शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

अतिप्राचीन राधामोहन मंदिर वृन्दावन कॉरिडोर की सीमा में

आज वृन्दावन के इस प्राचीन मंदिर को कोई जानता तक नहीं

            वृन्दावन के जंगलकट्टी क्षेत्र में यमुना किनारे से करीब दो सौ मीटर अन्दर राधाबल्लभ मंदिर के निकट गुजराती धर्मशाला के सामने राधा मोहन घेरा में एक अति प्राचीन मंदिर स्थित है, यह मंदिर राधामोहन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

            जैसा कि इस स्थान के नाम से ही जाना जा सकता है कि जंगलकट्टी क्षेत्र जो कभी घने जंगलों से आच्छादित रहा होगा और इस स्थान के जंगलों की कटाई उस समय में की गई होगी। इस लिये इस स्थान का नाम 1930 में नगर पालिका परिषद् के गठन के वाद से जंगलकट्टी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और राधामोहन घेरा का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से गायब हो गया। 1870 के दशक में ब्रिटिश शासन में मथुरा के कलेक्टर रहे एफ0एस0 ग्राउस ने भी अपनी पुस्तक ‘‘मथुरा-ए-डिस्ट्रिक मेमॉयर’’ में भी ठाकुर राधामोहन मंदिर का उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने इन बस्तियों के बीच में स्थित राधामोहन घेरे का उल्लेख भी नहीं किया गया है।


            श्री राधामोहन मंदिर को आज कम ही लोग जानते हों परन्तु पुराने समय में यह हितकुल का अत्यंत शोभनीय स्थल रहा है। श्रीराधामोहन मंदिर को आज कोई जानता तक नहीं है, इसका प्रमुख कारण है कि यह मंदिर सड़क से लगभग 10 फुट उंचाई पर है तथा इसमें सीढ़ियां भी हैं इस कारण से यात्री परदेशी इस मंदिर में दर्शन करने को नहीं जाते हैं। इस मंदिर से सटे कम से कम दस से बीस होटल, गेस्टहाउस भी बन गये हैं तथा मंदिर के चारों तरफ कई मकान बन जाने के कारण यह मंदिर दिखाई भी नहीं देता है। मंदिर के आसपास अनेक स्थानीय लोगों से पता करने पर भी वह बता नहीं पाते हैं। कोई कहता है कि इधर चले जाओ कोई उधर चले जाओ कह कर श्रीराधा मदनमोहन मंदिर की तरफ इशारा कर देते हैं, बहुत मश्किल से गुजराती धर्मशाला को खोजते-खोजते पहुंचना पड़ा।


            आज जब बॉंके बिहारी जी मंदिर के लिए कॉरिडोर की व्यवस्था सरकार द्वारा प्रस्तावित है, जिसको लेकर वृन्दावन में कॉरिडोर को लेकर समर्थन और विरोध में एक गतिरोध बना हुआ है। पॉंच एकड़ भूमि पर कॉरिडोर का निर्माण किया जाना है, जिसको लेकर आसपास के क्षेत्र की नाप तोल किये जाने पर स्थानीय लोगों द्वारा इस मंदिर के विषय में स्थानीय प्रशासन के पास यह मांग की गई कि इस मंदिर और इसके पास ही बनी एक समाधि को सुरक्षित किया जाये।


            राधा मोहन मंदिर के सेवायत मृदुल बल्लभ गोस्वामी ने मंदिर के सम्बन्ध में बताया कि श्री हित हरिवंश महाप्रभु के द्वितीय पुत्र गोस्वामी श्री कृष्ण चन्द्र जी महाराज जी के सेव्य ठाकुर श्रीराधामोहन जी महाराज हैं, और यह मंदिर 1584 ई. में बन कर तैयार हुआ था।

            श्री राधामोहन जी महाराज के अनन्य भक्त एवं वाणीसेवी श्री किशोरी शरण अलि जी अपनी रचना ‘‘हिंदी भक्ति काव्य में रस भक्ति धारा और उसका वाणी साहित्य’’ में प्राचीन स्थलों के भ्रमण को सहज व सरल मार्ग प्रदर्शित कर उल्लेखित करते हैं कि जुगल घाट के दाहिने पार्श्व में एक ऊँचे स्थान पर गोस्वामी श्री हित हरिवंशात्मज गोस्वामी श्री कृष्णदास जी के सेव्य ठाकुर श्री राधामोहन जी महाराज विराजे हैं। ठाकुर श्री राधामोहन जी महाराज के इस मंदिर को भव्य रूप देने और आसपास की भूमि को राधामोहन घेरे के नाम अभिसंज्ञात करने का श्रेय हितात्मज गोस्वामी श्री कृष्णदास जी के पौत्र गोस्वामी श्री सुखदेव जी को जाता है।

            पूर्व में श्री हितहरिवंश महाप्रभु के पिताजी श्री व्यास मिश्र जी के निवास देववन्द में ठाकुर श्रीराधामोहन जी महाराज की सेवा विराजमान थी।

            श्रीहित हरिवंश महाप्रभु जी 16 वीं शताव्दी में वृन्दावन आये थे। महाप्रभु के अंतर्ध्यान होने के पश्चात श्री कृष्ण चन्द्र जी महाराज सन् 1552 के लगभग वृन्दावन आए। इन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें से एक ‘‘करणानन्द महाकाव्य’’ को यहां पर लिखा था, इसके पश्चात उन्होंने टीका लिखना प्रारम्भ किया। किन्तु वह अपने जीवनकाल में इस टीका को पूर्ण नहीं कर सके थे। श्री प्रवोधानन्द सरस्वती जी ने 1578 में इस ‘‘करणानन्द महाकाव्य’’ की टीका को पूर्ण किया।

             सन् 1585 में दिल्ली के अब्दुल रहीम खानखाना के खजांची सुन्दर दास कायस्थ ने एक लाल पत्थर का मंदिर श्री राधाबल्लभ जी के लिए बनवाया था, उसी मंदिर के बचे पत्थरों से श्री राधामोहन मंदिर का निर्माण भी किया गया था। राधाबल्लभ मंदिर में स्थित नक्काशी की तरह ही इस मंदिर में भी लाल पत्थरों पर नक्काशी की गई है। 


