बुधवार, 26 अगस्त 2015

सावन-भादों में घेबर-फैनी खूब भाती है।


मथुरा में वैसे तो हर तरफ खाने-पीने की दुकाने है हर तरफ हर दो कदम पर मिठाई की दुकानें नजर आयेंगी। कचैडी, जलेबी की दुकानें नजर आ जाती हैं। यहां लोग चाट-पकौडी, मिठाई खाने के बडे़ शौकीन है। यहां की खास बात यह भी है कि सीजन के हिसाब से मिठाईयां तैयार होती हैं। गजक, रेबडी, इमरती, घेबर, फेनी आदि। गजक रेबडी सर्दीयों में, इमरती केबल पित्र पक्ष यानी सितम्बर अक्टूबर में तैयार होती हैं। घेबर फेनी सावन के महिने में बनाई जाती है। सावन के महीने में बाजारों में तैयार होने वाली विशेष मिठाई घेबर की महक भी अपनी ओर लालायित करती है। इन दिनों शहर की हर मिठाई की दुकान पर घेबर मिल जायेगा। घेबर की विक्री हरियाली तीज से रक्षाबंधन तक होती है इसके लिये  दुकानदार महिनों से सूखा घेबर बना कर रखने लगे हैं सीजन शुरू होते ही इनको गरम करके इस पर मलाई, खीज, खोआ, मेवा आदि लगा कर दुकानों पर सजा लेते हैं।
घेबर का बैसे तो कोई इतिहास नहीं हैं कि इसको किसने तैयार किया तथा कब और क्यों तैयार किया लेकिन घेबर मुख्य रूप से राजस्थान में ज्यादा तैयार किया जाता है। जयपुर में घेबर को विभिन्न तरीकों से तैयार कर व सजाया जाता है। घेबर को एक गोल कढाई में रिंग नुमा सांचों में खमीर उठा हुआ मैदा पतली धार के साथ गरम घी में डाला जाता है। गरम घी में मैदा एक रूप ले लेता है जिसको निकाल कर पहले तो इस पर चीनी की चासनी चढाई जाती थी। लेकिन अब इस मिठाई का भी रूप समय के अनुसार बदल गया है। अब घेबर मलाई, खीज, खोआ, मेवा से तैयार किया जाता है। जबकि फैनी भी मैदा से ही बनती है जिसको खीच खीच कर रेशों में तैयार किया जाता है मीठी फैनी व सादा फैनी बनती है। कुछ लोग मीठी फैनी खाते हैं तो कुछ दूध में फीकी फैनी डालकर उपर से मीठा डालकर खाते हैं। मैदा से निर्मित घेबर एक एसी मिठाई है, जिसको खाने का मन हर किसी को करता है। पहले यह घेबर अधिक चासनी में बनती थी जो गांव के लोग खूब मजे से खाते थे।
अब हर कोई अपने स्वास्थ्य को लेकर चिन्तित रहता है जिसके कारण अब वह चीनी वाला घेबर बाजार में दिखाई नहीं देता है साथ ही अब उसके खरीददार भी नही हैं सब मलाई वाला घेबर ही लेना पसन्द करते हैं। जिसका सावन के महीने में विशेष महत्व है। सावन के महिने के बाद इस घेबर के मिठाई की दुकानों पर दर्शन नहीं होते हैं। इस महीने में पडने वाले त्योहार हरियाली तीज, रक्षाबंधन पर इस मिठाई का ही चलन है। हरियाली तीज पर पति अपनी पत्नियों के लिए घेबर खरीदकर ले जाते हैं। नवविवाहित युवक ससुराल जाते हैं तो वह घेबर लेकर जाते हैं। इसके बाद रक्षाबंधन पर बहन अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने के बाद घेबर से ही उनका मुंह मीठा कराती हैं। इस सब के चलते घेबर की जमकर डिमांड रहती है। घेबर की सीजनल दुकानें भी इस समय सज जाती हैं। दुकानदार भी घेबर का स्टाक करना शुरू कर देते हैं। घेबर की मिठाई मैदा से तैयार होता है। इसे विशेष प्रकार की कढ़ाई में रिफाइंड या घी में पकाया जाता है। इसके बाद इस पर चासनी चढ़ाई जाती है और फिर विभिन्न प्रकार के फ्लेवर से सजा दिया जाता है। दुकानदार सावन भादों के महिने में बनने वाली मिठाई घेबर के लिये काफी व्यस्त हो जाते हैं। हरियाली तीज और रक्षाबंधन तक दुकानदारों के सारे गोदाम खाली हो जाते हैं। शहर में प्रमुख मिठाई विक्रेताओं के अलावा चैक बाजार, होली गेट, मण्डी रामदास, शहर के हर गली मौहल्ले में स्पेशल दुकान सज जाती हैं।
पिछले वर्ष के मुकावले घेबर के दामों में इजाफा हुआ है
घेबर के रेट पिछली साल की अपेक्षा इस बार ज्यादा बढ़े हैं। रिफाइंड से तैयार घेबर दो सौ अस्सी रुपये प्रति किलो है तो देसी घी से तैयार घेबर 320-350 तक है। पिछले साल रिफाइंड से निर्मित घेबर 150-180 तक बिका और देसी घी का 280-300 तक था।
पूरे साबन और भादों के महीने में ही घेवर बिकता है, अब सगुन के लिये लोग घेबर खरीदते हैं जिसके कारण अब सावन में भी इतनी बिक्री नहीं हो रही है। उम्मीद है कि हरियाली तीज के बाद रक्षाबंधन इसकी पूर्ति कर देंगे।
सावन में हर साल दुकानदार अपनी दुकान के सामने स्पेशल दुकान भी लगाते हैं और ठेके पर और दुकानदारों का घेबर भी तैयार करते हैं। ठेके पर काम करने वाले महिनों पहले से सूखे घेबर का स्टाक करते हैं और सीजन में इनकी विक्री दुकानों पर होती है।
रक्षाबंधन का पर्व नजदीक आते ही शहर घेबर की सुगंध से महक उठता है। शहर में जगह-जगह देशी घी और वनस्पति घी से निर्मित घेबर तैयार किये जाते है। मिष्ठान विक्रेता कारीगरों से दिन और रात की शिफ्ट में घेबर तैयार कराते हैं। घेबर को तैयार कर स्टॉक भी किया जा रहा है। मैदा, देशी घी, वनस्पति घी और खोवा व ठेके पर काम करने वाले कारीगरों के दामों में वृद्धि होने से इस बार घेबर के भी दाम बढ़े हैं। वनस्पति घी से निर्मित जो घेबर पिछली साल 280 रुपये प्रति किलो था अब वह बाजार में 300 से 350 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। सादा घेबर 200 से 280 रुपये प्रति किलो है। इसी तरह देशी घी से निर्मित घेबर पिछली साल 280 से 300 रुपये प्रति किलो था, लेकिन अब 350 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। सादा घेबर 280 से 300 रुपये प्रति किलो है। रक्षाबंधन पर्व के लिए घेबर की बिक्री भी शुरू हो गई है। शहर में जगह-जगह घेबर की दुकानें सज गई हैं। रक्षाबंधन पर्व के लिए दूर दराज में रहने वाले रिश्तेदारों और परिजनों को घेबर पैकिंग करा कर भेजा जा रहा है। रक्षाबंधन पर्व पर दुकानदारों को भी अच्छी दुकानदारी होने की उम्मीदें हैं।
सुनील शर्मा, मथुरा
09319225654

