी है। अनेक चमत्कारों से युक्त ये वृन्दावन के लाडले ठाकुर अपनी शक्ति को भूलकर विदेशी नागरिकों के घरों में भारतीय संस्कृति का एक प्रतीक बनकर चिह्न जरूर बन सकते हैं। लेकिन आराध्य या उपासना का केन्द्र नहीं बन सकते। इन अद्वितीय प्रतिमाओं की कीमत लाखों करोड़ों में आंकी जाती है, एक प्रस्तर या काठ से बनी प्रतिमा की कीमत इतनी नहीं हो सकती बल्कि वह उन लाखों करोड़ों भारतीय उपासकों की भक्ति और श्रृद्धा की कीमत है जिन्होंने अकिंचन प्रेम से उपासना की है। ये बृजवासी ही इस कलयुग में विस्मृत शक्ति को जगाकर ही वृन्दावन को बचा सकते हैं।
बंगाल के घर-घर में आज भी श्रृद्धा और भक्ति से चैतन्य महाप्रभु का नाम लिया जाता है, वह चाहे पश्चिम बंगाल हो या पूर्वी बंगाल। श्री चैतन्य महाप्रभु ने वृन्दावन से अधिक बंगाल के घर-घर में श्रीकृष्ण के नाम को बसा दिया जैसे मनुष्य के प्राण। श्री चैतन्य महाप्रभु के दिखाये श्रीकृष्ण प्रेम के मार्ग पर चलकर श्रीकृष्ण के निश्छल प्रेम से अभिभूत बंगाल से विधवायें और असहाय महिलायें वृन्दावन के नाम से नतमस्तक होकर अपने जीवन को धन्य मानते हुए यहां आने को लालायित रहतीं हैं, और आज जब वे वृन्दावन आतीं हैं तो उनका रोम-रोम काॅंप उठता है कि यहीं क्या वो चैतन्य महाप्रभु द्वारा खोजा गया ”वृन्दावन“ है।
उस चैतन्य महाप्रभु के ”वृन्दावन“ को ढूढ़ती हुयी अनेक महिलाओं के जीवन के अनेक बसन्त व्यतीत हो चुके हैं, लेकिन आज तक वही वृन्दावन खोजने का क्रम जारी है और 10-15 वर्ष की अवस्था में वृन्दावन आयीं ये बेसहारा और असहाय विधवायें और परितक्यतायें अपने यौवन और शक्ति को खोकर वृद्ध और लाचार हो चुकी हैं, आज इन महिलाओं के पास सस्ते और सुरक्षित रहने को मकान नहीं हैं। जब वे वृन्दावन आयीं थीं, उस समय इन महिलाओं के पास पचास पैसे या एक रुपया महिना पर मकान किराये पर थे।
प्रमाणिकता है कि वृन्दावन मुख्य रूप से सात देवालयों की जागीर था तथा इन देवालयों में से अधिकतर बंगालियों से सम्बन्धित थे। उस समय श्री मदन मोहन जी, गोविन्द देव जी, राधा दामोदर, श्याम सुन्दर जी, राधारमण जी, गोपी नाथ जी व गोकुलानन्द जी मुख्य सात देवालय थे। वृन्दावन की सारी जायदाद श्री मदन मोहन जी महाराज व गोविन्द देव जी के हाथों थी। बताया जाता है कि इन मन्दिरों के भक्त धनी-मानी राजाओं व व्यक्तियों ने अपने जीवन के कुछ समय के लिए वृन्दावन वास के लिए बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण कराया था। इन लोगों में कुछ धनी मानियों ने अपनी जायदाद मन्दिर को समर्पित कर दीं इन जायदादों के साथ मन्दिरों को काफी अचल सम्पत्ति प्राप्त हो गयी।
कभी जागीरदार कहीं जाने वाली इन मन्दिरों की हालात वर्तमान में काफी खस्ता नजर आने लगी है, जहां पूर्व में इन जायदादों की कोठरियों में बंगाल से आयी कृष्ण भक्त परित्यक्तायें व विधवायें काफी सस्ते व कल्पना से परे आराम से जीवन व्यतीत करती थीं। आज वे ही बेघर होकर अनिश्चित भविष्य के दौर से मोक्ष की कल्पना से आशंकित हैं। जागीरदार मन्दिरों के कुछ मन्दिरों के महन्तों ने अपने मन्दिर की वेशकीमती जायदादों को भू-माफियों को ऊँची-ऊँची कीमत पर बेचकर ऐतिहासिकता को समाप्त करना शुरू कर दिया है। क्या इन मन्दिरों के पास अपने मन्दिरों की देखभाल करने की धनराशि नहीं है या वे वर्तमान की धनपतियों के काले धन की लालच में ऐशो आराम की जिन्दगी व्यतीत करने के लिए मंदिरों की जायदादों की आहुति चढ़ा रहे हैं।