            श्रीराधामोहन मंदिर श्री ठाकुर बांके बिहारी जी के वर्तमान मंदिर से लगभग 300 साल पूर्व में बना बताया जाता है। बांके बिहारी जी का मंदिर सन् 1864 के आसपास में बना था। 


            सन् 1552-1578 के बीच वृन्दावन की लता-पताओं की कुंज में राधामोहन घेरा से अभिसंज्ञात कर ठाकुर जी की सेवा पधराई गई। अकबर के शासन काल में अबुफजल के द्वारा इम्प्रीरीयल ग्रान्ट के तहत ब्रज के 35 मंदिरों को चुन कर उन्हें जगह दी गई थी, उसी क्रम में 30 बीघा जमीन राधामोहन मंदिर को भी दी गयी थी। 1980 में प्रो0 तारापद मुखर्जी ने इस पर रिसर्च किया था जो कि भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार एवं अलीगढ़ मुसलिम यूनीवसिर्टी में आज भी सुरक्षित है।

            राधामोहन घेरे में हितात्मज गोस्वामी श्रीहित मोहनचन्द्र जी के वंशज श्रीहित चैन किशोर गोस्वामी जी की समाधि है जिसका निर्माण विक्रम सम्वत् 1874 में वैध श्री कृष्णप्रसाद मिश्र ने करवाया था, इसी समाधि पर एक शिलालेख को देखा जा सकता है किन्तु इस समाधि को चारों तरफ से इस प्रकार से घेर दिया गया है कि उसके पास जाना भी मुश्किल से हो पाता है, वर्तमान में एक दुकान के अन्दर से जाकर बमुश्किल ही देखा जा सकता है।   

            वृन्दावन बॉके बिहारी मंदिर में आने बाले श्रद्धालुओं की भींड़ को देखते हुए उ0प्र0 सरकार ने कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया है, जिसके आधार पर मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर कॉरिडोर के निर्माण को हरि झण्डी मिलने पर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में कार्य करना प्रारम्भ किया तो कॉरिडोर के विरोध करने वाले लोगों ने कॉरिडोर की सीमा में आ रहे श्री राधा मोहन मंदिर को तथा पास में ही मौजूद एक समाधि को भी बचाने की कबायद शुरू कर दी।

            मृदूल बल्लभ गोस्वामी ने कहा कि वृन्दावन बॉके बिहारी जी मंदिर कॉरिडोर सीमा में आने वाले सांस्कृतिक व पुरातत्व महत्व के हिसाब से सर्वे करा कर ही कार्य को शुरू किया जाना चाहिए।

            


राधामोहन घेरा का जो क्षेत्रफल 200-300 साल पहले राधाबल्लभीय सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता था जो एक विशाल वन था एक कॉरिडोर जैसी संरचना पहले भी थी। राधाबल्लभ सम्प्रदाय के गोस्वामी लोगों की अपरस व उसके इतिहास को जानकर तथा उनकी सेवा को दृष्टिगत रखते हुए वर्तमान व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि गोस्वामी लोग विधिवत ठाकुर जी की सेवा कर सकें।




बुधवार, 9 अप्रैल 2025

राधाकुण्ड और उसके रज का महात्म्य

श्री राधाकुण्ड को श्री राधारानी का ही स्वरूप माना गया है।
श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं राधाकुण्ड और श्यामकुण्ड की महिमा को प्रकट किया था। गौड़ीय संप्रदाय में इसे श्री राधा-कृष्ण की माधुर्य लीलाओं का सर्वोच्च स्थल माना जाता है।
बंगाली समाज में विशेष श्रद्धा
बंगाल के भक्त राधाकुण्ड को केवल तीर्थ नहीं, बल्कि प्रेम का जीवंत स्थल मानते हैं। रज को अपने में समाहित कर लेने के लिए भाव विभोर होकर इसको अपने मस्तक पर लगा कर अपने आपको धन्य मानते हैं। 
राधाकुण्ड के रज की महिमा और इसका बंगाली समाज तथा गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्व अत्यंत गूढ़ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष है। इसे समझने के लिए हमें राधाकुण्ड की उत्पत्ति, उसकी लीला-महिमा और विभिन्न भक्त-सम्प्रदायों की दृष्टि को जानना होगा।
राधाकुण्ड की महिमाः
राधाकुण्ड ब्रजधाम में स्थित एक पवित्र कुण्ड है, जिसे श्री राधारानी का प्रिय स्थान माना जाता है। इसकी महिमा श्री चैतन्य महाप्रभु, श्रील रूप गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी जैसे महान संतों द्वारा वर्णित की गई है।
शास्त्रीय प्रमाणः
पद्मपुराण और स्कंदपुराण में राधाकुण्ड की महिमा का वर्णन आता है।
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी ने राधाकुण्ड को “प्रियतम स्थानों में सर्वाधिक प्रिय“ बताया हैः
“कृष्णस्य प्रियतमा राधिकायास्तदापि सः।
प्रियतमा तदा तस्याः कुंडं राधा समं स्मृतम् ।।“
“राधा कृष्ण के लिए जितनी प्रिय हैं, उतना ही प्रिय राधा को राधाकुण्ड है।“
राधाकुण्ड रज की महिमाः
राधाकुण्ड की रज (धूल) को अत्यंत पावन और मुक्तिदायिनी माना जाता है।
वैष्णव भक्तगण इस रज को मस्तक पर लगाकर स्वयं को राधारानी की दासी मानते हैं।
रज का एक कण भी आत्मा को शुद्ध करके भक्ति में अग्रसर कर सकता है।
बंगाली समाज के लिए राधाकुण्ड का महत्वः
बंगाली समाज के लोग राधारानी को ब्रज की स्वामिनी मानते हैं, और राधाकुण्ड को उनका हृदयस्थल।
उनके लिए यह कुण्ड केवल जल नहीं, बल्कि स्वयं श्रीराधा स्वरूप है।
यहाँ प्रतिदिन गोपियाँ, साधक, ब्रजवासी, बंगाली समाज व महिलाएँ-सभी सेवा, स्नान व परिक्रमा करते हैं।
गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्वः
गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय, जिसकी स्थापना श्री चैतन्य महाप्रभु ने की थी, राधाकुण्ड को सर्वोच्च तीर्थ मानते हैं।
श्री चैतन्य महाप्रभु की दृष्टिः
जब श्री चैतन्य महाप्रभु ब्रज यात्रा पर आए, तो उन्होंने गोवर्धन के निकट इस कुण्ड की पहचान की और उसमें स्नान कर कहाः
“यह स्थान राधारानी के प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक है।“
रघुनाथ दास गोस्वामी की सेवाः
उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राधाकुण्ड के तट पर तपस्या और सेवा में लगाया।
वे प्रतिदिन कुण्ड की परिक्रमा और रज से तिलक किया करते थे।
भक्तों की साधना का केंद्रः
आज भी गौड़ीय वैष्णव साधुजनों के लिए राधाकुण्ड साधना, सेवा और राधा-कृष्ण की भावनाओं में लीन होने का सर्वोत्तम स्थान है।
यह कुण्ड माधुर्यमयी लीलाओं का साक्षी है (राधा-कृष्ण की मधुर भाव भक्ति) की चरम अवस्था को प्रकट करता है।
राधाकुण्ड, गोवर्धन के निकट
श्रीराधा की भाव-समाधि, प्रेम की चरम अवस्था
रज की महिमा मुक्ति, भक्ति व राधा-कृष्ण सेवा की पात्रता देती है
ब्रजवासी दृष्टिकोण राधाकुण्ड = राधा स्वरूप, सेवा और श्रद्धा का केंद्र
गौड़ीय दृष्टिकोण सर्वोच्च साधना-भूमि, माधुर्य रस की चरम अनुभूति का केन्द्र बिन्दु है।

