शुक्रवार, 25 जून 2021

तराश मंदिर जहां विराजते हैं जमाई ठाकुर जी

-सुनील शर्मा मथुरा।

मथुरा। वृन्दावन रोड पर वृन्दावन में रामकृष्ण मिशन अस्पताल से पहले दांई ओर एक सडक जाती है यह मंदिर वहां पर स्थित है। इसे तराश वाला मंदिर कहा जाता है, बाहर से देखने पर यह मंदिर कोई धर्मशाला जैसी लगती है अंदर जाने पर बाय हाथ में एक अति सुन्दर मंदिर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना राजर्षि श्री वनमाली रायबहादुर ने कराया था।

इस मंदिर में बहुत ही सुन्दर रंगीले बोलते जागृत श्री विग्रह हैं जो हुक्का पीते है ऐसे ठाकुर जी के मिजाज भी बड़े रंगीले हैं। 


इन्हें जमाई ठाकुर क्यों कहा जाता है

    पश्चिम बंगाल के जिला वर्धमान के नवग्राम में स्थित तरास स्टेट  के एक अधिकारी जो परम भक्त श्री वान्छाराम जी नियम से निकट में ही एक नदी में नित्य स्नान करते थे, एक दिन स्नान करते समय उन्हें एक मधुर आवाज सुनाई पड़ी-“मुझे जल से निकालकर अपने घर ले चलो’’। वान्छाराम जी ने चकित होकर चारों ओर देखा कि इतने में कोई वस्तु जल में उनके पॉंव से टकराई हाथ डालकर जब देखा तो अद्भुत श्रीविग्रह को देखकर हृदय से लगाया और अपने घर ले आये, अच्छी से अच्छी व्यवस्या कर दी और उनकी सेवा करने लगे, परन्तु वो तो विनोद जी जो ठहरे नित्य-नये विनोदी, रोज स्वप्न में आदेश देकर कभी नयी पोशाक, तो कभी नए आभूषण, इत्र-फुलेल, रोज-रोज नए मिष्ठान, पकवान, आदि मांगने लगे। वान्छाराम जी इनकी इन्छाओ को जितनी अपनी श्रद्धानुसार पूर्ण करते और दूसरे लोगों से मांग कर भी ठाकुर जी की सेवा पूजा करते थे और उन्हें मनाने का प्रयास करते थे।


जब एक दिन ठाकुर जी ने हुक्के मांग कर दी

    एक बार ब्रज में किसी वृद्ध व्यक्ति को श्री ठाकुर जी ने हुक्का पीते देखा सो उनको भी शौक हुआ और उसको पूरा करने के लिए एक धनी आदमी को स्वप्न दिया तो वह व्यक्ति चाँदी से मढ़ा निगारदार सुंदर फारसी हुक्का चिलम और कुछ सुगन्धित तम्बाकू लेकर भक्त वान्छाराम जी के पास आया, यह देख कर वान्छाराम जी चौक गये और उससे कहा कि यह क्या है ? मंदिर और ठाकुर सेवा में हुक्के का क्या काम ?  अजब आदमी को तुम ? तब उस व्यक्ति ने अपने स्वप्न को वान्छाराम जी को बताया कि मुझे स्वप्न में यह आदेश हुआ है तो, मैं यह सब ले आया हूँ, उपस्थित सभीजनों ने कहा कि अजीव लीला है श्रीविनोद जी की, राजभोग के समय चिलम भरकर हुक्का, जब सामने रख दिया गया, और पर्दा लगा दिया गया, फिर सभी दूर बैठ गये, सभी को हुक्के के गुडगुडाने की आवाज सुनाई देने लगी तो सभी ने कहा कि अजीव लीला है श्रीविनोद ठाकुर जी की।  


जब रंगीले ठाकुर को ठकुरानी की याद आने लगी 

कुछ समय के बाद रसिक चूड़ामणि को अपना अकेलापन या जीवन साथी का अभाव खलने लगा जीवन साथी भी उनके ध्यान में ही था  एक दिन एक व्यक्ति को उस क्षेत्र के प्रसिद्ध रायबहादुर श्रीवनमाली जी के पास भेजा गया, उसने राय साहब से नवग्राम कि सारी घटना बताई तथा कहा कि आपके नवग्राम में एक भक्त के यहां जाग्रत प्रभावी लीलाधारी श्रीठाकुर जी पधारे हैं। जब राय बहादुर ने यह सब सुना तो उनसे रहा नहीं गया और वह अपनी पत्नी और बेटी राजकुमारी राधा जो कि मात्र 10 वर्ष की थी को साथ लेकर नवग्राम में ठाकुरजी के दर्शन करने के लिए पहुंचे। जब सभी दर्शन कर रहे थे, उस समय राजकुमारी से ठकुरजी के नैन मिले तो राजकुमारी राधा अपनी माँ से बोली कि माँ ठाकुरजी मुझे देखकर हंस रहे हैं।


