मंगलवार, 9 अगस्त 2022
मथुरा में जन्माष्टमी अलौकिक आनन्द का पर्व , साक्षात श्रीकृष्ण के अवतरित होने का अहसास कराती जन्माष्टमी
भगवान् श्रीकृष्ण धन्य हैं, उनकी लीलाएँ धन्य हैं और इसी प्रकार वह भूमि भी धन्य है जहाँ वे त्रिभुवनपति मानव रूप में अवतरित हुए और परम पवित्र अनुपम अलौकिक लीलाएँ कीं हैं। जिनकी एक-एक लीला का अनुकरण भी भावुक हृदयों को अलौकिक आनन्द देने वाला है। श्रीकृष्ण को अवतरित हुए आज पाँच हजार एक सो पैंतीस वर्ष हुए। उनके कीर्ति-गान के साथ-साथ उस परम पावन भूखण्ड की भी महिमा का सर्वदा बखान किया जाता है। वहाँ की रज को मस्तक पर धारण करने के लिये अब तक करोड़ों लोग तरसते हैं। बड़े-बड़े लक्ष्मी के लाल अपने समस्त सुख-सौभाग्य को त्याग कर यहाँ आ बसे और ब्रज में माँग-माँगकर उदर-पोषण करने में ही अपने आपको धन्य समझा। यही नहीं, अनेक भक्त-हृदय तो यहाँ के टुकड़ों के लिये तरसा करते हैं, भगवान् से इसके लिये प्रार्थना करते हैं। ऐसा ही एक कवि हृदय ने व्यक्त किया है
ऐसो कब करिहो मन मेरो । कर करवा हरवा गुंजनको, कुंजन माँहि बसेरो। व्रजवासिनके टूक
जूँठ अरु घर-घर छाछ महेरो।। भूख लगे तब माँगि खाइहौं, गिनौं न साँझ-सबेरो। ऐसी आस
‘व्यास’ की पूजौ मेरे गाँव न खेरो।।
इस भूमि में ऐसा कौन-सा आकर्षण है जो अपनी ओर इच्छा के विरुद्ध भी आकर्षित कर लेती है ?
भगवान् श्रीकृष्ण ने यहाँ जन्म धारण किया था और नाना प्रकार की अलौकिक लीलाएँ की थीं, इसीलिये भक्त- हृदय इससे इतना प्रेम करते हैं ?
अखिल ब्रह्मांड नायक, गीता के नायक, लीला पुरूषोत्तम, योगीराज श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को हुआ था। देश के प्रायः सभी प्रान्तों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व असीम श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी का यह पर्व देश विदेश में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। किन्तु पिछले दो वर्ष से जन्माष्टमी के सभी आयोजन मंदिरों में तो परम्परागत तरीके से सम्पन्न हुए कोरोना के चलते किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित किया गया था जिसके चलते इन वर्षों में बाहर से आने वाले श्रद्धालु मथुरा जनपद में प्रवेश नहीं कर पा रहे थें। इस वर्ष श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण का जन्म बड़े ही धूम धाम से मनायेंगे। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर ब्रज के कण-कण में अपूर्व हर्षाेल्लास छा जाता है। जिसकी तैयारियां अभी से शुरू हो गयी हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रद्धालु आपने घर आंगन को गोवर से लीप कर घर के द्वार पर बंदरवार बांध कर भव्य सजावट करके, मंगल सूचक थापे लगा कर और फूलों से घर में पालने (झूले) को सजाकर तैयारी करते हैं। इस अवसर पर ब्रज की बालाएं गाती हैं।
‘‘डोरी फूलन को पालनों, आजु नन्द लाला भए’’
ब्रज के घर-घर में भगवान को नये वस्त्र पहना कर उनका श्रंगार करके झांकियां सजाई जाती है। महिलाएं अपने यहां रखे सालिगराम की वटिया को एक खीरे में रख कर डोर से बांध कर श्री कृष्ण के जन्म समय मध्य रात्रि को 12 बजे उसे खीरे में से निकाल कर पंचामृत स्नान कराती हैं। इस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण का प्रतीक रूप में जन्म की भावनाएं संजोई जाती हैं। स्त्री पुरूष बच्चे सभी व्रत रखते है और श्री कृष्ण के जन्म के दर्शन के उपरान्त ही अपना व्रत खोलते हैं।
