रविवार, 23 नवंबर 2014

चन्द्रोदय मंदिर दुनिया का अनोखा मंदिर होगा वृन्दावन में

चन्द्रोदय मंदिर दुनिया का अनोखा मंदिर होगा वृन्दावन में

60 एकड़ में बनेगा मंदिर 

212 मीटर ऊंचा मंदिर दुनिया में 12 वें स्थान पर 

400 करोड़ रुपये की लागत से होगा निर्माण

तीन से चार दिन लगेंगे 76 धर्मिक स्थलों के दर्शन करने को
(सुनील शर्मा)

वृन्दावन में आने के वाद विश्व के अनोखे मंदिर के पास पहुंच कर जब लोग यह कहने को मजबूर हो जायेंगे कि क्या वात है क्या अद्भुद, चीज है, क्या शानदार है और बैमिसाल है। 
बात कर रहे हैं वृन्दावन में बनने जा रहे चन्द्रोदय मंदिर की जो दुनिया में अपने आप में एक अकेला मंदिर होगा। जो मंदिर देश में तो क्या पूरी दुनिया के किसी कौने में अब तक नही बना होगा। पूरी दुनिया में सबसे उंचा मंदिर होगा वृन्दावन की पावन धरती पर अगर हम बात करें दुनिया के उन तमाम इमारतों की जो आज भी आम जन मानस के जहन में रचबस गये है। उनमें भी अगर तुलना की जाय 13 वीं शताव्दी में बने एतिहासिक कुतुबमीनार से तो यह मंदिर उससे तीन गुना ऊंचा होगा। कुतुबमीनार की कुल ऊंचाई 73 मीटर है। अब तक दुनिया भर के गगनचुंबी इमारतों की वात केवल सुनने को मिलती थी कि उस देश में इतनी ऊंची इमारत है। टीवी व मैगजीन में खवर के तोर पर पढने को मिल जाती थी कि फला इमारत इतनी ऊंची है। लेकिन अब यह सपना भी ब्रज की पावन धरती पर साकार होने जा रहा है। नया इतिहास रचने की तैयारी में है। राधा-कृष्ण के पे्रम की धरती अब इस अनोखे मंदिर के कारण एक वार फिर प्रेम के एक और प्रतीक के रूप में स्थापित होने जा रहा है यह विशाल मंदिर जो 60 एकड़ के विशाल भूखण्ड में चार एकड़ में फैला इस मंदिर का परिसर जिसमें इसका आधारभूत ढांचा बन कर तैयार होगा। मंदिर की ऊंचाई 700 फीट होगी यानी 212 मीटर जो विश्व का पहला मंदिर होगा। इसके निर्माण के वाद यह मंदिर दुनिया के तमाम गगनचुंबी इमारतों की सूची में 12 वें स्थान पर होगा। दुबई में स्थित बुर्ज खलीफा की ऊंचाई 828 मीटर है। शिकागो की विलिस टाॅवर की ऊंचाई 442 मीटर  और वह 11 वें स्थान पर है। 70 मंजिला चन्द्रोदय मंदिर की आधार शिला 16 नवम्बर 2014 को देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने रखी इसके लिये विशेष आयोजन कर पूजा अर्चना भी कराई गई। 
