शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

महाभारत काल में यमुना नदी गोर्वधन में बहती थी। यमुना नदी ने समय के साथ साथ अपना स्थान भी बदला।

मथुरा। महाभारत काल में यमुना नदी गोर्वधन में बहती थी। यमुना नदी ने समय के साथ साथ अपना स्थान भी बदला आज जहां से यमुना का प्रवाह है, वहा वह सदा से प्रवाहित नहीं होती रही है। पौराणिक अनुश्रुतियों और ऐतिहासिक उल्लेखों से ज्ञात होता है, कि यमुना नदी ने समय के साथ साथ अपना स्थान भी बदला है। जबकि यमुना पिछले हजारों वर्षो से हमारे जीवन की धारा के रूप में विधमान है, तथापि इसका प्रवाह समय समय पर परिवर्तित होता रहा है। महाभारत काल से वर्तमान तक यमुना की बदलती धारा के विषय में ज्ञात होता है कि यमुना कभी नन्दगांव, बरसाना गोर्वधन के निकट से होकर बहती थी। यमुना ने अपने दीर्घ  जीवन काल में इसने कितने स्थान वदले है, उनमें से बहुत कम की ही जानकारी हो सकी है। मगर एक प्राचीन महाभारत काल के एक मानचित्र के अनुसार यह अवश्य ज्ञात होता है कि यमुना की धारा गोर्वधन के निकट से बहती थी।

प्राचीन काल में यमुना मधुबन के समीप से बहती थी, जहां उसके तट पर शत्रुध्न जी ने सर्वप्रथम मथुरा नगरी की स्थापना की थी वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। बताया जाता है कि कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के निकट था । सत्रहवीं शताबदी में भारत आने वाले यूरोपीय विद्वान टेवर्नियर ने कटरा के समीप की भूमि को देख कर यह अनुमानित किया था कि वहां किसी समय यमुना की धारा थी। 

इस संदर्भ में मथुरा के तत्कालीन जिला कलेक्टर मथुरा के अजायब घर के संस्थापक ग्राउज का मत है कि ऐतिहासिक काल में कटरा के समीप यमुना के प्रवाहित होने की संभावना कम है, किन्तु अत्यन्त प्राचीन काल में वहाँ यमुना का प्रवाह अवश्य था। इस बात से यह सिद्ध होता है कि कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के समीप ही था।

कनिधंम का अनुमान है, यूनानी लेखकों के समय में यमुना नदी की एक मुख्य धारा या उसकी एक बड़ी शाखा कटरा केशव देव की पूर्वी दीवाल के नीचे से बहती होगी। जब मथुरा में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार हो गया और यहाँ यमुना के दोंनों ओर अनेक संधाराम बनाये गये, तव यमुना की मुख्य धारा कटरा से हटकर प्रायः उसी स्थान पर बहती होगी, जहाँ वह अब है, किन्तु उसकी कोई शाखा अथवा सहायक नही कटरा के निकट भी विधमान रही होगी।

ऐसा अनुमान है, यमुना की वह शाखा बौद्ध काल के बहुत बाद तक संभवतः सोलहवीं शताब्दी तक केशव देव मन्दिर के नीचे बहती रही थी। पहिले दो वरसाती नदियाँ ‘‘सरस्वती’’ और ‘‘कृष्ण गंगा’’ मथुरा के पश्चिमी भाग में प्रवाहित होकर यमुना में गिरती थीं, जिनकी स्मृति में यमुना के सरस्वती संगम और कृष्ण गंगा नामक धाट आज भी इतिहास के गबाह वने हुए हैं। संभव है यमुना की उन सहायक नादियों में से ही कोई कटरा केशव देव के पास से होकर बहती रही हो।

प्राचीन ग्रन्थों से ज्ञात होता है, प्राचीन वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। जबकि वर्तमान में वह गोवर्धन से लगभग कई मील दूर हो गई है। गोवर्धन के निकटवर्ती दो छोटे ग्राम ‘‘जमुनावती’’ और पारसौली है। वहाँ किसी काल में यमुना के प्रवाहित होने के उल्लेख मिलते हैं।

बल्लभ कुल सम्प्रदाय के वार्ता साहित्य से ज्ञात होता है कि सारस्वत कल्प में यमुना नदी जमुनावती ग्राम के समीप बहती थी। उस काल में यमुना नदी की दो धाराऐं थी, एक धारा नंदगाँव, वरसाना, संकेत के निकट वहती हुई गोबर्धन में जमुनावती पर आती थी और दूसरी धारा चीर घाट से होती हुई गोकुल की ओर चली जाती थी। आगे दोनों धाराएँ एक होकर वर्तमान आगरा की ओर बढ़ जाती थी।

परासौली में यमुना नदी की धारा प्रवाहित होने का प्रमाण स. १७१७ तक मिलता है। यद्यपि इस पर विश्वास करना कठिन है। श्री गंगाप्रसाद कमठान ने ब्रजभाषा के एक मुसलमान भक्तकवि कारबेग उपमान कारे का वृतांत प्रकाशित किया है। काबेग के कथनानुसार जमुना के तटवर्ती पारसौली गाँव का निवासी था और उसने अपनी रचना सं १७१७ में श्रजित है

 वरिष्ठ  पत्रकार, सुनील शर्मा, मथुरा 

 

बुधवार, 12 अगस्त 2020

श्रद्धालुओं के विना मनी जन्माष्टमी, परम्परागत तरीके से हुए आयोजन

मथुरा। (सुनील शर्मा) गीता के नायक, लीला पुरूषोत्तम, योगीराज श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को हुआ था। देश के प्रायः सभी प्रान्तों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व असीम श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी का यह पर्व देश विदेश में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। किन्तु इस वर्ष जन्माष्टमी के सभी आयोजन मंदिरों में तो परम्परागत तरीके से होंगे किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित किया गया है जिसके चलते इस वर्ष बाहर से आने वाले श्रद्धालु मथुरा जनपद में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं श्रद्धालु इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अपने-अपने घर पर रह कर ही मनायेंगे।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर ब्रज के कण-कण में अपूर्व हर्षोल्लास छा जाता है। आज भी घर आगंन को गोवर से लीपा जाता है चौक पूरे जाते हैं द्वार पर बंदरवार बांधी जाती है, मंगल सूचक थापे लगाये जाते हैं और फूलों से पालने को सजाकर ब्रजकी बालाएं गाती हैं।

‘‘डोरी फूलन को पालनों, आजु नन्द लाला भए’’।

ब्रज के घर-घर में भगवान को नये वस्त्र पहना कर उनका श्रंगार करके झांकियां सजाई जाती है। महिलाएं अपने यहां रखे सालिगराम की वटिया को एक खीरे में रख कर डोरे से बांध कर श्री कृष्ण के जन्म समय मध्य रात्रि को 12 बजे उसे खीरे में से निकाल कर पंचामृत स्नान कराती हैं। इस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण का प्रतीक रूप में जन्म की भावनाएं संजोई जाती हैं। स्त्री पुरूष बच्चे भी श्री कृष्ण के जन्म के दर्शन के उपरान्त ही अपना व्रत खोलते हैं।

मथुरा स्थित प्राचीन मंदिर भगवान केशवदेव और नगर के मध्य विराजमान ठाकुर द्वारकानाथ द्वारकाधीश मंदिर में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। इस अवसर पर अपार जनसमूह उमड़ पड़ता है।

ब्रज के प्रत्येक घर आंगन में शंख घन्टा घड़ियाल की ध्वनि ऐसे गंज उठती है मानों वहां किसी बालक का जन्म हुआ हो इस प्रकार ब्रज के हर घर-घर में कृष्ण जन्म लेते हैं लोग आपस में बधाईयां देते हैं भक्ति भावनाओं में विभोर होकर ब्रजवासी नांचने गाने लगते हैं ‘‘नन्द के आनन्द भए जय कन्हैया लाल की’’ गाते हुए हर तरफ टौलियां नजर आने लगती है।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म अर्धरात्रि के समय कंस के कारागार में होने के वाद उनके पिता वसुदेव जी कंस के भय से बालक को रात्रि में ही यमुना नदी को पार कर नन्द बाबा के यहां गोकुल छोड़ आये थे। इसी लिए कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में नन्दोत्सव मनाया जाता है। भाद्र पद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंड़ल में नन्दोत्सव की धूम रहती है। यह उत्सव दधिकांदों के रूप मनाया जाता है दधिकांदो का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रत दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है। मंदिर के पुजारी नन्दबाबा और जशोदा के वेष में भगवान कृष्ण के पालने को झुलाते हैं। मिठाई, फल व मेवा मिश्री लुटायी जाती है। श्रद्धालु इस प्रसाद को पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं। 