    राधा की माँ भला ठाकुरजी की इस लीला को कैसे समझ पाती तो उसने अपनी बैटी से कहा कि तू तो पगली है। ऐसा भी कभी होता है क्या ? यह सभी वापस अपने घर आ गये परन्तु राजकुमारी राधा को बार-बार ठाकुरजी का हंसना और उसकी तरफ यों टकटकी लगा कर देखना भूल नहीं पा रही थी। वह फिर बार-बार ठाकुरजी के दर्शन करने के लिए जाने लगी और उसने अपने पिता से कहा कि बाबा हम इन्हें अपने साथ अपने घर ले चलें। राय बहादुर ने भक्तराज वान्छाराम से कहा। उसी रात भगवान ने स्वप्न में वान्छाराम से कहा कि अब हम राय साहब के घर जाना चाहते हैं, हम आपकी सेवा से अति प्रसन्न हैं और जल्द ही तुम मेरे पास आ जाओगे।


    इसके वाद गाजे बाजे के साथ राधा के घर के लिए श्रीविनोद ठाकुर जी को ले जाया गया। राजकुमारी तो राजकुमारी थी उसे ठाकुरजी कैसा पौशाक पहनेंगे, कैसा उनका श्रंगार होगा, क्या भोग लगाया जायेगा सब व्यवस्था वह स्वंय ही करती थी। मगर यह रसिक ठाकुर थे छेड़छाड करने पर उतर आये, एक दिन उसका आँचल पकड़ कर बोले राधा तुम मेरे साथ विवाह कर लो। राजकुमारी इस बात पर सकुचा गई और यह बात अपनी माता से कहा किन्तु माँ को राधा की वात पर विश्वास ही नहीं हुआ।

    इसके बाद ही राजकुमारी को तेज ज्वर आया हालत बिगड़ती चली गई, रानी को स्वप्न में श्रीविनोद ठाकुर ने कहा कि देख तेरी राधा अब नहीं बचेगी मैंने उसे अंगीकार कर लिया है अपने बगीचे में जो नीम का पेड़ सूख गया है उसकी एक कन्या की प्रतिमा बनवाकर उसके साथ मेरा विवाह करा दो। तब दोनों रायबहादुर और उनकी पत्नी को विश्वास हुआ कि श्रीविनोद ठाकुर साक्षात् ही हैं और उनकी बेटी राधा प्रतिमा रूप में घर जमाई श्रीविनोद व राधा हमेशा ही हमारे घर पर ही रहेंगे।

जब ठाकुरजी बन गये जमाई ठाकुर

    रायबहादुर ने ऐसा ही किया जैसे ही प्रतिमा बनकर तैयार हुई और राधा अपने प्राकृत देह को त्याग कर चली गयी और दाह संस्कार करने के बाद शुभ मुहुर्त देखकर समारोह पूर्वक ठाकुरजी का विवाह सम्पन्न हुआ। तभी से श्री विनोद जी अकेले न कहलाकर श्री राधा विनोद जी हो गये और राय बहादुर जी के जमाई ठाकुर जी के रूप में पुकारे जाने लगे। अब तो राय बहादुर की जो मूर्ति के प्रति उपेक्षा बुद्धि तो वह नष्ट हो गई और स्वयं सेवा पूजा करने में लग गये, परन्तु भोजन के बाद हुक्के की तलब लगती थी और रायबहादुर के यहां हुक्के की सेवा होती नहीं थी।


 

    राय बहादुर जी के घर सिद्ध महात्मा श्री कृष्ण सुन्दर रहा करते थे वे हुक्का पीया करते थे, किन्तु पीने से पहले वह नित्यप्रति श्री राधा विनोद जी का ध्यान अवश्य किया करते थे और ध्यान करते हुए ही उन्हें भी अर्पण करते थे, ठाकुर जी उससे ही अपनी तलब मिटा लिया करते थे, परन्तु जब कृष्ण सुन्दर जी का नित्य लीला में प्रवेश हो गया, उसके बाद हुक्के पिए जब चार दिन हो गये।

वृन्दावन  में मंदिर बनाकर ठाकुर श्रीराधा विनोद जमाई ठाकुर की स्थापना 

    ठाकुर जी का एक-एक दिन भारी पडने लगा दिन मुश्किल से कटने लगा। मंदिर के पुजारी जब गहरी निंद्रा में थे तब ठाकुरजी ने पुजारी से हुक्का माँगा, पुजारी जी ने राय बहादुर जी से कहा कि फिर हुक्के की सेवा शुरू कर दी गई है। एक दिन जब राय साहब जी पुजारी के साथ बैठे हुए थे उसी समय पुजारी जी ने हुक्का ठाकुर जी को अर्पण किया प्रभु कृपा से हुक्के की गड़गड़ा हट रायबहादुर को सुनाई देने लगी और हुक्के से सुगन्धित दिव्य धुंए का भी आभास होने लगा। उस दिन के बाद से राय बहादुर जी का मन गृहस्थ में नहीं लगा और वह ठाकुर के साथ वृन्दावन आ गए और यहां मंदिर बनाकर ठाकुर श्रीराधा विनोद जमाई ठाकुर की स्थापना कर दी। 


    आज भी उक्त मंदिर में श्री विनोद ठाकुर के साथ राधा भी विराजमान हैं तथा उनके सामने वही पुराने हुक्के आज भी रखे हुए हैं तथा भोग प्रसाद लगाने के वाद उन्हें हुक्के में सुगन्धित तम्बाकू और दिव्य वस्तुओं के साथ हुक्के को अर्पण किया जाता है।