इस मंदिर के निर्माण में खुजराहो शैली और आधुनिक शिल्पकला का मिलाजुला स्वरूप देखने को मिलेगा। मंदिर की डिजाइन इस्काॅन बेंगलरू के इस्काॅन के भक्तों के द्वारा तैयार की गई है। इस मंदिर के आंतरिक साज-सज्जा (इंटीरियर डिजायन) की जिम्मेदारी विदेशी शिल्पकारों को दी गई है। इस्काॅन के परम ब्रह्मदास प्रभु के अनुसार मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण ने मंदिर का नक्शा पास कर दिया है। उन्होंने बताया कि मंदिर का निर्माण 400 करोड़ की लागत से होगा। पहले चरण में आधारभूत ढ़ाचा तैयार करने में करीब 150 करोड़ रुपयों की राशि खर्च होगी। इसके वाद 70 मंजिलों के निर्माण व साज-सज्जा पर करीब 250 करोड़ रुपयों का खर्च होने का अनुमान है। परम ब्रह्मदास प्रभु ने बताया कि शुरूआत में इस मंदिर को 108 मंजिला बनाने की योजना थी जिसके हिसाब से यह मंदिर 1080 फीट की ऊंचाई तक बनता लेकिन भारतीय विमानपत्तनम प्राधीकरण की ओर से अत्यधिक ऊंचाई के कारण अनुमति नही दिये जाने के चलते मंदिर की ऊंचाई अब 212 मीटर ही होगी। 
बेमिशाल अद्भुत शिल्पकला के अनूठे इस मंदिर के चारों ओर 40 एकड़ में फैला घना जंगल होगा। जो प्राचीन ब्रज की छवि का अहसास करायेगा। प्राचीन वनों के नाम पर ही इसमें बनने वाले वनों को नाम दिया जायेगा। मंदिर के किनारे किनारे दो किलो मीटर यमुना नदी भी होगी। इसमें यमुना से जल लाकर उसकों साफ करने के वाद ही इसमें डाला जायेगा।
मंदिर की सबसे ऊंची मंजिल का नाम ब्रज मंडल दर्शन रखा जायेगा। यहां से ब्रज के प्राचीन धार्मिक स्थलों के दर्शन होंगे साथ ही विश्व के सात अजूबों में से एक प्रेम की निशानी ताजमहल को भी दूरबीन से देखा जा सकेगा। इस आश्चर्य जनक मंदिर का भ्रमण करने के लिये श्रद्धालुओं को तीन से चार दिन का समय लगेगा। मंदिर में ग्रांड टेम्पल दूसरे भाग में अर्थली प्लेनेट्स, हेवेनली प्लेनेटस, बैकुण्ठ प्लेनेटस, गौलोक वृन्दावन और सबसे ऊंचाई पर ब्रज मंडल दर्शन होंगे।
युवा पीढ़ी को आकर्षित करने और इस मंदिर से जोड़ने के लिये राधा-कृष्ण की लीलाओं को मिकी माउस की तरह से 3-डी एनिमेशन में दिखाने की योजना है। इसके लिये कृष्ण लीला पार्क का निर्माण कराया जायेगा। साथ ही आडिटोरियम, म्युजिकल फाउंटेन, लगभग दस हजार की क्षमता वाला हाॅल भी होगा। जहां एक साथ इतने लोग धार्मिक आयोजनों में हिस्सा ले सकेंगे।        

शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

किसकी सफाई किसकी मुक्ति, यमुना नहीं यह नाला है

यमुनोत्री से चली यमुना नहीं पहुंची मथुरा
किसकी सफाई किसकी मुक्ति, यमुना नहीं यह नाला है
उपेक्षा ,प्रदूषण, लापरवाही के चलते 
यमुना अब दम तोड़ चुकी है
सुनील शर्मा
मथुरा। नारद पुराण के अनुसार ‘‘अयोध्या मथुरा माया काशी कांची ह्यवन्तिका पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका’’ भारत की सात मोक्ष दायिनी पुरियों में से मथुरा भी एक पुरी मानी गयी है। जिसका आज भी जनमानस में बड़ा महत्व हैं। जिसका आधार यमुना नदी है। आज यही यमुना नदी अपनी मुक्ति की वाट जोह रही है। 


यमुना अपने उद्गम स्थल से ब्रज में श्रीकृष्ण के लिए और इलाहाबाद में संगम के लिए चली थीं, वह केवल हरियाणा में अवरुद्ध किये जाने के लिए नहीं निकलीं थी। प्रदेश सरकारों की उपेक्षा पूर्ण कार्यवाही के चलते यमुना नदी दम तोड चुकी है।
आज दिल्ली से जो यमुना ब्रज में आ रही है, वह यमुनोत्री की यमुना नहीं है। वह एक नई यमुना है जिसे दिल्ली की गंदगी ने ईजाद किया है। इस क्रम में दिल्ली के वाद नदी के किनारे बसे सभी शहर यमुना नदी को गन्दा करने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
यमुना को मुक्त कराने के अभी तक किये गये सभी प्रयास विफल हो गये है। वर्तमान नाला रूपी यमुना को नदी वता कर हजारों करोड़ों रुपया प्रदूषण के नाम पर अब तक स्वाह किया जा  चुका है लेकिन छोटी छोटी नालियों के गन्दे पानी को लेकर चल रहा बड़ा नाला आज भी लोगों के जहन में यमुना नदी के रूप में है। 
अब तक यमुना प्रदूषण की बात करने वालों को जनता के सामने यह सच्चाई लानी ही होगी कि ब्रज में यमुना नहीं है, यमुना की जगह जो दिखाई दे रहा है वह केवल नाले-नालियों का गंदा पानी, मल-मूत्र, कट्टीघरों का खून एवं रासायनिक कचरा है और यही जल स्त्रोतों के माध्यम से हमारे घरों में भी जा रहा है। इस पानी से बड़ों से लेकर बच्चों तक की किडनियां फेल हो रही है, फैंफड़े संक्रमित हो चुके हैं, कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बड़ रही है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए भेजा गया हजारों करोड़ रुपया आखिर गया कहां। उसे कौन खा गया। अकेले दिल्ली में यमुना को साफ करने को लेकर अब तक 18 हजार करोड़ रुपया खर्च किया जा चुका है। लेकिन दिल्ली में भी आज तक यमुना शुद्ध नही हो सकी है। उसमें मिलने वाले नालों को आज तक रोका नहीं जा सका है।
योजना के अनुसार नालों का पानी साफ किये जाने के बाद फिर यमुना में समाहित नहीं किया जायेगा। उस पानी का ट्रीटमेंट करके नहरों के माध्यम से किसानों को दिया जाएगा। लेकिन इस पर भी कोई ठोस काम आज तक नही हो सका है। मथुरा वृन्दावन में इस नदी के किनारे पड़ने वाले नाले कागजों पर टेप किये जा चुके हैं लेकिन हकीकत इससे परे है। मथुरा वृन्दावन नगर के अधिकांश नाले आज भी नगर का सारा कचरा और सीवर का गन्दा पानी यमुना में पहुंचा रहे है। मथुरा स्थित मसानी नाला आज भी उसी स्थिति में है। उसमें लगाई गई जाली भी टूट चुकी है। नाले का गन्दा पानी सीधे यमुना में गिरता देखा जा सकता है। 
न्यायालय के आदेश के वाद भी यमुना के किनारे खादर की स्थिति यह है कि यहां हजारों की संख्या में अवैध काॅलोनियां बन गई हैं तथा इनमें चारों तरफ केवल घर ही घर दिखाई दे रहे हैं। विद्युत विभाग इन काॅलोनियों में एक भी कनैक्शन नहीं देने का दावा करता है। मगर इन काॅलोनियों में लोगोें के घरों में टीवी, फ्रिज, कूलर, पंखा, डिश एन्टीना हर घर की छत पर देखा जा सकता है। यहां तक कि लोगों के घरों में समरसेविल पम्प भी लगे हैं जिससे वह पानी की सप्लाई भी ले रहे हैं अगर विद्युत विभाग यहां कनैक्शन नहीं दे रहा है तो इन काॅलोनियों के लोग इन सुबिधाओं को किस प्रकार से भोग रहे हैं। इसका सीधा सा जवाब है कि इन काॅलोनियों में सब अवैध कनैक्शन के सहारे जिन्दा हैं। घाटों के करीव से यमुना अपना प्रवाह छोड़ चुकी है। जिसके कारण यमुना के किनारे अवैध कब्जे हो गये हैं। जिसे जहां जगह मिली उसने यमुना के किनारे अपने स्वार्थ में मकान, दुकान, गैराज, बगीची, डोरी निवाड का कारखाना यहां तक कि संत महन्त भी यमुना के घाटों के किनारे गौशाला बना कर ही कब्जा कर रहे हैं। इस ओर जिला प्रशासन का कोई ध्यान नही है। 
सबसे बड़ा प्रश्न कि जिले में जब एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति यमुना की देख रेख के लिये की गई है तो अब तक नोडल अधिकारी रहे जितने भी अधिकारी थे उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को ठीक से क्यों नहीं निभाया। क्या उनके खिलाफ कार्यवाही नही होनी चाहिये। अब कोरे आश्वासनों से काम नहीं चलेगा, ठोस कार्यवाही होनी चाहिये। यमुना को मुक्ति दो, मथुरा में आने दो 