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

गोवर्धन पर्वत हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र है

मथुरा, अरावली पर्वत श्रृंखला में माना जाने वाला गोवर्धन पर्वत हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र है। कहा जाता है कि इन्द्र द्वारा जब ब्रज पर प्रकोप करते समय जो भयंकर वर्षा हुयी थी, उससे ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिये श्रीकृष्ण ने इस पर्वत को अपनी छोटी अंगुली के पर ऊपर उठाकर, छाता की भांति तान लिया था। देश-विदेश के हजारों तीर्थ यात्री इस पवित्र पर्वत श्रृंखला की सप्तकोसी परिक्रमा वर्ष भर करते रहते हैं। किन्तु आषाढ़ मास की पूर्णिमा को जिसे ‘‘मुडि़या पूनो’’ कहा जाता है, इस पर्वत की परिक्रमा करने के लिये पैतीस से चालीस लाख लोग एकत्र होते है। इस बार अनुमान से ज्यादा एक करोड़ से अधिक श्रद्धालु परिक्रमा करेंगे। 

इस अवसर पर इस बार 31 जुलाई तक मेला अपना पूर्ण रूप ले चुका होगा।
गोवर्धन पर्वत के परिक्रमा मार्ग में कुसुम सरोवर, राधाकुण्ड, जतीपुरा आदि अनेक दर्शनीय स्थल पड़ते हैं तथा यह सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र का प्राकृतिक सुषमा का भंडार है। गोवर्धन मथुरा से 26 किलोमीटर की दूरी पर है। गोवर्धन में पूछरी का लौठा, अप्सरा कुण्ड, कृष्ण दास का कुआ, सुरभि कुण्ड जैसे रमणीक स्थल हैं। गोवर्धन की तलहटी में सूरदास, कुंभनदास आदि अष्ट छाप कावियों, सखाओं एवं सिद्ध भक्तों के स्थल आज भी आस्था के केंद्र बने हुए हैं।
इस बार भी हर वर्ष की भांति ब्रज क्षेत्र के प्रसिद्ध गोवर्धन गिरिराज महाराज की मुडि़या पूर्णिमा मेला में बीते वर्ष से अधिक संख्या में श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की संभावना है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार लगभग एक करोड़ श्रद्धालु मुडि़या पूर्णिमा मेला पर गिरिराज महाराज की परिक्रमा करेंगे। इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के गिरिराज गोवर्धन पहुंचने को लेकर जिला प्रशासन ने व्यापक व्यवस्थाएं भी की हैं।
मुडि़या पूर्णिमा मेले में बड़ी संख्या में वाहनों के आवागमन को देखत हुए पार्किंग स्थलों के लिये व्यवस्था करना, निजी पार्किंग स्थलों के लिये लोक निर्माण विभाग द्वारा पार्किंग के लिये स्थान ठेकेदारों को उपलब्ध करायेगा। पार्किंग स्थलों की रूपरेखा तैयार करली गयी है। पीडव्लूडी विभाग द्वारा गड्ढों को भरवाने के निर्देश भी दिये गये है।
इस अवसर पर गोवर्धन में 24 घंटे विद्युत आपूर्ति के शासन द्वारा निर्देश दिये गये हैं। मानसी गंगा पर मेले के दौरान प्रकाश व्यवस्था को अनवरत किये जाने के लिये जैनरेटर सैट लगाये जा रहे हैं सड़क मार्ग पर प्रकाश व्यवस्था के लिये गोवर्धन तथा राधाकुण्ड नगर पंचायतों को सोडियम लाइट लगवाने के निर्देश भी दिये गये हैं।
इस अवसर पर विशाल मेले को देखते हुए तथा लाखों की संख्या में श्रृद्धालुओं के गोवर्धन पहुंचने को लेकर जाजमपट्टी, सौंख, गोवर्धन के मध्य मेले के दौरान 1500 स्पेशल बसों की व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा गया है। मेले के लिये प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के महाप्रबंधक ने बताया कि निगम द्वारा मेले में लगभग पन्द्रह सौ बसों के साथ-साथ रिकवरी वैन भी लगायी जायेंगी जिससे तीर्थ यात्रियों, श्रृद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, मेले के संबंध में जिलाधिकारी ने बताया कि व्यवस्थाओं के संचालन हेतु नगर पंचायत समिति के साथ-साथ एक मेला समिति का गठन भी किया गया है। इसमें आधे सदस्य सरकारी अधिकारी तथा शेष गैर सरकारी सदस्य होंगे। उन्होंने सहायक सम्भागीय परिवहन अधिकारी को निर्देश दिये कि जनपद में विभिन्न मार्गो पर चल रहे टैम्पों आदि सभी वाहनों पर लाइटें लगवाने हेतु अभियान चलायें। वाहनों पर आगे व पीछे लाइटों के न होने की स्थिति में दुर्घटना का खतरा बना रहता है। इस दौरान प्राइवेट बसों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है।
