शनिवार, 1 मई 2021

चमत्कारी सन्त पागल बाबा

 मथुरा। (सुनील शर्मा ) वृन्दावन में तमाम सन्त है जिनके चमत्कार के किस्से हमेशा चर्चा में रहते हैं एक से एक चमत्कारी सन्त ब्रज में हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर ब्रजवासियों को अपना चमत्कार दिखाया है। आज भी अनेक सन्त हैं जिनके आश्चर्यजनक चमत्कार को यहां आने वाले श्रद्धालु भक्त अक्सर देखते रहते हैं। जैसा कि भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि लीला भूमि अपने आपमें एक चमत्कार से कम नहीं है हर जगह आपको कुछ न कुछ आश्चर्य से भरा हुआ दिखाई देगा। कहा जाता है यहाँ कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण का वास है और यह लीला भूमि हर पल आनन्दित करती रहती है, यहां हजारों मंदिर स्थापित हैं फिर भी यहां प्रतिवर्ष कोई न कोई नया मंदिर बन कर तैयार हो ही जाता है। जिसमें वृन्दावन में स्थित एक मंदिर हर तरह से चमत्कारी मंदिर है। जो पागल बाबा के मंदिर के नाम से ख्याति प्राप्त है।


हर एक मंदिर कृष्ण कन्हैया और राधारानी से जुड़ी यादों से बना है जिसमें उनकी लीलाओं का वर्णन अलग-अलग रूपों में देखने को मिलता है।  यहां के प्रत्येक मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है। लोग यहाँ भगवान की लीला भूमि को करीब से देखने उसके आश्चर्य को स्पर्श करने और स्वयं उस चमत्कार का अहसास करने के लिए यहां आते रहते हैं।

आज भी सभी लोग मानते हैं कि जब-जब धरती पर पाप बड़ा है, तब-तब भगवान ने विश्व के कल्याण के लिए अवतार लिए हैं और जब भी भक्तों ने अपने अन्तर मन से भगवान को पुकारा है तो वे स्वयं उसकी मदद करने के लिए आ ही जाते हैं। लेकिन शायद ही आपने कभी सुना होगा कि स्वयं  भगवान अपने किसी भक्त के लिए कोर्ट में भी पेश हुए हों। इस वात में सचाई है कि वृन्दावन में एक ऐसा भी मंदिर है जहां की एक कहानी आपको आश्चर्य चकित कर सकती है। इस मंदिर के निमार्ता और उनकी कहानी दोनों ही बेहद दिलचस्प है। 


तो इस दिलचस्प मंदिर के विषय में जानते हैं कि इस भव्य मंदिर के बारे में जो श्रीपागल बाबाजी महाराज से जुड़ा चम्तकारी मंदिर पागल बाबा के नाम से प्रसिद्ध है, जो उनके एक भक्त को समर्पित है। आपको बता दें कि पागल बाबा मंदिर मथुरा वृन्दावन मार्ग पर स्थित है। इसके बारे में एक कथा जनमानस में आज भी प्रचलित है, जिसके अनुसार एक गरीब ब्राह्मण जो कि श्रीकृष्ण का बहुत बड़ा भक्त था। वह पूरा दिन ठाकुर जी का नाम जपता रहता था। उसके पास जो कुछ भी था या यूं कहें कि जितना भी रूखा-सूखा उसे मांग कर खाने को मिलता है वे उसे भगवान की मर्जी समझकर भगवान को अर्पित करके स्वयं खुशी-खुशी ग्रहण करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा था।  


एक समय उसे कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो वो किसी साहुकार से पैसे लेने के लिए गया। साहुकार ने उसे पैसे देते हुए कहा कि उसे जल्द ही पैसे लौटाने होंगे। उसकी बात मानकर वे पैसे लेकर घर आ गए। वह ब्राह्मण हर महीने नियम से किश्त का हिसाब करके साहुकार के पैसे लौटाने जाते थे। आखिरी किश्त के थोड़े दिन पहले ही साहुकार ने पैसे न लौटाने का एक पत्र उसके घर भिजवा दिया। यह देखकर ब्राह्मण बहुत परेशान हुआ और साहुकार से विनती करने लगा लेकिन साहुकार नहीं माना। मामला बड़ते बड़ते कोर्ट में पहुंच गया। एक दिन ब्राह्मण ने जज से अनुरोध करते हुए कहा कि एक किश्त के अलावा मैंने साहुकार का सारा कर्जा अदा कर दिया है। यह साहुकार झुठ बोल रहा है, इतना सुनकर साहुकर क्रोधित होकर जज साहब के सामने ही ब्राह्मण से कहने लगा कि कोई गलत व्यवहार नहीं किया है जिसके सामने आपने मुझे धन लौटा हो उसको सामने लाओ। इतना सुनकर ब्राह्मण सोच में डूब गया और सोचने लगा कि यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मैंने साहुकार को जब जब धन लौटाए उसके और मेरे अलावा तो किसी ने मुझे पैसे देते हुए देखा ही नहीं।