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी कैसे सुरक्षित रह पायेंगे गोवर्धन में

चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी कैसे सुरक्षित रह पायेंगे गोवर्धन में
जब उनके मंदिरों की सम्पत्तियां साधु संत सुरक्षित नहीं।
गोवर्धन। गिरिराज धाम के विश्व विख्यात राजकीय मेले मुडि़या पूनौ की मुख्यतम परम्पराओं पर भूमाफियाई अतिक्रमणों के बादल छा रहे है। जिनके चलते अब भविष्य में इन परम्पराओं का निर्वहन होना भी असम्भव सा प्रतीत हो रहा है। वैष्णव सम्प्रदायी चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों के इस प्रमुख गुरू पर्व की परम्पराओं को सहेजे उनके सन्ताश्रम अब यहां के दबंग माफियाओं के चंगुल में फंस गये है। माफियाओं ने न सिर्फ उन वैष्णव सन्तों के आश्रमों और उनकी सम्पत्तियों पर अपना कब्जा कर लिया है बल्कि वे सन्तों को उन्हीं की सम्पत्तियों से बेदखल करने में जुटे है। प्रशासनिक अफसर राजकीय मेले की परम्पराओं के उन वाहकों को संरक्षण देना तो दूर उनकी रक्षा कर पाने में भी अक्षम नजर आ रहे है। यदि ऐसा ही रहा तो बृज की करीब पाँच सौ वर्ष पुरानी जिस सभ्यता और संस्कृति को सहेजने के लिये शासन ने महत्वपूर्ण प्रयास किये थे वे सब निरर्थक हो जायेंगे और वहां सब जगह भूमाफिया काबिज नजर आयेंगे। 
ऐसे ही भूमाफियाओं ने पूर्व में मुडि़या सन्तों की कस्बे के बरसाना रोड स्थित बेशकीमती भूमि को हड़प लिया था और अब दूसरे भूमाफियाओं ने फर्जी दस्तावेज बनाकर मुडि़या सन्तो के आश्रम को ही अपना घोषित करके साधुओं को आश्रम से बेदखल कर दिया और आश्रम पर अपना कब्जा जमा लिया है। प्रशासनिक अफसरों को इसकी जानकारी होते हुए भी वे मौन साधे चुप बैठे हुए है।
बृज के जिस एक मात्र पर्व को प्रदेश शासन ने राजकीय मेले का दर्जा देकर उसका संरक्षण करने का प्रयास किया उसी मेले की मुख्यतम परम्परा के संवाहक चैतन्य महाप्रभु के शिष्य एवं उनके मठ मन्दिर आदि इन दिनों क्षेत्रीय भूमाफियाओं की दबंगई के शिकार हो रहे है। विदित हो कि बृज के गिरिराज धाम में हर वर्ष आयोजित होने वाले विश्व प्रसिद्ध मुडि़या पूनौ मेले को प्रदेश सरकार ने राजकीय मेले का दर्जा देकर इसका संरक्षण संवर्धन करने बेहतर प्रयास किया है। ये पर्व पिछले करीब पाँच सौ वर्षो से बृजनिष्ठ सन्त चैतन्य महाप्रभु की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में गौड़ीय सम्प्रदाय के सन्तों द्वारा मनाया जाता है। आषाड़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरम्भ होने वाले पाँच दिवसीय इस मेले का समापन पूर्णिमा को सुबह श्री राधा श्याम सुन्दर मन्दिर एवं सांय श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु मन्दिर के गौड़ीय सन्तो द्वारा सिरों का मुण्डन कर संकीर्तन के साथ निकाली जाने वाली चैतन्य महाप्रभु की शोभायात्राओें के साथ होता है। इन प्राचीनतम मन्दिरों के पास मौजूद बेशुमार सम्पत्ति मन्दिरों के नाबालिक माने जाने वाले ठाकुर जी के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। मन्दिर के नाबालिक ठाकुर जी की सम्पत्ति कभी किसी खरीद फरोख्त, रहन गिरवी, किराये या पटटे पर नहीं नहीं दी जा सकती। इन सारे नियम कानूनों को ताक पर रखकर उप निबन्धक कार्यालयों मंे इनकी