श्रीरंगजी मंदिर

श्री वृंदावन का यह भव्य विशाल मंदिर के सामने वाली मुख्य सड़क पर बना हुआ है। दक्षिण भारतीय शैली का अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सेठ श्री राधाकृष्ण, उनके बड़े भाई सेठ लक्ष्मीचंद तथा छोटे भाई सेठ गोविंद दास जी ने कराया। श्रीरामानुज सम्प्रदाय का अति विशाल मंदिर स्थापत्थ कला की दृष्टि से भारत में एक अलग स्थान रखता है। यह मंदिर आकार में बहुत बड़े भूभाग को संजोये हुए है। इसमें पांच परिक्रमाएं हैं। जो ऊँचे-ऊँचे पत्थरों के परकोटों से विभक्त है। भीतरी परिक्रमा में श्री हनुमान जी, श्री गोपाल जी, श्रीनृसिंह जी के श्री विग्रह हैं। यहां एक पुष्करणी भी है जहां वर्ष में एक बार भाद्र पद मास में गजग्राह लीला का प्रदर्शन होता है। चौथे व प्रधानद्वार बैकुण्ठद्वार और नैवेद्य द्वार से तीन विशाल द्वार बने हुए है। इसी में 60 फुट ऊँचा स्वर्णमय विशाल गरूड़ स्तम्भ (सोने का खम्भा जिसे सोने के खम्भे का मंदिर भी कहा जाता है।) चैत्र मास में विशाल रथ यात्रा भी निकाली जाती है।

वृंदावन के इस उत्तर भारत के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज नायक भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है। नन्दोत्सव के दौरान सुप्रसिद्ध लठ्ठे के मेले का आयोजन किया जाता है। धर्मनगरी वृंदावन में श्री कृष्ण जन्माष्टमी जगह-जगह मनाई जाती है किन्तु उत्तर भारत के सबसे विशाल मंदिर में नन्दोत्सव की निराली छटा देखने को मिलती है। दक्षिण भारतीय शैली के प्रसिद्ध श्री रंगनाथ मंदिर में नन्दोत्सव के दिन श्रद्धालु लठ्ठे के मेले की एक झलक पाने को टकटकी लगाकर खड़े होकर देखते रहते हैं। जब भगवान रंगनाथ रथ पर विराजमान होकर मंदिर के पश्चिमी द्वार पर आते हैं तो लठ्ठे पर चढ़ने वाले पहलवान भगवान रंगनाथ को दण्डवत कर विजयश्री का आर्शीवाद लेकर लठ्ठे पर चढ़ना प्रारम्भ करते हैं। 35 फुट ऊंचे लठ्ठे पर जब पहलवान चढ़ना शुरू करते हैं उसी समय मचान के ऊपर से कई मन तेल और पानी की धार अन्य ग्वाल-वालों द्वारा लठ्ठे के सहारे गिराई जाती है। जिससे पहलवान फिसलकर नीचे जमीन पर आ गिरते हैं। जिसे देखकर श्रद्धालुओं में रोमांच की अनुभूति होती है। पुनः भगवान का आर्शीवाद लेकर ग्वाल-वाल पहलवान एक दूसरे को सहारा देकर लठ्ठे पर चढ़ने का प्रयास करते है। तो तेज पानी की धार और तेल की धार के बीच पूरे जतन के साथ ऊपर की ओर चढ़ने लगते हैं। कई घंटे की मशक्कत के बाद आखिर ग्वाल-वालों को भगवान के आर्शीवाद से लठ्ठे पर चढ़कर जीत हासिल करने का मौका मिलता है। इस रोमांचक मेले को देखकर देश-विदेश के श्रद्धालु अभिभूत हो जाते हैं। ग्वाल-वाल खम्भे पर चढ़कर नारियल, लोटा, अमरूद, केला, फल मेवा व पैसे लूटने लगते हैं। मगर इस वर्ष कोरोना संकट के चलते जिला प्रशासन ने इस प्रकार के आयोजनों की अनुमति नहीं दी है।

इसी प्रकार वृंदावन में ही क्या जगह-जगह भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नन्दोत्सव मनाया जाता है। ब्रहमकुण्ड स्थित हनुमान गढ़ी में नन्दोत्सव के दौरान मटकी फोड़ लीला का आयोजन किया जाता है। 15 फुट ऊंची मटकी को ग्वाल-वाल पिरामिड बनाकर मशक्कत के साथ मटकी को फोड़ते हैं। एवं दधिकांधा उत्सव का आयोजन भी होता रहा है। इस वर्ष यह लीला भी मंदिर व स्थानीय युवाओं द्वारा ही परम्परा का निर्वहन किया जायेगा।


श्रीधाम वृंदावन आने का सौभाग्य प्राप्त होने पर भी यदि वृंदावन में बाँकेबिहारी के दर्शन न किये जाये तो तीर्थ करना अधूरा ही रह जाता है। 

बाँकेबिहारी के मंदिर का निर्माण लगभग संवत् 1921 में हुआ इस मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास जी के वंशजों के सामुहिक प्रयासों से हुआ। आरंभ में किसी धनी मानी व्यक्ति का धन इस मंदिर में नहीं लगाया गया। 

श्रीस्वामी हरिदास जी बाल्यकाल से ही संसार से विरक्त थे। वह एक मात्र श्यामाश्याम का ही गुणगान किया करते थे। यमुना के निकट निर्जन स्थान पर युगल छवि में ध्यान मग्न रहा करते थे। उन्होंने 25 वर्षों की अवस्था में विरक्तवेश ले लिया था।

आप ने जहां जिस स्थान पर निधिवन में युगल छवि का ध्यान किया था। वहीं पर श्रीविग्रह भूमि से बाहर निकाले जाने का स्वप्नादेशानुसार श्रीस्वामी जी की आज्ञा पाकर श्री विठल विपुल आदि शिष्यों ने बाँके बिहारी को भूमि से प्राप्त किया था। आज बाँके बिहारी अपनी रूप माधुरी से विश्व के तमाम लोगों को रिझाते हैं। यहां वर्ष में एक ही दिन हरियाली तीज को ठाकुर स्वर्ण हिंडोले में विराजते हैं जिसके दर्शनों को लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। चैत्र मास की एकादशी से श्रावण मास की हरियाली अमावस्या तक प्रतिदिन ठाकुर जी का फूल बंगला सजाया जाता है। 

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाँके बिहारी के मंदिर में कोई विशेष आयोजन तो नहीं होते है लेकिन यहां जन्माष्टमी का अभिषेक रात्री 2ः30 के करीब होता है। प्रातः 5 बजे से मंगला आरती के दर्शन होते हैं। यहां की एक विशेषता और है कि बाँके बिहारी जी की निकुंज सेवा होने के कारण आरती में कोई शंख घण्टा घड़ियाल नहीं बजते शान्तभाव में आरती होती है।


गोविन्द देव जी का मंदिर

श्रीगोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर है। उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली का लाल पत्थर का बना प्राचीनतम मंदिर है वर्तमान स्वरूप में जो मंदिर दिखाई देता है यह भवन औरंगजेब के अत्याचारों एवं क्रूरता का साक्षी है। इसके ऊपर के हिस्से को तोड़ दिया गया था। आकाशचुम्बी इस मंदिर का निर्माण गौड़ीय गोस्वामी श्री रूप सनातन गोस्वामी के शिष्य जयपुर नरेश श्री मानसिंह ने सवंत् 1647 में कराया था। आताताइयों के आक्रमण करने से पूर्व ही राजा मानसिंह के जयपुर स्थित महल में यहां के श्री विग्रह को स्थानांतरित कर दिया गया था। आज भी जयपुर में गोविंददेव जी राजा के महल में विराजमान है तत्पश्चात संवत 1877 में पुनः बंगाल के भक्त श्री नंदकुमार वसु ने श्री गोविंददेव के नये मंदिर का निर्माण कराया यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन विधिविधान से पूजा अर्चना अभिषेक का कार्यक्रम होता है। 

श्रीकृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन मंदिर)

इसका निर्माण श्री एसी भक्तिवेदान्त स्वामी द्वारा स्थापित श्रीकृष्ण भावनात्मक संघ के तत्वावधान में सन् 1975 में हुआ था। प्रभुपाद के अनेक विदेशी कृष्ण भक्तों की देख-रेख में सेवा पूजा आदि समस्त व्यवस्थाएं सम्पन्न होती हैं यह मन्दिर अंग्रेज मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन सुंदर कक्षों में बायी ओर निताई गौरांग महाप्रभु मध्य में श्रीकृष्ण बलराम के अति मनोहारी छवि विराजमान है तो दायीं ओर श्रीराधाश्यामसुंदर युगल किशोर सुशोभित हैं। सभी श्री विग्रह अद्भुद वस्त्र आभूषण पुष्प मालाओं तथा मणिमय अलंकारों से श्रृंगारित होकर दर्शकों के मन को आकर्षित करते है। यहांँ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भजन कीर्तन तथा प्रसाद वितरण होता है। रात्रि में अभिषेक का कार्यक्रम होता है, लाखों तीर्थ यात्री मंदिर में आते हैं।


