शुक्रवार, 11 मई 2012

शस्त्र लाईसेन्स पाने वाले ठगे से रह गये। पत्रावलियां आखिर गयीं कहां।

जिलाधिकारी कैम्प कार्यालय और शस्त्र अनुभाग के बीच से फाइलें रहस्यमय ढं़ग से गायब

शस्त्र लाईसेन्स पाने वाले ठगे से रह गये। पत्रावलियां आखिर गयीं कहां।

सुनील शर्मा
मथुरा। जिलाधिकारी कार्यालय और शस्त्र अनुभाग के बीच से पूर्व जिलाधिकारी के जाते जाते पचास से अधिक स्वीकृत शस्त्र पत्रावलियों में से प्रशासनिक रिपोर्ट रहस्यमय ढं़ग से गायब होने से शस्त्र लाईसेंस प्राप्त करने वालों में आक्रोश होने के चलते यह मामला अब और गहराता जा रहा है। 

पूर्व जिलाधिकारी एन जी रवि कुमार का स्थानान्तरण गोरखपुर हो जाने के वाद यह मामला प्रकाश में आ सका जब लोग अपनी अपनी फाइलों की स्वीकृति देखकर शस्त्र लाईसेन्स लेने पहुँचे। लाईसेन्स की चाह रखने वाले लोगों के पेरों तले जमीन खिसक गई जब उन्हें पता चला कि उनकी फाइलों में से प्रशासनिक रिर्पोट रहस्यमय ढं़ग से गायव हो गयीं हैं। पूर्व जिलाधिकारी के जाने के वाद यह मामला वर्तमान जिलाधिकारी के लिये सिर का दर्द बन सकता है। 

राज्य में हुए विधान सभा चुनावों की घोषणा से पूर्व शस्त्र अनुभाग में लगभग तीन सौ शस्त्र पत्रावलियां विचाराधीन थी। जो तत्कालीन जिलाधिकारी एन जी रवि कुमार के आवास स्थित कैम्प कार्यालय तक सारी औपचारिकताऐं पूरी करती हुई पहुंच गंई। बताया जाता है कि उस समय बसपा के कुछ प्रतिष्ठित नेताओं के नजदीकी और सिफारिसियों की उसमें पचास से अधिक ऐसी पत्रावलियां थी जो बसपा नेताओं के दवाव में जिलाधिकारी कैम्प कार्यालय से पत्रावलियां स्वीकृत हो कर कलैक्ट्रेट स्थित शस्त्र अनुभाग कार्यालय में आ गयी थी। पत्रावलियां स्वीकृत होने की जानकारी होने पर शस््त्र लाईसेंस के इच्छुक लोगों ने पचास हजार से साठ हजार तक की एन0 एस0 सी0, दो-दो हजार के स्टम्प जैसी अन्य औपचारिक प्रक्रियाओं पर लगभग कुल 70-75 हजार रूपया प्रति आवेदन में लगा दिये। आवेदकों को उम्मीद थी कि आचार संहिता हटते ही वे हथियार रखने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों में सुमार हो जायेगें। उनकी हसरत पूरी न हो सकी जब उन्हें पता चला कि जब जिलाधिकारी एन जी रवि कुमार ने अपने कैम्प कार्यालय पर पुनः इन पत्रावलियों को वापस मांगवाया और इसी बीच जब यह पत्रावलियां पुनः शस्त्र अनुभाग कार्यालय पहुंची तो इनमें से प्रशासनिक स्वीकृति से जुड़े आदेश पत्र गायब पाये गये। जिसके कारण तमाम औपचारिकताओं के बावजूद आवेदकों कों शस्त्र लाईसेंस निर्गत नहीं किये जा सके। अब यह सवाल उठता है आखिर जिलाधिकारी के कैम्प कार्यालय और शस्त्र अनुभाग के बीच किसने इतनी हिम्मत दिखाई कि प्रशासनिक पत्रावलियां हीं गायव कर दीं। इसके पीछे की मंशा आखिर क्या थी और उसने ऐसा क्यों किया। अगर आवेदकों के विचाराधीन पत्रावलियों में कोई कमी थी तो प्रशासन ने इन आवेदकों की एनएससी, स्टाम्प आदि औपचारिकताऐं क्यों और किस आधार पर पूरी करवा ली। यह भी बताया जा रहा है कि शस्त्र अनुभाग सभी औपचारिक कार्यवाही पूरी कर लेने के बाद ही अन्तिम स्वीकृति के लिये पत्रावलियों को जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करता है जबकि इसके बीच पत्रावलियों पर जिलाधिकारी के अधीनस्थों की भी स्वीकृति होती है उसके वाद ही जिलाधिकारी अपनी चिडि़या बैठाते हैं तब कहीं जाकर आवेदक को शस्त्र रखने का लाईसेन्स मिलता है। शस्त्र लाईसेन्स पाने के लिए आवेदक को कहा कहा क्या क्या नहीं करना पड़ता है यह किसी से छुपा नही है। फिर भी यदि लाइसेन्स नहीं मिले तो आवेदकों का आक्रोश जायज है। ऐसे शस्त्र आवेदक मौजूदा जिलाधिकारी के समक्ष एक समस्या बने हुए है। अब देखना है कि नये जिलाधिकारी इस समस्या का क्या हल निकालते हैं।

सुनील शर्मा मथुरा

09319225654