कानूनी प्रक्रिया की दृष्टि से देखा जाये तो हिन्दू देवत्व सम्पत्ति अधिनियम के अनुसार किसी भी देवालय की देवत्व सम्पत्ति को बिना आगरा मण्डल के आयुक्त महोदय की स्वीकृति के बिना बेचा नहीं जा सकता है और न ही लीज पर ही दिया जा सकता है। इसके बाद भी तथाकथित सेवायत महन्त किस प्रकार से कानून का उल्लघंन करके किसकी शय पर मंदिरों की जायदादों से भू-माफिया और भू-पतियों को जायदाद बेच रहे हैं। क्या इसमें प्रशासन की मौन स्वीकृति है या भू-माफियाओं के हाथ इतने लम्बे हैं कि प्रशासन या शासन खामोश बैठकर वृन्दावन की एतिहासिकता को समाप्त करने पर तुला हुआ है। ब्रजवासियों का ध्यान अभी इस ओर नहीं गया है कि यदि वृन्दावन की ऐतिहासिकता समाप्त हो गयी तो क्या मन्दिरों की बजाय फ्लैटों या कोठियों को देखने के लिए वृन्दावन कौन आयेगा।
यदि बात विकास की हो तो बुरा नहीं लगेगा लेकिन जब वहां की संस्कृति को बिगाड़ कर उसका स्वरूप बदल देने की योजना हो तो अवश्य ही बुरा लगेगा। वर्तमान में वृन्दावन में जो फ्लैट संस्कृति शुरू हुई है उसकी वजह से वृन्दावन में लता-पता, कुण्ड-सरोवर, बाग-बगीचे, कुंज-निकुंज के अस्तित्व को मिटा दिया गया है। और होड़ शुरू हुई है दिल्ली की पांच सितारा संस्कृति से जो और अधिक विकृत है। आज वृन्दावन में ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी हो गयीं हैं। इमारतों के नीचे पार्किंग का धन्धा चल रहा है बहुमंजिली इमारतों में रहने, सोने, खाने-पीने के सभी सुख साधन मौजूद हैं गेस्ट हाउस बनाकर यात्रियों को ठहराकर यात्रियों की जेब हल्की करने का धन्धा वृन्दावन में आजकल जोरों पर है। इस प्रकार की मारा-मारी के बीच वृन्दावन में जमीनों के रेट आसमान छू रहे हैं। किसी जगह का मालिक कोई है, फर्जी झगड़ाकर मुकदमा अदालत में दाखिल करा दिया जाता है गुमराह करके स्टे आर्डर हासिल कर लिया जाता है। जब मालिक को इस घटना का मालुम होता है, तब तक वह जमीन या जायदाद बिककर असरदार लोगों के हाथ में पहुंच जाती है या उस पर जबरन कब्जा कर लिया जाता है। इस प्रकार के घटनाक्रम में पुलिस की भी अप्रत्यक्ष सहमति रहती है।
विलासिता से दूर भागते लोगों का पलायन उसी प्रकार से होने लगा है जिस प्रकार भौतिकवाद से दूर भागते अंग्रेजों को भारत में धार्मिकता में शान्ति व सुख मिलने लगा है। ऐसे ही लोग वृन्दावन में विलासिता से दूर आकर शनिवार व रविवार को वृन्दावन भ्रमण के आनन्द के साथ-साथ धार्मिक बनने का प्रयास कर रहे हैं। इन्हीं लोगों में से कुछ लोगों ने वृन्दावन में अपना स्थायी निवास बनाने का मन बना कर जमीनों को क्रय करना शुरू किया। इसकी देखा देखी अन्य स्थानीय छोटे-छोटे मध्यस्थों ने भी इस व्यवसाय को अपनाकर विवादास्पद जमीनों व मकानों को खरीदने-बेचने का धन्धा शुरू कर दिया है।
आज स्थिति यह है कि जिसको जहां जगह मिल रही है वहीं फ्लैट बनाये जा रहे हैं। बहुमंजिली इमारतों व फ्लैटों के निर्माण के लिए जमीनों की खरीद-फरोख्त का सिलसिला अधिक पुराना नहीं है। सर्वप्रथम रमणरेती मार्ग पर इस्काॅन मन्दिर की स्थापना से ही इस क्षेत्र में जमीनों व मकानों की कीमत दिन दूनी रात चैगुनी बढ़ने लगी। आज इस क्षेत्र में कीमत प्रतिवर्ग गज बीस हजार से पचास हजार रुपये के करीब है जो कि दिल्ली के किसी भी क्षेत्र की तुलना में सर्वाधिक है। 
सुनील शर्मा 9319225654