गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी कैसे सुरक्षित रह पायेंगे गोवर्धन में

चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी कैसे सुरक्षित रह पायेंगे गोवर्धन में
जब उनके मंदिरों की सम्पत्तियां साधु संत सुरक्षित नहीं।
गोवर्धन। गिरिराज धाम के विश्व विख्यात राजकीय मेले मुडि़या पूनौ की मुख्यतम परम्पराओं पर भूमाफियाई अतिक्रमणों के बादल छा रहे है। जिनके चलते अब भविष्य में इन परम्पराओं का निर्वहन होना भी असम्भव सा प्रतीत हो रहा है। वैष्णव सम्प्रदायी चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों के इस प्रमुख गुरू पर्व की परम्पराओं को सहेजे उनके सन्ताश्रम अब यहां के दबंग माफियाओं के चंगुल में फंस गये है। माफियाओं ने न सिर्फ उन वैष्णव सन्तों के आश्रमों और उनकी सम्पत्तियों पर अपना कब्जा कर लिया है बल्कि वे सन्तों को उन्हीं की सम्पत्तियों से बेदखल करने में जुटे है। प्रशासनिक अफसर राजकीय मेले की परम्पराओं के उन वाहकों को संरक्षण देना तो दूर उनकी रक्षा कर पाने में भी अक्षम नजर आ रहे है। यदि ऐसा ही रहा तो बृज की करीब पाँच सौ वर्ष पुरानी जिस सभ्यता और संस्कृति को सहेजने के लिये शासन ने महत्वपूर्ण प्रयास किये थे वे सब निरर्थक हो जायेंगे और वहां सब जगह भूमाफिया काबिज नजर आयेंगे। 
ऐसे ही भूमाफियाओं ने पूर्व में मुडि़या सन्तों की कस्बे के बरसाना रोड स्थित बेशकीमती भूमि को हड़प लिया था और अब दूसरे भूमाफियाओं ने फर्जी दस्तावेज बनाकर मुडि़या सन्तो के आश्रम को ही अपना घोषित करके साधुओं को आश्रम से बेदखल कर दिया और आश्रम पर अपना कब्जा जमा लिया है। प्रशासनिक अफसरों को इसकी जानकारी होते हुए भी वे मौन साधे चुप बैठे हुए है।
बृज के जिस एक मात्र पर्व को प्रदेश शासन ने राजकीय मेले का दर्जा देकर उसका संरक्षण करने का प्रयास किया उसी मेले की मुख्यतम परम्परा के संवाहक चैतन्य महाप्रभु के शिष्य एवं उनके मठ मन्दिर आदि इन दिनों क्षेत्रीय भूमाफियाओं की दबंगई के शिकार हो रहे है। विदित हो कि बृज के गिरिराज धाम में हर वर्ष आयोजित होने वाले विश्व प्रसिद्ध मुडि़या पूनौ मेले को प्रदेश सरकार ने राजकीय मेले का दर्जा देकर इसका संरक्षण संवर्धन करने बेहतर प्रयास किया है। ये पर्व पिछले करीब पाँच सौ वर्षो से बृजनिष्ठ सन्त चैतन्य महाप्रभु की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में गौड़ीय सम्प्रदाय के सन्तों द्वारा मनाया जाता है। आषाड़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरम्भ होने वाले पाँच दिवसीय इस मेले का समापन पूर्णिमा को सुबह श्री राधा श्याम सुन्दर मन्दिर एवं सांय श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु मन्दिर के गौड़ीय सन्तो द्वारा सिरों का मुण्डन कर संकीर्तन के साथ निकाली जाने वाली चैतन्य महाप्रभु की शोभायात्राओें के साथ होता है। इन प्राचीनतम मन्दिरों के पास मौजूद बेशुमार सम्पत्ति मन्दिरों के नाबालिक माने जाने वाले ठाकुर जी के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। मन्दिर के नाबालिक ठाकुर जी की सम्पत्ति कभी किसी खरीद फरोख्त, रहन गिरवी, किराये या पटटे पर नहीं नहीं दी जा सकती। इन सारे नियम कानूनों को ताक पर रखकर उप निबन्धक