"Bhaav" Sunil Sharma Mathura
सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया.....
रविवार, 8 सितंबर 2024
अपने मुकुट को कहाँ रखोगे, वंशी को कहाँ छिपाओगे? काले से गौर कैसे होओगे? कृष्ण
समूचे बंगाल प्रान्त का ब्रज की पुण्य भूमि से गहरा नाता रहा है, जो निरन्तर बना हुआ है। बंगाल के घर-घर में कृष्ण लीला भजन कीर्तन आदि हर समय होते रहते हैं। बंगाल की धरती ने न जाने कितने साहित्यकार, गीतकार, उपन्यासकार दिये हैं। जिनमें गीतगोविंद के रचयिता जयदेव बंगाल के व्यक्ति थे। राधा और कृष्ण के प्रेम का वर्णन करने वाले इस सुन्दर काव्य के रचयिता थे।
इनसे पहले चंडीदास हुए जो श्रीकृष्णकीर्तन के प्रणेता थे जो चैतन्य महाप्रभु के पहले, लगभग 1400 ई. में, विद्यमान थे। दूसरे चंडीदास जो चैतन्य के बाद में आये। इन्होंने ही राधा कृष्ण के प्रेमविषयक उन अधिकांश गीतों की रचना की जिनसे चंडीदास को इतनी लोकप्रियता प्राप्त हुई। तीसरे चंडीदास दीन चंडीदास हुए जो राधा कृष्ण के गीत संग्रह के तीन चौथाई भाग के रचयिता थे।
इसी समय प्रसिद्ध वैष्णव कवि चैतन्य का आविर्भाव हुआ जिनका कवियों और विचारकों पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके आविर्भाव और मृत्यु के उपरांत संतों तथा भक्तों के जीवनचरित्रों के निर्माण की परंपरा चल पड़ी। इनमें से कुछ थे जैसे वृंदावनदास जिन्होंने चैतन्यभागवत लिखी, लोचनदास ने चैतन्यमंगल लिखा, जयानंद ने भी चैतन्यमंगल तथा कृष्णदास कविरत्न द्वारा चैतन्यचरितामृत (लग. 1581) में लिखा गया। कृष्ण और राधा के दिव्य प्रेम संबंधी बहुत से गीत और पद भी इस समय रचे गए।
इसी समय बँगला भाषा पर “ब्रजबुलि“ का भी प्रभाव पड़ा। जिसमें ऐसे गीत बंगाल में बड़े लोकप्रिय हुए और उनके अनुकरण में यहाँ भी रचनाओं में ब्रजबुलि का प्रभाव दिखने लगा। बंकिमचंद्र तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर तक ने ब्रजबुलि में गीतों की रचना की है।
वैष्णव प्रेमगीतकार के रूप में जयदेव कवि के रूप में आज भी जनमानस में विद्यमान हैं। उनके बाद चंडीदास तथा चैतन्य के अनुयायी आते हैं। गोविन्ददास कविराज ने ब्रजबुलि में कितने ही सुन्दर गीत प्रस्तुत किए। बर्धमान जिले के कविरंजन विद्यापति ने भी ब्रजवुलि में प्रेमगीत लिखे जिनके कारण वे “छोटे विद्यापति“ के नाम से प्रसिद्ध हुए। वृन्दावन में रूप सनातन गोस्वामी, जीव गोस्वामी आदि ने ब्रज में बास करते हुए भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के प्रेम को अनन्त गहराईयों तक जाना। तथा हमेषा उनके भजन में लीन रह कर जीव के कल्याण का कार्य किया। कितने ही साधु संत महात्मा यहां आये और भगवान की दिव्य लीलाओं का रसास्वादन किया। जिनमें काठिया बाबा सम्प्रदाय के संत हो, आनन्दमयी माँ, पागल बाबा महाराज हों या इस्कॉन के संस्थापक ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी हों जिन्होंने अपने देष से जाकर विदेष में कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार किया।
श्रीकृष्ण के प्राकट्य से अप्राकट्य तक उनकी वृन्दावन, मथुरा, द्वारिका की अगणित लीलायें सबने लिखीं और बताईं। पूतना वध, ऊखल-बन्धन, महारास, कंसवध, कुरुक्षेत्र-युद्ध आदि प्राय सभी लीलाओं से आम जन परिचित है। किन्तु एक परम गूढ़ लीला है, जो सामान्यतः न पढ़ने में आती है, न सुनने में। फिर उसकी प्रामाणिकता क्या ? प्रामाणिकता! यह सन्देह और अनिश्चय ही आदमी की सबसे बड़ी समस्या है।
राधारानी का नाम पूरे भागवत महापुराण में नहीं आता है। तो क्या वे कल्पना की वस्तु हैं? कुछ बातें होती हैं, जिन्हें छिपाने की विवशता होती है, जिसे हर कोई हर जगह नहीं कह सकता। ऐसी ही एक विरल कृष्णलीला द्वापर में हमारे वृन्दावन में निधुवन में घटित हुई। इस घटना का वर्णन किया है बंगाल के बलराम दास, वैष्णव दास आदि कुछेक वैष्णव पदकर्ताओं ने और उसका सम्यक विस्तार-आस्वादन किया है ’पाठबाड़ी’ आश्रम कोलकाता के प्रसिद्ध वैष्णवाचार्य श्रीपाद रामदास बाबाजी महाराज ने, अपने बंगला ’आँखर कीर्तन’ में। यह कीर्तन ’निधुवने स्वप्नविलास’ नाम के ग्रन्थ में मिलता है।
पूज्यपाद श्रीकृष्णदास कविराज ने अपने सुप्रसिद्ध बंगला ग्रन्थ’ श्रीचैतन्य चरितामृत’ में किया है कि कृष्ण के मन में तीन बातें जानने का लोभ उत्पन्न हुआ, तो उन्होंने हमारे कलियुग में शचीमाँ के गर्भ से जन्म लिया।
ये तीन विषय थे प्रथम- मेरे प्रति राधा का प्रेम क्या वस्तु है ?
द्वितीय- मेरा अद्भुत माधुर्य कैसा है?
और तीसरा- उस माधुर्य का आस्वादन कर राधा को जो सुख प्राप्त होता है, वह सुख कैसा है ?