इस बारे में बहुत सोचते हुए ब्राह्मण को अंत में अपने भगवान को याद करते हुए उसने कृष्ण कन्हैया का नाम लिया। यह सुनकर पहले तो जज साहब कुछ हैरान हुए लेकिन बाद में ब्राह्मण से उनका पता मांगा। ब्राह्मण के कहने पर एक नोटिस बांके बिहारी के मंदिर में भेजा गया। पेशी की अगली तारीख पर एक बूढ़ा आदमी कोर्ट में पेश हुआ और ब्राह्मण की तरफ से गबाही देते हुए बोला कि जब ब्राह्मण साहुकार के पैसे लौटाता था तब मैं उसके साथ ही होता था। बूढ़े आदमी ने रकम वापिस करने की हर तारीख को कोर्ट में मुंह जबानी बताया जैसे उसे सब कुछ एक एक तारीख के हिसाब से याद हो और साहुकार के खाते में भी बूढ़े आदमी द्वारा बताई गई रकम की तारीख भी सही लिखी निकली। साहुकार ने राशि तो दर्ज की थी लेकिन नाम फर्जी लिखे थे। जज साहब ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दे दिया।


लेकिन जज साहब अब तक हैरान थे कि इतना बूढ़ा आदमी इतनी तारीख कैसे याद रख सकता है। जज साहब ने उसके बारे में उस ब्राह्मण से पूछा कि यह बूढ़ा आदमी कौन है, ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि वह सब जगह रहता है लोग उन्हें श्याम, कान्हा, कृष्ण आदि नामों से जानते हैं। इसके बाद जज साहब ने फिर से उसको पूछा कि वह बूढ़ा आदमी कौन था फिर ब्राह्मण ने कहा सच में उन्हें पता नहीं था कि वह कौन थे।


जज साहब को इस बात से बड़ी हैरानी हुई, उसके मन में सवाल पर सवाल आ रहे थे कि आखिर वह आदमी कौन था, इसी पहेली को सुलझाने को जज साहब स्वयं अगले दिन बांके बिहारी के मंदिर में पहुंच गये। वह जानना चाहते थे कि आखिर कल जो कोर्ट में आदमी आया था, वह कौन था। मंदिर के पुजारी से जब जज साहब ने पूछा और सारे घटना क्रम की जानकारी करते हुए बात की तो पुजारी ने उन्हें बताया कि जो भी चिट्ठी-पत्री यहां आती है उसे भगवान के चरणों रख दिया जाता है। जज साहब ने उस बूढ़े आदमी के बारे में भी पूछा लेकिन पूजारी ने कहा ऐसा कोई भी आदमी यहां नहीं रहता है। यह सब बातें सुनने के बाद जज साहब समझ गए कि वह साक्षात श्रीकृष्ण ही मेरी कोर्ट में पेश हुए थे।  इस घटना के बाद जज साहब इतना हक्का-बक्का रह गये और अपने आपको धन्य मानते हुए अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया और यहां तक कि उन्होंने अपना घर परिवार भी छोड़ दिया और एक फकीर बन गये।  लोगों की मान्यता के अनुसार बहुत सालों बाद वह जज साहब पागल बाबा के नाम से वृन्दावन में वापिस आ गये और उन्होंने पागल बाबा के मंदिर का निर्माण करवाया तब से ये मंदिर पागल बाबा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। 


इस मंदिर के निमार्ण के वारे में एक और मान्यता यह भी है कि जब जज साहब को पता लगा कि उनके सामने साक्षात श्रीकृष्ण ही कोर्ट में पेश हुए थे। तब से वह कृष्ण कन्हैया को ढूंढने के लिए इतने अधीर हो गये कि अपनी सुध बुध खो बैठे थे इस घटना ने उन्हें पागल सा कर दिया था। इसके बाद वह जिस किसी भंडारे में जाते थे वहां से पत्तलों की जूठन उठाते थे और उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी को अर्पित करते थे और आधा खुद खाते थे उन्हें ऐसा करते देख लोग उनके खिलाफ हो गए और लोगों ने उन्हें मारना पीटना भी शुरू कर दिया लेकिन वो अपना सुध बुध खो बैठे थे और प्रत्येक दिन भण्डारों का जूठन खुद खाते और भगवान को भी खिलाते रहते थे हार कर लोगों ने उन्हें एक पागल के रूप में मान लिया था धीरे धीरे उनका नाम ही पागल बाबा पड़ गया। 