सम्पत्तियाँ लगातार खुर्द बुर्द की जा रही है। पूर्व में मुडि़या सन्तों के श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु मन्दिर के ठाकुर गोपाल जी की बरसाना रोड पर ईदगाह के बगल में स्थित अरबों रूपये कीमत की बेशकीमती भूमि पर भूमाफियाओं की नजर लगी और कस्बे के ही भूमाफियाओं ने फर्जी तरीके मन्दिर के तत्कालीन गौलोकवासी महन्त सुबल दास को बहला फुसलाकर उससे उस जमीन का फर्जी बैनामा अपने नाम कराकर उक्त भूमि पर कब्जा कर लिया। उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय ने कई बार एमवीडीए को आदेश देकर उक्त भूमि से अवैध कब्जे हटाने के आदेश दिये लेकिन अरबों की सम्पत्ति में से अपना हिस्सा पाकर एमवीडीए अधिकारी सर्वोच्च अदालतों के आदेशों को भी दरकिनार कर गये। 
अब भूमाफियाओं के एक नये मामले में मुडि़या सन्तों को उन्हीं के कस्बा स्थित आश्रम श्री राधा श्याम सुन्दर मन्दिर की बेशकीमती भूमि से बेदखल करने की साजिश सामने आयी है। माफियाओं ने ठाकुर श्री राधा श्याम सुन्दर जी की कभी भी न बेची जा सकने वाली सम्पत्ति का भी इसी प्रकार मन्दिर के महन्त तमालकृष्ण दास से बहला फुसलाकर फर्जी बैनामा करा लिया है। वास्तव में इस बार माफियाओं ने उक्त महन्त के बंगाली और अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को ढाल एवं हिन्दी भाषा के अल्प ज्ञान को तलवार बनाकर अपनी कारगुजारी को अंजाम दिया है। इस बार ये कारगुजारी महल हंसारानी निवासी गोवर्धन निवासी इज्जतदार व्यवसाय शिक्षण से जुड़े एक शिक्षक युवक ने अपने पिता और अपनी विवाहित बहिन आदि के साथ मिलकर अन्जाम दिया है। पहले तो उक्त तथाकथित शिक्षक ने कम्प्यूटर कक्षाओं के लिये आश्रम के महन्त से एक दुकान किराये पर मांगी और फिर धीरे धीरे धोखे से उस दुकान का पटटा करा कर उसमें दो मंजिला मकान बना लिया। बाद में धोखाधड़ी कर उसने मन्दिर के पूरे ट्रस्ट और ट्रस्टियों को बदलवा कर उसमें अपना पूर्णाधिकार बना लिया। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब उक्त तथाकथित शिक्षक ने महन्त को धोखे में रखकर उक्त आश्रम की पूरी सम्पत्ति का ही अपनी विवाहित बहिन के नाम बैनामा करा दिया। इस पूरे मामले मंे महन्त को बंगाली और अंगे्रजी भाषा का पूरा ज्ञान होने के कारण सारे कागजात हिन्दी भाषा में लिखकर महन्त के भरोसे का पूरा फायदा उठाया गया। ये सारा मामला तब खुल सका जब वे भूमाफिया उक्त आश्रम के मुडि़या महन्त और सन्तों को आश्रम से बेदखल करने लगे। अब उक्त मन्दिर के साधु मारे मारे अपनी जान बचाने को भागे फिर रहे। उन्हें डर भूमाफियाओं से डर सता रहा है कि कहीं इस सम्पत्ति के चलते उनकी हत्या न कर दी जाये। आश्रम के महन्त तमाल कृष्ण दास का कहना है कि पिछले काफी समय से वे बीमार चल रहे थे और इसी का फायदा उठा कर ये सब कारनामे अंजाम दिये जाते रहे। ऐसा नहीं है कि इस मामले की जानकारी जनपद के उच्चाधिकारियों को नहीं है बल्कि ये सारे कारनामे उन्हीं के संज्ञान में रखकर अंजाम दिये जा रहे है। अब देखना सिर्फ ये है कि संसार भर में विख्यात उत्तर प्रदेश के राजकीय मेले मुडि़या पूनौ की परम्पराओं का भविष्य में क्या हर्ष होने जा रहा है।
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शनिवार, 25 जनवरी 2014