“राधिकार भावकान्ति अंगीकार बिने। सेइ तिन सुख कभु नहे आस्वादने।। तिन सुख आस्वादिते होबो अवतीर्ण।“- चै. च. आदि-4
(अर्थात् कृष्ण ने निश्चय किया कि वे उक्त तीन सुखों का आस्वादन करने के लिये राधिका का भाव और उनकी कान्ति अंगीकार कर अवतरित होंगे, क्योंकि इस भाव-कान्ति के बिना वह आस्वादन सम्भव नहीं है।)
ठाकुर लोचनानन्द ने अपने ’चैतन्यमंगल’ ग्रन्थ में स्पष्ट वर्णन किया है कि देवर्षि नारद द्वारका गये उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया-
श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि ‘‘तो कृष्ण जन्म आबार लयिबो’’।।
“नवद्वीपे शचीगृहे गौर दीर्घ कलेवर बाहु जानुसम। सुमेरु सुन्दर तनु अति अनुपम।। कहिते कहिते प्रभु गौरतनु होइला। देखिया नारद अति आरति बाड़िला।।“
(अर्थात् ‘मैं नवद्वीप में शची के यहाँ जन्म लूँगा। मेरी देह होगी सुन्दर सुमेरु की तरह दीर्घ गौर वर्ण और भुजायें घुटनों तक लम्बी !’ यह कहते-कहते कृष्ण गौर वर्ण हो गये। यह देखकर नारद के मन में उस भावी अवतरण को देखने की बड़ी लालसा हुई।) अवतार हुआ, उसकी ये सभी सन्दर्भ इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस कलियुग में जो चैतन्य-लिखी जा चुकी थी।
उसकी भूमिका द्वापर में कृष्णलीला में ही बना ली गई थी। उसी गूढ़ कृष्णलीला (’निधुवने स्वप्न-विलास’) का भाव-सार प्रस्तुत हैं राधा और कृष्ण निधुवन में सुख-निद्रा में मग्न थे। राधा ने एक स्वप्न देखा, उनकी निद्रा भंग हुई और वे व्याकुल होकर रो-रोकर कहने लगीं-’उठो, उठो प्राणनाथ, कि देखिलाम अकस्मात्, एकटी युवा गौर-वरण। अश्रु कम्प पुलकादि, भाव-भूषा निरवधि, नाचे गाय महामत्त होइया। मन धाय ताहारे देखिया।।’’ (उठो प्राणनाथ! मैंने अकस्मात् यह क्या देखा! ? अश्रु-कम्प-पुलक आदि सात्विक भाव-भूषणों से विभूषित एक गौर-वर्ण युवक उन्मत्त होकर नाच रहा है, गा रहा है। उसे देखकर मेरा मन उसी ओर दौड़ रहा है।) “नव जलधररूप, रसमय रसकूप, इहा बूझिना हरि नयने। तबे केनो विपरीत, हेनो होइलो आचम्बित, कहो नाथ इहार कारणे।।“
(मैं तो तुम्हारे इस नवीन मेघ रसमय स्वरूप को छोड़ और किसी को नहीं जानती, फिर आज यह विपरीत बात क्यों हुई? नाथ, इसका कारण बताओ।)
नय गो, राधे- (राधा को इस तरह व्याकुल और मूर्छित होते देखकर कृष्ण ने कहा-“ से तो परपुरुष मिछामिछि तुमि केंदो ना राधे। तोमार प्रेम-ऋण शोधिबारे, आमि जे गौरांग होवो..... व्यर्थ ही क्यों रो रही हो ? जिसे तुमने देखा है, वह परपुरुष नहीं है। तुम्हारे प्रेम का ऋण चुकाने के लिये अब मैं गौरांग बनूँगा।) “ए तिन वांछित धन, ब्रजे नहिलो पूरण...... ए वासना पूर्ण कभु नय। तूया भावकान्ति धरि, नदीयाते करबो उदय।। घरे-घरे बिलाबो प्रेमधन।।“ (राधे, मेरी तीन इच्छायें ब्रज में पूरी नहीं हुईं, इसलिये मैंने निश्चय किया है कि अब मैं तुम्हारा भाव और तुम्हारी कान्ति धारण कर नवद्वीप में जन्म लूँगा। घर-घर प्रेम बहाहूँगा। मैं तो प्रेम का ’विषय’ हूँ, तुम्हारे ’आश्रय’-जातीय प्रेमरस का आस्वादन तभी सम्भव होगा, जब मैं तुम्हारी भाव-कान्ति धारण करूँगा।) चले जायेंगे, राधा काँप गईं। बोलीं- “जल बिनु मीन, जान।।“ (जब यह सुनकर कि कृष्ण ब्रज छोड़कर नवद्वीप फणी मणि बिनु, तेजये आपन पराण। तिल आध तुहारि दरश बिनु तोइछन, व्रजपुर गति तँहु आबार कोन् खेला खेल्बे, एइ ब्रजजन बधिवे की....किन्तु हरि मुझे बताओ तो कि, प्रेम प्रकाश जल के बिना मछली और मणि के बिना साँप अपने प्राण त्याग देते हैं। इसी तरह तुम्हें पलभर देखे बिना ब्रजवासियों की जो दशा होती है, उसे क्या तुम जानते हो। अब इन्हीं ब्रजवासियों का वध कर कौन-सा खेल खेलोगे? मुझे छोड़कर प्रेम बाँटोगे! ?)