इस अवसर पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने मेले के दौरान चिकित्सा सुविधाओं की जानकारी देते हुए बताया कि चिकित्सकों की ड्यूटी भी लगायी गयी है। आठ-आठ घंटे की निर्धारित समय में नाम से ड्यूटी लगाने के साथ-साथ चिकित्सा केंद्रों पर जन जाग्रति नारों के बैनर आदि से आकर्षित बनाया जायेगा।
गोवर्धन क्षेत्र के विधायक राजकुमार रावत ने अपनी विधायक ने इस मेले की व्यवस्था के लिये प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री से मिलकर व्यवस्था कराने का अनुरोध किया है। गोवर्धन, बरसाना मार्ग को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिये निर्देश दिये हैं। विभागीय अधिकारियों के साथ मानसी गंगा के जल निकासी कार्य मानसी गंगा कार्य नये पम्पों की स्थापना पंचायत भवन परिसर में नलकूप निर्माण का स्थलीय निरीक्षण किया। उन्होंने परिक्रमा मार्ग पर दायीं ओर किसी भी दुकान के न लगाने के निर्देश दिये। 
सुनील शर्मा

गिरिराज गोवर्धन को साक्षात कृष्ण रूप माना जाता है

लाखों परिक्रमार्थी गोवर्धन पहुंचने लगे हैं, मानसी गंगा में स्नान कर परिक्रमा शुरू करते हैं
सुनील शर्मा
मथुरा। पौराणिक वर्णनों के अनुसार समूचे ब्रजक्षेत्र में दो वस्तुओं का अस्तित्व आज भी विद्यमान है, इनमें से एक है यमुना नदी और दूसरा है गिरिराज गोवर्धन पर्वत। भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का वद्य करके यमुना को प्रदूषण से मुक्त कराया था। और गिरिराज गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली में छाता की तरह उठाकर इंद्रदेव की अतिवृष्टि से डूबते ब्रजवासियों को बचाया था। भग
वान श्रीकृष्ण के समय से आज तक यमुना और गिरिराज पर्वत गोवर्धन करोड़ों भारतीयों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। संपूर्ण ब्रजभूमि का वैभव यमुना और गोवर्धन पर्वत के कारण ही है। इसी लिये संपूर्ण भारत ही नही पूरे विश्व से आज मथुरा, गोवर्धन, वृन्दावन, बरसाना आदि स्थलों को देखने व भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली का दर्शन करने प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री यहां आते है। यमुना के जल के आचमन मात्र से मोक्ष प्राप्ति का अटूट विश्वास लोक मानस में है ओर गिरिराज गोवर्धन को साक्षात कृष्ण का ही रूप माना जाता है।
मथुरा से 22 कि.मी. दूर स्थित है प्राचीन तीर्थ स्थल गोवर्धन, गोवर्धन के चारों ओर लगभग 21 किलों मीटर क्षेत्र में गिरिराज गोवर्धन पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृखंला की तलहटी में बारहों महिने करोड़ों लोगों को परिक्रमा कर गिरिराज गोवर्धन के प्रति अपनी आस्था और भक्ति की अभिव्यक्ति करते देखा जा सकता है। गुरू पूर्णिमा के लोक पर्व मुडि़या पूनौ पर देश के विभिन्न अंचलों से बहुत बड़ी संख्या में यहां भक्त नर-नारी आते हैं। जिनके कारण मुडि़या पूनौ ब्रज का सबसे बड़ा लक्खी मेला माना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 30 जुलाई को है और अभी से मुडि़या पूनौ पर गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा के लिये यात्रियों का आना प्रारंभ हो गया है।
गुरू पूर्णिमा के इस लोक पर्व के रूप में मनाये जाने वाले मेले को मनाये जाने के पीछे भगवान वेदव्यास का जन्म दिवस व चैतन्य महाप्रभु सम्प्रदाय के शिष्य आचार्य सनातन गोस्वामी का आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा को निर्वाण और गिरिराज गोवर्धन को साक्षात श्रीकृष्ण का प्रतिरूप माने जाने की अटूट आस्था है। इस आस्था का दर्शन भक्तों द्वारा गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा लगाते समय गाये जाने वाले लोग गीतों से होता है। ऐसे ही एक लोकगीत में गोवर्धन जाने के लिए मन की व्याकुलता गिर्राज जी की परिक्रमा और मानसी गंगा में स्नान की आकांक्षा इस प्रकार व्यक्त करते हैं।
नांइ माने मेरौं मनुआं मै तो गोवर्धन कूं जाऊ मेरी वीर।
सात कोस की दे परिक्रम्मा मानसी गंगा नहाऊ मेरी वीर।।

