एक बार एक बूढ़ी महिला गांव के एक पाठशाला के पीछे अपने गधे को चरा रही थी। गधा हरी हरी घास खा रहा था। बुढ़िया ने गधे को चराते-चराते पाठशाला में पढ़ा रहे मास्टर जी की आबाज सुनाई दी। मास्टर जी अपने बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते कह रहे थे कि ‘‘मैंने अब तक तुम जैसे कई गधों को इंसान बनाया है समझे’’ यह बात बूढ़ी महिला के कानों में पड़ी और वह स्कूल की छुटटी होने का इन्तजार करने लगी, कुछ समय वाद जब स्कूल की छुटटी हो गयी तो वह बडे़ संकोच के साथ मास्टर जी के पास गयी, और बोली कि मास्टर जी मास्टर जी आप अभी बच्चों को बता रहे थे कि आपने बडे़-बडे़ गधों को इन्सान बनाया है, क्या यह सच है, चालाक मास्टर ने तुरन्त जबाव दिया, कि हाँ मैंने कितने ही गधों को इंसान बनाया है। तब उस बूढी महिला ने अपने गधे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि क्या यह मेरा गधा भी कभी इंसान बन सकेगा ?
मास्टर ने तुरन्त उत्तर दिया कि क्यों नही यह भी जल्द इंसान बन जायेगा। बुढ़िया ने कहा कि इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? मास्टर ने उत्तर दिया चिन्ता की कोई बात नहीं है, केवल गधे को मेरे पास छोड़ना पडे़गा। बुढ़िया बड़ी आशा और भरोसे के साथ गधे को मास्टर के पास छोड़ कर चली गयी। जाते समय फिर बुढ़िया ने पूछा कि मैं अपने इस इंसान बने गधे को कब लेने आंऊ ? मास्टर ने तुरन्त कहा कि कुछ समय लगेगा। बुढ़िया गधे को मास्टर के पास छोड़ कर वहां से चली गयी।
कुछ समय के वाद बुढ़िया फिर मास्टर के पास आयी और पूछने लगी कि क्या मेरा गधा इंसान बन गया है ? चालाक मास्टर ने तो उस गधे को बेच कर पैसे बना लिये थे। सो उसने बुढ़िया से कहा कि अभी और समय लगेगा। तुम चिन्ता न करो एक न एक दिन तुम्हारा गधा इंसान अवश्य बन जायेगा। बुढ़िया चली गयी। मास्टर इस प्रकार कई वार उस बुढ़िया को कोई न कोई नया बहाना बना कर वहां से चलता कर देता था। एक दिन थक हार कर बुढ़िया ने जब मास्टर को भला-बुरा कहा और अपना गधा बापस करने को कहा तो मास्टर ने क्या करे ना करे की स्थिति में आकर बुढ़िया को जबाव दिया कि तेरा गधा तो बहुत बड़ा इंसान बन गया है वह तो अब मेरी बात भी नहीं सुनता है, मैंने कई वार तुम्हारे बारे में उसे बताया है वह कुछ सुनता ही नहीं है। बुढ़िया ने मास्टर से कहा कि तुम मुझे उसके पास ले चलो शायद मुझे देख कर उसे मेरी याद आ जाये और वह मेरे साथ चलने को तैयार हो जाये।
मास्टर बड़ी विकट समस्या में पड़ गया कुछ न सूझा तो मास्टर ने उस बुढ़िया से कहा कि देखो मैं तुम्हें वहां ले तो जाऊंगा मगर, मैं उसके सामने नही जाऊंगा। बुढ़िया राजी हो गयी मास्टर उसे सीधे कचहरी में ले गया और एक कमरे में एक उंचे स्थान पर बैठे व्यक्ति की तरफ इशारा कर, कि वह देख तेरा गधा वहां कितने उंचे पर बैठा है। वह इंसान ही नही वह बहुत ही बुद्धिमान है सबको न्याय देता है। अब वह तेरी बात नही सुनेगा। तू यहां से चल, मगर बुढ़िया अपने गधे से बिना मिले जाना नही चाहती थी। उसने वहां दरवाजे के अन्दर जाकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि क्यों रे गधे, क्यों रे गधे मैंने तुझे इंसान बनवाया, आज तू ही मुझे भी नहीं पहचानता है। इस पर कुर्सी पर बैठे इंसान को बहुत बुरा लगा और वह उस महिला के पास आया और अपनी इज्जत बचाने को बुढ़िया के पैर छुए और उसका आर्शीवाद लिया। बुढ़िया को अनजाने में ही सही कि मैरा अपना गधा आज इंसान बन गया है और लोगों की मदद करता है, लोगों को न्याय देता है। बुढ़िया इसी संतोष के साथ वहां से चली जाती है।
