ऐसे भी विधायक हुए जिन्होंने अपने सिद्धान्तों के चलते मंत्री पद ठुकरा दिया था
सुनील शर्मावृंदावन (मुथुरा)। सत्यनिष्ठा और गांधीवादी चरित्र के लिए जाने जाने वाले शिक्षक बाल शिक्षक संघ के जनक गुरु कन्हैया लाल गुप्त जिन्होंने अपने सिद्धान्तों से कभी समझोता नहीं किया और शिक्षामंत्री के पद तक को भी ठुकरा दिया था। जिन्होंने वृंदावन की एक छोटी सी गली में रहकर अपने जीवन के आखिरी दिन बड़े ही कष्ट में काटे थे। जिन्होंने मथुरा के लिये आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रागांधी के नसबंदी अभियान के खिलाफ गांधीवादी तरीके से विरोध का रास्ता चुनकर आन्दोलन की शुरूआत की थी और आमजन की आवाज बने थे। उस गांधीवादी नेता को आज राजनीतिज्ञ, समाजसेवियों, शिक्षाविदों ने ही भुला दिया।
आज के समय यह मान लिया जाता है कि राजनैतिक पृष्ठभूमि या राजनैतिक परिवार से आने वाला व्यक्ति ही राजनीति में आ सकता है मगर इस मिथक को कन्हैया लाल जी ने तोड़ा और आम जनता के बीच से उठकर आम जनता की आवाज बने थे। अब कोई भी आम जनता की आवाज बन कर कार्य नहीं करना चाहता है आज सिर्फ बड़ी लम्बी चौड़ी उंची गाडी में बैठ कर सफेद कुर्ता पायजामा पहन कर अपने आपको नेता सिद्ध करने में लगे रहते हैं, जिसका परिणाम है कि राजनीति इतनी दूषित व भृष्ट हो चुकी है।
कन्हैया लाल गुप्त जी एक सच्चे ईमानदार इंसान थे। उन्होंने अपना जीवन दूसरों की भलाई व समाजसेवा करते हुए ही निकाला। वह जीवन के आखिरी पड़ाव तक वृद्धावस्था के चलते वृन्दावन की कुंज गलियों में एक छोटे से मकान में समय गुजारते रहे। किसी भी प्रचार प्रसार व सम्मान से दूर रहने वाले कन्हैयालाल गुप्त आपातकाल के हटते ही जनता पार्टी की टिकट पर जनवरी 1977 में हुए 7 वीं विधानसभा चुनावों में 37813 रिकार्ड मतों से विजयी होकर लखनऊ तक पंहुचे लेकिन श्री गुप्त को लखनऊ की राजनीति कभी रास नहीं आई शिक्षामंत्री बनाये जाने का प्रस्ताव भी उन्होंने उस समय ठुकरा दिया था। जब फरवरी 1980 में विधानसभा पुनः भंग हो गई वह मात्र 969 दिनों तक ही विधानसभा के सदस्य रह सके।
आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रागांधी के नसबंदी अभियान के खिलाफ गांधीवादी तरीके से विरोध का रास्ता चुनकर उन्होंने आन्दोलन की शुरूआत की थी। इमरजेंसी के दौरान ही कन्हैयालाल जी को 25 अगस्त 1976 को चम्पा अग्रवाल इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य कक्ष से ही गिरफ्तार कर लिया गया था।
इसके वाद कॉलेज के लगभग तीन दर्जन से अधिक शिक्षकों और सैकड़ों छात्रों ने उनकी गिरफ्तारी के विरोध में जुलूस निकाला और सड़कों पर उतर आये थे, मथुरा की आम जनता का भी उनके प्रति इतना आदर सम्मान था कि हर कोई उस समय गुप्त जी की गिरफ्तारी का विरोध करने को सड़कों पर आन्दोलन करने को मजबूर हो गया था।