मुडि़या पूनौं के नाम करण के संबंध में कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय के उनके विद्वान शिष्य आचार्य सनातन गोस्वामी से है। जिनका निधन हो जाने पर उनके शिष्यों ने शोक में अपने सिर मुड़वा कर कीर्तन करते हुए मानसी गंगा की परिक्रमा की थी। मुडे हुए सिरों के कारण शिष्य साधुओं को मुडि़या कहा गया और पूनौं (पूर्णिमा) का दिन होने के कारण इस दिन को मुडि़या पूनौं कहा जाने लगा सनातन गोस्वामी और उनके भाई रूप गोस्वामी गौड़ देश प्राचीन बंगाल के शासन हुसैन शाह के दरवार में मंत्री थे। चैतन्य महाप्रभु के भक्ति-सिद्धांतों से प्रभावित होकर वे मंत्री पद छोड़कर वृन्दावन आ गये और यहां उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त की और उनके शिष्य हो गये। चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें यह आदेश दिया कि वे कृष्ण के समय के तीर्थ स्थलों की खोज करें और उनके प्राचीन स्वरूप को प्रदान करें साथ ही श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार-प्रसार करें। चैतन्य महाप्रभु के आदेशानुसार दोनों भाईयों ने ब्रज के वन-उपवन और कुंज निकुंजों में भ्रमण करके भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थलों की खोज करने लगें। वे घर-घर जाकर रोटी की भिक्षा ग्रहण करते और
‘‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।’’ 
महामंत्र का कीर्तन कर कृष्ण भक्ति का प्रचार करने लगे।
सनातन गोस्वामी भ्रमण करते हुए जब गोवर्धन आये तो उन्होंने मानसी गंगा के किनारे स्थित चकलेश्वर मंदिर के निकट अपनी कुटिया बना ली और वहीं रहने लगे वह नित्य प्रति गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा करते थे। वह नित्य प्रति मानसी गंगा में ही स्नान करते थे। अत्यंत वृद्ध और अशक्त हो जाने पर भी उन्हांेने जब इस नियम को नहीं तोड़ा तो कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर गिरिराज पर्वत की एक शिला पर अपने चरण अंकित किए और कहा-बाबा आप इसकी परिक्रमा कर लेंगे तो गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा हो जायेगी।
सनातन गोस्वामी का निधन अब से 446 वर्ष पूर्व संवत् 1611 में आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा सं. 1611 को हुआ था। उनके निधन पर उनके अनुयायियों ने सिर मुड़वाकर चकलेश्वर मंदिर से शोभायात्रा के रूप में निकाली थी वहीं परम्परा आज भी उनके शिष्यों व अनुयासियों द्वारा प्रत्येक वर्ष निकाली जाती है।
इस लक्खी मेले को देखते हुए जिला प्रशासन प्रत्येक वर्ष अधिक संख्या में श्रद्धालुओं के आगमन को लेकर व्यवस्था करता है। सम्पूर्ण मेला क्षेत्र को विभिन्न सैक्टरों में बांटकर पेयजल, सफाई, शुद्ध खाद्य पदार्थ, विद्युत व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था, दुग्ध आपूर्ति यातायात व्यवस्था आदि की व्यापक इंतजाम करता है। पूरे मेला क्षेत्र में पुलिस चैकी तथा वाच टावर के माध्यम से नियंत्रण की व्यवस्था की जाती है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की घोषित व्यवस्थाओं के अभाव में प्राइवेट बसों द्वारा यात्रियों को भूसे की तरह भर कर मेला स्थल तक पहुंचाया जाता है यात्री छतो पर यात्रा करने को मजबूर होते है। जगह-जगह बैरियर लगे होने के कारण यात्रीयों को परिक्रमा से अधिक पैदल चलना पड़ता है।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