"श्याम कुण्ड, राधा कुण्ड, गिरी गोवर्धन।
मधुर मधुर वंशी बाजे, ऐई से वृन्दावन॥"

ये एक अत्यंत मधुर और भावपूर्ण भजन/कीर्तन की पंक्तियाँ हैं, जो वृंदावनधाम की दिव्यता और रसमयी लीलाओं का सार संजोए हुए हैं।
भावार्थ: श्याम कुण्ड और राधा कुण्ड:
श्रीकृष्ण और श्रीराधा के प्रीतिस्थल, जहाँ उनके प्रेम की सबसे गहन लीलाएँ प्रकट हुईं।

गिरी गोवर्धन:
श्रीकृष्ण का वह दिव्य पर्वत जिसे उन्होंने अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था और जो ब्रजवासियों का रक्षक बना।

मधुर मधुर वंशी बाजे:
श्रीकृष्ण की बंसी की वह तान जो गोपियों के हृदय को खींच लाती थी, ब्रह्मांड को मोहिनी कर देती थी।

"ऐई से वृन्दावन":
यही है असली वृंदावन – लीलामय, रसमय, कृष्णमय। जहाँ हर कण में प्रेम है, और हर ध्वनि राधे-श्याम का गुणगान।

मंगलवार, 11 मार्च 2025

गधा एक बुद्धिमान प्राणी था और आज भी है

यह एक दिलचस्प और प्रेरणादायक दृष्टिकोण है! अक्सर गधे को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन वास्तव में वह एक बेहद व्यावहारिक और समझदार प्राणी है। पहाड़ी रास्तों के निर्माण में उसका ऐतिहासिक योगदान रहा है जिसे सुनकर आश्चर्य होता है।


गधों की यह सहज नेविगेशन क्षमता और सुरक्षित मार्ग खोजने की प्रवृत्ति वास्तव में प्रशंसनीय है। आधुनिक तकनीकों के अभाव में हमारे पूर्वजों ने गधों की इसी स्वाभाविक बुद्धिमत्ता का उपयोग किया, और आज भी कई स्थानों पर गधे दुर्गम इलाकों में यातायात का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।


इससे हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी चीज़ को सतही नजरिए से आंकने की बजाय उसके वास्तविक गुणों और विशेषताओं को समझना चाहिए। क्या आपने कभी पहाड़ी क्षेत्रों में गधों के इस व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से देखा है?

आज के बाद कोई आपको गधा वोले तो आप वुरा न मानिए किन्तु आप गर्व महसूस करिए क्यों कि एक समय में पृथ्वी के पवर्तीय इलाकों में रास्तों की खोज, पहचान व उन्हें डिजायन करने का कार्य गधे ही किया करते थे। 


क्यों आपको विश्वास नहीं हो रहा है न तो चलिए देखते हैं। पहाडी इलाकों में रास्ता बनाना बहुत ही कठिन कार्य होता था, हम यदि एक दम नीचे से पहाड़ के सिरे तक एक रास्ता बनाते है तो ढ़ाल इतना अधिक होगा कि बैल गाड़ी, घोड़ा गाड़ी यहाँ तक कि बस व ट्रक आदि का जाना-आना अति कठिन होगा वह आसानी से आ व जा नहीं सकेंगे, रास्ते का ढाल लगभग 10 डिग्री से कम रखना होगा क्यों कि अगर एकदम सुरक्षित रास्ता बनाते हैं या एकदम कम स्लोप में रास्ता बनाते हैं तो ऊपर चढ़ने में काफी समय लग सकता है, इसके लिए इन दोनों के बीच में एक ऑप्टीमल पाथ निकालने के लिए एक गधे का उपयोग किया जाता था। गधे को पहाडी इलाकों में छोड दिया जाये तो वह इन्स्टैंटली अपना रास्ता निकाल कर चलना शुरू कर देगा। वह किसी दुर्गम या खराब रास्ते पर भी नहीं चढ़ेगा और वह एक दम कम खराब रास्ते पर भी नही जागेगा, जिसमें समय अधिक लगेगा।