ब्रजवासियों को चेतावनी वृन्दावन अव वनेगा वृन्दानगर।

ब्रजवासियों को चेतावनी
वृन्दावन अव वनेगा वृन्दानगर। 
लता-पता, कुण्ड-सरोवर, बाग-बगीचे, कुंज-निकुंज के अस्तित्व को मिटा फ्लैट संस्कृति में बदलता वृन्दावन।
(सुनील शर्मा)
श्री राधाकृष्ण की रासस्थली वृन्दावन का नाम लेते ही लोगों के मन में यह विचार उमड़ते हैं कि वृन्दा अर्थात तुलसी और वन अर्थात जंगल होगा तुलसीवन यानी वृन्दावन अर्थात राधाजी की वह रासस्थली जहां नूपूरों की वह मधुर आहट आने वाले हर भक्त को राधाकृष्ण की भक्तिमें लीन होने के लिए विवश कर देगी।
इसी वृन्दावन के उन वृन्दादलों की सुगन्ध ने अपनी पविव्रता और मधुरता के लिये न जाने कितने महान ऋषि-मुनियों और महान कवियों, संत-महात्माओं को और अवतारों को यहां आने के लिए प्रेरित नहीं किया, भारतवर्ष के हर कोने से असंख्य लोग यहां आते हैं। यहां की माटी ने देश के लोगों को ही नहीं विदेशी कृष्ण भक्तों को भी प्रेरित किया है।
जिस काल में उसकी गरिमा अपनी वास्तविकता और कालमहत्वता को इतिहास के अतीत में समेटे हुए लुप्त हो चुकी थी। इस समय श्री कृष्ण के अन्यन्य भक्त श्री चैतन्य महाप्रभु का जब इस स्थान पर प्रथम वार आगमन हुआ तो वह विह्वल हो उठे, और उस अज्ञात आशक्ति से बंधे हुए खिंचे चले आये और आज के वृन्दावन के उस पुरातन स्वरूप की खोज की जो कृष्ण राधा के नाम से कण-कण में विंधा हुआ था।
यह कृष्ण नाम कोई एक समय रेखा से आबद्ध नहीं है कि कुछ समय के पश्चात कृष्ण का नाम वृन्दावन के साथ लुप्त या स्थिर हो जायेगा शायद यह कुछ सिरफिरों की साजिश का अंग प्राय हो सकता है।
लेकिन उस अचिर और अन्नत कृष्ण के नाम को समाप्त करना किसी की ताकत की बात नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान भी अपनी शक्ति हनुमान जी की शक्ति की तरह भूल गये हैं।
वृन्दावन से प्राचीन प्रतिमाओं की तस्करी होती थी और सुनियोजित ढंग से हो भी रही है। वर्तमान में उसका बदला हुआ स्वरूप वृन्दावन के ऐतिहासिक स्वरूप को मिटाने का एक बहुत बड़ा षड़यन्त्र चल रहा है। जिसमें बाहरी ताकतों का मिश्रण भी है। अनेक चमत्कारों से युक्त ये वृन्दावन के लाडले ठाकुर अपनी शक्ति को भूलकर विदेशी नागरिकों के घरों में भारतीय संस्कृति का एक प्रतीक बनकर चिह्न जरूर बन सकते हैं। लेकिन आराध्य या उपासना का केन्द्र नहीं बन सकते। इन अद्वितीय प्रतिमाओं की कीमत लाखों करोड़ों में आंकी जाती है, एक प्रस्तर या काठ से बनी प्रतिमा की कीमत इतनी नहीं हो सकती बल्कि वह उन लाखों करोड़ों भारतीय उपासकों की भक्ति और श्रृद्धा की कीमत है जिन्होंने अकिंचन प्रेम से उपासना की है। ये बृजवासी ही इस कलयुग में विस्मृत शक्ति को जगाकर ही वृन्दावन को बचा सकते हैं।