मथुरा में द्वारकाधीश मन्दिर

मथुरा में असकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर सांस्कृतिक वैभवकला और सौंदर्य के लिये अनुपम है। इस मन्दिर का निर्माण सन् 1814-15 में ग्वालियर राज्य के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने कराया था। इनकी मृत्यु के उपरांत इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचंद ने मंदिर के निर्माण को पूर्ण कराया था। 1930 में इस मंदिर की सेवा पूजा पुष्टिमार्गीय वैष्णव आचार्य गोस्वामी गिरधर लाल जी कांकरौली को भेंट स्वरूप दे दिया था। यहाँ सेवा पूजा अर्चना पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार ही होती है। श्रावण मास में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां सोने व चाँदी से निर्मित हिंडोले को देखने आते है। यहां जन्माष्टमी के दिन 108 सालिगराम का पंचामृत अभिषेक होता है तथा यहां अष्टभुजा द्वारकानाथ के श्रीविग्रह का भी पंचामृत अभिषेक किया जाता है। 


श्रीकृष्ण जन्मस्थान

यह मथुरा का एक मात्र पवित्र धार्मिक स्थल है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी स्थान पर स्थित कंस के कारागार में हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य मंदिर स्थापित है जिसे देखने वर्ष भर लाखों तीर्थ यात्री श्रद्धालु पर्यटक आते हैं।

देश-विदेश से लाखों यात्री प्रतिवर्ष तो आते ही है लेकिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहां जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ के विशाल मंच पर रासलीला नाटक, कथा प्रवचन आदि उत्सव नित्य प्रति होते रहते हैं।

जन्माष्टमी के दिन रात्रि के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय श्रीविग्रह का पंचामृत अभिषेक होता है। इसके बाद श्रद्धालु नाचते, गाते, कीर्तन करते हुए भाव विभोर हो जाते हैं। 

इस मंदिर का निर्माण महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी की सद्प्रेरणा से जुगल किशोर विड़ला व जय दयाल डालमियो ने कराया था विशाल भागवत भवन का निर्माण भी उन्हीं के द्वारा कराया गया था।


केशवदेव में जन्माष्टमी एक दिन पूर्व मनाई गई

मथुरा में ही श्रीकृष्णजन्म स्थान के निकट ही प्राचीन केशवदेव मंदिर में एक दिन पूर्व मनाई जसती है जन्माष्टमी यहां पंचामृत अभिषेक के पश्चात आकर्षक झांकियों में सजी कृष्ण की चर्तुभुज प्रतिमा के हजारों की संख्या में दर्शनार्थी मध्य रात्री तक भगवान केशव देव के अभिषेक के दर्शन करते हैं। यहां भजन, कीर्तन, नाच गाने के बीच हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में जन्माष्टमी मनाई जाती है। जन्म के दर्शन से पूर्व भजन-कीर्तन चलते रहे। महिला-पुरुष नाचते-गाते रहे। पुराने केशवदेव की प्रतिमा को जगमोहन से बाहर लाया जाता है। रात्रि में ठीक 12 बजे गोस्वामियों द्वारा अभिषेक सम्पन्न कराया जाता है। जिसमें दही, मधु, शक्कर, दूध, यमुना जल से अभिषेक कराने के बाद भव्य दर्शन होते हैं। दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते ही सभी दर्शनार्थी दोनों हाथ उठाकर जय कन्हैया लाल की, कह उठते हैं। शंख, घंटा, घड़ियाल बज उठते हैं, चारों ओर रोशनी मंदिर में विद्युत सजावट से जगमगाता है। 

श्रीकृष्णा जन्माष्टमी पर समूचा ब्रज जय कन्हैया लाल की के उद्घोषों से गूंज उठता है

चौतरफा जहां भण्डारों की धूम होती थी वहीं आज न श्रद्धाल हैं न अबकी वार भण्डारे लगाये गये कोराना संक्रमण के चलते जिला प्रशासन की परमीशन न मिलने के कारण कहीं भी कोई भण्डारा नहीं लगाया गया।

बाहर से श्रद्धालु न आसके तो क्या श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर सुबह से ही लोग बंदरवार, फूलमाला, केला के पत्ते आदि सामान खरीदते नजर आये। श्रद्धालुओं के अभाव में मंदिर भी सूने पड़े थे, श्रीकृष्ण जन्मस्थान और द्वारकाधीश मंदिर के रास्ते पर अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष सूनी गलियां सूने बाजार नजर आये।

हर वर्ष जहां जिलाप्रशासन नगर के चारों तरफ के रास्तों को सुरक्षा के लिहाज से वाहनों को बेरीकेटिंग करके बंद करा दिया करता था। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को मीलों पैदल चलकर मंदिरों तक पहुंचना पड़ता था। जगह-जगह भण्डारा पूड़ी, हलवा, खीचड़ी तथा व्रत का प्रसाद वितरण किया जाता था। वहीं इस वार जिलाप्रशासन को बाहर से आने वालों पर नजर रखनी पड़ी और कोई नगर में प्रवेश न करे इसकी व्यवस्था करने व्यस्त रहा।

कोरोना महामारी के चलते चाहें श्रद्धालु न आ पा रहे हों मगर श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मनोहारी विद्युत लाइटों से सजावट की गई। नगर में हर चौराहे को प्रदेश सरकार के निर्देश पर सजाया गया। मंदिरों में भी बिद्युत सजावट के साथ जन्माष्टमी की धूम दिखाई दे रही थी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को लेकर आज समूचे बृजमण्डल में आपार श्रद्धा और भक्ति का वातावरण बना हुआ है। शहर के बाजार और घर-घर पर लगे वंदनवार और सजाबट देखते ही बनती है। समूचे बृज में कान्हा के जन्मोत्सव की धूम मची हुई है। मंदिर द्वारिकाधीश, श्रीकृष्णजन्मस्थान को जाने वाले सभी मार्ग सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ बाजार से खरीददारी करती देखी गई। सुदूर प्रांतों से कान्हा के जन्मोत्सव में शामिल होने आने वाले भक्तों के स्वागत सत्कार में बृजवासियों आशा पर पानी फिर गया इस वार स्थानीय लोगों को यह मौंका नहीं मिल सका। मुख्य बाजारों में स्थान-स्थान पर पूड़ी सब्जी और व्रत से जुड़े आहार के वितरण में समाजसेवी और व्यवसायिक संस्थान अग्रणी भूमिका निभाते थे मगर इस वर्ष उन्हें यह अवसर नहीं मिल सका।

मथुरा के स्कूलों में भी मनाई जाती है जन्माष्टमी

मथुरा के स्कूलों में भी जन्माष्टमी मनाई जाती है, छोटे-छोटे बच्चों को श्रीकृष्ण के आकर्षक रूप में सजाया जाता है। इस वर्ष स्कूल कॉलेजों के न खुल पाने के कारण छोटे-छोटे बच्चों को भी मायूस होना पड़ा। यहां स्कूल कॉलेजों में भी बाल-कलाकार सामूहिक रूप से जगह-जगह श्रीकृष्ण जन्म की कथाओं का वर्णन व मंचन भी करते हैं जगह-जगह लोग नाचते गाते देखे जाते थे। विभिन्न रासलीलाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं को रास के माध्यम से लोगों का मनोरंजन किया जाता रहा है, इस वर्ष महामारी के चलते श्रद्धालु और तीर्थयात्रियों के अभाव में ऐसे आयोजन भी नहीं हो सके। 

मथुरा से सुनील शर्मा


मंगलवार, 4 अगस्त 2020

नहीं मेरी ऐसी कोई भावना नहीं है कि मोदी जी मुझको बुलायें या मैं उनको सलाम ठोकूं

मथुरा, वृन्दावन। (सुनील शर्मा) किसी भी आन्दोलन में चाहें वो आजादी के पहले का आन्दोलन ही क्यों न हो एक गरम दल और दूसरा नरम दल के सहारे ही सफल हो पाया है। नरम दल अपना वर्चश्व किसी न किसी रूप में कायम करने में सफल हो ही जाता है मगर गरम दल के नैतृत्व को या उसके योगदान को कोई जगह कभी मिल ही नहीं पाती है, ऐसा ही कुछ श्रीरामजन्म भूमि आन्दोलन में हुआ एक दल जो किसी भी तरह से विवादित ढांचे को वहां से हटा कर मंदिर का निर्माण किया जाना सम्भव मानता था वहीं एक खेमा इसे भी हमेशा जन मानस में बनाये रखने के लिए ढांचे के बगल में मंदिर निर्माण का सपना देख रहा था। मगर यह किसी योजना की तरह ही हो पाया और विवादित ढांचे को ढहाने के काम में हजारों कारसेवकों ने यह काम किया था। मगर वृन्दावन के सुरेश बघेल ने सबसे पहले ढांचे को हटाने के लिए प्रयास किया था। मगर वह इसमें सफल नहीं हो सका। और 28 डायनामाइट की छड़ों के साथ अयोध्या के विवादित ढांचे में पकडे़ भी गया। 
राम मंदिर आंदोलन में शामिल कई लोगों को पद मिले, प्रतिष्ठा मिली और उन्होंने सत्ता का सुख भोगा, लेकिन इसके सच्चे हीरो सुरेश बघेल आज भी एक ठेकेदार के नीचे निजी कंपनी में 6000 रुपये महीने में सीवेज पम्प ऑपरेटर का काम करके मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर हैं। 30 साल पहले 1990 में राम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने की पहली और मजबूत कोशिश करने वाले वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही आज किसी को याद हो। राम मंदिर आंदोलन के ये वही हीरो हैं जिन्होंने आंदोलन की चोट अपने माथे पर ली। इतना ही नहीं उस चोट का दर्द भी पिछले 30 साल से कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल, धमकियां, मुफलिसी और परिवार से दूरी के साथ झेला है। सुरेश बघेल ने अपनी आप बीती बताते हुए बड़ी बेवाकी से प्रश्नों के उत्तर दिये।