उनसे परेशान होकर लोगों ने एक बार उनके खिलाफ एक योजना बनाई।  जिसके अनुसार लोगों ने भण्डारे में अपनी पत्तलों में कुछ न छोड़ा ताकि ये पागल ठाकुर जी को जूठन न खिला सके। उन्होंने फिर भी सभी पालों को पांछ कर एक निवाला इकट्ठा कर ही लिया और अपने मुंह में डाल लिया, पर आज वो ठाकुरजी को खिलाना तो भूल ही गये। लेकिन जैसे ही उसे इस बात का आभास हुआ कि आज बिना ठाकुरजी को भोग लगाए ही वह निवाला मुंह में रख गये है, तब उन्होंने अपना निवाला मुंह के अंदर न किया कि अगर पहले मैं पहले खा लूंगा तो ठाकुरजी का अपमान हो जाएगा और अगर थूका तो अन्न का अपमान हो जायेगा। अब वो निवाला मुंह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान करने लगे। तभी अचानक से बाल-गोपाल एक सुंदर से लड़के के रूप में पागल बाबा जज साहब के पास आया और बोला क्यों आज मेरो भोजन खाय गये। ये सुनकर जज साहब की आंखें आसुओं से भर आई और वो मन ही मन बोल रही थी कि ठाकुरजी बड़ी भूल हो गयी है, मुझे माफ कर दो। ठाकुरजी ने भी मुस्कराते हुए बोले आज तक तेनें मुझे लोगों का जूठा खिलाया है किंतु आज अपना ही जूठा खिला दे। जज साहब की आँखों से अश्रु रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। उसके बाद ही बाबा ने प्रण किया और विशाल मंदिर का निमार्ण कराया फिर विशाल भण्डारा भी किया जिसमें मथुरा जनपद के सभी लोगों को आमंत्रित किया गया था। अपार जन समूह उमड़ा था उस समय बाबा का भण्डार खाली होने का नाम ही नहीं ले रहा था बाबा ने मंदिर में विशाल रसोई का निमार्ण कराया था तथा मंदिर के नीचे विशाल भण्डार घर का निमार्ण भी कराया था। उसी समय इन्कम टेक्स डिपार्टमेन्ट ने बाबा के यहां छापा मार दिया कि इतना अनाज और भण्डारे का सामान कहां से आ रहा है, बाबा का चमत्कार तब भी हुआ था पूरी टीम जब भण्डार घर में घुसी तो उसे वहां कुछ भी नजर नहीं आया वह आश्चर्य चकित हो गये कि जब यहां कोई सामान है ही नहीं तो इतना विशाल भण्डारा कैसे चल रहा है। हैरान परेशान आयकर के अधिकारी वहां से चले गये।


बाबा के देश भर में भक्त विशेष कर आसाम बंगाल व औडीशा के औद्योगिक घरानों व मारवाड़ी परिवारों से आते हैं क्यों कि बाबा मूलरूप से सापटग्राम असम से हैं वहां भी बाबा का विशाल मंदिर है।

पागल बाबा अपने पास एक लाल रंग का बड़ा सा रूमाल रखते थे और हर किसी के सिर पर उसे रखकर आर्शीवाद देते थे। साथही व्यापारियों को समय समय पर समाज में जरूरत की बस्तुओं के विषय में तेजी मंदी के विषय में भी बताते थे, जिससे व्यापारियों को बड़ा लाभ होता था। बड़ी संख्या में मारवाड़ी और देश के बड़े बड़े औद्योगिक घरानों के लोग बाबा के अनन्य शिष्य थे और आज तक उनके परिवार भी बाबा के भक्त हैं और बाबा की शक्तियों को आज भी महसूस करते हैं। बाबा की आकर्षक छवि लिये श्याम वर्ण के बाबा में हर किसी को अपनी ओर संमोहित करने की शक्ति थी चमत्कारी बाबा को आज भी लोग भूल नहीं पाये हैं।

बाबा के असंख्य धनाण्डय परिवार भक्त के रूप में आज भी बाबा की सेवा पूजा व बाबा महाराज के बताये गये मार्ग पर चल कर पीडित मानवता की सेवा करें तो वह परिवार आज भी तीसरी पीढ़ी के वाद भी इस पुनीत कार्य में लगी हुई है।


बाबा देवी पूजक भी थे इसी बाबा ने मंदिर में घुसते ही दांये हाथ पर भगवती दुर्गा का विशाल मंदिर बनवाया था। नो मंजिला मंदिर में हर देवी देवता का मंदिर बनवाया गया।