राधा की बात पर कृष्ण ने कहा- ’सकलेइ आमार संगे जाईबे। काकेओ छेड़े जाबो ना राइ! गोप गोपाल सब जन मिलिया। नदीया नगर रे कोरिबो केलि।। तनु-तनु मेलि होइ एक ठाम। अविरत वदने बोलबो हरिनाम।। हरि बोलबो बोलाइबो, दुजने मिले गौर होईबो“ (राइ! किसी को भी छोड़कर नहीं जाऊँगा। सारे व्रजवासी मेरे साथ जायेंगे। नदीया में खेलेंगे। हम दोनों हरि बोलेंगे, बुलवायेंगे।)
एई जे हरि- दोनों मिलकर गौर बनेंगे, दोनों मिलकर एक होंगे, यह सुनकर राधा आश्वस्त तो हुईं, पर सन्देह नहीं गया। बोलीं- “बड़ो असम्भव कथा। चूड़ा धड़ा कोथाय थोबे, बाँशी कोथाय लुकाइबे, कालो गौर होइबे केमने? “ (यह बड़ी असम्भव बात है। अपने मुकुट को कहाँ रखोगे, वंशी को कहाँ छिपाओगे? काले से गौर कैसे होओगे? )
यह सुनकर ने अपनी कौस्तुभ मणि के प्रतिबिम्ब में राधा का श्रीअंग दिखाया और प्रवेश कर गये। इस प्रकार राधा-राधारमण, महाभाव-रसराज मिलकर एक हो गये। इस प्रकार “नदीयाते कोरिलो उदय। संगेते से भक्तगणे, हरिनाम संकीर्तने, प्रेम-वन्याय जगत् भासाय।। बाहिरे जीव उद्धारणे, अन्तरे रस आस्वादन.... (राधा-श्याम-एकाकृति गौरांगदेव ने भक्तों के साथ नवद्वीप में संकीर्तन कर जगत् को प्रेम-की बाढ़ में डुबो दिया। बाहरी तौर पर जीवो का उद्धार किया, आन्तरिक रूप से ब्रज प्रेमरस का आस्वादन किया)।
इसी के साथ जय श्रीकृष्ण, राधे राधे!
रविवार, 24 मार्च 2024
मथुरा लोकसभा सीट के साथ कई दिलचस्प किस्से भी जुड़े हुए हैं
मथुरा देश की एक दिव्यभूमि है, जो सदियों से मुस्लिम हमलावरों के निशाने पर रही। विदेशों से आए आक्रांताओं ने कई बार मथुरा में बने मंदिरों को तोड़ा और उनका खजाना लूट कर ले गये। इसके बावजूद हर बार यह मंदिर नए रूप में पुनः उठ खड़े हुए। पुराणों के अनुसार यह भूमि पहले सुरसेन की राजधानी हुआ करती थी। उस वक्त यहां पर घने जंगल थे। जिसे मधुवन के नाम से भी जाना जाता था। यही मधुवन बाद में मधुपुरा से होते हुए मथुरा तक हो गया।
अगर हम चुनावों की वात करें तो आज यह मथुरा भी राजनैतिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण सीट है जिसे हर हाल में भारतीय जनता पार्टी अपने कब्जे में करना चाहती है।
मथुरा लोकसभा सीट के साथ कई दिलचस्प किस्से भी जुड़े हुए हैं। इस सीट पर वर्ष 1952 और 1957 में हुए दोनों आम चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की थी। मजे की बात ये है इस आंधी में जनसंघ के नेता और देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी भी चुनाव हार गए थे। घटना कुछ इस प्रकार थी वर्ष 1957 के चुनाव में अटल बिहारी बाजपेयी ने भारतीय जनसंघ के टिकट पर मथुरा से चुनाव लड़ा था। उनके खिलाफ राजा महेंद्र प्रताप सिंह जो कि एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। उस समय इस सीट पर 95 हजार वोट पाकर महेंद्र प्रताप सिंह विजयी रहे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी दिगंबर सिंह थे। वहीं अटल बिहारी बाजपेयी की चुनाव में जमानत जब्त तक हो गई थी।
मथुरा लोकसभा सीट में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 19 लाख है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या जाट मतदाताओं की मानी जाती है। उनकी वोटर संख्या करीब साढ़े तीन लाख के साथ प्रथम स्थान पर बताई जाती है। इनके अलावा 3 लाख ब्राह्माण, 3 लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, डेढ़ लाख मुस्लिम हैं. जबकि वैश्यों की संख्या 1 लाख और यादवों की संख्या करीब 80 हजार बताई जाती है। अन्य में बाकी बची छोटी जातियां शामिल हैं।
जाट बहुल सीट होने के बावजूद आरएलड़ी का वर्चस्व कभी नहीं रहा
जाटों की संख्या सबसे ज्यादा होने के कारण ही आरएलडी मथुरा को महत्वपूर्ण सीट मानती रही है। इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती ने चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें भी हार देखनी पड़ी थी। हालांकि बीजेपी से गठबंधन होने पर जयंत चौधरी वर्ष 2009 में इस सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे उन्हें 243890 वोट मिले थे। इसके बाद 2014 और 2019 से हेमा मालिनी लगातार 2 बार से इस सीट से सांसद हैं।
बीजेपी ने फिर तीसरी वार हेमा मालिनी पर दांव खेलने जा रही है। बीजेपी की ओर से घोषित उम्मीदवारों की पहली सूची में मथुरा से हेमा मालिनी के नाम का ऐलान किया गया है। बसपा ने इस सीट से उम्मीदवाद की घोषणा कर दी है, बसपा ने 1999 में बसपा से ही चुनाव लड़ चुके पं. कमल कान्त उपमन्यु को अपना प्रत्याषी बनाया है। 1999 में कमल कान्त उपमन्यु को 1,18,720 वोट मिले थे। और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। यहां यह बताना जरूरी है कि इस वार जयन्त चौधरी आरएलडी को लेकर बीजेपी की नैया पार लगाने में सहायक बने हुए हैं।
मथुरा लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
