शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

गौशाला निमार्ण की योजना चुनावी बन कर न रह जाये।

गौशाला निमार्ण की योजना चुनावी बन कर न रह जाये।
आवारा गौ-वंश खेतों में खड़ी फसलों को चौपट कर रहे हैं।
करोड़ों का दान आने के बावजूद गौ-वंश कूड़े-कचरे पर निर्भर
(सुनील शर्मा)
मथुरा। यह कैसी विडम्बना है कि गौ-रक्षक श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली में गौ-वंश अपना भरण-पोषण कूड़े-कचरे के ढेर से करने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि गौ-सेवक गाय आदि के निमित्त कोई प्रयास नहीं करते। बल्कि सामाजिक रूप से तथाकथित गौ-सेवकों के ज्यादा छाये रहने के कारण वास्तविक गौ-भक्तों को सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाता। लेकिन अपने सीमित संसाधनों के बदौलत उनका यह सेवा धर्म बदस्तूर जारी है। आज जिस प्रकार से धर्म के नाम पर अपनी दुकानें चलाने वालों ने विभिन्न प्रचार माध्यमों से स्वयं को भगवान कृष्ण एवं उनको सर्वाधिक प्रिय गायों का वास्तविक हितैषी के रूप में प्रचारित कर रखा है, उससे स्थानीय एवं बाहर से आने वाले श्रद्धालुगण दानदाता इन ढोंगियों की चिकनी चुपड़ी बातों में आ जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि नगर से बाहर भागवत कथा व रासलीला करने वाले ब्रज की गायों के नाम पर करोड़ों रूपये दान के रूप में लेकर आते हैं और इस धन से गौ-सेवा के स्थान पर नामी-बेनामी संपत्तियाँ खरीद लेते हैं और धन को अपने निजी उपयोग में ही लाते हैं। दानदाता श्रद्धालुओं को दिखाने के लिये वे अपने घर/आश्रमों में दूध आदि के लोभवश पाली गयी गायों को दिखा देते हैं।
यदि कोई बड़ा दानदाता आता है तो वे किसी भी गौशाला वाले से सैटिंग कर व कमीशन सैट कर उसकी गौशाला को अपने द्वारा संचालित बता कर दानदाता को वेबकूफ बना देते हैं। कुछ धर्माचार्यों ने तो बाकायदा अपनी निजी गौशालायें संचालित कर रखी हैं, जिसमें रखी 20-25 दूध देती गायों को ही बेसहारा, अनाथ गाय बताकर मोटी रकम वसूलते हैं। इधर गायों की दुर्दशा का एक बड़ा कारण नगर में जमीनों की बेहिसाब बढ़ती कीमत भी है। नगर से सटे ग्रामों में गौचारण की भूमि को प्रधानों व भू-राजस्व अधिकारियों ने मिलीभगत के द्वारा भूमाफियाओं के हवाले कर दिया। अब यदि गायों का पेट भरने के लिये हरियाली न मिलेगी, तो गायें कूड़ों के ढेर में पड़ी सड़ी-गली खाद्य सामग्रियों के भरोसे ही अपना जीवन-यापन करेंगी। इसके अतिरिक्त नगर की विभिन्न प्राचीन गौशालाओं के संचालकों की नीयत में आया खोट भी बहुत हद तक गायों की दुर्दशा का जिम्मेदार है। पुराने समय में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं ने ब्रज की गौ-सम्पदा की रक्षा हेतु जगह-जगह पर एकड़ों जमीन लेकर गौशालाओं का निर्माण करवाया था। वे जब तक जीवित रहे, तब तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात्् उनके वारिसों का ध्यान इस ओर नहीं गया। इसी का लाभ लेकर इन गौशालाओं का संचालन करने हेत नियुक्त सेवकों ने अपने आप को मालिक घोषित कर दिया और अवैध तरीके से गौशाला की बेशकीमती भूमि को खुर्द-बुर्द कर दिया। लेकिन गाय व ब्रज के नाम पर अर्श से फर्श पहुँचने वाले इन तथाकथित गौ-भक्तों को कब सुध आयेगी कि यदि ब्रज गाय से ही विमुख हो गया, तो ब्रज में बचेगा ही क्या ? क्योंकि वृन्दा अर्थात् तुलसी के वन के नाम से प्रसिद्ध वृन्दावन में तो तुलसी के पौधे तो नाम मात्र को ही रह गये हैं।
चारे के अभाव में भूख से बिलबिलाते गौ-वंश ने अब खेतों की तरफ भी रूख करना शुरू कर दिया है अभी हाल में किसानों के सामने बड़ी समस्या बन कर खड़ी हो गये यह गौ-वंश किसानों के खेतों से भगाये जाने के कारण फिर से इन आबारा पशुओं को मजबूरी में ही सड़क के किनारे हाई-वे के किनारे बड़ी संख्या में देखा जा सकता है।
   