आधुनिक परिवेश के परे ब्रज की मस्ती भरी होली

कहीं उडता रंग गुलाल, तो कहीं चलती लाठियां
सुनील शर्मा
मथुरा। आज के आधुनिक परिवेश में भी ब्रज की होली ने अपने वास्तविक स्वरूप को वनाये रखा है। होली माधुर्य का पर्व है प्रेम रस रंग और उमंग का प्रतीक पर्व होली का वास्तविक आनन्द केबल ब्रज में ही मिल सकता है। इस आनन्द की अनुभूति के लिये सारे देश के लोग यहां बरवस ही खिचे चले आते है यही नही यहां की होली विदेशी पर्यटकों को भी यहां आने और इस आनन्द में डूब जाने को मजबूर कर देती है। ब्रज में होली पूरे एक महिने से अधिक दिनों तक खूव मस्ती के साथ मनाई जाती है। यहां होली का वास्तविक आनन्द यहां के देवालयों में मिलता है। मंदिरों में होली एक माह पूर्व ही शुरू हो जाती जब कहीं भी होली की चर्चा भी नही होती है। होली की शुरूआत मंदिरों में समाज गायन से होती है बसन्त पंचमी के दिन से मंदिरों में ठाकुर जी को इत्र और रंग लगा कर होली शुरू की जाती है। वृन्दावन में प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर तथा मथुरा में द्वारकाधीश मंदिर में होली की शुरूआत समाजगायन से की जाती है पंडा समाज के लोग बडे़ बडे़ नगाडों और ढोल मंजीरे की धुन पर नाचते गाते है।
हजारों हजारों वर्षों से ब्रज की धरती पर होली खेली जाती है इतिहास वदल गये, हमारी संस्कृति और परम्पराओं में बदलाव आया आधुनिकता ने हमें चारों ओर से घेर लिया है किन्तु ब्रज के कण कण में आज भी राधा कृष्ण का प्रेम और नटखट कृष्ण कन्हैया की और श्री राधा रानी की प्रेम भरी होली आज भी जनमानस के मनमस्तिक पर अमिट छाप की तरह हमेशा के लिये बनी हुई है। कान्हा की मधुर बासुरी की धुन और राधा रानी के नूपुरों की झनकार और उनके नृत्य आज भी हमें उनके हमारे बीच ही उपस्थिति का अहसास कराते रहते है। जब होली की कहीं भी चर्चा तक नहीं होती उस समय ब्रज में होली शुरू हो जाती है यहां होली का पर्व वंसत पंचमी से शुरू हो जाता है इसी दिन श्यामा श्याम को गुलाल लगा कर श्रंगार करने की परम्परा निभाई जाती है। इस समय जब भक्तों पर गुलाल पड़ता है तो वह इसे भगवान का प्रसाद मानकर अपने आपको धन्य मानते हैं। ब्रज में चारों ओर होली की अनूठी परम्पराओं के दर्शन होते हैं कहीं रगं गुलाल की होली होती है तो कहीं अंगारों की, कहीं फूलों की तो कहीं लाठियों और कोडों की होली होती है।
बरसाने और नन्दगांव में लाठियों की होली
यहां ब्रज की अनूठी होली होती है फाल्गुन शुक्ला नवमी को बरसाना में लठामार होली खेली जाती है कहने को बरसाना छोटा सा गांव है किन्तु श्री राधा रानी जी की बाललीलाओं का स्थान होने के कारण यह देश विदेश में विख्यात है। यहां होली खेलने के लिये कन्हैया के गांव नन्दगांव से हुरिहारे बरसाना आते हैं रंगविरंगी पगड़ी पहने हाथों में ढाल लिये ये सब पीली पोखर में पहुचते हैं। यहां भांग ठन्डाई छान कर सब आपस में हास परिहास करते हुए गीत गाते हुए बरसाने की उंची पहाडियों की तंग गलियों में होते हुये उपर बने हुए मंदिर में पहुंचते हैं। यहां श्रीजी के प्राचीन मंदिर में बरसाना और नन्दगांव के गुसाईयों में हास परिहास के बीच गीत संगीत का कार्यक्रम शुरू होता है। इसमें आपस में गालियों का प्रयोग करते हुए प्रेम और प्रीति के साथ हंसी ठिठोली भी होती है। 