इस अवसर पर अपार जनसमूह उमड़ पड़ता है। ब्रज के प्रत्येक घर आंगन में शंख घन्टा घड़ियाल की ध्वनि ऐसे गंज उठती है मानों वहां किसी बालक का जन्म हुआ हो इस प्रकार ब्रज के हर घर-घर में कृष्ण जन्म लेते हैं लोग आपस में बधाईयां देते हैं भक्ति भावनाओं में विभोर होकर ब्रजवासी नांचने गाने लगते हैं ‘‘नन्द के आनन्द भए जय कन्हैया लाल की’’ गाते हुए हर तरफ टौलियां नजर आने लगती है।
मथुरा स्थित प्राचीन केशवदेव मंदिर में एक दिन पूर्व जन्माष्टमी
मथुरा स्थित प्राचीन मंदिर भगवान केशवदेव और नगर के मध्य विराजमान ठाकुर द्वारकानाथ द्वारकाधीश मंदिर में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। भगवान श्री कृष्ण का जन्म अर्धरात्रि के समय कंस के कारागार में होने के वाद उनके पिता वसुदेव जी कंस के भय से बालक को रात्रि में ही यमुना नदी को पार कर नन्द बाबा के यहां गोकुल छोड़ आये थे।
इसी लिए कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में नन्दोत्सव मनाया जाता है। भाद्र पद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंड़ल में नन्दोत्सव की धूम रहती है। यह उत्सव दधिकांदों के रूप मनाया जाता है दधिकांदो का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रत दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है। मंदिर के पुजारी नन्दबाबा और जशोदा के वेष में भगवान श्रीकृष्ण के पालने को झुलाते हैं। मिठाई, फल व मेवा मिश्री लुटायी जाती है। श्रद्धालु इस प्रसाद को पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।
श्री रंगनाथ मंदिर में जन्माष्मी
श्रीरंगजी मंदिर श्री वृंदावन का यह भव्य विशाल मंदिर के सामने वाली मुख्य सड़क पर बना हुआ है। दक्षिण भारतीय शैली का अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सेठ श्री राधाकृष्ण, उनके बड़े भाई सेठ लक्ष्मीचंद तथा छोटे भाई सेठ गोविंद दास जी ने कराया। श्रीरामानुज सम्प्रदाय का अति विशाल मंदिर स्थापत्थ कला की दृष्टि से भारत में एक अलग स्थान रखता है। यह मंदिर आकार में बहुत बड़े भूभाग को संजोये हुए है। इसमें पांच परिक्रमाएं हैं। जो ऊँचे-ऊँचे पत्थरों के परकोटों से विभक्त है। भीतरी परिक्रमा में श्री हनुमान जी, श्री गोपाल जी, श्रीनृसिंह जी के श्री विग्रह हैं। यहां एक पुष्करणी भी है जहां वर्ष में एक बार भाद्र पद मास में गजग्राह लीला का प्रदर्शन होता है। चौथे व प्रधानद्वार बैकुण्ठद्वार और नैवेद्य द्वार से तीन विशाल द्वार बने हुए है। इसी में 60 फुट ऊँचा स्वर्णमय विशाल गरूड़ स्तम्भ (सोने का खम्भा जिसे सोने के खम्भे का मंदिर भी कहा जाता है।) चौत्र मास में विशाल रथ यात्रा भी निकाली जाती है।
वृंदावन के इस उत्तर भारत के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज नायक भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है। नन्दोत्सव के दौरान सुप्रसिद्ध लठ्ठे के मेले का आयोजन किया जाता है। धर्मनगरी वृंदावन में श्री कृष्ण जन्माष्टमी जगह-जगह मनाई जाती है किन्तु उत्तर भारत के सबसे विशाल मंदिर में नन्दोत्सव की निराली छटा देखने को मिलती है। दक्षिण भारतीय शैली के प्रसिद्ध श्री रंगनाथ मंदिर में नन्दोत्सव के दिन श्रद्धालु लठ्ठे के मेले की एक झलक पाने को टकटकी लगाकर खड़े होकर देखते रहते हैं। जब भगवान रंगनाथ रथ पर विराजमान होकर मंदिर के पश्चिमी द्वार पर आते हैं तो लठ्ठे पर चढ़ने वाले पहलवान भगवान रंगनाथ को दण्डवत कर विजयश्री का आर्शीवाद लेकर लठ्ठे पर चढ़ना प्रारम्भ करते हैं। 