हिन्दुओं की उदारता या घोर उदासीनता
मथुरा की एक मसजिद पहचान भी और विवाद से परे शान भी
सुनील शर्मा, मथुरा
मथुरा, । ब्रज क्षेत्र में यों तो अब सैकड़ों मसजिदें और कई गिरजाघर होंगे किन्तु एतिहासिकता की दृष्टि से इन मसजिदों का भी एक इतिहास है जो हिन्दुओं की उदारता या यों कहें कि घोर उदासीनता को भी प्रकट करता है। मथुरा में एतिहासिक दृष्टि से दो ही प्राचीन मसजिदें हैं। जो कि प्राचीन भी हैं तथा विशाल भी हैं। एक तो केशवदेव जी के मंदिर को तोड़कर औरंगजेब द्वारा बनवायी गयी और दूसरी मसजिद चौक बाजार में अब्दुलनवी खाँ ने बनवायी।कुछ समय के पश्चात मथुरा में एक बार पेशवा की सवारी आयी थी। उन्हें यहाँ मसजिद देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया उन्होंने तुरन्त इसे तोड़ देने का हुक्म दे दिया, पर हिन्दुओं ने ही पेशव से खुशामद करके इसे टूटने से बचा लिया था, जो आज भी मथुरा के अब के पुराने शहर के बीचों बीच में स्थित है।
इस मसजिद के पास से होकर एक रास्ता स्टेशन की ओर जाता है एक रास्ता यमुना किनारे तथा प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर की ओर जाता है बाकी दो रास्तों में से एक शाही ईदगाह व श्रीकृष्ण जन्मस्थान की तरफ जाता है तो दूसरा रास्ता वृन्दावन के लिए जाता है। आज भी इस मसजिद के सामने एक सब्जी बाजार लगता है तथा मसजिद के नीचे दो तरफ सर्राफा बाजार व कपड़े आदि की दुकाने हैं। बडे़ आश्चर्य की बात है कि मसजिद के नीचे की तमाम सभी दुकाने हिन्दुओं की हैं और सब्जी की दुकाने मसजिद के सामने मुसलमानों की हैं दोनों समुदायों का मेलजोल भाईचारा देखने लायक है यह एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं तथा हर त्योहार में ईद हो या होली आपस में गले मिल कर बधाई दे कर मनाते हैं और आपस में मिलजुल कर रहते हैं। यह मसजिद मथुरा की एक पहचान भी है और विवाद से परे एक शान भी है।
सुनील शर्मा, मथुरा