सुरेश चन्द बघेल आप डायनामाइट की छड़ों के साथ अयोध्या में गिरफ्तार हुए थे। आप 28 छड़ों के साथ आपको गिरफ्तार किया गया था। इसमें कोई सच्चाई है ?
हाँ सच्चाई तो है ही गिरफ्तार तो मैं हुआ ही था और सजा भी काटी है मेंने करीव चार वार में पांच साल की सजा और पांच हजार रुपया जुर्माना भी हुआ था। 18 साल मुकदमा चला है मुझ पर, एक ही मुकदमें में चार वार जेल गया हूँ मुकदमा अभी हाईकोर्ट में चल रहा है, अपील पर हूँ।
क्या आप पर एनएसए भी लगी थी?
एनएसए लगी थी एनएसए जब समाप्त हुई तो टाड़ा लगा दी गई।
आपने कहां तक पढ़ाई की है?
मैं 10 वीं फेल हूँ।
आपके परिवार में कौन कौन हैं ?
परिवार पहले तो बड़ा था माता पिता सब थे। मेरे परिवार में एक लड़की तथा दो लड़के हैं 
आपके माता-पिता या पत्नी ने कभी रोका नहीं आपको?
पिता ने कुछ नहीं बोला और 2000 में गुजर गए। मां जरूर कहती थी कि तू झोपड़ी को भी बिकवाएगा, माँ भी अब नहीं है। लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे कभी नहीं रोका। ये जरूर बोलती थी अब बहुत हो गई सेवा, अब तो घर-परिवार देख लो। अब कभी-कभी मेरी बेटी साथ रहने आ जाती है तो खुशी मिलती है।

आपके बच्चे क्या पढ़ रहे हैं ? 
लड़के अभी छोटे हैं 2008 में सजा हुई थी उस समय लड़की हुई थी, एक लड़का 2010 में तथा दूसरा लड़का 2011 में हुआ था।
इस दौरान आपने बड़ा कष्ट झेला परिवार ने भी बहुत कष्ट झेला होगा?
कष्ट तो है ही मैंने तो जो झेला वह है ही मगर परिवार ने भी कम कष्ट नहीं झेला है। मैंने मजदूरी की है।
आप जब जेल में तब परिवार का काम काज कैसे चलता था?
परिवार ने भी मजदूरी की किसी तरह से गुजर बसर किया था, कभी खेत पर काम किया कभी बेलदारी करके बच्चों को पाला पोशा है। मेने रिक्शा भी चलाया मजदूरी भी की है साधु सेवा भी की है गौशालाओं में काम किया है।
जिस दिन अयोध्या में यह काण्ड हुआ वह क्या था इस विषय में कुछ बतायें आपको कुछ याद है ?
मुझे बिलकुल याद है फिल्म की तरह पूरी घटना मेरे सामने है। 1990 में विवादित परिसर में अपने चार पांच साथियों के साथ गया था।
उस समय हम शिव सेना के कार्यकर्ता थे, शिव सेना का कोई दायित्व है या पद कोई उस समय था आपके पास ?
मैं शिव सेना के कई पदों पर रह चुका हूँ। विशेष कर मैं शिव सेना के साथ जेल से छूटने के वाद ही पूरी तरह से जुड़ पाया था।
क्या किसी ने आपको कहा था कहां से प्रेरणा मिली कि ऐसा कुछ आप करो ?
उस समय मेरे मन में एक प्रश्न था कि राम पर धर्म पर। वृनदावन में रहते हैं आस्था के साथ जीते हैं हमारे अन्दर भी राम के प्रति व ईश्वर के प्रति आस्था है। उस समय राम जन्मभूमि आन्दोलन चल रहा था।
हमारा एक मित्र मुसलमान था, एक जुलुस निकल रहा था। उस जुलुस में नारा लगाया जा रहा था देश धर्म का नाता है गऊ हमारी माता है। उसने टिप्पणी की थी कि गऊ यदि माता है तो वेल या सांड़ तुम्हारा कौन लगता है। हमने कहा कि वह हमारा बाप है, अब मशीनी युग आ गया है जब खेती बाड़ी से लेकर आवागमन में इन्हीं का उपयोग होता था यह अब काम में नहीं आते हैं, अनाज से लेकर सारी भूमिका यह बाप ही पूरी करता था बाप है पालनहार है जिम्मेदारी उसी की होती है।
आपको ऐसा क्यों लगा कि आप अयोध्या जाऊ बाबरी मस्जिद में जाऊ और यह आपके मन में कैसे आया ?
वह वावरी मस्जिद ही नहीं थी वह महाजिद है पागल लोगों की महाजिद है मस्जिद तो वह थी ही नहीं कैसे उसे मस्जिद वोल सकते हैं, आप अयोध्या को खुर्द मक्का कैसे बता सकते हो।
आपके मन में कैसे आया कि आप वृन्दावन से इतनी दूर जायें और वहां घुसे, यह विचार मन में कैसे आया ?
यह सब उस समय स्थितियाँ और परिस्थियाँ जो उस समय वन रही थीं।
क्या आप अपने साथ कुछ ले गये थे ?
मैं अपने साथ कुछ नहीं ले गया था, मैंने तो प्रभु से प्रार्थना की थी कि प्रभु मुझे शक्ति प्रदान करना।
आपके पास वह जो छड़े मिली थीं वह आपके पास कैसे मिली थीं कहां से आयीं थीं ?
वह निश्चित ही मुझसे पहले वहां पहुंची थीं मैं तो कुछ लेकर गया ही नहीं था वह छडे़ं तो मुझसे पहले से ही वहां मौजूद थीं।
आपने इतना बड़ा काम किया आपको इसका कोई लाभ मिला ?
हानि, लाभ, यश, अपयश, जीवन, मरण यह सब उपर वाले के हाथ में है।
शिव सेना ने भाजपा ने आपको माना हो कुछ समझा हो ?
शिव सेना का उत्तर प्रदेश में कोई बर्चश्व कभी वन ही नहीं पाया है। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ शिव सेना रही है शिव सेना से महाराष्ट्र में तो समझोता किया था, सरकार भी बनाई थी, मगर उत्तर प्रदेश में तो कभी कोई समझोता किया ही नहीं गया था। राजनैतिक लाभ राममंदिर आन्दोलन से लोगों ने लिया ही है। राजनैतिक लाभ के लिए ही इस आन्दोलन को उठाया था।
आपके मन में कभी विचार नहीं आया कि मुझे भी इसका श्रेय मिलना चाहिए कि मैंने कुछ किया है ?
अगर मैंने कुछ किया है तो लोग समझेंगे विचार करेंगे। मेरा मानना है कि मैं इस देश, इस हिन्दू धर्म के लिए परिवार के लिए क्या कर सकता हूँ। यही मन में विचार शुरू से था।
अब 5 अगस्त को जब राममंदिर के लिए शिला पूजन व भूमिपूजन शिलान्यास होगा देश के प्रधानमंत्री वहां पहुंचेंगे वह शिलान्यास करेंगे, आपके मन में नहीं होता कि मुझे भी वहां होना चाहिए ?
अगर मैं सोच लूँ कि मुझे प्रधानमंत्री के सानिध्य में वहां होना चाहिए तो मैं इस वात को फील करू कि मुझे वहां होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। जहां तक शिलान्यास का प्रश्न है तो जब 1992 में प्रतीकात्मक कारसेवा का आयोजन उस समय कल्याण सिंह सरकार के समय आव्हान किया गया था, विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा रामजन्म भूमि न्यास द्वारा तो उस समय यह योजना बनी थी कि सरयू से बालू और जल लायेंगे और शिलाओं के साथ शिलान्यास स्थल पर ले जाकर डालेंगे। एक वार और शिलादान का आयोजन किया गया था, बाबा रामचन्द्र परमहंस जी द्वारा 1986 में एक गड्डा खुदा था जहां कीर्तन चलता था। तो अब कौन सा शिलान्यास है। अयोध्या में मैं भी बहुत रहा हूँ एक-एक आयोजन का हिस्सा रहा हूँ।
आप इतने समय तक जेल में रहे आपने संघर्ष किया जेल गये। जेल में रहने के वाद आने पर किसी संत या किसी महन्त, धर्माचार्य ने आपको पूछा या आपका हाल चाल जाना या आपको आर्शीवाद दिया था ?
धर्माचार्यों में वामदेव जी महाराज जी के पास में पकड़े जाने से पहले भी और वाद में भी जाता रहता था क्यों कि मैं भी उसी अखण्डानन्द महाराज के आश्रम में ही रहता था वहीं काम करता था, वहीं वामदेव जी भी रहा करते थे। सानिध्य तो इन सभी संत महात्माओं का था ही आर्शीवाद भी था। उधर बाबा रामचन्द्र परमहंस भी थे मैं दिगम्बर अखाडे़ में भी आता जाता था। अब वह बाबा भी नहीं रहे और यह बाबा भी नहीं हैं तो मेरा आना जाना भी नहीं होता है। 
अब आपको कितनी खुशी है राममंदिर निमार्ण का प्रथम चरण तो कोर्ट ने पूरा कर दिया, दूसरा चरण प्रधानमंत्री करने जा रहे हैं तो आपके मन में कितनी खुशी है ?
मेरे मन में खुशी है कि भारतीय जनता पार्टी आरएसएस या अन्य संगठन उन्होंने मामले को उठाया कि ‘‘रामलला हम आयेगें मंदिर वहीं बनायेंगे’’। तब मैं भी इसी नारे को सुन कर वहां गया था और मैंने देखा कि वहां पर एक ढांचा खड़ा है मैंने सोचा कि इसके रहते तो यहां मंदिर का निमार्ण सम्भव ही नहीं है। यह तो इनकी एक दुकान है, जैसे कृष्ण जन्मभूमि में मस्जिद के बरावर से मंदिर का निमार्ण हो गया, इन्होंने यही सोचा था कि यह विवादित ढांचा यो ही खड़ा रहेगा और पास में मंदिर का निमार्ण हो जायेगा। मगर यहां भव्य मंदिर निमार्ण के लिए ढांचे को हटाया जाना बहुत जरूरी था। इसी लिए मेरा यह प्रयास पहला प्रयास था। प्रथम चरण में उस ढांचे को वहां से हटाना था, यही मेरा सपना था। 
मगर आप तो उसमें सफल नहीं हो सके ?
मेरा प्रयास रहा मैं उसमें सफल नहीं हो सका, मगर मेरे सपने को 1992 में पूरा कर दिया गया। अब मंदिर की बात है ठाकुर जी की पूजा सेवा तो वहां बराबर होती रही है, अब उस स्थान को भव्यता देने की वात है तो वह अब देश के प्रधानमंत्री के हाथों शिलान्यास हो रहा है।
आपके मन में सन्तोष तो है कि एक भव्य राममंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है ?
मुझे सन्तोष ही नहीं बेहद खुशी है कि वहां विशाल और भव्य मंदिर वन रहा है, खुशी की वात है।
आपके मन में कभी यह विचार आता है कि मोदी जी आपको बुलायें, मोदी जी के पास जाने की आपकी कोई इच्छा है ?
नहीं मेरी ऐसी कोई भावना नहीं है कि मोदी जी मुझको बुलायें या मैं उनको सलाम ठोकूं या मैं उनको लम्बा दण्डवत प्रणाम करूं, ऐसी मेरी कोई भावना नहीं है।
वर्तमान प्रदेश व केन्द्र में भाजपा सरकार है हिन्दुत्व की सरकार है उसमे आपको क्या लगता है कि उनसे कोई अपेक्षा है ?
मुझे कोई अपेक्षा नहीं है। मैं इनको सबसे गडबड़ सरकार मानता हूँ भगवान सब जगह हैं वृन्दावन में भी भगवान हैं और अयोध्या में भी भगवान हैं जो महत्व रामचन्द्र जी का है, वहीं महत्व कृष्ण का भी है।
वृन्दावन में मंदिर तोडे जा रहे हैं उसकी एफआईआर मेंने की उसकी शिकायत मेंने की उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई वृन्दावन के अत्यन्त प्राचीन 300 साल पुराना मंदिर तोड़ दिया गया। मेंने एक विवादित ढांचा तोड़ने का प्रयास किया मेरे को पांच साल की सजा, पांच हजार का जुर्माना, 18 साल मुकदमा, टाड़ा, रासुका जैसे मुकदमें मेरे उपर कार्यवाही हुई। अभी वृन्दावन में मंदिर गिराया गया उलटा मेरे उपर ही कार्यवाही हुई कि मेंने आवाज क्यों उठाई, शान्ति व्यवस्था भंग करने के आरोप में मुझे पावंद किया गया है। मैं इस सरकार से और क्या उम्मीद कर सकता हूँ। यह हिन्दूवादी सरकार खुद को मानती रहे मगर मैं इसे हिन्दूवादी सरकार नहीं मानता कभी नहीं मानता हूँ।
आपने जो किया, जो आप अयोध्या में करके आये थे, आप पकड़े गये थे गम्भीर आरोप आप पर लगे थे। उसका आपके मन में कोई अफसोस है ?
अफसोस का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है अफसोस उसका होता है जो कोई गलती हो जाती है। 
आप इसे क्या मानते हैं ?
मैं तो इसे सही मान रहा हूँ तब भी मंदिर मानता था, आज भी मंदिर मानता हूँ और कल भी मंदिर ही मानुंगा। मानता रहा हूँ, मानता रहूंगा।
भव्य मंदिर बन जाने पर आपको खुशी होगी ?
मुझे निश्चित ही खुशी होगी। 