35 फुट ऊंचे लठ्ठे पर जब पहलवान चढ़ना शुरू करते हैं उसी समय मचान के ऊपर से कई मन तेल और पानी की धार अन्य ग्वाल-वालों द्वारा लठ्ठे के सहारे गिराई जाती है। जिससे पहलवान फिसलकर नीचे जमीन पर आ गिरते हैं। जिसे देखकर श्रद्धालुओं में रोमांच की अनुभूति होती है। पुनः भगवान का आर्शीवाद लेकर ग्वाल-वाल पहलवान एक दूसरे को सहारा देकर लठ्ठे पर चढ़ने का प्रयास करते है। तो तेज पानी की धार और तेल की धार के बीच पूरे जतन के साथ ऊपर की ओर चढ़ने लगते हैं। कई घंटे की मशक्कत के बाद आखिर ग्वाल-वालों को भगवान के आर्शीवाद से लठ्ठे पर चढ़कर जीत हासिल करने का मौका मिलता है। इस रोमांचक मेले को देखकर देश-विदेश के श्रद्धालु अभिभूत हो जाते हैं। ग्वाल-वाल खम्भे पर चढ़कर नारियल, लोटा, अमरूद, केला, फल मेवा व पैसे लूटने लगते हैं।
इसी प्रकार से वृंदावन में ही क्या यहां के सभी मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नन्दोत्सव मनाया जाता है। ब्रहमकुण्ड स्थित हनुमान गढ़ी में नन्दोत्सव के दौरान मटकी फोड़ लीला का आयोजन किया जाता है। 15 फुट ऊंची मटकी को ग्वाल-वाल पिरामिड बनाकर मशक्कत के साथ मटकी को फोड़ते हैं। एवं दधिकांधा उत्सव का आयोजन भी होता रहा है। यह लीला मंदिर के व स्थानीय युवाओं द्वारा इस परम्परा का निर्वहन किया जाता है।
बाँकेबिहारी के मंदिर में जन्माष्मी
श्रीधाम वृंदावन आने का सौभाग्य प्राप्त होने पर भी यदि वृंदावन में बाँकेबिहारी के दर्शन न किये जाये तो तीर्थ करना अधूरा ही रह जाता है। बाँकेबिहारी के मंदिर का निर्माण लगभग संवत् 1921 में हुआ इस मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास जी के वंशजों के सामुहिक प्रयासों से हुआ। आरंभ में किसी धनी मानी व्यक्ति का धन इस मंदिर में नहीं लगाया गया। श्रीस्वामी हरिदास जी बाल्यकाल से ही संसार से विरक्त थे। वह एक मात्र श्यामाश्याम का ही गुणगान किया करते थे। यमुना के निकट निर्जन स्थान पर युगल छवि में ध्यान मग्न रहा करते थे। उन्होंने 25 वर्षों की अवस्था में विरक्तवेश ले लिया था। आप ने जहां जिस स्थान ‘‘निधिवन’’ में युगल छवि का ध्यान किया था। वहीं पर श्रीविग्रह भूमि से बाहर निकाले जाने का स्वप्नादेशानुसार श्रीस्वामी जी की आज्ञा पाकर श्री विठल, विपुल आदि शिष्यों ने बाँके बिहारी को भूमि से प्राप्त किया था। आज बाँके बिहारी अपनी रूप माधुरी से विश्व के तमाम लोगों को रिझाते हैं। यहां वर्ष में एक ही दिन हरियाली तीज को ठाकुर स्वर्ण हिंडोले में विराजते हैं जिसके दर्शनों को लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। चौत्र मास की एकादशी से श्रावण मास की हरियाली अमावस्या तक प्रतिदिन ठाकुर जी का फूल बंगला सजाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाँके बिहारी के मंदिर में कोई विशेष आयोजन तो नहीं होते है लेकिन यहां जन्माष्टमी का अभिषेक रात्री 2ः30 के करीब होता है। प्रातः 5 बजे से मंगला आरती के दर्शन होते हैं। यहां की एक विशेषता और है कि बाँके बिहारी जी की निकुंज सेवा होने के कारण आरती में कोई शंख घण्टा घड़ियाल नहीं बजते शान्त भाव में आरती होती है।
गोविन्द देव जी का मंदिर में जन्माष्टमी
श्रीगोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में प्रसिद्ध व अतिप्राचीन मंदिर है। उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली का लाल पत्थर का बना प्राचीनतम मंदिर है वर्तमान स्वरूप में जो मंदिर दिखाई देता है यह भवन औरंगजेब के अत्याचारों एवं क्रूरता का आज भी साक्षी है। इसके ऊपर के हिस्से को तोड़ दिया गया था। आकाशचुम्बी इस मंदिर का निर्माण गौड़ीय गोस्वामी श्री रूप, सनातन गोस्वामी के शिष्य जयपुर नरेश श्री मानसिंह ने सवंत् 1647 में कराया था। आताताईयों के आक्रमण करने से पूर्व ही राजा मानसिंह के जयपुर स्थित महल में यहां के श्री विग्रह को स्थानांतरित कर दिया गया था। आज भी जयपुर में गोविंददेव जी राजा के महल में विराजमान है तत्पश्चात संवत 1877 में पुनः बंगाल के भक्त श्री नंदकुमार वसु ने श्री गोविंददेव के नये मंदिर का निर्माण कराया यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन विधिविधान से पूजा अर्चना अभिषेक का कार्यक्रम होता है।
