सोमवार, 1 अगस्त 2011

आपातकाल में पूरा देश व्यवस्थित सा दिखने लगा था।

किसी ने सही कहा कि आपातकाल में पूरा देश व्यवस्थित सा दिखने लगा था। अधिकारी कर्मचारी सही समय व सही कार्य करने के लिये विवश हो गये थे। मगर कुछ गलतियां तो हुंई वह नीचे स्तर पर आपातकाल लगाने के पीछे की मंशा मेरे हिसाव से ठीक थी । आज जो हालात देखने को मिल रहे हैं उसमें न तो आम आदमी के काम सही ढंग से हो पा रहे हैं न ही खान पान की वस्तुएं शुद्ध हैं। और न ही शुद्ध हवा है न शुद्ध पानी पीने को मिल रहा है दूध भी जो सबसे महत्व पूर्ण वस्तु है वह भी शुद्ध नही है । हम कह सकते है कि जिससे हमारी पीढी को मजबूती मिलेगी वह भी शुद्ध नही है शिक्षा के क्षेत्र में क्या हो रहा है हर तरफ देखिये आपको भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखाई देगा कल तक जिनके पास कुछ भी नही था वह अव करोड़ो अरबों में खेल रहे हैं आखिर कैसे और कहां से आ रही है यह अफरात दौलत। देश का हर नेता आज अरबों खरबों में खेल रहा है। चुनावों में प्रत्याशियों से सम्पत्ति का ब्यौरा तो मांगा जाता है पर चुनाव आयोग प्रत्याशियों से आय के श्रौत के बारे में क्यों नहीं पूछता है।
हमारे हिसाव से देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये पुलिस का राष्ट्रीय करण जरूरी हो गया है एक प्रान्त की पुलिस को दूसरे प्रान्तों मे भेजा जाना चाहिये। इससे भ्रष्टाचार को समाप्त करने कुछ हद तक मदद मिलेगी।

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