मथुरा से सुनील शर्मा 

शनिवार, 1 अगस्त 2020

महत्वपूर्ण फोटो का हिस्सा बने नरेन्द्र मोदी व मथुरा से प्रदेश के पूर्व उर्जा राज्यमंत्री रविकान्त गर्ग

  • मथुरा (सुनील शर्मा) राम लला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे इस नारे के साथ न जाने कितने राम भक्त हर शहर के हर गली हर मौहल्ले से निकले और सभी अयोध्या की ओर कूच करना चाहते थे। मगर सभी अयोध्या नहीं पहुंच सके थे। हजारों वर्षों के तमाम संघर्ष के वाद आखिर वह समय आ ही गया जब 5 अगस्त 2020 को जिस दिन श्रीराम मंदिर की आधार शिला रखी जायेगी। कितने आन्दोलन कितनी यात्राएं हुईं इसी क्रम में एक यात्रा 1992 में शुरू की गयी थी। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में शुरू हुई थी यह यात्रा उनके साथ चल रहे तत्कालीन संगठन मंत्री नरेन्द्र मोदी व प्रदेश के पूर्व उर्जा राज्यमंत्री व वर्तमान उत्तर प्रदेश व्यापारी कल्याण बोर्ड के प्रमुख रविकान्त गर्ग ने बताया कि यह यात्रा कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म करने के लिए निकाली गई तिरंगा यात्रा के रूप में कन्याकुमारी से कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा पहराने के लिए निकाली गयी थी।
  • उस समय मोदी जी ने उत्तर दिया था कि जब मंदिर बनेगा तब आऊंगा
  • तीनों लोग हजारों किलोमीटर की यात्रा करने के वाद अयोध्या पहुंचे और रामलला के दर्शन करने के वाद अयोध्या की भूमि पर उसी परिसर में यह फोटो किसी फोटोग्राफर ने खींचा था। उस समय किसी ने मोदी जी से पूछा था कि फिर कब दर्शन करने के लिए आयेंगे। उस समय मोदी जी ने उत्तर दिया था कि जब मंदिर बनेगा तब आऊंगा।
  • आज वही अयोध्या नगरी में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर के भूमि पूजन की तैयारियां जोरो पर हैं। 5 अगस्त को प्रधाननंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। यह दूसरा मौका होगा जब नरेंद्र मोदी रामलला के दर्शन करेंगे।
  • इससे पहले 1992 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में कश्मीर से आर्टिकल 370 की खत्म करने के लिए निकाली गई तिरंगा यात्रा के संयोजक रूप में अयोध्या आए थे। तब रामलाल के दर्शन करने के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अब राम मंदिर बनने पर अयोध्या आएंगे। मोदी की कही वो बात सच होने जा रही है।
  • जानिए क्या हुआ था 18 जनवरी 1992 को अयोध्या में
  • 18 जनवरी 1992 को जब नरेंद्र मोदी अयोध्या आए थे और रामलला के दर्शन किए थे। तब कन्याकुमारी से शुरू हुई यह तिरंगा यात्रा मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी के साथ कई दर्जन बसों एवं अन्य वाहनों के साथ भगवान राम की नगरी में पहुंचे थे। यहां यात्रा का पड़ाव पहले से तय था। अगले दिन फैजाबाद शहर के जीआइसी मैदान में सभा थी, जिसे जोशी के अलावा मोदी ने भी संबोधित किया था। सभा से पूर्व नरेंद्र मोदी ने डॉ. जोशी के साथ रामलला का दर्शन भी किये थे। उस समय मथुरा के विधायक रविकान्त गर्ग भी साथ चल रहे थे।
  • फोटोग्राफर महेंद्र त्रिपाठी ने यह फोटो उस समय खींचा था, संयोग ही था कि नरेन्द्र मोदी फोटो में आ गए और दोनों के बीच में मथुरा के विधायक रविकान्त गर्ग भी दिखाई दे रहे हैं।
  • मुरली मनोहर जोशी का फोटो खींचना चाहा था, नरेंद्र मोदी भी साथ थे और फोटो में आ गये
  • राम लला के दर्शन करने के उपरान्त स्थानीय पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी ने मुरली मनोहर जोशी का फोटो खींचना चाहा था, उस समय उनके साथ नरेंद्र मोदी भी थे, उस समय मोदी भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर उभरते नेता थे और संगठन मंत्री का कार्यभार देख रहे थे। आज वही फोटो मोदी के रुतबे के साथ तमाम टीवी चेनलों की खबरों की सुर्खियां बटोर रहा है। आज के समय यह तस्वीर महत्वपूर्ण हो गई।
  • इस महत्वपूर्ण फोटो का हिस्सा बने मथुरा के पूर्व विधायक व तत्कालीन पूर्व उर्जा राज्यमंत्री रविकान्त गर्ग
  • इस यात्रा में साथ चल रहे तथा इस महत्वपूर्ण फोटो का हिस्सा बने मथुरा के पूर्व विधायक व तत्कालीन पूर्व उर्जा राज्यमंत्री रविकान्त जी ने बताया कि मुझे उस समय की पूरी घटना याद है। उन्होंने लखनऊ से फोन पर बताया कि उस समय रास्ते भर रामजन्म भूमि व मंदिर निर्माण के सम्बन्ध में मोदी जी जोशी जी और मैं चर्चा करते थे। इतनी लम्बी यात्रा में रामजन्म भूमि आन्दोलन से सम्बन्धित वातें हुईं थीं।
  • रविकान्त जी ने बताया कि आन्दोलन में मेरा भी काफी योगदान रहा है तथा मेने काफी संघर्ष किया है। मैं मथुरा से भाजपा का एमएलए रहते हुए देश में सर्वाधिक मुकदमे मुझ पर लगे थे विभिन्न थानों में लगभग 27 मुकदमे दर्ज हुए थे। मथुरा के सभी थानों में भी रामजन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन के अगुवा संत वामदेव जी के साथ यात्रा की थीं जिसमें अलीगढ़ हाथरस समेत कई जिलों से मुकदमे दर्ज किये गये थे।
  • पूरी यात्रा के दौरान आपकी मोदी जी से क्या कुछ खास चर्चा हुई
  • इतनी लम्बी दूरी की यात्रा के समय आपस में वातें करते हुए चल रहे थे तभी मेदी जी ने कहा था कि आप पर तो सर्वाधिक मुकदमे लगे हैं। श्री गर्ग ने बताया कि रामजन्म भूमि आन्दोलन में करीव 36 दिन की जेल हुई थी तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी सबसे पहले गिरफ्तार किये गये थे। वह करीव 33 दिन जेल में रहे थे और मैं 36 दिन एटा जेल में मैं रहा था। 
  • विवादित ढांचे पर उस समय चढ़ने वालों में मथुरा के कई लोग थे
  • पूर्व मंत्री रविकान्त गर्ग जी ने बताया कि रामजन्म भूमि आन्दोलन में मथुरा से कई लोग उस समय जेल गये थे। वावरी विध्वंस में मथुरा से विजय बहादुर सिंह व कई लोग जेल गये थे विवादित ढांचे पर उस समय चढ़ने वालों में मथुरा के कई लोग थे। विजय बहादुर पर तो मुकदमा भी चल रहा है, मुझ पर भी मुकदमा चलाया गया था। मैं क्यों कि उस समय मंत्री था।
  • मैं उस समय की सभी घटनाओं का साक्षी बना था- रविकान्त गर्ग
  • वावरी विध्वंस की जब वहां से खबरें आ रही थीं कि गुम्बज पर कारसेवक चढ़ गये हैं, मैं उस मुख्यमंत्री आवास पर कल्याण सिंह जी के साथ था। मुख्यमंत्री आवास की छत्त पर चक्कर काट रहे थे, परेशान थे और छत्त पर इधर से उधर घूम रहे थे। बरावर मुख्यमंत्री आवास के फोन की घन्टी बज रही थीं पूरी घटना को फोन पर बताया जा रहा था। मैं उस समय की सभी घटनाओं का साक्षी बना था। 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ और फिर 2.67 एकड़ का भी अधिग्रहण किया गया था। उस समय लालजी टन्डन जी का योगदान बहुत था। वह उर्जा मंत्री थे मैं उर्जा राज्यमंत्री था मेरे उनसे पारिवारिक सम्बन्ध थे। हम उन बैठकों की हर गतिबिधियों को देखा व उनमें शामिल होते थे।
  • क्या आप 5 अगस्त को अयोध्या जायेंगे
  • नृत्य गोपाल दास जी का फोन आया था कि ‘‘आ नहीं रहे हो हमारे साथ रहना है’’ नृत्य गोपाल दास जी अध्यक्ष हैं जब उन्होंने कहा है जाने के लिए बुलाया है तो मैं लिस्ट में नाम होगा तो जरूर जाऊगा।
  • मोदी जी से कुछ खास वातें हुईं क्या वो बताईये
  • रविकान्त जी ने कहा कि 30 वर्ष पुरानी वात है इतना स्मरण भी नहीं है कि कन्या कुमारी से साथ चले तो बहुत सारी सभाओं में तथा गाड़ी में तमाम बाते हुई थीं। मोदी जी ने उस समय बहुत प्रशन्सा की थी। और कहा था कि आप काफी जुझारू हैं और आपने बहुत काम किया है।
  • रामलला से प्रधानमंत्री का लगाव रहा है, वह हमेशा ही राममंदिर निमार्ण के लिए चिन्तित रहे
  • आज मोदी जी के सवा दशक तक मुख्यमंत्री और 2014 से प्रधानमंत्री बनने के साथ यह तस्वीर और खास हो गयी। 1992 में अनौपचारिक बातचीत में मोदी जी ने अगली बार आने के सवाल पर कहा था, वे राममंदिर निर्माण के समय आएंगे और अब यह सच होने जा रहा है। मथुरा से प्रदेश के पूर्व उर्जा राज्यमंत्री रविकान्त गर्ग कहते हैं कि रामलला से प्रधानमंत्री का लगाव रहा है। वह हमेशा ही राममंदिर निमार्ण के लिए चिन्तित रहे और आज वह शुभदिन आ गया जब श्रीराम मंदिर आन्दोलन से जुडे़ तमाम राम भक्त जो आज हमारे बीच नहीं हैं व तमाम वह नेता और आन्दोलन के प्रमुख संत भी जो आज हमारे बीच नहीं हैं उनकी आत्मा निश्चित रूप से आनन्दित होगी। कि श्रीराम का भव्य मंदिर मंदिर बनने का रास्ता अब सुगम हो गया है। और जल्द ही भव्य राममंदिर का निमार्ण शुरू हो सकेगा।

  • - मथुरा से सुनील शर्मा
  •  


सोमवार, 20 जुलाई 2020

मथुरा में चारों दिशाओं में स्थित ‘‘चार महादेव कोतवाल’’ रक्षा करते हैं


Mathura (Uttar Pradesh, India) मथुरा आदिकाल से चार महादेवों की पूजा सेवा चली आ रही है हालाकिं मथुरा में अब हर गली मौहल्लों में अनगिनत महादेव मंदिर बन गये हैं। लोगों ने अपनी सुविधा के अनुसार इन मंदिरों को बना लिया हैं। मथुरा शहर की हर कॉलोनी में महादेव की पूजा अर्चना होती है मगर ऐसी मान्यता है कि यहां पहले चार महादेव की ही पूजा होती थी, उसका कारण शायद मथुरा शहर जिसे आज पुराना शहर कहा जाता है। उसी के आसपास चारों महादेव हैं और आवादी भी यहीं पर ज्यादा थी जिसके कारण इन महादेवों की पूजा सदियों से की जाती रही है।
पद्मपुराण निर्वाण खण्ड में भगवान् का वचन है-
अहो न जानन्ति दुराशयाः
पुरीं मदीयां परमां सनातनीम्
सुरेन्द्रनागेन्द्रमुनीन्द्रसंस्तुतां
मनोरमां तां मथुरां पराकृतिम्।।
अर्थात् : 'दुष्ट-हृदय के लोग मेरी इस परम सुन्दर सनातन मथुरा-नगरी को नहीं जानते जिसकी सुरेन्द्र, नागेन्द्र, तथा मुनीन्द्रने स्तुति की है और जो मेरा ही स्वरूप है।मथुरा आदि-वाराह भूतेश्वर-क्षेत्र कहलाती है। मथुरा में चारों ओर चार शिवमंदिर हैं-पश्चिममें भूतेश्वर का, पूर्व में पिप्पलेश्वर का, दक्षिण में रंगेश्वर का और उत्तरमें गोकर्णेश्वर का चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण शिवजी को मथुरा का कोतवाल कहते हैं।