इस्कॉन मंदिर में जन्माष्टमी
श्रीकृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन मंदिर) इसका निर्माण श्री ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी द्वारा स्थापित श्रीकृष्ण भावनात्मक संघ के तत्वावधान में सन् 1975 में हुआ था। प्रभुपाद के अनेक विदेशी कृष्ण भक्तों की देख-रेख में सेवा पूजा आदि समस्त व्यवस्थाएं सम्पन्न होती हैं यह मन्दिर अंग्रेज मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन सुंदर कक्षों में बायी ओर निताई गौरांग महाप्रभु मध्य में श्रीकृष्ण बलराम के अति मनोहारी छवि में विराजमान है तो दायीं ओर श्री राधा श्याम सुंदर युगल किशोर सुशोभित हैं। सभी श्री विग्रह अद्भुद वस्त्र आभूषण पुष्प मालाओं तथा मणिमय अलंकारों से श्रृंगारित होकर दर्शकों के मन को आकर्षित करते है। यहांँ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भजन कीर्तन तथा प्रसाद वितरण होता है। रात्रि में अभिषेक का कार्यक्रम होता है, लाखों तीर्थ यात्री मंदिर में आते हैं और भजन के साथ-साथ हरी नाम संकीर्तन के साथ उछल-उछल कर नृत्य करते हैं।
द्वारकाधीश मन्दिर मथुरा में जन्माष्मी
असकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर सांस्कृतिक वैभवकला और सौंदर्य के लिये अनुपम है। इस मन्दिर का निर्माण सन् 1814-15 में ग्वालियर राज्य के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने कराया था। इनकी मृत्यु के उपरांत इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचंद ने मंदिर के निर्माण को पूर्ण कराया था। 1930 में इस मंदिर की सेवा पूजा पुष्टिमार्गीय वैष्णव आचार्य गोस्वामी गिरधर लाल जी कांकरौली को भेंट स्वरूप दे दिया था। यहाँ सेवा पूजा अर्चना पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार ही होती है। श्रावण मास में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां सोने व चाँदी से निर्मित हिंडोले को देखने आते है। यहां जन्माष्टमी के दिन 108 सालिगराम का पंचामृत अभिषेक होता है तथा यहां अष्टभुजा द्वारकानाथ के श्रीविग्रह का भी पंचामृत अभिषेक किया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान यह मथुरा का एक मात्र पवित्र धार्मिक स्थल है
कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी स्थान पर स्थित कंस के कारागार में हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य मंदिर स्थापित है जिसे देखने वर्ष भर लाखों तीर्थ यात्री श्रद्धालु पर्यटक आते हैं। देश-विदेश से लाखों तीर्थ यात्री प्रतिवर्ष तो आते ही है लेकिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहां जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ के विशाल मंच पर रासलीला नाटक, कथा प्रवचन आदि उत्सव नित्य प्रति होते रहते हैं। जन्माष्टमी 19 अगस्त 2022 के दिन रात्रि के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय श्रीविग्रह का पंचामृत अभिषेक होता है। इसके बाद श्रद्धालु नाचते, गाते, कीर्तन करते हुए भाव विभोर हो जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी की सद्प्रेरणा से जुगल किशोर विड़ला व जय दयाल डालमियो ने कराया था विशाल भागवत भवन का निर्माण भी उन्हीं के द्वारा कराया गया था।