मास्टर ने तुरन्त उत्तर दिया कि क्यों नही यह भी जल्द इंसान बन जायेगा। बुढ़िया ने कहा कि इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? मास्टर ने उत्तर दिया चिन्ता की कोई बात नहीं है, केवल गधे को मेरे पास छोड़ना पडे़गा। बुढ़िया बड़ी आशा और भरोसे के साथ गधे को मास्टर के पास छोड़ कर चली गयी। जाते समय फिर बुढ़िया ने पूछा कि मैं अपने इस इंसान बने गधे को कब लेने आंऊ ? मास्टर ने तुरन्त कहा कि कुछ समय लगेगा। बुढ़िया गधे को मास्टर के पास छोड़ कर वहां से चली गयी।
कुछ समय के वाद बुढ़िया फिर मास्टर के पास आयी और पूछने लगी कि क्या मेरा गधा इंसान बन गया है ? चालाक मास्टर ने तो उस गधे को बेच कर पैसे बना लिये थे। सो उसने बुढ़िया से कहा कि अभी और समय लगेगा। तुम चिन्ता न करो एक न एक दिन तुम्हारा गधा इंसान अवश्य बन जायेगा। बुढ़िया चली गयी। मास्टर इस प्रकार कई वार उस बुढ़िया को कोई न कोई नया बहाना बना कर वहां से चलता कर देता था। एक दिन थक हार कर बुढ़िया ने जब मास्टर को भला-बुरा कहा और अपना गधा बापस करने को कहा तो मास्टर ने क्या करे ना करे की स्थिति में आकर बुढ़िया को जबाव दिया कि तेरा गधा तो बहुत बड़ा इंसान बन गया है वह तो अब मेरी बात भी नहीं सुनता है, मैंने कई वार तुम्हारे बारे में उसे बताया है वह कुछ सुनता ही नहीं है। बुढ़िया ने मास्टर से कहा कि तुम मुझे उसके पास ले चलो शायद मुझे देख कर उसे मेरी याद आ जाये और वह मेरे साथ चलने को तैयार हो जाये।
मास्टर बड़ी विकट समस्या में पड़ गया कुछ न सूझा तो मास्टर ने उस बुढ़िया से कहा कि देखो मैं तुम्हें वहां ले तो जाऊंगा मगर, मैं उसके सामने नही जाऊंगा। बुढ़िया राजी हो गयी मास्टर उसे सीधे कचहरी में ले गया और एक कमरे में एक उंचे स्थान पर बैठे व्यक्ति की तरफ इशारा कर, कि वह देख तेरा गधा वहां कितने उंचे पर बैठा है। वह इंसान ही नही वह बहुत ही बुद्धिमान है सबको न्याय देता है। अब वह तेरी बात नही सुनेगा। तू यहां से चल, मगर बुढ़िया अपने गधे से बिना मिले जाना नही चाहती थी। उसने वहां दरवाजे के अन्दर जाकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि क्यों रे गधे, क्यों रे गधे मैंने तुझे इंसान बनवाया, आज तू ही मुझे भी नहीं पहचानता है। इस पर कुर्सी पर बैठे इंसान को बहुत बुरा लगा और वह उस महिला के पास आया और अपनी इज्जत बचाने को बुढ़िया के पैर छुए और उसका आर्शीवाद लिया। बुढ़िया को अनजाने में ही सही कि मैरा अपना गधा आज इंसान बन गया है और लोगों की मदद करता है, लोगों को न्याय देता है। बुढ़िया इसी संतोष के साथ वहां से चली जाती है।
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