भूतेश्वर महादेव

जिसमें से पश्चिम की ओर भूतेश्वर महादेव विराजमान हैं। जिनकी बड़ी मान्यता है तथा यहां प्रतिदिन दर्शनार्थी आते हैं तथा यह मथुरा की परिक्रमा के बीच में पड़ता है। तथा आसपास के या यहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति को इस महादेव के दर्शन करके अपने दिन की शुरूआत करते तथा अपने घर जाने से पूर्व भी मंदिर में दर्शन अवश्य करते हैं प्राचीन स्थापत्य कला का यह अनूठा शिव मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के समय का बताया जाता है, साथही एक योगमाया का मंदिर भी जिसे लोग पाताल देवी के नाम आज पुकारते हैं।
पिप्पलेश्वर महादेव
पूर्व दिशा की ओर पिप्पलेश्वर महादेव का मंदिर है यह यमुना के किनारे श्यामघाट के निकट है यह मंदिर भी अति प्राचीन है तथा यमुना नदी के किनारे होने कारण निश्चित रूप से इसकी दिशा कई वार बदली हो यह भी घनी आवादी के बीच में स्थित है तथा यहां प्रतिदिन लोग महादेव को जल चढाने आते हैं। श्रावण मास में तो यहां बड़ी भींड़ होती है।
रंगेश्वर महादेव
दक्षिण दिशा में रंगेश्वर महादेव हैं यहां व्यस्त बाजार होने के कारण होलीगेट के निकट और जिलाअस्पताल के सामने महादेव का मंदिर है यहां वर्ष भर लोग महादेव के दर्शन जल चढ़ाने तथा पूजा अर्चना करने आते हैं। मगर श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को यहां मंदिर में घुसना बहुत मुश्किल होता है प्रत्येक वर्ष यहां पुलिस को मंदिर की व्यवस्था लोगों के घुसने और निकलने की व्यवस्था करनी पड़ती है।
गोकर्णेश्वर महादेव
इसी प्रकार से उत्तर में गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर है यह मंदिर भी अति प्राचीन मंदिरों में से एक है इस मंदिर की बनावट देखने से ही इसके प्राचीनता का अहसास होता है यह भी स्थापत्य कला का आज भी प्राचीनता का आभास कराता है। इस महादेव की आदमकद प्रतिमा सभी को आकर्षित करती है शायद ही महादेव की कहीं ऐसी प्रतिमा देखने को मिलती है। विशाल प्रतिमा बैठी हुई मुर्दा में है तथा बड़े बड़े नेत्रों के साथ यहां आने वाले हर व्यक्ति को मन मोहित भी करती है।
इस प्रकार से यह चारों महादेव यहां के कोतवाल कहलाते हैं। यह मथुरा नगरी की रक्षा करते हैं ऐसा भाव लोगों के मन में आज भी इनके प्रति है।
- सुनील शर्मा

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

वृन्दावन बॉकेबिहारी के फूल बंगले भी कोरोना काल में नहीं सजे


देहरी छूकर ही अपने दिन की शुरूआत करते हैं लोग
देहरी पूजन से शुरू हो रही हैं शादियां