गीत संगीत और नृत्य कार्यक्रम के वाद नन्दगांव के हुरिहारे अपने अपने हाथों में ढाल लिये संकरी गली जिसका नाम रंगीली गली के नाम से जाना जाता है वहां एकत्रित हो जाते हैं और यहीं पर होती है विश्व प्रसिद्ध लठामार होली। इन संकरी गलियों में मोटी मोटी लाठियां लिये गोस्वामी परिवार की महिलायें गोपियों के रूप में अपने मुह पर घूंघट काढे़ नन्दगांव से आये हुरिहारों की प्रतीक्षा में होती हैं और जैसे ही वह यहां से गुजरते हैं उछल-उछल कर उन पर लाठियां बरसाती रहती हैं और नन्दगांव के हरिहारे जमीन पर बैठ कर उनकी लाठियों के प्रहार को झेलते रहते हैं। इस अनौखी होली का आनन्द लाखों श्रद्धालु वहां उपस्थित रह कर उठाते हैं। और होली का भरपूर आनन्द उठाते हुए लाडली लाल की जय जयकार करते हैं।
दूसरे दिन इसी तरह का माहौल नन्दगांव में होता है यहां भी नन्दराय जी का उंची पहाडी पर मंदिर है। बरसाने के हुरिहारे यहां आते हैं और नन्दगांव के गुसाईयों के साथ समाज गायन का कार्यक्रम होता है इसके वाद नन्दगांव के एक चैक में सभी एकत्रित होते हैं जिसमें नन्दगांव की हुरिहारिनें बरसाने के हुरिहारों के साथ लठामार होली खेलती हैं।
बरसाने नन्दगांव की होली की शुरूआत के साथही ब्रज मंडल में चारों ओर सतरंगी रूप निखर उठता है और चारों तरफ अलग अलग ढं़ग से होली खेलने की परम्परा शुरू हो जाती है। नन्दगांव की होली के अगले दिन फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रंगभरनी एकादशी पर्व पर मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन आदि के मंदिरों में रंग और गुलाल के ऐसे बादल उड़ते हैं जिससे बच कर किसी का भी निकलना मुश्किल होता है।  मंदिरों में होने वाली सतरंगी होली का आनन्द भक्त और भगवान के बीच में खेला जाने वाला होली का वास्तविक आनन्द की अनुभूति कराता है।
फाल्गुन शुक्ला पर्णिमा को ब्रज में होली पूजन और होलिका दहन का दिन होता है इस दिन तिथि के अनुसार ही महिलायें होलिका का पूजन करती हैं और उसी के तहत ही रात्रि में शहर व गांव के हर गली मौहल्ले में होलिका दहन का कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर फालैन और जटवारी में गांव के बीचों बीच बडे से मैदान में हिरण्यकश्यप और होलिका के प्रतीक स्वरूप के दर्शन देखने को मिलते हैं जिसमें दोनों गावों में एक एक पन्डा कई दिनों से पूजा अर्चना करके आपने आप का शुद्ध मन से विशाल होली की लपटों से निकलने के लिये तैयार करता है। इस दिन पन्डा विशाल होली की लपटों के बीच से होकर छलांग मार कर बाहर आता है। यह रोमांचकारी दृश्य देश विदेश के लाखों लोगों के बीच सम्पन्न होता है। प्रहलाद के विशाल अग्नि से बाहर आने पर सभी भक्त प्रहलाद की जय जयकार करने लगते हैं।
होलिका दहन के अगले दिन धुलैडी के दिन समूचे ब्रज में सभी नर नारी मदमस्त होकर होली खेलते हैं एक दूसरे को रंग लगाते हैं जगह जगह गीत संगीत का आयोजन किया जाता है लोग ठन्डाई और भांग का सेवन करके माहौल को और उमंग से भर देते हैं नाचते हैं गाते हैं झूमते हैं आपस में रंग लगाते हैं खुशियां मनाते हैं मिठाई खाते हैं और खिलाते हैं और आपस में बधाईयों का आदान प्रदान भी करते हैं गले मिल कर आपसी प्रेम को और प्रगांढ़ करते हैं।
मथुरा में यमुनातट पर विश्राम घाट, स्वामी घाट, बंगाली घाट आदि क्षेत्रों में होली की छटा कुछ अलग ही देखने को मिलती है जगह-जगह घाटों की बुर्जियों में भांग ठन्डाई बड़ी-बड़ी सिलों पर पीसते हैं। इसके शौकीन मथुरा के चतुर्वेदी समाज के लोग बादाम, पिस्ता, काजू, मुनक्का, खरबूजे की मिंगी, सौंफ, कालीमिर्च, गुलकंद आदि को पीस कर एक गोले का रूप दिया जाता है। इसके वाद मनों दूध में इस मिश्रण को मिला कर सभी देवताओं का आवाहन करके फिर वहां उपस्थित लोग प्रसाद के रूप में इसका सेवन करते हैं। भांग की तरंग और ठन्डाई की उमंग के साथ सभी मस्ती में डूब जाते हैं फिर शुरू होती है होली की तान।