मथुरा लोकसभा सीट शुरु से ही जाट बाहुल्य मानी जाती रही है। इसकी पुष्टि इस सीट से जीत हांसिल करने वाले उम्मीदवारों से होती है। इस सीट पर अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट बिरादरी से आते रहे हैं। पिछले 10 सालों से मथुरा से बीजेपी नेत्री व प्रख्यात सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी यहां सांसद हैं। उन्होंने पंजाब के जट और प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र से शादी की है। इस नाते भी लोग उन्हें भी जाट ही मानते हैं। हालांकि मूल रूप से वह तमिलनाडु से आती हैं।
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एक महत्वपूर्ण सीट की लोकसभा सीट है। आजादी के बाद पहला चुनाव साल 1952 में हुआ। और इस सीट पर भी पहली बार चुनाव 1952 में ही हुआ। पहले और दूसरे दोनों चुनावों में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस सीट पर वर्ष 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा है।
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को हार देखनी पड़ी और भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की। साल 1980 में यह सीट जनता दल के खाते में गई। जबकि 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर से वापसी की, लेकिन कांग्रेस को अगले चुनाव में फिर से हार का सामना करना पड़ा था।
उत्तर प्रदेश का यह मथुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत की चुनावी राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2019 के आम चुनावों में, यहाँ बहुत मजेदार चुनावी मुकाबला देखने को मिला था। भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी ने पिछले चुनाव में 2,93,471 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ की थी। उन्हें 6,71,293 वोट मिले थे। हेमा मालिनी ने अपने निकटतम रालोद प्रत्याषी कु0 नरेन्द्र सिंह को हराया जिन्हें 3,77,822 वोट मिले थे। मथुरा सांस्कृतिक विविधताओं चलते और यहां के चुनावी नतीजे भी उत्तर प्रदेश की यह लोकसभा सीटं रोचक और अहम होती है। इस निर्वाचन क्षेत्र में विगत 2019 के लोक सभा चुनाव में 60.48 प्रतिषत मतदान हुआ था। इस बार यानी कि 2024 में मतदाताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है और वे लोकतंत्र में वोटों की ताकत दिखाने को और ज़्यादा जागरुक और तैय्यार हैं। इस वर्ष यानी कि 2024 में मथुरा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से श्रीमती हेमा मालिनी प्रमुख उम्मीदवार हैं।
बुधवार, 6 मार्च 2024
श्रीकृष्ण जन्म स्थान के आसपास दर्लभ प्रजाति के जीवों को दिखा कर लोगों से पैसा लेने धन्धा शुरू
अब श्रीकृष्ण जन्म स्थान के आसपास दर्लभ प्रजाति के जीवों को दिखा कर लोगों से पैसा लेने और यात्री परदेशियों से अपने स्वार्थ के लिए ऐसे जीव जन्तुओं के जरिये रूपया कमाने का हो गया है। कई लोगों को दुर्लभ सांपों के साथ तो कई को मोर पंखों के साथ देखा जा सकता है। जिन्हें दिखाकर पैसे मांगते हैं यदि यात्री परदेशी पैसा न दें तो इस प्रकार के लोगों द्वारा दर्शनाथियों के साथ र्दुव्यवहार करते, झगड़ा करते हैं, मारपीट तक करते हैं, इन्हें आयदिन लड़ते, झगडते देखा जा सकता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के निकट पोतराकुण्ड के समीप आज एक व्यक्ति जो यहां आये यात्री परदेशियों को दुर्लभ प्रजाति का उल्लू दिखाकर पैसे मांग रहा था। यात्रियों द्वारा न दिये जाने पर लडाई झगडा करने लगा। जिससे अक्ष्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया। यात्री उस नशे में धुत्त व्यक्ति की पिटाई कर रहे थे। मैं भी स्टेट बैंक जगन्नाथपुरी ब्रान्च से अपना काम निपटा कर उसी रास्ते से निकल रहा था। जब यह माजरा देखा तो मैं भी वहां रूक गया। देखा कि कुछ लोग मिलकर एक शराब पीये हुए व्यक्ति को मारपीट रहे हैं और वह सबको गालियां दिये जा रहा था। यह सभी बाहर से आये दर्शनार्थी थे। मेरे अनुरोध करने पर वह लोग उसे छोड़ कर दर्शन करने निकल गये जब मेंने उस शराब पीये हुए व्यक्ति को देखा तो बुरी तरह से नशे में धुत्त था और गन्दी-गन्दी गालियां दे रहा था और उसके हाथ में एक दुर्लभ प्रजाति का उल्लू भी था जिसे शायद उसने उड़ने लायक भी नहीं छोड़ा। काफी मना करने पर न तो वह गाली देना बंद कर रहा था और न ही वह उस उल्लू को छोड रहा था। तब मैंने पोतरा कुण्ड साइड में बने गेट पर तैनात एक दरोगा जी से सारी घटना बताई उन्होंने तत्काल दो-तीन पुलिस कर्मियों को उस दिशा में भेज दिया। तब मैं वहां से चला आया फिर मैंने जिला वन अधिकारी श्री रजनी कान्त मित्तल जी को फोन पर सारी घटना बता कर उक्त उल्लू को रेस्क्यू कराने का अनुरोध किया। उन्होंने तत्काल ही वन विभाग की टीम को घटना स्थल पर भेजा, जहां से यह दुर्लभ प्रजाति के उल्लू को वन विभाग के कर्मचारियों ने अपने कब्जे में ले लिया। धन्यवाद पुलिस कर्मियों का और वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों का।