एक समय था जब सेटेलाइट, मेप, फेन्सी मेजरिंग उपकरण इत्यादि की व्यवस्था नही थी, जिससे सहज ही पहाड पर्वत के मेप बनाये जा सकते, तब क्या करते थे, एक गधे को छोड़ देते थे और उसके पीछे-पीछे लोग चला करते थे और देखते थे कि गधा किस रास्ते से पहाड़ में चढ़ रहा है और उसी के अनुसार इन्सान ने रास्ते बनाये हैं।


इसी लिए कोई गधा बोलने या गाली देने पर किसी भी प्रकार से अपना मन खराब न करें, गधा एक बुद्धिमान प्राणी था और आज भी है।


मथुरा में युवा गायकों, कलाकारों को एक मंच पर लाने का श्रेय नम्रता सिंह को जाता है।

        कलाकार होना एक यात्रा है। एक ऐसी यात्रा जो कल्पना, जुनून और निरंतर अभ्यास से संवरती है। यदि आप एक उदीयमान कलाकार हैं, तो याद रखें कि हर महान कलाकार कभी न कभी इसी मुकाम पर था जहाँ आज आप हैं। सृजन की शक्ति आपके भीतर एक अनूठी दृष्टि है, एक कहानी है जिसे दुनिया तक पहुँचाना आपका कर्तव्य है। अपनी कला के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त करें, विचारों को आकार दें और अपने भीतर छुपी संभावनाओं को उजागर करें। 

        संघर्ष और धैर्य के साथ हर कलाकार को संघर्षों से गुज़रना पड़ता है। अस्वीकृति और कठिनाइयाँ इस राह के अभिन्न अंग हैं। लेकिन याद रखें, हर कठिनाई आपको और मजबूत बनाती है। धैर्य रखें, अभ्यास करें और अपनी कला में निरन्तर निखार लाने के लिए हर दिन कुछ नया सीखें। प्रेरणा और अनुशासन में प्रेरणा महत्वपूर्ण है, लेकिन अनुशासन के बिना यह अधूरी है। 

        अपनी कला को नियमित रूप से निखारें, एक रूटीन बनाएं और उसे पूरी ईमानदारी से निभाएं। महानता एक दिन में नहीं मिलती, लेकिन निरंतर प्रयास इसे संभव बनाती है। अपनी आवाज़ खोजें दूसरों से प्रेरणा लें लेकिन उनकी नकल न करें। अपनी शैली विकसित करें, अपने अंदर की आवाज़ को पहचानें और उसे अपनी कला में उकेरें। यही आपको सबसे अलग और विशिष्ट बनाएगा। 

        साझा करें और सीखें अपनी कला को दूसरों के साथ साझा करें, प्रतिक्रिया लें और उसे सुधारने का प्रयास करें। नए विचारों और नई तकनीकों के प्रति खुले रहें। प्रत्येक कलाकार हर सीखने की प्रक्रिया में होता है और यही उसे विकसित करता है। सपनों को मत छोड़िए जोश और समर्पण के साथ आगे बढ़ते रहें। जब भी संदेह हो, यह याद करें कि आपकी कला किसी न किसी के लिए प्रेरणा बन सकती है। इस सफर में आत्मविश्वास और जुनून बनाए रखें, क्योंकि एक न एक दिन आपकी कला ही आपकी पहचान बनेगी। 

        नम्रता ने भी एक ऐसे मंच की कल्पना की जिसमें ब्रज के उदीयमान कलाकारों को प्रोत्साहित किया जा सके। प्रत्येक रविवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम व ब्रज तराना में हिन्दी गीत कला साहित्य से सम्बन्धित प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। जिसमें स्थानीय प्रतिभावान गायक कलाकारों को अपनी प्रस्तुति देने का अवसर प्रदान किया जाता है। इसमें ऐसे कलाकार जो अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर पा सकते हैं। यहां स्थानीय कलाकारों द्वारा शानदार प्रदर्शन कर मधुर संगीत के मध्य गायकी का प्रदर्शन करने का अवसर पा कर दर्शकों को मुत्रमुग्ध कर सकते हैं। 

        हाल ही में मथुरा वृन्दावन की सांसद श्रीमती हेमा मालिनी व उ0 प्र0 ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष शैलजा कान्त मिश्र जी ने ब्रजकला चौपाल के मंच पर पहंच कर नम्रता सिंह के प्रयास को सराहा। ब्रज कला चौपाल संस्था की संस्थापिका नम्रता सिंह ने बताया कि मथुरा में ब्रज कला चौपाल की स्थापना कलाकारों को दुनिया के सामने लाने का एक प्रयास है। लम्बे समय से नम्रता ने प्रत्येक छोटे बड़े मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। 

        भगवान श्रीकृष्ण के 5251 वें जन्मोत्सव, ब्रजरज उत्सव, या रंगोत्सव के मंच से नम्रता ने अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। जिसमें उभरती हुई गायक कलाकार नम्रता सिंह की प्रस्तुति सभी के मन को भा गयी। नम्रता गरीब, असहाय व वृद्ध, बीमार लोगों की मदद करने के साथ-साथ वृद्ध महिलाओं के प्रति भी दया व उनके बीच में जाकर उनकी हर सम्भव मद्द करने का कार्य भी करती है। पशुओं  के प्रति भी दया का भाव रखती है। 

        नम्रता ने बताया कि इस मंच पर बहुत सारे बच्चे, बड़े, बूढ़े जिनका सपना था कि वे कला क्षेत्र में कुछ करें, उनको यहां एक मंच मिल गया है। जिस पर वे स्वतंत्र रूप से अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल मथुरा-वृन्दावन शहर में प्रत्येक रविवार शाम 5 बजे से जवाहर बाग, (ब्रज तीर्थ ऑफिस के पास) में यह कार्यक्रम होता है। इस रोमांचक मंच पर बच्चे युवा अपनी प्रतिभा को निखार सकते है। नम्रता सिंह ने बताया कि संस्था का उद्देश्य समाज को मानसिक स्वस्थ्य बनाया जा सके। इसके लिए लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है। 