होली का त्यौहार बेसे तो पूरे देश में अपने अपने तरीके से मनाया जाता है लेकिन ब्रज की होली जैसा आनन्द और रंगीन मस्ती कहीं नहीं होती है। अब होली का आनन्द पूरे महिने भर गांव गांव में हुरंगों के रूप में देखने को मिलता है।
चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया से नवमी तक ब्रज के हुरंगे और फूलडोल के आयोजन होते हैं जिसमें जगह जगह होली के रसिया और गीत संगीत के आयोंजन और होली मिलन समारोह आयोजित किये जाते हैं। मुखराई, ऊमरी, रामपुर, अहमल कलां, बछगांव, सौंख आदि आठ गांवों में चरकुला नृत्य का अयोेजन होता है यह ब्रज का परम्परागत लोकनृत्य है जिसमें चांदनी रात में सैकडों दीपों से जगमगाता 40 से 60 किलो वजन का चरकुला सिर पर रखकर एक नृत्यांगना होली के रसिया गीतों के लय ताल पर थिरकती है। उपस्थित गावों के लोग रात भर इसका आनन्द लेते हैं। आधुनिकता से परे आज भी विशाल बम्ब (नगाडे) की ताल और अलगोजा, थाली, करताल, और मंजीरे की मधुर स्वर लहरियों के बीच इस नृत्य की समाप्ति पर नृत्यांगना को जुग जुग जीने की का आर्शीवाद भी गायन के साथ ही दिया जाता है। ‘‘जुग जुग जीओ मेरी नाचन हारी नाचन हारी के दुई दुई हुइयें’’।
दाऊजी का प्रसिद्ध हुरंगा
मथुरा से लगभग 22 किलोमीटर दूर बलराम जी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जहां दाऊजी का हुरंगा मंदिर प्रांगण में ही खेला जाता है। यहां महिलायें कपड़े फाड़ देती हैं और उनके कोडे बनाकर पुरूषों के नंगे शरीर पर मारती हैं। मंदिर के विशाल प्रांगण में निर्मित हौजों में टेसू के फूलों को भिगो कर रंग बनाया जाता है। हुरिहारे बाल्टियों में भर भर कर हुरिहारिनों पर डालते रहते हैं। मंदिर के छज्जों से अलग-अलग रंगों का गुलाल उडता रहता है अबीर और गुलाल का इन्द्र धनुषी छटा का आभास कराता यह हुरंगा सभी के मन को उमंगों से भर देता है। 
इसी दिन कोसीकलां के निकट जाव और बठैन गांव में भी हुरंगा होता है जिसमें बलराम के प्रतीक के रूप में हरिहारों को राधारानी के प्रतीक रूप में महिलाओं से बड़ी मर्यादा के साथ होली खेलनी होती है। हुरंगा के शुरू होने से पहले शोभायात्रा के रूप में सिरदारी निकलती है इनकी यह शोभायात्रा राजा, महाराजा, जमीदारों की तरह बठैन के वयोवृद्ध जाब गांव में आते हैं उनका सम्मान किया जाता है। एक विशेष मिठाई खिलाई जाती है फिर सभी गांव के लोग एक मैदान में एकत्रित होते हैं जहां हुरिहारे हाथ में हाथ डाले एक घेरा बनाकर बीच में बलराम के प्रतीक को लेकर चलते हैं और गांव की हुरिहारिनें लाठियों से बठैन से आये हरिहारों को मारती हैं इस वार को हुरिहारे लाठीयों से ही रोकते रहते हैं घेरा के बीच में बलराम एक ध्वज को लेकर घूमता रहता है।   
बसंत पंचमी से चैत्र कृष्ण नवमी तक चलने वाला 50 दिनों का गीत, संगीत, नृत्य, भक्ति और भाव रस, रंग, उमंग का यह त्यौहार ब्रजवासियों को मन तक भिगो कर तृप्त कर देता है। सभी की कांमना होती है कि सभी चिरजीवी हों और ब्रज में प्रति वर्ष होली खेलकर आनन्द की अनुभूति के साथ साथ भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम का सन्देश जन-जन तक पहुंचाते रहें। 
जयश्री कृष्ण जयश्री राधे।
भगवान श्री कृष्ण-राधे रानी के श्री चरणों में-सुनील शर्मा                     