बंगाल के घर-घर में आज भी श्रृद्धा और भक्ति से चैतन्य महाप्रभु का नाम लिया जाता है, वह चाहे पश्चिम बंगाल हो या पूर्वी बंगाल। श्री चैतन्य महाप्रभु ने वृन्दावन से अधिक बंगाल के घर-घर में श्रीकृष्ण के नाम को बसा दिया जैसे मनुष्य के प्राण। श्री चैतन्य महाप्रभु के दिखाये श्रीकृष्ण प्रेम के मार्ग पर चलकर श्रीकृष्ण के निश्छल प्रेम से अभिभूत बंगाल से विधवायें और असहाय महिलायें वृन्दावन के नाम से नतमस्तक होकर अपने जीवन को धन्य मानते हुए यहां आने को लालायित रहतीं हैं, और आज जब वे वृन्दावन आतीं हैं तो उनका रोम-रोम काॅंप उठता है कि यहीं क्या वो चैतन्य महाप्रभु द्वारा खोजा गया ”वृन्दावन“ है।
उस चैतन्य महाप्रभु के ”वृन्दावन“ को ढूढ़ती हुयी अनेक महिलाओं के जीवन के अनेक बसन्त व्यतीत हो चुके हैं, लेकिन आज तक वही वृन्दावन खोजने का क्रम जारी है और 10-15 वर्ष की अवस्था में वृन्दावन आयीं ये बेसहारा और असहाय विधवायें और परितक्यतायें अपने यौवन और शक्ति को खोकर वृद्ध और लाचार हो चुकी हैं, आज इन महिलाओं के पास सस्ते और सुरक्षित रहने को मकान नहीं हैं। जब वे वृन्दावन आयीं थीं, उस समय इन महिलाओं के पास पचास पैसे या एक रुपया महिना पर मकान किराये पर थे।
प्रमाणिकता है कि वृन्दावन मुख्य रूप से सात देवालयों की जागीर था तथा इन देवालयों में से अधिकतर बंगालियों से सम्बन्धित थे। उस समय श्री मदन मोहन जी, गोविन्द देव जी, राधा दामोदर, श्याम सुन्दर जी, राधारमण जी, गोपी नाथ जी व गोकुलानन्द जी मुख्य सात देवालय थे। वृन्दावन की सारी जायदाद श्री मदन मोहन जी महाराज व गोविन्द देव जी के हाथों थी। बताया जाता है कि इन मन्दिरों के भक्त धनी-मानी राजाओं व व्यक्तियों ने अपने जीवन के कुछ समय के लिए वृन्दावन वास के लिए बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण कराया था। इन लोगों में कुछ धनी मानियों ने अपनी जायदाद मन्दिर को समर्पित कर दीं इन जायदादों के साथ मन्दिरों को काफी अचल सम्पत्ति प्राप्त हो गयी।
कभी जागीरदार कहीं जाने वाली इन मन्दिरों की हालात वर्तमान में काफी खस्ता नजर आने लगी है, जहां पूर्व में इन जायदादों की कोठरियों में बंगाल से आयी कृष्ण भक्त परित्यक्तायें व विधवायें काफी सस्ते व कल्पना से परे आराम से जीवन व्यतीत करती थीं। आज वे ही बेघर होकर अनिश्चित भविष्य के दौर से मोक्ष की कल्पना से आशंकित हैं। जागीरदार मन्दिरों के कुछ मन्दिरों के महन्तों ने अपने मन्दिर की वेशकीमती जायदादों को भू-माफियों को ऊँची-ऊँची कीमत पर बेचकर ऐतिहासिकता को समाप्त करना शुरू कर दिया है। क्या इन मन्दिरों के पास अपने मन्दिरों की देखभाल करने की धनराशि नहीं है या वे वर्तमान की धनपतियों के काले धन की लालच में ऐशो आराम की जिन्दगी व्यतीत करने के लिए मंदिरों की जायदादों की आहुति चढ़ा रहे हैं।
