मंगलवार, 27 जुलाई 2010

कारागार में बढ़ती अव्यवस्था को लेकर कैदियों में विद्रोह की स्थिति

जिला कारागार में बढ़ता कैदियों की संख्या और स्टाफ की कमी अधिकारियों की मुसीबत बनी हुयी है। वहीं जेलों में मिलने वाला घटिया खाना खाने तथा पैरॉल व होमलीव न मिलने से कैदियों में विद्रोह की भावना पनप रही है, इसी का परिणाम था कि मथुरा जिला जेल से पिछले माह चार कैदी फरार हुये थे। दो दिन पूर्व इसी कुण्ठा के चलते कैदियों ने सामूहिक रूप से भोजन का बहिष्कार कर दिया था किसी तरह जेल प्रशासन ने उन्हें मनाया था। प्रदेश सरकार की नीतियों और ब्यूरोक्रेटस के दबाव के चलते पैरॉल और होमलीव का अधिकार भी मण्डलायुक्त और जिलाधिकारी से छीन कर प्रदेश सचिवालय के हाथों सौंप दिया। यूं तो प्रदेश की सभी जिला जेलों में क्षमता से अधिक कैदी ठंूस रखे है। प्रदेश की जेलों में 28 हजार कैदियों की अपेक्षा 90 हजार के करीब कैदी बंद है। इसी तरह मथुरा जिला कारागार में 554 कैदियों की क्षमता के विपरीत 11 सौ कैदी बंद है। जिनमें अधिकांश विचाराधीन कैदी है। जेल में आने के कारण इन्हें ढंग से खाना भी नहीं मिल पाता। वैसे भी जेल मैन्युअल के अनुसार कैदियों को औसत दर्जे का भोजन दिये जाने का प्रावधान है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कैदियों को प्रातः चाय, एक बार नाश्ता एवं दो टाइम खाने के लिये प्रति कैदी अठारह या बीस रुपये की राशि निर्धारित है। इस छोटी सी रकम में एक व्यक्ति को ढंग से नाश्ता भी नहीं कराया जा सकता, खाना वो भी दो टाइम कैसे खिलाया जा सकता है। घटिया स्तर का खाना मिलने एवं लम्बे समय से जेल में बंद कैदियों में पैरॉल पर रिहाई न मिलने एवं होमलीव न मिलने से ये लोग डिप्रैशन के शिकार हो सुधरने के बजाय गलत रास्ता अख्तियार करने लगते है। इसके पीछे इन कैदियों का परिजनों से मुलाकात न हो पाना भी है। जेल प्रशासन के अनुसार कुछ दिन तक तो कैदियों के परिजन इनसे मिलाई (मुलाकात) के लिये यहां हफ्ते दस दिन के अंतराल पर आते रहते है लेकिन धीरे-धीरे यह क्रम दूर जात है। और कैदी मानसिक रूप से व्यथित होने लगता है। और गलत कदम उठाने को मजबूर होते है। जेल प्रशासन के अनुसार सश्रम कैद की सजा भो रहे लोगों को भी काम के लिये जेल से बाहर खेतों पर काम के लिये नहीं लाया जाता। इसके पीछे कर्मचारियों बंदी रक्षकों की कभी मुख्य कारण है। यदि कैदियों को बाहर लाया जाये तो उनकी रखवाली आवश्यक है। यदि ये लोग काम में व्यस्त रहे तो इनका दिमाग किसी खुरापात (गलत कार्य) की ओर नहीं जायेगा। पैरोल और होमलीव पर कैदियों के न भेजे जाने के पीछे भी जेल प्रशासन की मजबूरी है। पूर्व में कैदी को 15 दिन की होमलीव देे का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट को एवं पैरोल पर रिहाई स्वीकृति का अधिकार मण्डलायुक्त को था। लेकिन वर्ष 2007 में प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर ऐसी स्वीकृति प्रदेश स्तर से करने की घोषणा कर दी। कैदियों के परिजनो के लिये सचिवालय से पैरोल/होमलीव स्वीकृत कराना तो दूर की बात है, वहां प्रवेश पाना भी मुश्किल है। इसी तरह पूर्व में लम्बे अर्से से जेल में बंद सजाकाट रहे या विचाराधीन कैदियों के अच्छे चाल-चलन की जेल अधिकारियों से मिली रिपोर्ट पर स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर प्रदेश सरकार द्वारा रिहाकर दिया जाता था। लेकिन अब वर्ष 2001 के बाद पूरे प्रदेश की किसी भी जेल से एक भी कैदी की रिहाई नहीं की गई है। वहीं जेल से 14 वर्ष बाद कैदियों को नौमीनलरौल प्रदेश सरकार को भेजा जाता था अब वो व्यवस्था भी खत्मकर दी गई। जिससे जेलों में कैदियों की संख्या तो बढ़ती ही जा रही है लेकिन कर्मचारियों की भर्ती पर प्रदेश सरकार का कोई ध्यान नहीं है। मथुरा जिला कारागार भी इन समस्याओं से अछूती नहीं है। यहां कोई कुक या फॉलोअर तक तैनात नहीं है। जिससे कैदियों को ही खाना पकाना पड़ता है। एक तो घटिया सामिग्री और ऊपर से अप्रशिक्षित रसोइये जो खाने का स्वाद ही बिगाड़ देते है। बजट की कमी चलते जेल प्रशासन कैदियों के मनोरंजन, या सुधार हेतु कोई कार्यक्रम भी नहीं करा सकता वहीं समाज सेवा संस्थाओं द्वारा प्रवचन, धार्मिक कार्यक्रम या योगा प्रशिक्षण कैम्प लगाने के प्रस्ताव दिये जाने पर जेल प्रशासन जगह की कमी की बात कह हाथ खड़े कर देता है। फिर कैसे जिला जेल में बंदी कैदियों के आचरण में सुधार आ सकेगा। सिर्फ जिला कारागार को बंदी सुधार गृह नाम दे देने से कैदियों की मानसिकता नहीं बदली जा सकती, इसके लिये बुनियादी और आवश्यक सुविधाएं मुहैया करानी ही होगी। इस संबंध में जिलाधिकारी के मोबाइल पर बात करने का प्रयास किया गया। लेकिन वह दूरभाष पर उपलब्ध न हो सके। एसएसपी बीडी पाल्सन से जब बात की गई तो उन्होंने जेल प्रशासन को सिटी मजिस्टेªट द्वारा देखे जाने की बात कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया।
धोती से कारागार प्रशासन भयभीत
मथुरा। कारागार प्रशासन धोती से बुरी तरह भयभीत है। आज जब एक बुजुर्ग कैदी के लिए धोती जेल में ले जाने की पेशकश की गई तो कारागार के अधिकारी भयग्रस्त हो गए। उल्लेखनीय रहे कि बीस जून को धोती के सहारे ही जिला कारागार की दीवार फांदकर चार कैदी भाग खड़े हुए थे। धोती की रस्सी बनाकर कैदियों के भागे जाने की घटना के बाद से कारागार प्रशासन धोती से बुरी तरह भयभीत है। ..........