प्राचीन केशवदेव मंदिर में जन्माष्टमी एक दिन पूर्व मनाई जाती है
मथुरा में ही श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट ही प्राचीन केशवदेव मंदिर में एक दिन पूर्व मनाई जसती है। जन्माष्टमी के दिन यहां पंचामृत अभिषेक के पश्चात आकर्षक झांकियों में सजी कृष्ण की चर्तुभुज प्रतिमा के हजारों की संख्या में दर्शनार्थी मध्य रात्री तक भगवान केशव देव के अभिषेक के दर्शन करते हैं। यहां भजन, कीर्तन, नाच गाने के बीच हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में जन्माष्टमी मनाई जाती है। जन्म के दर्शन से पूर्व भजन-कीर्तन चलते रहे। महिला-पुरुष नाचते-गाते रहे। पुराने केशवदेव की प्रतिमा को जगमोहन से बाहर लाया जाता है। रात्रि में ठीक 12 बजे गोस्वामियों द्वारा अभिषेक सम्पन्न कराया जाता है। जिसमें दही, मधु, शक्कर, दूध, यमुना जल से अभिषेक कराने के बाद भव्य दर्शन होते हैं। दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते ही सभी दर्शनार्थी दोनों हाथ उठाकर ‘‘जय कन्हैया लाल की’’, कह उठते हैं। शंख, घंटा, घड़ियाल बज उठते हैं, चारों ओर रोशनी और मंदिर में विद्युत सजावट से जगमगा उठता है।
श्रीकृष्णा जन्माष्टमी पर समूचा ब्रज जय कन्हैया लाल की के उद्घोषों से गूंज चारों तरफ सुनाई देती है वहीं हर सड़क पर भण्डारों की धूम दिखाई देती है। इस वर्ष कोरोना काल के बाद बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के बड़ी संख्या में आने का अनुमान जिला प्रषासन भी लगा रहा है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर सुबह से ही लोग बंदरवार, फूलमाला, केला के पत्ते आदि सामान खरीदते नजर आते हैं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मनोहारी विद्युत लाइटों से सजावट की जाती है। नगर में हर चौराहे को प्रदेश सरकार के दिषा निर्देश पर सजाया जाता है। मंदिरों में भी बिद्युत सजावट के साथ जन्माष्टमी की धूम अभी से दिखाई दे रही है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को लेकर आज समूचे बृजमण्डल में आपार श्रद्धा और भक्ति का वातावरण बना हुआ है। शहर के बाजार और घर-घर पर लोगों की तैयारियां व सजाबट देखते ही बनती है। समूचे बृज में कान्हा के जन्मोत्सव की धूम मची हुई है।
मंदिर द्वारिकाधीश, श्रीकृष्णजन्मस्थान को जाने वाले सभी मार्ग सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ बाजार से खरीददारी करती देखी जा सकती है। सुदूर प्रांतों से कान्हा के जन्मोत्सव में शामिल होने आने वाले भक्तों के स्वागत सत्कार में बृजवासियों का उत्साह देखते ही बनता है। अभी से मुख्य बाजारों में स्थान-स्थान पर भण्डारों की तैयारी व पूड़ी सब्जी और व्रत से जुड़े आहार के वितरण में समाजसेवी और व्यवसायिक संस्थान अग्रणी भूमिका निभाने के लिए अभी से तैयार हैं।
मथुरा के स्कूलों में भी मनाई जाती है जन्माष्टमी
मथुरा के स्कूलों में भी जन्माष्टमी मनाई जाती है, छोटे-छोटे बच्चों को श्रीकृष्ण के आकर्षक रूप में सजाया जाता है। स्कूल में भी बाल-कलाकार सामूहिक रूप से जगह-जगह श्रीकृष्ण जन्म की कथाओं का वर्णन व मंचन भी करते हैं जगह-जगह लोग नाचते गाते देखे जाते थे। विभिन्न रासलीलाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं को रास के माध्यम से लोगों का मनोरंजन किया जाता रहा है।
जन्माष्टमीः ठाकुर जी की पोषाक मुस्लिम सिलते हैं, बधाई गीत भी मुसलमान गाते हैं
