बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

देश के पश्चिम बंगाल में दीपावली पर नहीं की जाती है लक्ष्मी पूजा


शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
दीपावली के दिन काली की पूजा करने की परंपरा है
दीपावली पर देश भर में लक्ष्मी गणेश की पूजा करने की परंपरा है, किन्तु पश्चिम बंगाल और बंगाली समुदाय इस दिन मां काली की पूजा करता है। दीपावली के दिन यानी अमावस्या की अर्धरात्रि में माँ काली की पूजा की जाती है।

दीपावली पर देश में लक्ष्मी गणेश की पूजा करने की परंपरा हर प्रान्त में निभाई जाती है, परन्तु पश्चिम बंगाल और बंगाली समुदाय इस दिन मां काली की पूजा करता है। यह पूजा दीपावली के दिन यानी अमावस्या की अर्धरात्रि में की जाती है।



एक अमावस्या मां दुर्गा की तो दूसरी अमावस्या को काली मां की पूजा होती है।

एक अमावस्या में मां दुर्गा का आगमन होता है। जिसे हम शारदीय नवरात्र के तौर पर जानते हैं। 15 दिन बाद दूसरी अमावस्या में मां काली की पूजा करने की प्रथा बंगाल में बंगाली समाज द्वारा निभाई जाती है।

विजया दशमी के 6 दिन बाद लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

विजया दशमी के 6 दिन बाद बंगाल में लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हालांकि, जैसे उत्तर भारत और देश के बाकी हिस्सों में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा होती है वैसे लक्ष्मी की पूजा नहीं की जाती है। बंगाल में लक्ष्मी पूजा के दिन सिर्फ मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की जाती है और मां लक्ष्मी की ही पूजा की जाती है। पूजा से पहले महिलाएं घर की साफ सफाई करके फिर रंगोली बना कर मां लक्ष्मी को पांच फल, नारियल, नारियल से बने लड्डू, गन्ना, सावुत मूंग, भीगे कच्चे चने, कच्चे चावल, खील, बतासा, खीर आदि का भोग लगाते हैं। 

मध्य रात्रि तक चलने वाली मां काली की पूजा।

काली पूजा के दिन मां काली को विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग मां को चढ़ाया जाता है. तड़के 4 बजे तक चलने वाली इस पूजा की विधि में होम (हवन) व पुष्पांजलि भक्तों के द्वारा की जाती है। इस मौके पर अधिकांश महिला व पुरुष सुबह से उपवास रखकर रात्रि में माता को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

दीपावली के दिन काली की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है-

शक्ति के आधार की प्रमुख देवी हैं मां काली, यह कुल दस महाविद्याओं के स्वरूपों में निहित है। शक्ति का महानतम स्वरुप महाविद्याओं में ही होता है। काली की पूजा-उपासना से भय खत्म होता है। इनकी अर्चना से रोग मुक्त होते हैं। राहु और केतु की शांति के लिए मां काली की उपासना अचूक है। मां अपने भक्तों की रक्षा करके उनके शत्रुओं का नाश करती हैं। इनकी पूजा से तंत्र-मंत्र का असर खत्म हो जाता है। तथा इस दिन अभीष्ट सिद्वि प्राप्त करने का अवसर भी होता है।

काली की पूजा के नियम।
मां काली की पूजा दो विधि से की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तांत्रिक पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है, परन्तु तांत्रिक पूजा बिना विद्वान तंत्र साधक के संरक्षण और निर्देशों के नहीं की जा सकती। काली की उपासना सही समय मध्य रात्रि का होता है। इनकी पूजा में लाल और काली वस्तुओं का विशेष महत्व है। मां काली के मंत्र जाप से ज्यादा इनका ध्यान करना उपयुक्त होता है। मां काली की पूजा शमसान या निर्जन स्थान पर की जाती है।
दुश्मनों से छुटकारा पाने के लिए की जाती है काली की उपासना।
मां काली की उपासना शत्रुओं और विरोधियों को शांत करने के लिए करनी चाहिए किसी की मृत्यु के लिए नहीं। आप विरोधी या किसी शत्रु से परेशान हैं तो उस समस्या से बचने के यह उपाय कर सकते हैं आपके शत्रु अगर आपको परेशान करते हों तो आप लाल कपड़े पहनकर लाल आसन पर बैठें मां काली के समक्ष दीपक और गुग्गल की धूप जलाएं। मां को प्रसाद में पेड़े और लौंग चढ़ाएं। ऐसी मान्यता है कि इस प्रकार पूजा अर्चना करके आप मां काली का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।