कानूनी प्रक्रिया की दृष्टि से देखा जाये तो हिन्दू देवत्व सम्पत्ति अधिनियम के अनुसार किसी भी देवालय की देवत्व सम्पत्ति को बिना आगरा मण्डल के आयुक्त महोदय की स्वीकृति के बिना बेचा नहीं जा सकता है और न ही लीज पर ही दिया जा सकता है। इसके बाद भी तथाकथित सेवायत महन्त किस प्रकार से कानून का उल्लघंन करके किसकी शय पर मंदिरों की जायदादों से भू-माफिया और भू-पतियों को जायदाद बेच रहे हैं। क्या इसमें प्रशासन की मौन स्वीकृति है या भू-माफियाओं के हाथ इतने लम्बे हैं कि प्रशासन या शासन खामोश बैठकर वृन्दावन की एतिहासिकता को समाप्त करने पर तुला हुआ है। ब्रजवासियों का ध्यान अभी इस ओर नहीं गया है कि यदि वृन्दावन की ऐतिहासिकता समाप्त हो गयी तो क्या मन्दिरों की बजाय फ्लैटों या कोठियों को देखने के लिए वृन्दावन कौन आयेगा।
यदि बात विकास की हो तो बुरा नहीं लगेगा लेकिन जब वहां की संस्कृति को बिगाड़ कर उसका स्वरूप बदल देने की योजना हो तो अवश्य ही बुरा लगेगा। वर्तमान में वृन्दावन में जो फ्लैट संस्कृति शुरू हुई है उसकी वजह से वृन्दावन में लता-पता, कुण्ड-सरोवर, बाग-बगीचे, कुंज-निकुंज के अस्तित्व को मिटा दिया गया है। और होड़ शुरू हुई है दिल्ली की पांच सितारा संस्कृति से जो और अधिक विकृत है। आज वृन्दावन में ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी हो गयीं हैं। इमारतों के नीचे पार्किंग का धन्धा चल रहा है बहुमंजिली इमारतों में रहने, सोने, खाने-पीने के सभी सुख साधन मौजूद हैं गेस्ट हाउस बनाकर यात्रियों को ठहराकर यात्रियों की जेब हल्की करने का धन्धा वृन्दावन में आजकल जोरों पर है। इस प्रकार की मारा-मारी के बीच वृन्दावन में जमीनों के रेट आसमान छू रहे हैं। किसी जगह का मालिक कोई है, फर्जी झगड़ाकर मुकदमा अदालत में दाखिल करा दिया जाता है गुमराह करके स्टे आर्डर हासिल कर लिया जाता है। जब मालिक को इस घटना का मालुम होता है, तब तक वह जमीन या जायदाद बिककर असरदार लोगों के हाथ में पहुंच जाती है या उस पर जबरन कब्जा कर लिया जाता है। इस प्रकार के घटनाक्रम में पुलिस की भी अप्रत्यक्ष सहमति रहती है।
विलासिता से दूर भागते लोगों का पलायन उसी प्रकार से होने लगा है जिस प्रकार भौतिकवाद से दूर भागते अंग्रेजों को भारत में धार्मिकता में शान्ति व सुख मिलने लगा है। ऐसे ही लोग वृन्दावन में विलासिता से दूर आकर शनिवार व रविवार को वृन्दावन भ्रमण के आनन्द के साथ-साथ धार्मिक बनने का प्रयास कर रहे हैं। इन्हीं लोगों में से कुछ लोगों ने वृन्दावन में अपना स्थायी निवास बनाने का मन बना कर जमीनों को क्रय करना शुरू किया। इसकी देखा देखी अन्य स्थानीय छोटे-छोटे मध्यस्थों ने भी इस व्यवसाय को अपनाकर विवादास्पद जमीनों व मकानों को खरीदने-बेचने का धन्धा शुरू कर दिया है।
आज स्थिति यह है कि जिसको जहां जगह मिल रही है वहीं फ्लैट बनाये जा रहे हैं। बहुमंजिली इमारतों व फ्लैटों के निर्माण के लिए जमीनों की खरीद-फरोख्त का सिलसिला अधिक पुराना नहीं है। सर्वप्रथम रमणरेती मार्ग पर इस्काॅन मन्दिर की स्थापना से ही इस क्षेत्र में जमीनों व मकानों की कीमत दिन दूनी रात चैगुनी बढ़ने लगी। आज इस क्षेत्र में कीमत प्रतिवर्ग गज बीस हजार से पचास हजार रुपये के करीब है जो कि दिल्ली के किसी भी क्षेत्र की तुलना में सर्वाधिक है। 
सुनील शर्मा 9319225654