शुक्रवार, 1 मार्च 2024
ब्रज लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय का लोकार्पण
ब्रज के तीर्थत्व की बापसी का आन्दोलन है संग्रहालय-शैलजा कान्त मिश्र
संग्रहालय मानव जीवन से जुडी गतिबिधियों का दर्पण होना चाहिए-श्रीवत्स गोस्वामी
मथुरा। वृन्दावन, ब्रज की हर एक वस्तु और हर एक वृक्ष को संग्रहित करने की आवश्यकता है, आप सभी ब्रजवासियों के कारण यह एक अच्छी शुरूआत है, भगवान श्री कृष्ण ने हमें चैतन्य रूप में इसे व्यवथित करने के लिए अवसर प्रदान किया है, हमें अपने आपको चैतन्य रूप में ही समाहित करके इस पुनीत कार्य को करना चाहिए।
ब्रज लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय का लोकार्पण समरोह में अध्यक्षता करते हुए उ0 प्र0 ब्रज तीर्थ विकास परिषद् के उपाध्यक्ष शैलजा कान्त मिश्र ने कहा कि ब्रज के समग्र विकास के लिए ब्रज तीर्थ विकास परिषद् की स्थापना का संकल्प ब्रह्मर्षि देव रहा बाबा के आदेष पर हुआ उनका आदेश था कि ब्रज की रक्षा के लिए कार्य करना होगा। तभी भारत सम्पूर्ण विश्व में सिरमोर बनेगा। मैं हमेशा उनके आदेश को अपने स्मरण में रख कर ब्रज की सेवा में लगा हुआ हूँ।
उन्होंने कहा कि लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय पूर्व में भी बना बज्रनाभ जी ने समूचे ब्रज क्षेत्र को ही संग्रहालय बना दिया था जो किन्हीं कारणों से लोप हो गया था। ब्रज की लोककला में ब्रज के लोक गीतों में चेतना समाई हुई है। श्री कृष्ण कालीन चेतना उनका रूप उनके शब्द समाये हुए हैं। मोदी जी के अनुग्रह से योगी जी के अनुग्रह से कुछ विकास धरातल पर हैं कुछ योजनाएं आने वाली हैं, उन्होंने कहा कि धन खर्च करके ब्रज को सिंगापुर तो बनाया जा सकता है किन्तु तीर्थ नहीं बनाया जा सकता है।
ब्रज लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय में जो संग्रह किया जा रहा है उससे भी आगे श्री कृष्ण के प्रति भाव को अपने हृदय में संग्रहित करने की आवश्यकता है तब ही तीर्थ की स्थापना सम्भव हो सकेगी। सभी ब्रजवासी व उनके माध्यम से यहां आने वाले लोगों के मन में भगवान श्रीकृष्ण की सत्य निष्ठा, उनका सद्भाव को अपने अन्दर समाहित करना होगा।
आप सभी ब्रजवासियों के कारण यह एक अच्छी शुरूआत है। आप सभी को मानना होगा कि भगवान ने हमें इस कार्य के लिए चैतन्य रूप में व्यवस्थित करने के लिए लगाया है। यहां कि हर बस्तु को, हर वृक्ष को संग्रहित करने की आवश्यकता है, हमें सत्य निष्ठा के साथ ब्रज के तीर्थत्व की बापसी का आन्दोलन शुरू करना होगा।
इस अवसर पर ब्रज के मर्धन्य विद्वान श्रीवत्स गोस्वामी जी ने उपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ जी ने महाभारत के बाद समूचे ब्रज को ही श्रीकृष्ण का संग्रहालय बना दिया था। जीवन्त संग्रहालय चौरासी कोस में धाम रूपी संग्रहालय बज्रनाभ जी ने ही बनाया, उसके बाद में ब्रजसेवी फेडरिक सामन ग्राउस ने मथुरा में संग्रहालय बनाया। उन्होंने कहा कि ब्रज एक सतत श्रृष्टि है तभी संवत् 2081 और सन् 2024 में भी ब्रज जीवन्त है। लोक के आधार पर ही शास्त्र की रचना हुई है। श्रीकृष्ण और उनसे जुड़ी कला साधना, आराधना में जितने शिल्प आते हैं। वह सब भी लोक की ही देन हैं।
तभी तो गाया जाता है कि
‘‘अनौखों री जायो ललना, मैं वेदन में सुन आई, मैं खेतन में सुन आई’’
श्रीकृष्ण आज भी लोक और शास्त्र में जीवित हैं। ब्र लोक कला एवं शिल्प संग्रहालय का संकल्प डॉ0 उमेश चन्द शर्मा ने लिया है जो की एक सराहनीय कार्य है। ब्रज संस्कृति यदि जीवन है तो संग्रहालय भी जीवन्त है। संग्रहालय मानव जीवन से जुड़ी गतिविधियों का दर्पण होना चाहिए।
इस अवसर पर सभी का आभार व्यक्त करते हुए डॉ0 उमेश चन्द शर्मा ने कहा कि इस संग्रहालय की आधारषिला 07 अक्टूबर 2000 में रखी गयी थी जिसमें ब्रज के महान संत महन्त की उपस्थिति थी, अनेक लोगों का योगदान इसमें रहा है, यहां प्रदर्शित कला और शिल्प को अभी पूरी तरह से नहीं रखा जा सका है। अभी और भी कला रत्न प्रदर्शित किये जाने बाकी हैं हम जल्द ही आम जन मानस के लिए उन्हें भी प्रदर्शित करने का प्रयास करेंगे।