मथुरा। कान्हा की पोशाकों को तैयार करने में दिन रात मुस्लिम कारीगर लगे हुए हैं, ये पीढ़ी दर पीढ़ी इनका कारोबार चला आ रहा है, इस तरह मुस्लिम समाज के ये लोग सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश समाज में दे रहे हैं। मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव को लेकर सभी तैयारियों में लगे हुए हैं, वहीं प्रशासन भी पूरी तरह भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव को अबकी बार दिव्य और भव्य बनाने के लिए कमर कसे हुए हैं। गोकुल में सुबह जब कान्हा के जन्म की खुशियां मनाई जायेंगी तो बधाई गीत भी मुसलमान गाते हैं और शहनाई भी मुसलमान ही बजाते हैं।
मुस्लिम कारीगर भगवान श्रीकृष्ण और राधाजी की सुंदर और आकर्षक पोशाक तैयार करने में लगे हैं। कन्हैया के जन्म उत्सव की तैयारियों में मुस्लिम लोग सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दे रहे हैं। अल्लाह के बंदे श्रद्धा के साथ कृष्ण के जन्मोत्सव के दिन ठाकुरजी के श्रंगार में पहनाई जाने वाली पोशाकों के निर्माण में जुटे हुए हैं। इन पोशाक की भारत के विभिन्न शहरों में ही नहीं विदेशों में भी मांग है। मुस्लिम समाज के यह लोग भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक व मुकुट श्रंगार के सामान बनाने का काम अब से नहीं कर रहे। इनके पूर्वज भी इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण के आभूषण आदि बनाकर समाज मंे सौहार्द कायम करने का काम कर रहे हैं।
मुस्लिम कारीगरों ने बताया कि 40 साल हो गये यह काम करते हुए, विदेशों में भी जाती हैं हमारी बनाई पौषाक, फक्र महसूस करता हूँ, हमारी किस्मत है कि ठाकुर जी ने हमें अपने कपडों को सिलने पर लगा रखा है। यह संदेश पूरा भारत में जाना चाहिए, भाईचारा सीखना है तो हमारे मथुरा वृंदावन के इन कारीगरों से सीखें, जो हमें लडाते हैं वह गलत आदमी है। बांकेबिहारी जी मंदिर भी जाते हैं वृंदावन में, पांच फुट से ज्यादा के ठाकुर जी होंगे तो पौषाक सिलने में पूरा एक महीना लगता है। एक पोषाक में करीब पांच आदमी लगते हैं। हमें अच्छा लगता है, दिल को सुकून मिलता है, ठाकुर जी की पोषाक बनाने में, भारत और भारत के बाहर के मंदिरों में हमारी पोषाक पहनाई जाती है।
100 से अधिक कारखानों में पौषाक तैयार करने के काम होता है
मथुरा में पोशाक और मुकुट श्रृंगार का व्यवसाय फैला हुआ है। 100 से अधिक कारखानों में अधिकांश कारीगर मुस्लिम समाज के हैं, जो दिन-रात भगवान श्रीकृष्ण के पोशाक और श्रृंगार का सामान तैयार करने में जुटे हुए हैं, वह इन लोगों की रोजी-रोटी का भी एक साधन है। कान्हा के जन्मोत्सव का इंतजार इन्हें भी बेसब्री से रहता है।
विदेशों में भी भारी मांग है इन पौषाकों की
जन्माष्टमी से महीनों पहले से ही ये भगवान श्रीकृष्ण की पोशाकों को तैयार करने में लग जाते हैं। भगवान के मुकुट, गले का हार, पायजेब, बगल बंदी, चूड़ियां, कान के कुंडल जैसे आभूषणों को तैयार किया जाता है। तैयार होने के बाद इन्हें विदेशों में भी भेजा जाता है। इन पौषाकों के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड कनाडा, नेपाल और अफ्रीका से भी ऑर्डर आते हैं।
पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं
