बुधवार, 23 अगस्त 2023
दीघ्र जीवन की कहानियाँ
रामकृष्ण देव की तीन ही फोटो पूरे विश्व में सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं, किन्तु उनकी और भी पाँच-पाँच फोटो हैं, यह किसी को नहीं पता था। इन पाँचो फोटो के विषय में हम आगे चल कर चर्चा करेंगे। हम पहले-पहले तीन फोटो के विषय में जानते हैं, दीघ्र जीवन की कहानियाँ में प्रथम फोटो केशव चन्द्र सेन के निवास कमल कुटी पर उस समय ली गयी थी, जब रामकृष्ण देव ध्यान मुद्रा में थे तथा पीछे से उन्हें पकड़े हुए हैं उनके भांजे विनय मुखोपाध्याय, उनकी दूसरी तस्वीर खींची गयी थी श्रीराधा बाजार के एक स्टुडियों में यह फोटो रामकृष्ण देव एक स्टेन्ड के सहारे हाथ रख कर खडे हैं, मगर तीसरी तस्वीर जो पूरे विश्व में विख्यात हैं
इस तस्वीर को खीचा गया था दक्षिणेष्वर मंदिर के राधा कान्त, मंदिर के प्रांगण में, उस समय बंगाल के एक नामी फोटोग्राफर अविनाश चन्द्र दा ने यह फोटो खींची थी, परन्तु इस फोटो को खीचते समय बड़ी मुसीबत खड़ी हो गयी। रामकृष्ण देव के फोटो खींचने की व्यवस्था भवनाथ नामक एक प्रिय भक्त ने की थी, रामकृष्ण देव किसी भी तरह से अपना प्रचार प्रसार नहीं चाहते थे, फोटो खींचने के लिए तो वह किसी भी तरह से राजी नहीं होते थे।
जब उन्होंने फोटोग्राफर को देखा तो वह वहाँ से सीधे चल दिये राधा कान्त मंदिर की ओर, और उनके पीछे-पीछे भवनाथ व वह फोटोग्राफर उस समय यह लुका छुपी के मध्य हाजिर हो जाते हैं नरेन्द्र नाथ तब उन्होंने तस्वीर खीचने की सभी व्यवस्था खुद करने की जिम्मेदारी ले ली। नरेन्द्र नाथ जी ने जिम्मेदारी तो ले ली मगर यह व्यवस्था होगी कैसे यह सभी सोच रहे थे कि रामकृष्ण देव तो केमरा देखकर ही विगड जा रहे थे। तब एक युक्ती लगाई गई नरेन्द्र नाथ उनके साथ कुछ बातचीत में व्यस्त हो गये, बातचीत का विषय था ईश्वर व भगवत कथा, भगवत चर्चा शुरू होते ही रामकृष्ण देव समाधिस्थ हो गये, इसी समय का अवसर भांपकर फोटोग्राफर को इशारा किया गया नरेन्द्र नाथ जी की तरफ से, फिर एक समस्या उत्पन्न हो गयी कि समाधिस्थ अवस्था में रामकृष्ण देव का शरीर एक तरफ झुक गया था।
इस प्रकार की तस्वीर खींचना ठीक नहीं होगा जानकर अविनाश बाबू ने रामकृष्ण देव के शरीर को पकड़ कर थोड़ा सा सीधा करने की कोशिश की जब उनके मुह को पकड़ कर थोड़ा सीधा करने का प्रयास अविनाश बाबू करने लगे तो उन्हें रामकृष्ण देव का शरीर इतना हलका महसूस हुआ जैसे मानों किसी पतले कागज की भाँति हां, अविनाश बाबू घबरा गये नरेन्द्र देव भी इस दृश्य को देख कर उस तरफ दौड लिये फोटोग्राफर को निर्देश दिया कि रामकृष्ण देव जैसे हैं वैसे ही फोटो खींच लें, फिर किसी ने मारे डर के उनके शरीर को हाथ भी नहीं लगाया, दूर से ही तस्वीर खीच कर फोटोग्राफर हट गये।