कार्यालयों मंे इनकी सम्पत्तियाँ लगातार खुर्द बुर्द की जा रही है। पूर्व में मुडि़या सन्तों के श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु मन्दिर के ठाकुर गोपाल जी की बरसाना रोड पर ईदगाह के बगल में स्थित अरबों रूपये कीमत की बेशकीमती भूमि पर भूमाफियाओं की नजर लगी और कस्बे के ही भूमाफियाओं ने फर्जी तरीके मन्दिर के तत्कालीन गौलोकवासी महन्त सुबल दास को बहला फुसलाकर उससे उस जमीन का फर्जी बैनामा अपने नाम कराकर उक्त भूमि पर कब्जा कर लिया। उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय ने कई बार एमवीडीए को आदेश देकर उक्त भूमि से अवैध कब्जे हटाने के आदेश दिये लेकिन अरबों की सम्पत्ति में से अपना हिस्सा पाकर एमवीडीए अधिकारी सर्वोच्च अदालतों के आदेशों को भी दरकिनार कर गये। 
अब भूमाफियाओं के एक नये मामले में मुडि़या सन्तों को उन्हीं के कस्बा स्थित आश्रम श्री राधा श्याम सुन्दर मन्दिर की बेशकीमती भूमि से बेदखल करने की साजिश सामने आयी है। माफियाओं ने ठाकुर श्री राधा श्याम सुन्दर जी की कभी भी न बेची जा सकने वाली सम्पत्ति का भी इसी प्रकार मन्दिर के महन्त तमालकृष्ण दास से बहला फुसलाकर फर्जी बैनामा करा लिया है। वास्तव में इस बार माफियाओं ने उक्त महन्त के बंगाली और अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को ढाल एवं हिन्दी भाषा के अल्प ज्ञान को तलवार बनाकर अपनी कारगुजारी को अंजाम दिया है। इस बार ये कारगुजारी महल हंसारानी निवासी गोवर्धन निवासी इज्जतदार व्यवसाय शिक्षण से जुड़े एक शिक्षक युवक ने अपने पिता और अपनी विवाहित बहिन आदि के साथ मिलकर अन्जाम दिया है। पहले तो उक्त तथाकथित शिक्षक ने कम्प्यूटर कक्षाओं के लिये आश्रम के महन्त से एक दुकान किराये पर मांगी और फिर धीरे धीरे धोखे से उस दुकान का पटटा करा कर उसमें दो मंजिला मकान बना लिया। बाद में धोखाधड़ी कर उसने मन्दिर के पूरे ट्रस्ट और ट्रस्टियों को बदलवा कर उसमें अपना पूर्णाधिकार बना लिया। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब उक्त तथाकथित शिक्षक ने महन्त को धोखे में रखकर उक्त आश्रम की पूरी सम्पत्ति का ही अपनी विवाहित बहिन के नाम बैनामा करा दिया। इस पूरे मामले मंे महन्त को बंगाली और अंगे्रजी भाषा का पूरा ज्ञान होने के कारण सारे कागजात हिन्दी भाषा में लिखकर महन्त के भरोसे का पूरा फायदा उठाया गया। ये सारा मामला तब खुल सका जब वे भूमाफिया उक्त आश्रम के मुडि़या महन्त और सन्तों को आश्रम से बेदखल करने लगे। अब उक्त मन्दिर के साधु मारे मारे अपनी जान बचाने को भागे फिर रहे। उन्हें डर भूमाफियाओं से डर सता रहा है कि कहीं इस सम्पत्ति के चलते उनकी हत्या न कर दी जाये। आश्रम के महन्त तमाल कृष्ण दास का कहना है कि पिछले काफी समय से वे बीमार चल रहे थे और इसी का फायदा उठा कर ये सब कारनामे अंजाम दिये जाते रहे। ऐसा नहीं है कि इस मामले की जानकारी जनपद के उच्चाधिकारियों को नहीं है बल्कि ये सारे कारनामे उन्हीं के संज्ञान में रखकर अंजाम दिये जा रहे है। अब देखना सिर्फ ये है कि संसार भर में विख्यात उत्तर प्रदेश के राजकीय मेले मुडि़या पूनौ की परम्पराओं का भविष्य में क्या हर्ष होने जा रहा है।
-----------------------------------------