        ‘‘सफलता मिलना आसान है, किन्तु उसको बनाये रखना कठिन है’’ किसी ने ठीक ही कहा है, किसी-किसी की उम्र गुजर जाती है प्रसिद्धि पाने में, यह जितनी जल्दी मिलती है, उतनी ही तेज़ी से वापस भी चली जाती है। हर किसी व्यक्ति के बस में नहीं है इसे संजोकर रखना। किसी भी परिस्थिति में सफलता को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देना चाहिए। आप कितने भी सफल व्यक्ति क्यूँ ना बन जाएं परन्तु आपको अपनी वास्तविकता कभी नहीं भूलनी चाहिए। समय और परिस्थिति के साथ आगे जरूर बढ़ना चाहिए, किन्तु इस बीच सफलता दिमाग़ पर नहीं बैठनी चाहिए। व्यक्ति का अहम्, घमंड उसको कहीं का नहीं छोड़ता। आप जितने अपने पैरों को ज़मीन पर रखकर चलेंगे, आपको उतनी ही क़ामयाबी की राह मजबूती से मिलेगी।





रविवार, 8 सितंबर 2024

अपने मुकुट को कहाँ रखोगे, वंशी को कहाँ छिपाओगे? काले से गौर कैसे होओगे? कृष्ण

समूचे बंगाल प्रान्त का ब्रज की पुण्य भूमि से गहरा नाता रहा है, जो निरन्तर बना हुआ है। बंगाल के घर-घर में कृष्ण लीला भजन कीर्तन आदि हर समय होते रहते हैं। बंगाल की धरती ने न जाने कितने साहित्यकार, गीतकार, उपन्यासकार दिये हैं। जिनमें गीतगोविंद के रचयिता जयदेव बंगाल के व्यक्ति थे। राधा और कृष्ण के प्रेम का वर्णन करने वाले इस सुन्दर काव्य के रचयिता थे। इनसे पहले चंडीदास हुए जो श्रीकृष्णकीर्तन के प्रणेता थे जो चैतन्य महाप्रभु के पहले, लगभग 1400 ई. में, विद्यमान थे। दूसरे चंडीदास जो चैतन्य के बाद में आये। इन्होंने ही राधा कृष्ण के प्रेमविषयक उन अधिकांश गीतों की रचना की जिनसे चंडीदास को इतनी लोकप्रियता प्राप्त हुई। तीसरे चंडीदास दीन चंडीदास हुए जो राधा कृष्ण के गीत संग्रह के तीन चौथाई भाग के रचयिता थे। इसी समय प्रसिद्ध वैष्णव कवि चैतन्य का आविर्भाव हुआ जिनका कवियों और विचारकों पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके आविर्भाव और मृत्यु के उपरांत संतों तथा भक्तों के जीवनचरित्रों के निर्माण की परंपरा चल पड़ी। इनमें से कुछ थे जैसे वृंदावनदास जिन्होंने चैतन्यभागवत लिखी, लोचनदास ने चैतन्यमंगल लिखा, जयानंद ने भी चैतन्यमंगल तथा कृष्णदास कविरत्न द्वारा चैतन्यचरितामृत (लग. 1581) में लिखा गया। कृष्ण और राधा के दिव्य प्रेम संबंधी बहुत से गीत और पद भी इस समय रचे गए। इसी समय बँगला भाषा पर “ब्रजबुलि“ का भी प्रभाव पड़ा। जिसमें ऐसे गीत बंगाल में बड़े लोकप्रिय हुए और उनके अनुकरण में यहाँ भी रचनाओं में ब्रजबुलि का प्रभाव दिखने लगा। बंकिमचंद्र तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर तक ने ब्रजबुलि में गीतों की रचना की है। वैष्णव प्रेमगीतकार के रूप में जयदेव कवि के रूप में आज भी जनमानस में विद्यमान हैं। उनके बाद चंडीदास तथा चैतन्य के अनुयायी आते हैं। गोविन्ददास कविराज ने ब्रजबुलि में कितने ही सुन्दर गीत प्रस्तुत किए। बर्धमान जिले के कविरंजन विद्यापति ने भी ब्रजवुलि में प्रेमगीत लिखे जिनके कारण वे “छोटे विद्यापति“ के नाम से प्रसिद्ध हुए। वृन्दावन में रूप सनातन गोस्वामी, जीव गोस्वामी आदि ने ब्रज में बास करते हुए भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रेम को अनन्त गहराईयों तक जाना। तथा हमेषा उनके भजन में लीन रह कर जीव के कल्याण का कार्य किया। कितने ही साधु संत महात्मा यहां आये और भगवान की दिव्य लीलाओं का रसास्वादन किया। जिनमें काठिया बाबा सम्प्रदाय के संत हो, आनन्दमयी माँ, पागल बाबा महाराज हों या इस्कॉन के संस्थापक ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी हों जिन्होंने अपने देष से जाकर विदेष में कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार किया। श्रीकृष्ण के प्राकट्य से अप्राकट्य तक उनकी वृन्दावन, मथुरा, द्वारिका की अगणित लीलायें सबने लिखीं और बताईं। पूतना वध, ऊखल-बन्धन, महारास, कंसवध, कुरुक्षेत्र-युद्ध आदि प्राय सभी लीलाओं से आम जन परिचित है। किन्तु एक परम गूढ़ लीला है, जो सामान्यतः न पढ़ने में आती है, न सुनने में। फिर उसकी प्रामाणिकता क्या ? प्रामाणिकता! यह सन्देह और अनिश्चय ही आदमी की सबसे बड़ी समस्या है। राधारानी का नाम पूरे भागवत महापुराण में नहीं आता है। तो क्या वे कल्पना की वस्तु हैं? कुछ बातें होती हैं, जिन्हें छिपाने की विवशता होती है, जिसे हर कोई हर जगह नहीं कह सकता। ऐसी ही एक विरल कृष्णलीला द्वापर में हमारे वृन्दावन में निधुवन में घटित हुई। इस घटना का वर्णन किया है बंगाल के बलराम दास, वैष्णव दास आदि कुछेक वैष्णव पदकर्ताओं ने और उसका सम्यक विस्तार-आस्वादन किया है ’पाठबाड़ी’ आश्रम कोलकाता के प्रसिद्ध वैष्णवाचार्य श्रीपाद रामदास बाबाजी महाराज ने, अपने बंगला ’आँखर कीर्तन’ में। यह कीर्तन ’निधुवने स्वप्नविलास’ नाम के ग्रन्थ में मिलता है। पूज्यपाद श्रीकृष्णदास कविराज ने अपने सुप्रसिद्ध बंगला ग्रन्थ’ श्रीचैतन्य चरितामृत’ में किया है कि कृष्ण के मन में तीन बातें जानने का लोभ उत्पन्न हुआ, तो उन्होंने हमारे कलियुग में शचीमाँ के गर्भ से जन्म लिया। ये तीन विषय थे प्रथम- मेरे प्रति राधा का प्रेम क्या वस्तु है ? द्वितीय- मेरा अद्भुत माधुर्य कैसा है? और तीसरा- उस माधुर्य का आस्वादन कर राधा को जो सुख प्राप्त होता है, वह सुख कैसा है ? “राधिकार भावकान्ति अंगीकार बिने। सेइ तिन सुख कभु नहे आस्वादने।। तिन सुख आस्वादिते होबो अवतीर्ण।