शनिवार, 31 जनवरी 2015

हिक्की ने सिखाई लडाकू और जुझारू पत्रकारिता

देश में पहला समाचार पत्र 1780 मेें निकला था
हिक्की दिवस के रूप में मनाया पत्रकार दिवस

(सुनील शर्मा)
मथुरा। पत्रकारिता की शुरूआत के विषय में आम धारणा है कि 30 मई को भारत में पत्रकारिता का जन्म हुआ लेकिन शायद कम ही लोगों को मालुम होगा कि हमारे देश में पत्रकारिता की बास्तविक शुरूआत 29 जनवरी 1780 में एक अंग्रेज ने की थी जो व्रिटिश सामराज्य के खिलाफ ही पत्र निकाल कर उनकी गलत नीतियों का विरोध करता था
साल 1780 में 29 जनवरी के दिन भारत में पहली बार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी जेम्स अगस्टस हिक्की ने ‘‘बंगाल गजट’’ या ‘‘दी कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर’’ नाम से अखबार कलकत्ता से प्रकाशित किया था। इस समाचार पत्र को ‘‘हिक्की गजट’’ के भी नाम से भी जाना जाता था। यह अंग्रेजी भाषा में साप्ताहिक पत्र के रूप में प्रकाशित हुआ था। इस पत्र के प्रकाशन के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए हिक्की ने लिखा था कि ‘‘इसके प्रकाशन का उद्देश्य’’ न मात्र मेरी समाचार पत्र प्रकाशन की इच्छा अथवा रुझान है वरन् इसका उद्देश्य शारीरिक दासता के बदले मन और आत्मा की स्वतंत्रा को प्राप्त करना है।
इससे पहले समाचार पत्र ब्रिटेन से आते थे जो कि कई सप्ताह विलम्ब से भारत पहुंचते थे। हिक्की के इस पत्र की लोकप्रियता और उस समय के पाठक वर्ग ने सराहा और लोग इसको पढ़ने के लिये एक स्थान पर एकत्र होते थे। उस वक्त अंगे्रज सरकार के लिये हिक्की का यह समाचार पत्र सिर दर्द बन गया था। और इसकी दिनों दिन मांग बढती गई और पाठक भी अधिक मात्रा में मिलते गये। उसने इस समाचार पत्र की नीति को ‘साप्ताहिक राजनीतिक एवं व्यवसायिक समाचार पत्र’ के रूप में घोषित की। यह पत्र बिना दबाव के सबके लिए ‘खुला’ भी घोषित किया। यह भारत का प्रथम आधुनिक ‘‘साप्ताहिक’’ समाचार पत्र था। यह समाचार पत्र दो पृष्ठों का 12 गुणा 8 इंच के आकार में प्रकाशित होता था। हिक्की ने अपने इस समाचार पत्र में ईस्ट इंडिया कम्पनी के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स एवं उस समय के भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति इलीजा इम्पे तथा अन्य कम्पनी के कर्मचारियों के ऊपर विशेष रूप से प्रहार करना प्रारम्भ किया। इस प्रकार हिक्की गजट मुख्य रूप से ईस्ट इंडिया कम्पनी प्रशासन के खिलाफ था। अतः वारेन हेस्टिग्स ने हिक्की को चेतावनी भी दी परन्तु हिक्की प्रेस एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए निरन्तर आगे बढ़ते रहे। 14 नवम्बर, 1780 के एक आदेश के द्वारा हिक्की के समाचार पत्र को प्रदान की गयी डाक सुविधा भी समाप्त करने का आदेश वारेन हेस्टिंग्स ने दिया।
हिक्की को एक समाचार प्रकाशित करने के मामले में न्यायालय ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश भी दिया परन्तु हिक्की निजी मुचलके पर रिहा हो गए। न्यायालय के नियमों के तहत हिक्की को दोषी पाया गया और उन पर चार माह की सजा तथा 500 रुपये का जुर्माना किया गया। हिक्की समाचार पत्र को जेल से भी लिखते रहे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालकों की धारणा थी कि हिक्की के जेल में जाने के बाद समाचार पत्र का प्रकाशन बन्द हो जाएगा। परन्तु, उनकी यह धारणा निराधार निकली और समाचार पत्र नियमित प्रकाशित होता रहा। हिक्की के समाचार पत्र से परेशान होकर वारेन हेस्टिंग्स और इम्पे ने इसे बन्द कराने की ठान ली। हिक्की पर जुर्मानों और जेल की सजा का दौर चला। हिक्की की आर्थिक दशा इस प्रकार की नहीं थी कि वह अधिक दिनों तक शासन से लड़ सकें। परिणाम स्वरूप मार्च 1782 को ‘‘बंगाल गजेट’’ प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस प्रकार भारत का प्रथम नियमित समाचार पत्र समाप्त हो गया। ईस्ट इंडिया कम्पनी के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स एवं सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति इलीजा इम्पे ने हिक्की को देश निकाला करते हुए उसका वोरिया बिस्तर बांध कर पानी के जहाज से लन्दन के लिये रवाना कर दिया था रास्ते में ही हिक्की की मौत हो गयी थी और वह हमेशा हमेशा के लिये गुमनामी में चला गया। लेकिन आज भी इतिहास में हिक्की का नाम जिन्दा है।
भारत के प्रथम समाचार पत्र के संस्थापक जेम्स अगस्टस हिक्की को स्मरण करते हुए 29 जनवरी को कुछ पत्रकारों ने एक गोष्ठी का आयोजन किया जिसमें आगरा से टाइम्स आॅफ इन्डिया के ब्रज खन्डेलवाल जी ने काॅन्फरेंस के जरिये उपस्थित पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए अपने विचार रखे उन्होंने कहा कि पत्रकारिता दिवस कौन सा है हम हमेशा से 30 मई को ‘‘उतन्ड मातण्ड’’ की शुरूआत को ही पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे है जबकि वास्तविकता में इस दिन हिन्दी पत्रकारिता की शुरूआत हुई थी जबकि भारत में पहला समाचार पत्र 29 जनवरी 1780 में शुरू हुआ था अगर भाषा की वात न की जाय तो शुद्ध पत्रकारिता के विषय में यदि वात करें तो इसकी शुरूआत एक अंगेज ने अंग्रेज हकूमत के खिलाफ समाचार पत्र निकाल कर लडता रहा। उसकी पिटाई भी हुई मारा गया पीटा गया फिर भी वह सत्ता के खिलाफ लडता रहा विना किसी भेदभाव के गरीबों और मजबूरों के लिये लडता रहा सेवा भावना से सामाजिक सरोकार के लिये उंच नीच गरीब अमीर की परवाह किये विना ही उसने इनके हितों को ध्यान में रखकर कार्य किया। यहां तक कि हिक्की ने वारेन होस्टिंग की पत्नी के विषय में भी लिखा था कि उसको कपडे़ पहनने का सलीका नही आता है।
श्री खन्डेलवाल ने कहा कि हमें सेवा भावना से समाजिक सरोकारो से विमुख नही होना चाहिए स्टेबलिस्टसमेन्ट से लडते रहो। यहां भाषा का कोई मतलब नही है पत्रकारिता कब शुरू हुई है। उन्होंने कहा कि आज की चाटुकारिता की पत्रकारिता नही करनी चाहिए जझारू पत्रकारिता को आगे बढाना चाहिये। हिक्की एक लडाकू व जुझारू पत्रकार था उसने हमें सिखाया कि हम लोगों की आवाज बनें।
इस अबसर पर सुनील शर्मा, पवन गोतम, रहीश कुरेशी, सत्यपाल सिंह आदि उपस्थित थे।