इस अवसर पर आचार्य पद्म नाभ गोस्वामी, विष्णु दास गोयल शोरा वाला, दीपक गोयल, आर. पी. यादव, सोहन लाल, दिनेष खन्ना, कपिल उपाध्याय, मुकेष शर्मा, उदयन शर्मा, राधावल्लभ मंदिर सेवायत आनंदलाल गोस्वामी, सुरेश चंद्र शर्मा, सुमनकांत पालीवाल, सुकृत गोस्वामी, सुनील शर्मा (पत्रकार), गोपाल शरण शर्मा, डॉ0 विनोद बनर्जी, मुकेश गोतम, डॉ0 शिवांगी गोतम, दीपक गोस्वामी, प्रियव्रत शर्मा, वीरेन्द्र सिंह, मुकेश गौतम, विनीत शर्मा, सतीश बघेल, सुप्रिया गोस्वामी, हेमू, रमाशंकर शर्मा, महेश प्रसाद, राजेन्ड एडवोकेट, सुरेन्द्र कौशिक, वीरपाल सिंह, हेमलता, सुमनलता, शान्तनु अमित, नन्द किशोर, सुनील सिंह, बाबा जयकृष्णदास, सुभाष, हुकुम चन्द तिवारी एडवोकेट, कवि अशोक अज्ञ, सत्य प्रकाश, डॉ0 नीतू गोस्वामी, विज्येता चतुर्वेदी, बबूलू, मोहित गुप्ता, ब्रजेन्द्र सिंह, चन्द्र प्रकाश सिंह सिकरवार, प्रकाश, दीपक पं. सुरेश चन्द्र शर्मा, ब्रषभान गोस्वामी, पालिवाल, डॉ. रिपुसूदन मिस्त्री, रवि भाटिया, ओम प्रकाश डागुर, सत्येन्द्र नकुल, रंजीत, रामेन्द्र, श्रेया शर्मा, उभा शर्मा,, सीमा मोरवाल, रजत शुरला, मधु तोमर, श्रुति शर्मा, आदित्य राज, श्रीयश, गौरी शंकर शर्मा, प्रांशु, कमल, सतीश सिंह, नारायन सिंह, प्रेम पाल, ब्रजेन्द्र सिंह, राधावललम शर्मा, अमित, मीना, उमाशंकर श्रीवास्तव, अशोक अग्रवाल, कृष्ण बंसल, रेनु दत्ता, साधना गुप्ता, डॉ. अनुजा चौधरी, तुसार जैन, अनन्त स्वरूप बाजपेयी, पवन शर्मा, मयूर कौशिक, विजय विद्यार्थी आदि लब्ध प्रतिष्ठित नागरिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 अंजू सूद ने किया।
मंगलवार, 26 दिसंबर 2023
अगर व्यवस्थाऐं न सभल पायें, तो आरोप प्रत्यारोप लगा दो
सौ बात की एक बात
अगर व्यवस्थाऐं न सभल पायें, तो आरोप प्रत्यारोप लगा दो
‘‘राधे राधे रटो बुलायेंगे बिहारी’’ तो चले आये बिहारी जी के दर पे
वृन्दावन, मथुरा। सड़क पर यातायात व्यवस्थायें न सभल पा रही हों तो चौराहों को बंद कर दो, किलो मीटर दूर तक बाहनों को मोड दो या रोक दो, मंदिरों की तरफ भींड़ जा रही हो तो उसे बैरिकेटिक करके रोक दो, तो न आयेगी भींड़, न लगेगा जाम।
वृन्दावन सौ सैया हास्पीटल के पास पागल बाबा मंदिर के बाद से ट्रेफिक को मोड़ दिया जाता है, वृन्दावन की ओर से आने वाले बाहनों को टीएफसी से भी आगे भेज दिया जाता है, मथुरा में स्टेट बैंक चौराहे के पास से लोगों को एक किलो मीटर आगे धकेल दिया जाता है, कभी-कभी रूपम सिनेमा के सामने से महाविद्या कॉलोनी की तरफ ही नहीं जाने दिया जाता है, कोई पूछे तो उल्टा सीधा जबाव मिलता है, बस कह दिया जाता है ‘‘आगे जाओ’’। प्रष्न उठता है कि अगर इस प्रकार से बाहनों को डायवर्ट किया जाता है तो यह परमानेन्ट ही कर दिया जाये। फिर यदि ट्रेफिक को आगे एक किलो मीटर धकेल दिया जाता है, तो फिर चौराहों पर इतने ट्रेफिक पुलिस कर्मियों की वहां आवष्यकता ही क्या है।
सोषल मीडिया पर बॉके बिहारी मंदिर वृन्दावन में लगातार आ रही भींड़ से स्थानीय लोग खासे परेषान हैं, हों भी क्यों न, क्यों कि घरों से निकल भी नहीं पा रहे हैं। जिन्हें भींड़ के आने से कुछ फायदा होता है, वह परेषान नहीं हैं, परेषान तो वह ज्यादा हैं जिनको इस भींड़ के आने से किसी प्रकार का फायदा नहीं है, वह जरूर परेषान हैं, वह सोषल मीडिया पर तरह-तरह के सुझाव और आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
कोई लिख रहा है कि यहां आ जाते हैं और यहीं गन्दगी करते हैं, यहीं दुकानों के पट्टे पर सो जाते हैं, यमुना में नंगे होकर नहाते हैं, चाहें जहां जो मर्जी आती है करते हैं।
कोई लिख रहा है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेषन करा कर दर्षन कराने चाहिए, कोई लिख रहा है कि वृन्दावन में ई रिक्षा अधिक हो गये है, इससे समस्या है। तरह-तरह के सुझाव और तरह-तरह की षिकायत शासन, प्रषासन से की जा रही है।
अगर शहर में गन्दगी हो तो नगर निगम है, वह व्यवस्थाऐं देखे और यदि भींड़ ज्यादा आवे तो प्रषासन को देखना है, व्यवस्थायें वह भी स्थानीय लोगों से सुझाव लेकर की जायें। मंदिर में बैरीकेटिंग लगाई गई, नहीं लगने दी गयी, उससे परेषानी होने लगी। गलियों में बैरीकेटिंग लगाई गयी, वह व्यवस्था भी रास नहीं आयी। कोरीडोर का विरोध होने लगा। इतनी भयंकर भींड़ की व्यवस्था के लिए कोई न कोई उपाय जरूर किया जाना चाहिए, दिन पर दिन भींड़ बढ़ रही है। और यह भींड़ सिर्फ वृन्दावन बॉके बिहारी जी में ही नहीं है पूरे जनपद में है बरसाना, नन्दगाँव, गोवर्धन, मथुरा जंक्षन स्टेषन से लेकर मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान जाने वाले सभी मार्ग सुबह और सांम को लोगों इतनी भींड़ का सामना करना पड़ता है, कि स्थानीय लोगों का निकलना भी दूभर हो जाता है। सावन का महिना हो अधिक मास हो, वर्ष का अन्तिम सप्ताह हो या नये साल की शुरूआत हो, सभी को पुण्य कमाना है, सभी भगवान से नैना मिला कर अपना आगे का जन्म सुधारना चाहते हैं।
वृन्दावन के कुछ लोगों के कहने भर से लोगों का आना तो रूकने वाला है नहीं, वृन्दावन धाम है, पुण्य भूमि है, राधारानी का नित्य लीला स्थान है। भगवान श्री कृष्ण की रास स्थली है, जिसने भी सुना, सोषल मीडिया पर सुना, यूट्यूब पर सुना ‘‘राधे राधे रटो चले आयेंगे बिहारी’’, लोगों ने समझ लिया ‘‘राधे राधे रटो बुलायेंगे बिहारी’’ तो चले आये बिहारी जी के दर पे अब तो तू हमें सम्भाल हम तो आ गये तेरे दर पे।