“- चै. च. आदि-4 (अर्थात् कृष्ण ने निश्चय किया कि वे उक्त तीन सुखों का आस्वादन करने के लिये राधिका का भाव और उनकी कान्ति अंगीकार कर अवतरित होंगे, क्योंकि इस भाव-कान्ति के बिना वह आस्वादन सम्भव नहीं है।) ठाकुर लोचनानन्द ने अपने ’चैतन्यमंगल’ ग्रन्थ में स्पष्ट वर्णन किया है कि देवर्षि नारद द्वारका गये उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया- श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि ‘‘तो कृष्ण जन्म आबार लयिबो’’।। “नवद्वीपे शचीगृहे गौर दीर्घ कलेवर बाहु जानुसम। सुमेरु सुन्दर तनु अति अनुपम।। कहिते कहिते प्रभु गौरतनु होइला। देखिया नारद अति आरति बाड़िला।।“ (अर्थात् ‘मैं नवद्वीप में शची के यहाँ जन्म लूँगा। मेरी देह होगी सुन्दर सुमेरु की तरह दीर्घ गौर वर्ण और भुजायें घुटनों तक लम्बी !’ यह कहते-कहते कृष्ण गौर वर्ण हो गये। यह देखकर नारद के मन में उस भावी अवतरण को देखने की बड़ी लालसा हुई।) अवतार हुआ, उसकी ये सभी सन्दर्भ इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस कलियुग में जो चैतन्य-लिखी जा चुकी थी। उसकी भूमिका द्वापर में कृष्णलीला में ही बना ली गई थी। उसी गूढ़ कृष्णलीला (’निधुवने स्वप्न-विलास’) का भाव-सार प्रस्तुत हैं राधा और कृष्ण निधुवन में सुख-निद्रा में मग्न थे। राधा ने एक स्वप्न देखा, उनकी निद्रा भंग हुई और वे व्याकुल होकर रो-रोकर कहने लगीं-’उठो, उठो प्राणनाथ, कि देखिलाम अकस्मात्, एकटी युवा गौर-वरण। अश्रु कम्प पुलकादि, भाव-भूषा निरवधि, नाचे गाय महामत्त होइया। मन धाय ताहारे देखिया।।’’ (उठो प्राणनाथ! मैंने अकस्मात् यह क्या देखा! ? अश्रु-कम्प-पुलक आदि सात्विक भाव-भूषणों से विभूषित एक गौर-वर्ण युवक उन्मत्त होकर नाच रहा है, गा रहा है। उसे देखकर मेरा मन उसी ओर दौड़ रहा है।) “नव जलधररूप, रसमय रसकूप, इहा बूझिना हरि नयने। तबे केनो विपरीत, हेनो होइलो आचम्बित, कहो नाथ इहार कारणे।।“ (मैं तो तुम्हारे इस नवीन मेघ रसमय स्वरूप को छोड़ और किसी को नहीं जानती, फिर आज यह विपरीत बात क्यों हुई? नाथ, इसका कारण बताओ।) नय गो, राधे- (राधा को इस तरह व्याकुल और मूर्छित होते देखकर कृष्ण ने कहा-“ से तो परपुरुष मिछामिछि तुमि केंदो ना राधे। तोमार प्रेम-ऋण शोधिबारे, आमि जे गौरांग होवो..... व्यर्थ ही क्यों रो रही हो ? जिसे तुमने देखा है, वह परपुरुष नहीं है। तुम्हारे प्रेम का ऋण चुकाने के लिये अब मैं गौरांग बनूँगा।) “ए तिन वांछित धन, ब्रजे नहिलो पूरण...... ए वासना पूर्ण कभु नय। तूया भावकान्ति धरि, नदीयाते करबो उदय।। घरे-घरे बिलाबो प्रेमधन।।“ (राधे, मेरी तीन इच्छायें ब्रज में पूरी नहीं हुईं, इसलिये मैंने निश्चय किया है कि अब मैं तुम्हारा भाव और तुम्हारी कान्ति धारण कर नवद्वीप में जन्म लूँगा। घर-घर प्रेम बहाहूँगा। मैं तो प्रेम का ’विषय’ हूँ, तुम्हारे ’आश्रय’-जातीय प्रेमरस का आस्वादन तभी सम्भव होगा, जब मैं तुम्हारी भाव-कान्ति धारण करूँगा।) चले जायेंगे, राधा काँप गईं। बोलीं- “जल बिनु मीन, जान।।“ (जब यह सुनकर कि कृष्ण ब्रज छोड़कर नवद्वीप फणी मणि बिनु, तेजये आपन पराण। तिल आध तुहारि दरश बिनु तोइछन, व्रजपुर गति तँहु आबार कोन् खेला खेल्बे, एइ ब्रजजन बधिवे की....किन्तु हरि मुझे बताओ तो कि, प्रेम प्रकाश जल के बिना मछली और मणि के बिना साँप अपने प्राण त्याग देते हैं। इसी तरह तुम्हें पलभर देखे बिना ब्रजवासियों की जो दशा होती है, उसे क्या तुम जानते हो। अब इन्हीं ब्रजवासियों का वध कर कौन-सा खेल खेलोगे? मुझे छोड़कर प्रेम बाँटोगे! ?) राधा की बात पर कृष्ण ने कहा- ’सकलेइ आमार संगे जाईबे। काकेओ छेड़े जाबो ना राइ! गोप गोपाल सब जन मिलिया। नदीया नगर रे कोरिबो केलि।। तनु-तनु मेलि होइ एक ठाम। अविरत वदने बोलबो हरिनाम।। हरि बोलबो बोलाइबो, दुजने मिले गौर होईबो“ (राइ! किसी को भी छोड़कर नहीं जाऊँगा। सारे व्रजवासी मेरे साथ जायेंगे। नदीया में खेलेंगे। हम दोनों हरि बोलेंगे, बुलवायेंगे।) एई जे हरि- दोनों मिलकर गौर बनेंगे, दोनों मिलकर एक होंगे, यह सुनकर राधा आश्वस्त तो हुईं, पर सन्देह नहीं गया। बोलीं- “बड़ो असम्भव कथा। चूड़ा धड़ा कोथाय थोबे, बाँशी कोथाय लुकाइबे, कालो गौर होइबे केमने? “ (यह बड़ी असम्भव बात है। अपने मुकुट को कहाँ रखोगे, वंशी को कहाँ छिपाओगे? काले से गौर कैसे होओगे? ) यह सुनकर
ने अपनी कौस्तुभ मणि के प्रतिबिम्ब में राधा का श्रीअंग दिखाया और प्रवेश कर गये। इस प्रकार राधा-राधारमण, महाभाव-रसराज मिलकर एक हो गये। इस प्रकार “नदीयाते कोरिलो उदय। संगेते से भक्तगणे, हरिनाम संकीर्तने, प्रेम-वन्याय जगत् भासाय।। बाहिरे जीव उद्धारणे, अन्तरे रस आस्वादन.... (राधा-श्याम-एकाकृति गौरांगदेव ने भक्तों के साथ नवद्वीप में संकीर्तन कर जगत् को प्रेम-की बाढ़ में डुबो दिया। बाहरी तौर पर जीवो का उद्धार किया, आन्तरिक रूप से ब्रज प्रेमरस का आस्वादन किया)। इसी के साथ जय श्रीकृष्ण, राधे राधे!