रामकृष्ण परमहंस को जरा सा भी आभास नहीं हो पाया, कुछ दिनों के बाद उन तस्वीरों के प्रिन्ट निकलवा कर लाये गये उन फोटोग्राफ को देखकर रामकृष्ण देव खूब आनन्दित हुए बाद में अपने इसी फोटोग्राफ को स्वयं रामकृष्ण देव फूल चढ़ा कर पूजा भी करने लगे थे, इनको देखकर उन्हें आनन्द जरूर हुआ मगर बाद के फोटो देखकर उन्हें अच्छा नही लगा।
1883 से लेकर 1886 साल के बीच रामकृष्णदेव के और पाँच फोटो लिये गये थे वह उन्हें जरा भी पसन्द नहीं आये जो तस्वीर उन्हें पसन्द नही आयी वो तस्वीर किसी भी तरह से प्रचार का हिस्सा न बनें, यह बात गिरीश चन्द्र बोस की समझ में आ गयी और उन्होंने उन पाँचों तस्वीरों के नैगेटिव्स को लेकर टुकडे-टुकड़े करके गंगा में वहा दिये, फिर उन तस्वीरों का तो कोई अस्तित्व ही नहीं बचा था।
घटना केवल यहीं तक नहीं थी रामकृष्ण देव के प्रचलित तस्वीर में जो उनकी बैठी हुई तस्वीर है उसका नैगेटिव्स भी धीरे-धीरे समय के साथ खराब हो गया था, उसे कैसे भी ठीक नहीं किया जा सकता था।
ऐसी स्थिति में उस नैगेटिव्स को रामकृष्ण मिशन के स्वामी चेतना नन्द जी के हाथ में ब्रज किशोर सिन्हा ने वह नैगेटिव्स सौंप दिया, समय था 1982 के साल का उस समय वह विक्टोरिया मैमोरियल के क्यूरेटर थे उस नैगेटिव्स को लेकर वह जोन हेन्स के पास पहुंचे यह वह व्यक्ति थे जिन्होंने 65 वर्षों तक आर्ट और डिजायन पर कार्य किया था। वह एक नामी गिरामी आर्टिस्ट थे। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि राम कृष्ण देव का नैगेटिव्स उनके हाथ में आयेगा।
उन्होंने कड़ी मेहनत से इस नेगेटिव्स पर कार्य किया। जोन हेन्स भारतीय दर्शन के गहराई से अनुरागी थे, वह हिन्दू सनातन धर्म के प्रति आस्था रखते थे। रामकृष्ण देव का औरीजनल नैगेटिव्स जो उनके पास उनके हाथ में आएगा यह उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था, यह नैगेटिव्स हाथ में आने के बाद पूरे दो वर्षों की कड़ी मेहनत से जोन हेन्स ने एकाग्रता के साथ कड़े परिश्रम से उस नैगेटिव्स से समस्त काले दाग, डॉट्स एवं उसमें अन्यान्य कमियों को उन्होंने दूर किया, जबकि 100 वर्ष पुराने मूल नैगेटिव्स के उपर उन्होंने कोई भी परिवर्तन नहीं किया उसके बाद उसी नैगेटिव्स से फिर रामकृष्ण परमहंस जी के फोटो की कॉपी तैयार होने लगी।
आज समूचे विश्व में यदि रामकृष्ण देव जी की तस्वीर देखने को मिल रही है इसके पीछे यही जोन हेन्स हैं जिनकी बजह से तैयार किये गये नैगेटिव्स से यह सम्भव हो सका। बंगाल के अविनाष चन्द्र दा के नैगेटिव्स से तमाम देशों में घूम-घूम कर फिर भारत देश में आकर प्रतिष्ठित हुए रामकृष्ण परमहंस देव। उन्होंने और उनकी इस तस्वीर ने मिलकर एक आर्ष्चयजनक सफर तय किया, जिससे सारा विश्व रामकृष्ण देव को जान सका।
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