वृन्दावन, मथुरा। (सुनील शर्मा) कोरोना महामारी के चलते जहां भगवान के भक्त दुखी हैं वहीं भगवान भी अब मजबूर हैं भगवान का दर्शन न देना भी मजबूरी बन गया है। ज्यादातर लोगों ने अपने घरों को ही भव्य मंदिर बना लिया है और भगवान को अपने घर पर बैठकर स्मरण कर रहे हैं, ध्यान लगा रहे हैं। कोरोना वायरस की वजह से मथुरा और वृंदावन के हजारों मंदिर अभी भी बंद हैं। मथुरा में अभी सिर्फ दो ही मंदिर खुले हैं।
वृंदावन में सैकड़ों ऐसे भक्त हैं जो मंदिर की देहरी छूकर अपने दिन की शुरुआत करते हैं। 8 जून के बाद से देश में कई मंदिर खुल गए, मथुरा में भी दो ही मंदिर खुले हैं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर और श्री द्वारिकाधीश मंदिर।
पांच हजार से अधिक मंदिरों वाले वृंदावन के श्रीबांके बिहारी जी का मंदिर, गोविंददेव जी का मंदिर, कृष्ण-बलराम का मंदिर (इस्कॉन मंदिर), पागल बाबा मंदिर, प्रेम मंदिर, निधिवन मंदिर समेत गोकुल, बरसाना श्रीलाडली जी का मंदिर और गोवर्धन में मुकुट मुखारबिंद, रमन रेती आश्रम-महावन, बलदेव मंदिर समेत बृज के छोटे-बड़े सभी मंदिर अभी भी आम लोगों के लिए बंद हैं।
वृंदावन के बिहारी पुरा में रहने वाले मंदिर के सेवायत प्रहलाद गोस्वामी जी बताते हैं कि जो लोग अभी तक हर दिन सुबह स्नान के बाद बांकेबिहारी मंदिर दर्शन के लिए जाते थे। यह लोगों की दिनचर्या का हिस्सा है और कुछ लोग दर्शन के बाद ही पानी पीते हैं। कोरोना के चलते मंदिर बंद हो गये तो वे हर दिन देहरी को ही छूकर ही लौट जाते हैं।
बॉके बिहारी मंदिर के सेवायत गोस्वामी शेलेन्द्र गोस्वामी का कहना है कि इस दौरान जिनको भी अपने परिवार में शादी करानी है, लड़का व लड़की को पक्का करना है तो वह बिहारी जी के मुख्य द्वार की चौखट को ही बिहारी जी का आर्शीवाद मान कर रिंग सेरेमनी तथा शादी के वाद भी बहू को घर में लाने से पहले बिहारी जी की देहरी की पूजा अर्चना करते हैं।
नियमित दर्शनाथियों का कहना है कि ऐसा कभी नही हुआ कि प्रभु बॉके बिहारी के दर्शन न मिले हों। इस संकट काल में बिहारी जी मंदिर की देहरी ही मिल जाए यही सौभाग्य की बात है।
वृंदावन में सैकड़ों भक्त हैं जो मंदिरों की देहरी छूकर ही अपने दिन की शुरुआत कर रहे हैं। इस वार ब्रज का प्रमुख मेला मुडिया पूनो (गुरू पूर्णिमा) जो उत्तर प्रदेश सरकार का एक राजकीय मेला घोषित है यह मेला भी कोरोना की भेंट चढ़ गया। इस मेले में गोवर्धन में एक करोड़ से ज्यादा लोग आते थे। संकरी गलियों वाले बृज क्षेत्र में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन मुश्किल हो पाता जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने इस मेले को ही कैंसिल कर दिया।
ब्रज क्षेत्र के मंदिरों के बंद रहने और इक्का-दुक्का ट्रेनें व बसों के न चलने के कारण धार्मिक पर्यटन पर टिकी मथुरा-वृन्दावन की अर्थव्यवस्था जिसमें तमाम ऐसे लोग हैं जो यात्रियों परदेशियों के भरोसे ही चलते हों उनको अधिक परेशानी हो रही है। होटल खाली पड़े हैं, पोशाक बेचने वाले, प्रसाद वाले, मिठाई वाले, टैक्सी-ट्रैवल्स सबके कारोबार प्रभावित हो रहे हैं। करीब चार हजार तीर्थ पुरोहित भी बिना जिजमानों के खाली ही बैठे हैं।
लॉकडाउन के पहले यहां हर दिन 20 हजार श्रद्धालु आते थे, अभी बड़ी मुश्किल से एक हजार ही आ पा रहे हैं। 95 फीसदी सेवाएं कैंसिल हो रही हैं बृज क्षेत्र में सर्वाधिक भीड़ वाले मंदिर में से श्री बांकेबिहारी जी मंदिर मंदिर के सेवायत शैलेन्द्र गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में सिर्फ पांच सेवायत, छह भंडारी ही जा सकते हैं। बांकेबिहारी जी का दिन में आठ बार भोग लगता है उसके साथ ही दीपक, पुष्प बैठक आदि की सेवा हो रही है। आम तौर पर भक्त पहले से ही सेवा बुक करवा लिया करते थे, लेकिन अभी 95 फीसदी सेवाएं कैंसिल हो रही हैं। इसी के कारण मंदिर में प्रतिवर्ष सजने वाले फूल बंगले भी कैंसिल हुए है। फूल बंगलों पर भी कोरोना काल का असर साफ देखने को मिल रहा है।
वृन्दावन के प्रसिद्ध मंदिरों में फूल बंगलों का यह क्रम चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्था (हरियाली अमावस्था) तक चलता है। इन दिनों फूल बंगलों की बड़ी जबर्दस्त बहार रहती थी, जो इस वार देखने को नहीं मिली। फूलों के यह बंगले मुख्यतः यहां के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर, राधावल्लभ मंदिर, राधारमण मंदिर एवं राधा दामोदर मंदिर आदि में श्रद्धालु, भक्तगणों द्वारा मंदिरों के गोस्वामियों के सहयोग से नित नए रूप से बनवाए जाते हैं, जिनमें कि प्रतिदिन सांयकाल ठाकुर जी मंदिर के गर्भ गृह से बाहर निकल कर जगमोहन में विराजते हैं। साथ ही वे मंदिर प्रांगण में उपस्थित हजारों श्रद्धालु भक्तों को अपने दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं।
इसके पीछे का भाव है कि भीषण गर्मी की झुलसाने वाली तपिश में अपने आराध्य ठाकुर जी को गर्मी के प्रकोप से बचाने एवं उन्हें पुष्प सेवा से आह्लादित कर रिझाने के लिये वृंदावन के प्रायः सभी प्रमुख मंदिरों में फूल बंगले बनते हैं परंतु फूल बंगले बनाने का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप यहां के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में देखने को मिलता है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में ठाकुर बांके-बिहारी महाराज की सेवा करने हेतु उनके प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास व उनके शिष्य जंगलों से तरह-तरह के फूल बीन कर लाते थे, जिन्हें बिहारी जी के सम्मुख रख दिया जाता था। साथ ही हरिदास जी, बिहारी जी को रायबेल व चमेली के फूलों की माला भी पहना दिया करते थे। बाद में वे फूलों से छोटी मोटी सजावट करने लगे। इस प्रकार वृंदावन में सर्वप्रथम फूल बंगला रसिकेश्वर स्वामी हरिदास ने ठाकुर बल्लभाचार्य महाराज, विट्ठलनाथ गोस्वामी, अलबेली लाल गोस्वामी, लक्ष्मीनारायण गोस्वामी, ब्रजवल्लभ गोस्वामी, छबीले बल्लभ गोस्वामी आदि के द्वारा संबर्धन हुआ।