मथुरा के राजा कंस की बहन देवकी की कोख से नंद के लाल का जन्म हुआ था। कान्हा का बचपन गोकुल और वृंदावन में माता यशोदा की देखरेख में बीता। बाद में मामा कंस का उद्धार करने के लिए श्री कृष्ण मथुरा वापस आ गए। मथुरा, गोकुल, वृंदावन और बरसाना में देवकी नंदन की शरारतों, खेल कूद की कई यादें और कहानियां मौजूद हैं। इन जगहों पर कई कृष्ण मंदिर हैं, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा और उसके आसपास के जिलों में वासुदेव के मंदिरों के अलावा भी देश में कई बड़े कृष्ण मंदिर हैं। श्रीकृष्ण द्वारिका के राजा थे, जहां उनका राजमहल हुआ करता था। इसके अलावा उड़ीसा के पुरी में श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भगवान जगन्नाथ के रूप में विराजमान हैं। इस बार 19 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। इस मौके पर अगर आप भगवान श्रीहरि के मंदिर जाकर उनके दर्शन और पूजा अर्चना करना चाहते हैं तो इस बार कृष्ण जन्माष्टमी पर कान्हा के प्रसिद्ध मंदिरों के करें दर्शन।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाने के लिए सबसे शुभ और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। यह हिंदुओं के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण त्योहार है क्योंकि भगवान विष्णु ने भगवान श्री कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म पांच हजार एक सो पैंतीस साल पहले द्वापर युग में मथुरा शहर में मध्यरात्रि में हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी एक लोकप्रिय और बहुप्रतीक्षित त्योहार है और इसे गोकुलाष्टमी, सातम आठम, श्री कृष्णष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती और अष्टमी रोहिणी जैसे विविध नामों से पूरे भारत में मनाया जाता है।
इस अवसर पर मंदिरों को सजाया जाता है। कीर्तन गाए जाते हैं, घंटियां बजाई जाती हैं, शंख बजाया जाता है और भगवान कृष्ण की स्तुति में संस्कृत के भजन गाए जाते हैं। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में इस समय विशेष सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन किया जाता है, जिसमें जगह-जगह रासलीला कथा भागवत का आयोजन होता है। पूरे भारत से तीर्थयात्री व श्रद्धालु इस उत्सव समारोहों में शामिल होते हैं। लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी अक्सर 2 दिन मनाई जाती है एक दिन स्मार्त द्वारा दूसरा वैष्णवों द्वारा।
जन्माष्टमी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी तिथि: 18 अगस्त 2022, गुरुवार
अष्टमी तिथि का आरंभ: 18 अगस्त, गुरुवार रात्रि 09: 21 मिनट से
अष्टमी तिथि का समाप्त: 19 अगस्त, शुक्रवार रात्रि 10: 59 मिनट तक
जन्माष्टमी 2022 विशेष मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त 12ः05 मिनट से 12ः56 मिनट तक
इस साल की जन्माष्टमी बेहद खास होने वाली है
श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के विशेष कार्याधिकारी विजय बहादुर सिंह ने बताया कि श्री कृष्ण जन्मस्थान पर कृष्ण जन्माष्टमी 19-20 अगस्त की रात्रि में मनाया जाएगा। द्वारिकाधीश मंदिर के मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी पर्व 19 अगस्त को मनाया जाएगा। मंदिर में जन्माष्टमी की तैयारी शुरू हो गई हैं। वहीं बांके बिहारी मंदिर में भी कृष्ण जन्माष्टमी पर्व 19 अगस्त को मनाया जाएगा। बांके बिहारी में जन्माष्टमी पर मंगला आरती 19-20 अगस्त की रात्रि दो बजे होगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 2 दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी 18 अगस्त को गृहस्थ जीवन की श्रेणी के लोग जन्माष्टमी पर्व मनाएंगे। अगले दिन यानि 19 अगस्त को साधु-संत इस पर्व को मनाएंगे। इस दिन बहुत शुभ योग का निर्माण हो रहा है जिस वजह इस साल की जन्माष्टमी बेहद खास होने वाली है। पंचांग के अनुसार इस दिन वृद्धि योग का निर्माण हो रहा है। माना जाता है कि इस योग में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
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