   आज भी उस पागल बाबा को समर्पित विशाल मंदिर वृन्दावन में स्थित है। कहा जाता है कि यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता है। यहां भक्तों की हर मनोकामना बाबा और उनके कान्हा जरूर सुनते हैं।  पागल बाबा का ये आश्रम बहुत ही धार्मिकता लिए हुए है यहाँ आने वाले भक्तों को सकारात्मकता का अनुभव होता है। बाबा का यह मंदिर अपने आपमें भी किसी चमत्कार से कम नहीं है मंदिर को किसी भी सड़क से देखा जाये तो यह मंदिर बहुत ही करीब दिखाई देता है मगर ज्यों ज्यों मंदिर की ओर जाते हैं मंदिर गायब हो जाता है। मथुरा वृन्दावन मार्ग के दोनों ओर से तथा सौ सैय्या अस्पताल ऐक्सप्रेस वे की तरफ से आने वाले मार्ग देखने पर यह बहुत करीब दिखाई देता है व कुछ समय वाद यह गायब भी हो जाता है।


हॉस्पिटल की परिकल्पना 70 के दशक में की जब किसी ने सोचा नहीं था कि हॉस्पिटल की इतनी जरूरत होगी, बाबा ने 1977 में एक धमार्थ ट्रस्ट की स्थापना की थी, बाबा के आदेश पर बने अस्पताल में बिना सरकारी मदद के जनरल ओपीडी, आंखो का अस्पताल, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, विभाग पागल बाबा महाराज के भक्त परिवारों के सहयोग से चल रहे हैं। हाल में कोरोना जैसी महामारी से परेशान लोगों के लिए ऑक्सीजन प्लांट लगाने व ऑक्सीजन सिलेंडर की निर्भरता खत्म करने कार्य किये जा रहे हैं। पागल बाबा का लक्ष्य था कि पीडित मानवता की सेवा की जाये। आज भी सबसे ऊंचा मंदिर पागल बाबा द्वारा स्थापित किया गया है जो कि ३० वर्ष पूर्व बनाया गया था।


पागल बाबा मंदिरः इस मंदिर का निर्माण स्वर्गीय पागल बाबा के अनुयायियों ने कराया। बाबा को मानने वालों का कहना है कि उन्हें पूरे मंदिर में सकारात्मकता की अनुभूति होती है जो इसके संस्थापक की याद दिलाती है। यह दस मंजिली इमारत का अपने आपमें एक अनूठा मंदिर है और वृंदावन की एक सशक्त पहचान भी है। यह मंदिर सबसे निचली मंजिल पर लगने वाली कठपुतलियों की प्रदर्शनी के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कठपुतली के खेल के जरिये महाभारत और रामायण रूपी दो महाकाव्यों को दर्शकों के सामने लाने का प्रयास करता है।


मंदिर के बाहर फूल, अगरबत्तियों और भगवान की पोशाकों को बेचने वालों की दुकानें हैं। होली और जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर को भक्तों द्वारा भव्यता के साथ सजाया जाता है। सन् 1969 में बाबा श्री को एसी प्रेरणा हुई की आगरा का ताजमहल देखने के लिए देश विदेश से लाखों करोड़ों पर्यटक आगरा आता हैं, मगर श्रीकृष्ण की प्रेममयी लीलास्थली होने के उपरांत भी तथा आगरा के निकट होते हुए भी वृंदावन आने की प्रेरणा लोगों को नहीं हो पाती है। देश विदेश के पर्यटकों का ध्यान वृंदावन की ओर आकर्षित करने के लिए एक भव्य मंदिर बनाने की परियोजना बनाई गई। वृंदावन मथुरा मार्ग पर एक विशाल भू-खंड लेकर अल्पावधि में ही, जहाँ केवल सूखा खेत था, वहाँ एक विशाल संगमरमर के नौ मंज़िला मंदिर लीलाधाम की स्थापना की गई।


चारों तरफ शस्य श्यामला हरित भूमिपर श्वेत प्रस्तर जडित अतुलनीय मंदिर भारतवर्ष में अपने ढंग का प्रथम मंदिर है। इसकी चौड़ाई करीब 150 फीट (क्षेत्रफल 1800 वर्गफुट) तथा उँचाई 221 फीट है। इसके हर मंज़िल पर विभिन्न देव मंदिर है। इस आश्रम का नाम लीलाधाम रखा गया। यह अनूठा मंदिर भारतवासियों को तो आकर्षित करता ही है, विदेशी पर्यटकों को भी मंत्रमुग्ध करता है और भक्ति प्रधान देश की महत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिद्ध भी करता है। मंदिर में सुबह आठ से रात आठ बजे तक इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से कृष्णलीला, रामलीला और पागल बाबा लीला व अखण्ड भजन कीर्तन अनवरत चलता रहता है। (सुनील शर्मा )


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