चम्पा अग्रवाल इन्टर कॉलेज में सन् 1967 से लेकर 1977 तक प्रधानाचार्य के पद रहे गुप्त जी की ईमानदारी, निर्भीकता के चर्चे आज तक लोग करते हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में विद्यालय में अनेक आवारा तथा उपद्रवी छात्रों को ठीक रास्ते पर लाने का प्रयास किया यहां तक कि एक छात्र जिसका गन्डागर्दी में काफी नाम था, उसको कॉलेज से बाहर सड़क पर डाल कर पिटाई तक कर दी थी। उनके रहते कॉलेज में छात्रों में काफी भय रहता था। उनके कार्यकाल में विद्यालय का नाम केबल जनपद भर में ही नहीं था बल्कि पूरे प्रदेश में कॉलेज की अपनी एक पहचान थी। 1980 में एक दिन जब कॉलेज में परीक्षाओं का समय था तब उन्हें पता चला कि छात्र अपने साथ नकल करने की सामग्री लेकर आये हैं तब उन्होंने प्रार्थना के समय छात्रों को इतना भावुक होकर कहा कि सभी छात्र जो नकल सामग्री लेकर आये थे, सभी ने नकल सामग्री को प्रार्थना के समय ही कॉलेज के फर्स पर ही छोड़ दिये थे।
कन्हैयालाल गुप्त जी अपनी लोकप्रियता के चलते लगभग 44 संस्थाओं के महत्वपूर्ण पद पर आसीन थे। लेकिन उन्होंने अपने स्वभाव के कारण राजनीति से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति पा ली थी और भगवान श्रीकृष्ण राधा की रास स्थली वृन्दावन को अपने वास करने का हेतु बना लिया था। उन्होंने शरीर त्यागने तक कभी भी वृन्दावन से बाहर नहीं गये। जब तक वह जीवन के आखिरी पड़ाव तक वृद्धावस्था के चलते वृन्दावन की कुंज गलियों में एक छोटे से मकान में समय गुजारते रहे। किसी भी प्रचार प्रसार व सम्मान से दूर रहे और भगवान भजन में ही अपना जीवन व्यतीत किया।
श्री कन्हैया लाल जी मूलतः कस्वा माँट के रहने वाले थे। गुप्त जी शिक्षक होने के नाते दो बार विधान परिषद में एमएलसी भी रह चुके थे। उन्होंने हमेशा शिक्षा में सुधार लाने के लिए प्रयास किये इसके लिए गठित कोठारी आयोग के सदस्य भी रहे। वृंदावन में स्थित टीबी सेनेटोरियम के संस्थापक के रूप में भी उन्हें आज भी जाना जाता है।
कन्हैया लाल जी ने समाज में जो छाप छोडी है उसके कारण ही लोग आज तक मथुरा के गांधी के रूप में उन्हें जानते हैं। मगर कन्हैया लाल जी इस बात से काफी दुखी होते थे कि उनकी तुलना महान देशभक्त व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से की जाती है। इसके लिए भी उन्होंने हमेशा पूर्व के लेखकों से अपनी वेदना व्यक्त की थी। कन्हैया लाल जी के दो पुत्र हैं जो आज भी बाहर नौकरी करते हैं। उनकी सेवा में बांके बिहारी अग्रवाल ने अन्तिम समय तक उनका साथ दिया। जीवन के अन्तिम समय में कन्हैया लाल जी 90 वर्ष की अवस्था में जब उन्हें चलना फिरना भी मुस्किल हो रहा था और शारीरिक दुर्बलता के चलते अपनी पेंशन की राशि तक बैंक से नहीं निकाल पाते थे क्यों कि चैक पर हस्ताक्षर करते समय उनके हाथ कांपते थे जिससे हस्ताक्षर न मिल पाने के कारण भी बैंक कर्मी उनके चैकों में फर्क बता कर लौटा दिया करते थे। अन्तिम समय में उनका जीवन काफी कष्ट में बीता, आज न किसी शिक्षक संघ को न किसी सामाजिक संस्था को न ही किसी राजनैतिक नेता को उनके द्वारा किये गये कार्यों की याद आती है न ही उन्हें आज के समय में याद किया जाता है।
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