भीड़ का दवाब तो प्रतिवर्ष पिछले वर्ष के मुकाबले में बढ़ ही रहा है व्यवस्थाएं तो जिला प्रषासन को करनी ही चाहिए। समय रहते व्यवस्थायें न की गयीं तो यह समस्या बिकाराल रूप ले सकती है। समाजसेवी संस्थाओं को भी इस समस्या के लिए आगे आना होगा और स्थानीय लोगों को भी जिला प्रषासन के सहयोग के लिए ठोस सुझाव देने चाहिए।
विदेशों में ब्रजभाषा को गायन से पहचान दिलाने वाली माधुरी शर्मा
लोक गायन के माध्यम से देश विदेश में प्रस्तुति देने वाली सुप्रसिद्ध ब्रज लोक गायक कलाकार माधुरी शर्मा से एक मुलाकात
विदेषों में भी ब्रजभाषा के अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर अन्तर्राष्ट्रीय पहचान पा चुकी लोक कलाकार माधुरी शर्मा से एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि मेरी शुरूआत तो आकाशवाणी मथुरा के मंच से हुई है। आकाशवाणी मंच मर्यादा और गरिमामयी औैर बहुत ही शालीन मंच है और सबसे बड़ी बात यह है कि वहाँ बिल्कुल देशी चीज़ें मिलेंगी। वहां पर कोई मिलावट नहीं है। यानी जो भी लोक गीत गाए जायें, जो भाषा बोली जाये, वो है ब्रजभाषा, हमारे ब्रज के लोगों के लिए, हमने वहाँ आकाशवाणी मंच से देश के कोने-कोने में कोई जगह ऐसी नहीं छोड़ी जहाँ पर ब्रजभाषा को नहीं पहुँचाया हो, विदेशों में भी ब्रजभाषा में ही गाया। लोग कहते थे कि इस भाषा को कौन समझेगा। मैं ऐसी-ऐसी जगह गयी हूँ जहां इस भाषा को लोगों ने पहली बार सुना था।
मैं आकाषवाणी की एक कलाकार हूँ ठाकुरजी की कृपा से आकाशवाणी का सबसे बड़ा ग्रेड मुझे मिला है टॉप ग्रेड जो कि पूरे उत्तर प्रदेश में, मैं एक अकेली कलाकार हूँ। टॉप प्लस ग्रेड जो की एक लोक कलाकार के लिए एक सपना जैसा होता है। वो कभी पूरा नहीं हो होता है और यदि पूरा हो जाए तो समझो कि ठाकुरजी की बड़ी कृपा हो गयी है।
शास्त्रीय और सुगम संगीत में तो यह मिल जाता है लेकिन लोकगायन के लिए मिलना एक असंभव सी बात है, क्योंकि लोककला को लोग शौकिया तरीके से ज्यादा गाते हैं। संगीत को सीख कर बहुत कम ही लोग गाते हैं। जो संगीत को सीख कर गाते हैं वह बहुत ऊपर तक जाते हैं।
उन्होंने बताया कि मैंने तो शास्त्रीय संगीत को सीखा है। विषारद किया है एम ए किया है। हमारे घर में हमारे बड़े भाईसाहब डॉ0 सत्यभान शर्मा जो कि हबेली संगीत के जाने माने गायक कलाकार हैं, वह आगरा में दयालबाग यूनिवर्सिटी में डीन के पद पर रह चूके हैं।
माधुरी शर्मा ने बताया कि मुझे शिमला में बुलाया गया था। शिमला आकाशवाणी की ओर से कुल्लू फेस्टिवल, दशहरा फेस्टिवल में तो वहाँ के एक सज्जन बोले, मैडम आप कहा से आईं हैं मेने कहा मथुरा से आयी हूँ, उन्होंने पहली बार मथुरा का नाम सुना था, मैंने जब कहा कि मैं तो उनकी मथुरा से आई हूँ, सुन कर उनके चेहरे का भाव ही बदल गया और कहने लगे अरे मैडम आपको कौन सुनेगा? मैंने कहा कि भैया यह तो समय ही बताएगा।
वहाँ पर 20 और 30 के ग्रुप में लोग गाने आते हैं, वहां मैं एक अकेली कलाकार वहां कोई अकेले गाने के लिए नहीं आता हैं, उस समय मैं लहंगा नहीं पहनती थी। जब शुरूआत में 1986 की बात रही होगी, मैं चौड़े बॉर्डर की साड़ी पहन के गाने जाती थी। उस समय मेरे लोकगीत इतनी तनमयता से वहां के लोगों ने सुना।
वहाँ के डाइरेक्टर कार्यक्रम के बाद तुरंत उठ के आए और हमारा सम्मान किया यह यादगार और स्मरणीय पल था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि आपने तो रिकॉर्ड तोड़ दिया। यहाँ यह दशहरा फेस्टिवल है, कुल्लू में इतनी बड़े मंच पर बड़े-बड़े ग्रुप आते हैं। यहाँ अकेला आदमी तो कोई आया ही नहीं और अगर आया भी तो यहां टमाटर फेंके जाते हैं और यहां से भगा देते हैं। आपको इतने प्रेम से लोगों ने सुना, मैंने कहा कि यह तो हमारे ठाकुरजी की हमारे उपर बड़ी कृपा है। मैं ब्रजभाषा में गाऊ ब्रजभाषा में बोलूं और तब भी सबकी समझ में आवे है।
आपके विदेशों के अपने अनुभव बताइए कैसा रहा?
विदेशों का अनुभव भी बड़ा अच्छा अनुभव है। वहाँ पहले तो हम गए 1991 में, मैं अगर यह कहूं तो कोई गलत बात नहीं होगी कि मैं ब्रज की पहली लोक कलाकार हूँ, जिसने विदेश की धरती पर जाकर के अपना लोक गायन प्रस्तुत किया हो।
वहाँ के लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दी?
वहाँ के लोगों की प्रतिक्रिया से पहले मैं बता दूं कि हमने ना तो अपनी वेशभूषा छोड़ी, मंच के अलावा भी हमने हर जगह पर साड़ी ही पहनी ये नहीं है कि हम और कोई ड्रेस में वहां घूमे हों। पूरे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप का वर्ड सॉन्ग फेस्टिवल था जो कि मलेशिया में हुआ था हमने वहां पर अपनी प्रस्तुति दी, मलेशिया में। सही बात कहूं कि वहाँ हमें एक बात सुनाई पड़ी क्योंकि यह आयोजन मलेशिया के कोलालम्पुर राजधानी में वर्ड सॉन्ग फेस्टिवल में हुआ था जिसमें हमने भाग लिया था भारत की ओर से आकाशवाणी महानिदेशालय ने हमको भेजा था?