रविवार, 24 मार्च 2024

मथुरा लोकसभा सीट के साथ कई दिलचस्प किस्से भी जुड़े हुए हैं

मथुरा देश की एक दिव्यभूमि है, जो सदियों से मुस्लिम हमलावरों के निशाने पर रही। विदेशों से आए आक्रांताओं ने कई बार मथुरा में बने मंदिरों को तोड़ा और उनका खजाना लूट कर ले गये। इसके बावजूद हर बार यह मंदिर नए रूप में पुनः उठ खड़े हुए। पुराणों के अनुसार यह भूमि पहले सुरसेन की राजधानी हुआ करती थी। उस वक्त यहां पर घने जंगल थे। जिसे मधुवन के नाम से भी जाना जाता था। यही मधुवन बाद में मधुपुरा से होते हुए मथुरा तक हो गया। 



 अगर हम चुनावों की वात करें तो आज यह मथुरा भी राजनैतिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण सीट है जिसे हर हाल में भारतीय जनता पार्टी अपने कब्जे में करना चाहती है। मथुरा लोकसभा सीट के साथ कई दिलचस्प किस्से भी जुड़े हुए हैं। इस सीट पर वर्ष 1952 और 1957 में हुए दोनों आम चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की थी। मजे की बात ये है इस आंधी में जनसंघ के नेता और देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी भी चुनाव हार गए थे। घटना कुछ इस प्रकार थी वर्ष 1957 के चुनाव में अटल बिहारी बाजपेयी ने भारतीय जनसंघ के टिकट पर मथुरा से चुनाव लड़ा था। उनके खिलाफ राजा महेंद्र प्रताप सिंह जो कि एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। उस समय इस सीट पर 95 हजार वोट पाकर महेंद्र प्रताप सिंह विजयी रहे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी दिगंबर सिंह थे। वहीं अटल बिहारी बाजपेयी की चुनाव में जमानत जब्त तक हो गई थी। 