इन सभी से यह कला बिहारी जी के अन्य गोस्वामियों ने भी सीखी। गोस्वामियों के द्वारा बिहारी जी के मंदिर में फूल बंगलों को बनाए जाने के मूल में यह भावना निहित थी कि इससे उनके ठाकुर जी को गर्मियों में फूलों से कुछ ठंडक मिलेगी। अतएवं वह प्रतिवर्ष गर्मियों में उनके मंदिर में अपने निजी खर्चे पर फूलों के बंगले बनाते थे। बाद में इन फूल बंगलों को बाहर के भक्तों के द्वारा बनाए जाने का खर्चा उठाया जाने लगा किंतु इनको बनाने का कार्य आज भी बिहारी जी के गोस्वामियों के द्वारा ही किया जाता है। क्योंक यह कला इनको अपने पूर्वजों से विरासत में प्राप्त हुई हैं, इसलिए वह फूल बंगलों को बनाए जाने का कार्य बगैर किसी पारिश्रमिक के अत्यंत श्रद्धाभाव के साथ करते हैं। बिहारी जी के लगभग डेढ़ सौ गोस्वामी परिवारों में आज कोई भी परिवार ऐसा नहीं है, जिसमें कि कोई न कोई व्यक्ति फूल बंगलों को बनाने का काम न जानता हो और सब अपनी सुविधानुसार फूल बंगले बनाते हैं।
एक दिन के छोटे से छोटे फूल बंगले में पचास क्विंटल तक फूल लग जाते हैं। इतनी बड़ी तादात में फूल वृन्दावन में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, इसके लिये अन्य जनपदों से भी फूल मगांने पड़ते हैं अब कुछ भक्त विदेशों से भी विदेशी फूल मंगवाने लगे हैं। दूरवर्ती स्थानों से फूलों को बर्फ की सिल्लियों पर रखकर वायुयान से दिल्ली, आगरा तक मंगाया जाता है। तत्पश्चात् उन्हें सड़क मार्ग से वृंदावन लाया जाता है। फूल बंगलों में फूलों के अलावा तुलसी दल, केले के पत्तों, सब्जियों, फलों, मेवों, मिठाइयों और रुपयों का भी इस्तेमाल होता है।
इस वार इतनी भव्यता के साथ फूल बंगले नही सजाये गये। हवाई जहाजों के आवागमन पर रोक और रेल गाड़ियों के व सड़क मार्ग सभी बंद होने के चलते फूलों के यहां तक न पहुंच पाने के कारण भव्यता के साथ फूल बंगले नहीं सजाये जा सके।
प्रति वर्ष इन दिनों फूल बंगला बनाने में पाँच लाख रुपयों से लेकर बीस-पच्चीस लाख रुपये तक का खर्च श्रद्धालु भक्त किया करते थे। इस सम्बन्ध में ठाकुर बांके बिहारी के अनन्य सेवक व स्वामी हरिदास जी के वंशज सेवायत शेलेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में दूर दराज से आए उनके तमाम श्रद्धालु प्रायः मनौतियां पूर्ण होने पर फूल बंगला ठाकुर जी की सेवा में अर्पित करते हैं। मनौतियों के पूरे होने पर श्रद्धालु भक्त यहां अपने खर्चे पर मंदिर के गोस्वामियों के सहयोग से फूल बंगले बनवाते हैं। इस कार्य में सभी जाति संप्रदाय के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है।
बाँके बिहारी मंदिर के व्यवस्थापक मनीष कुमार शर्मा ने बताया कि यहां प्रतिवर्ष गर्मियों में फूल बंगलों के बनाए जाने के जो लगभग चार महीने होते हैं, उनमें किस दिन किस व्यक्ति के खर्चे पर फूल बंगला बनेगा, इसकी बुकिंग लगभग एक वर्ष पूर्व ही हो जाती है। फिर भी फूल बंगला बनवाने के इच्छुक तमाम लोगों को निराश होना पड़ता है। ठाकुर बांके बिहारी मंदिर पर चैत्र शुक्ल एकादशी से श्रावण कृष्ण हरियाली अमावस्या तक बिना नागा नित्य-प्रति फूलों के बंगले बनते हैं। इस वर्ष यह फूल बंगले 03 अप्रैल से 20 जुलाई तक 108 दिन फूल बंगले बनाये गये और 20 जुलाई तक बनाये जायेंगे। उन्होंने बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण भक्तों का आना नही हो पाया जिसके चलते अधिकांश फूल बंगले भक्तों के द्वारा नहीं बनवाये गये मगर कुछ भक्त श्रीबॉके बिहारी को आस्था के चलते फूल बंगले अर्पित किये। उसी के अनुसार इस वर्ष उतने भव्य बंगले नहीं बन पाये केवल ठाकुर जी को फूल बंगलों में सजाया गया। यही फूल बंगले अन्य वर्षों में अधिक मांग होने के कारण दोनों टाइम सजाये जाते और लगभग 216 फूलबंगले सजाये जाते।
बाँके बिहारी जी मंदिर प्रबन्ध कमेटी के पूर्व सदस्य व अनन्य भक्त विकास वार्ष्णेय ने इस सम्बन्ध में बताया कि वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में फूल बंगलों को बनाने का कार्य प्रतिवर्ष बड़े जोर-शोर से होता है। यहां के गोस्वामी कलाकारों का उत्साह व तल्लीनता देखते ही बनती है। मगर उन्होंने बड़े ही निराशा का भाव लिये बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण यह व्यवस्था का पालन ठीक से नहीं हो सका।मंदिर के उप प्रबन्धक उमेश सारस्वत ने बताया कि एक बंगले को बनाए जाने में जो फूल प्रयोग में आता है, उसे दूसरा फूल बंगला बनाने हेतु किसी भी हाल में प्रयेग में नहीं लाया जाता है। एक बार प्रयोग में आ चुका फूल बतौर प्रसाद भक्तगणों में वितरित किया जाता है अथवा यमुना में विसर्जित कर दिया जाता है। फूल बंगले बनाने हेतु प्रतिदिन ताजे फूल ही इस्तेमाल होते है। इन बंगलों की लागत चार-पांच लाख से लेकर बीस व पच्चीस लाख रुपयों तक जा पहुंचती है। इन बंगलों में सिक्कों का भी प्रयोग होता है। आजकल गुब्बारों से फल-फूल सब्जियों व अन्य सामग्री से भी बंगले बनने लगे हैं। देश के कौने कौने से श्रद्धालु अपनी मनोकामंना के पूर्ण होने पर भगवान बाँके बिहारी जी को फूल बंगला अर्पित करते हैं। इन फूल बंगलों को देखने के लिए दूर-दराज से अंसख्य दर्शक वृंदावन प्रतिदिन पहुंचते हैं किन्तु इस वर्ष चारों तरफ लॉकडाउन के चलते और रेल गाड़ियों के व सड़क मार्ग पर यातायात उपलब्ध न हो पाने और लोगों का घरों से निकलना ही बंद होने के कारण फूल बंगलों में भी कमी आई है।

बांकेबिहारी मंदिर में जहां हर महीने 15 से 20 लाख लोग दर्शन के लिए आते थे, अभी सिर्फ पुजारी ही मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। इस अकेले मंदिर में हर महीने दर्शन के लिए दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उडीसा के अलावा विदेशों से भी यहां आते थे। गोस्वामी कहते हैं कि हमारे पिताजी बताते हैं कि वृन्दावन की गलियां कभी ऐसी सूनी नहीं देखी हैं। मंदिर के सेवायतों का मानना है कि मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन की व्यवस्था की जा सकती हैं लेकिन गली और वृंदावन की जिम्मेदारी प्रशासन ले तब ही मंदिर खोले जा सकते हैं।
मथुरा से सुनील शर्मा, 9319225654