मथुरा में बलदेव क्षेत्र के गांव पटलोनी में खेत में खड़ी गेहूं की फसल को आवारा पशुओं द्वारा रात्रि में चौपट किये जाने से आहत होकर आत्म हत्या करने तक को मजबूर हुआ किसान आत्महत्या के  इरादे से पेड़ पर किसान चढ़ गया था।
किसानों को अधिकारियों ने 10 जनवरी तक आवारा जानवरों का समाधान निश्चित करने का आश्वासन दिया था आज तक जानवरों का कोई समाधान नहीं हो पाया। प्रशासन किसानों से लगातार झूठ बोल रहा है। आवारा गाय, बछड़े और सांड खेतों में खड़ी फसलों को चौपट कर रहे हैं। प्रशासन भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
फसल को गायों से बचानें के लिए योगी सरकार ने गांव-गांव गोशाला बनाये जाने के निर्णय पर किसानों में खुशी तो देखी गई लेकिन गोशाला निर्माण की रफ्तार धीमी पड़ती दिख रही है। किसानों को कहना है कि आवारा पशुओं से किसानों की दिन व दिन फसल चैपट होती जा रही है। किसान पूरी-पूरी रात आपस में टोली बनाकर फसल की रखवाली कर रहे है।
मथुरा शहर के आसपास ही नही जनपद में चारों तरफ मैरिज होम बन गये हैं। यह गायों के लिये पंसन्दीदा जगह बन गये हैं मैरिज होम से रात को फैका गया कचरा सुबह इन आवारा पशुओं का निवाला बनता है।
मैरिज होम के कचरे में प्लास्टिक कांच लोहे की कीलें सजाबट में उपयोग होने वाले लोहे के तार आदि भी खाने की बस्तुओं के साथ पास ही फैक दिये जाते हैं जिसके ढेर में दिन भर इन गौ-वंश को वहां देखा जा सकता है। इस प्रकार की सामग्री को खाकर गाय व सांड बीमार पडते हैं और उनकी मौत तक हो जाती है।
एक सच यह भी है कि कोई भी दुधारू गाय आवारा नहीं है हर गाय का कोई न कोई मालिक अवश्य है। सच्चाई यह है कि सुबह गाय का दूध निकाल गाय के मालिक उसे घर से निकाल देते हैं, और सारे दिन आवारा पशु की तरह जगह जगह खाना तलाशने और किसी तरह से पेट भरने के बाद सांम को गाय फिर अपने घर लौट आती है और मालिक उससे दूध निकाल कर उसे अच्छी कीमत पर बेच कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं।
किसानों के उपयोग के जानवर न हो पाने के कारण बछडे़ अब सड़क पर आवारा पशु बन कर घूमने पर मजबूर हैं और अगर हाइवे के किनारे देखा जाय तो डिबाडर पर सैकड़ों की संख्या में साड़ों को देखा जा सकता है।
धीरे धीरे गौ-वंश इंसान के लिये एक मुसीबत बनने जा रहे हैं इनका समाधान खोजने की आवश्यकता है। या तो यह मजबूरी में कूड़ा कचरा खाकर मरेंगे या फिर यह खेती की फसलों को नष्ट करने को मजबूर होंगे।
सुनील शर्मा. डीग हाउस, लाल दरवाजा, मथुरा 9319225654