मथुरा लोकसभा सीट में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 19 लाख है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या जाट मतदाताओं की मानी जाती है। उनकी वोटर संख्या करीब साढ़े तीन लाख के साथ प्रथम स्थान पर बताई जाती है। इनके अलावा 3 लाख ब्राह्माण, 3 लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, डेढ़ लाख मुस्लिम हैं. जबकि वैश्यों की संख्या 1 लाख और यादवों की संख्या करीब 80 हजार बताई जाती है। अन्य में बाकी बची छोटी जातियां शामिल हैं। जाट बहुल सीट होने के बावजूद आरएलड़ी का वर्चस्व कभी नहीं रहा जाटों की संख्या सबसे ज्यादा होने के कारण ही आरएलडी मथुरा को महत्वपूर्ण सीट मानती रही है। इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती ने चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें भी हार देखनी पड़ी थी। हालांकि बीजेपी से गठबंधन होने पर जयंत चौधरी वर्ष 2009 में इस सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे उन्हें 243890 वोट मिले थे। इसके बाद 2014 और 2019 से हेमा मालिनी लगातार 2 बार से इस सीट से सांसद हैं। बीजेपी ने फिर तीसरी वार हेमा मालिनी पर दांव खेलने जा रही है। बीजेपी की ओर से घोषित उम्मीदवारों की पहली सूची में मथुरा से हेमा मालिनी के नाम का ऐलान किया गया है। बसपा ने इस सीट से उम्मीदवाद की घोषणा कर दी है, बसपा ने 1999 में बसपा से ही चुनाव लड़ चुके पं. कमल कान्त उपमन्यु को अपना प्रत्याषी बनाया है। 1999 में कमल कान्त उपमन्यु को 1,18,720 वोट मिले थे। और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। यहां यह बताना जरूरी है कि इस वार जयन्त चौधरी आरएलडी को लेकर बीजेपी की नैया पार लगाने में सहायक बने हुए हैं। मथुरा लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास मथुरा लोकसभा सीट शुरु से ही जाट बाहुल्य मानी जाती रही है। इसकी पुष्टि इस सीट से जीत हांसिल करने वाले उम्मीदवारों से होती है। इस सीट पर अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट बिरादरी से आते रहे हैं। पिछले 10 सालों से मथुरा से बीजेपी नेत्री व प्रख्यात सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी यहां सांसद हैं। उन्होंने पंजाब के जट और प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र से शादी की है। इस नाते भी लोग उन्हें भी जाट ही मानते हैं। हालांकि मूल रूप से वह तमिलनाडु से आती हैं। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एक महत्वपूर्ण सीट की लोकसभा सीट है। आजादी के बाद पहला चुनाव साल 1952 में हुआ। और इस सीट पर भी पहली बार चुनाव 1952 में ही हुआ। पहले और दूसरे दोनों चुनावों में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस सीट पर वर्ष 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को हार देखनी पड़ी और भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की। साल 1980 में यह सीट जनता दल के खाते में गई। जबकि 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर से वापसी की, लेकिन कांग्रेस को अगले चुनाव में फिर से हार का सामना करना पड़ा था। उत्तर प्रदेश का यह मथुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत की चुनावी राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2019 के आम चुनावों में, यहाँ बहुत मजेदार चुनावी मुकाबला देखने को मिला था। भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी ने पिछले चुनाव में 2,93,471 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ की थी। उन्हें 6,71,293 वोट मिले थे। हेमा मालिनी ने अपने निकटतम रालोद प्रत्याषी कु0 नरेन्द्र सिंह को हराया जिन्हें 3,77,822 वोट मिले थे। मथुरा सांस्कृतिक विविधताओं चलते और यहां के चुनावी नतीजे भी उत्तर प्रदेश की यह लोकसभा सीटं रोचक और अहम होती है। इस निर्वाचन क्षेत्र में विगत 2019 के लोक सभा चुनाव में 60.48 प्रतिषत मतदान हुआ था। इस बार यानी कि 2024 में मतदाताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है और वे लोकतंत्र में वोटों की ताकत दिखाने को और ज़्यादा जागरुक और तैय्यार हैं। इस वर्ष यानी कि 2024 में मथुरा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से श्रीमती हेमा मालिनी प्रमुख उम्मीदवार हैं।

बुधवार, 6 मार्च 2024

श्रीकृष्ण जन्म स्थान के आसपास दर्लभ प्रजाति के जीवों को दिखा कर लोगों से पैसा लेने धन्धा शुरू

अब श्रीकृष्ण जन्म स्थान के आसपास दर्लभ प्रजाति के जीवों को दिखा कर लोगों से पैसा लेने और यात्री परदेशियों से अपने स्वार्थ के लिए ऐसे जीव जन्तुओं के जरिये रूपया कमाने का
हो गया है। कई लोगों को दुर्लभ सांपों के साथ तो कई को मोर पंखों के साथ देखा जा सकता है। जिन्हें दिखाकर पैसे मांगते हैं यदि यात्री परदेशी पैसा न दें तो इस प्रकार के लोगों द्वारा दर्शनाथियों के साथ र्दुव्यवहार करते, झगड़ा करते हैं, मारपीट तक करते हैं, इन्हें आयदिन लड़ते, झगडते देखा जा सकता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट पोतराकुण्ड के समीप आज एक व्यक्ति जो यहां आये यात्री परदेशियों को दुर्लभ प्रजाति का उल्लू दिखाकर पैसे मांग रहा था। यात्रियों द्वारा न दिये जाने पर लडाई झगडा करने लगा। जिससे अक्ष्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया। यात्री उस नशे में धुत्त व्यक्ति की पिटाई कर रहे थे। मैं भी स्टेट बैंक जगन्नाथपुरी ब्रान्च से अपना काम निपटा कर उसी रास्ते से निकल रहा था। जब यह माजरा देखा तो मैं भी वहां रूक गया। देखा कि कुछ लोग मिलकर एक शराब पीये हुए व्यक्ति को मारपीट रहे हैं और वह सबको गालियां दिये जा रहा था। यह सभी बाहर से आये दर्शनार्थी थे। मेरे अनुरोध करने पर वह लोग उसे छोड़ कर दर्शन करने निकल गये जब मेंने उस शराब पीये हुए व्यक्ति को देखा तो बुरी तरह से नशे में धुत्त था और गन्दी-गन्दी गालियां दे रहा था और उसके हाथ में एक दुर्लभ प्रजाति का उल्लू भी था जिसे शायद उसने उड़ने लायक भी नहीं छोड़ा। काफी मना करने पर न तो वह गाली देना बंद कर रहा था और न ही वह उस उल्लू को छोड रहा था। तब मैंने पोतरा कुण्ड साइड में बने गेट पर तैनात एक दरोगा जी से सारी घटना बताई उन्होंने तत्काल दो-तीन पुलिस कर्मियों को उस दिशा में भेज दिया। तब मैं वहां से चला आया फिर मैंने जिला वन अधिकारी श्री रजनी कान्त मित्तल जी को फोन पर सारी घटना बता कर उक्त उल्लू को रेस्क्यू कराने का अनुरोध किया। उन्होंने तत्काल ही वन विभाग की टीम को घटना स्थल पर भेजा, जहां से यह दुर्लभ प्रजाति के उल्लू को वन विभाग के कर्मचारियों ने अपने कब्जे में ले लिया। धन्यवाद पुलिस कर्मियों का और वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों का।