क्योंकि जब हम ए ग्रेड हुए थे। तो तुरंत ही हमको ये बाहर का कार्यक्रम मिला। जब हम वहाँ पहुंचे तो सब ने हमको देखा सबने तो ये कहा की भाई एक कलाकार हैं, जिनसे बिना पूछे ही हम कह सकते हैं यह भारत की आर्टिस्ट हैं क्योंकि उनका बोलना, चालना, खाना-पीना और गाना और पहनना औढ़ना, सब कुछ भारतीय है, इनसे पूछने की जरूरत ही नहीं है। वो कहां की कलाकार हैं तो यह हमारे लिए बड़े गौरव की बात रही। जो हमारे लिए यह बात वहां कही गयी थी।
हम जब वहाँ से लौट आये तो हमारे बच्चों ने हमसे कहा कि ‘‘अरे मम्मी आप तो जैसी गयीं थीं, वैसी आ गयीं’’। तो मैंने कहा तो क्या करती, ‘‘अरे नहीं, बाल वॉल कटवा के आतीं कछु न कुछ बदल के आतीं’’ तो हमने उनसे क्या कहा ‘‘हम तो अपनों रंग चढ़ाए के आये हैं, काई को रंग हम पे न चढ़ सके, हम पे किसी का रंग क्यों न चढ़ सकता क्यों कि हम तो श्याम सुन्दर के रंग में रंगे भये हैं। हम तो उन पे रंग चढाये वे गए और चढ़ाएं के आये गये, उनको रंग हम पे नाय चढ़ सके। हम ब्रज में रहे हैं जहाँ हमारे कृष्ण कन्हैया रहे हैं और कन्हैया को रंग श्याम वर्ण है, श्याम को मतलब है कारो। तो भैया सुनील जी जे बताओ या रंग पे कछु रंग चढ़ सके का, चढ़ाओगे तो का बा पे कोई रंग चढ़ जावेगो का?
मंगलवार, 12 सितंबर 2023
निर्मला सुन्दरी से श्री श्रीमाँ आनन्दमयी
ब्रज में न जाने कितने ही लोग प्रतिदिन ब्रज और वृन्दावन में दर्शन करने आते कुछ तो यहीं बसने की आश लिए यहां आते हैं। भौतिक सुख सुविधाओं को त्याग कर कितने ही लोग यहां रह कर साधना में रत रहते हैं, असंख्य सन्तों ने इस दिव्य भूमि को अपनी साधना स्थली बना लिया और यहां पर रह कर आश्रम, मठ, मंदिरों का निमार्ण कर लोक कल्याण का काम किया है। इनमें एक नाम आनन्दमयी माँ का भी है जिन्होंने वृन्दावन में विशाल मंदिर का निमार्ण कराया और असंख्य लोगों को धार्मिक आस्था और भक्ति के मार्ग से जोड़ने का कार्य किया।
आनन्दमयी माँ का जन्म 30 अप्रैल सन् 1886 ई. वृहस्पतिवार के दिन रात्रि 3 बजे त्रिपुरा जिलान्तर्गत अभिवाजित बंगाल प्रान्त के ’सेउड़ा’ नामक ग्राम में हुआ था। पिता श्री विपिनबिहारी भट्टाचार्य“ तथा माँ का नाम “मोक्षदा सुन्दरी“ था। पूर्व जन्म की इन्हें स्मृति बनी रही। बचपन में माँ को खिला पिला देने पर भी वह हमेशा आकाश की ओर ही निहारती रहती थीं बाल्यावस्था में स्वाभाविक उदासीन स्वरूप देख लोग इन्हें ’ढेला’ या ’विदिशा’ भी कहने लगे थे। जिसका मतलब आजल या पागल कहते थे। इन्हें अपने देह की कोई सुधबुध नहीं रहती थी।
माँ ने बचपन में इनका नाम निर्मला सुन्दरी रखा था। आनन्दमयी माँ नाम तो बाद में ढाका के प्रसिद्ध ज्योतिष चन्द्र राय के साथ एक बार ’सिद्धेश्वरी ससान’ में जाने पर वहाँ के सन्यासी स्वामी मौनानन्द महाराज ने रखा था। शैशवकाल में अपने पितामह की सान्निध्य में गाँव की एक पाठशाला में अल्प शिक्षा ग्रहण की थी क्योंकि उस समय शिक्षा, देशकाल की सीमा तक ही सीमित थी। फिर भी तीव्र प्रतिभा एवं विलक्षण स्मरण शक्ति की धनी होने के चलते आप शिक्षा के प्रति अब जैसी इतनी जागरूकता न थी। उस समय की प्रथानुसार 13 वर्ष की आयु में सन् 1909 में ढाका विक्रमपुर आटपाड़ा गाँव के ’रमणी मोहन चक्रवर्ती’ के साथ आपका विवाह हो गया था।
इनकी लघु वैवाहिक जीवन यात्रा में भी अन्तर्मुखी साधना प्रवाहित रही। माँ के कारण ही पतिदेव ’रमणीमोहन’ का नाम ’भोलानाथ’ के नाम से विख्यात हुए। विवाह के कुछ समय बाद ही पतिदेव की पुलिस नौकरी की छूट गई। परिस्थितिवश ऐसे में 4 वर्ष तक जेठ के साथ साधन निरत रहते हुए रहना पड़ा। भोजन बनाते ही कभी समाधी लग जाती। ऐसी दशा देखकर आपसे जेठ बड़े प्रसन्न थे। चूल्हे पर चढ़ा सब कुछ जल जाता तो जेठानी प्रायः नाराज रहती थीं। पर कुछ बस न चलता। कुछ वर्षो बाद पतिदेव की नौकरी नवाब की रियासत अष्टग्राम में पुनः सर्वे विभाग में लग गई। तब वहाँ जयशंकर सेन के बाड़े में आकर आप रहने लगीं थीं। सेन की पत्नी का आपके प्रति इतनी श्रद्धा थी कि आपका नाम खुशी की माँ कह कर पुकारती थीं। आप भागवत आदि सुनते-सुनते भावावेश में आ जाती थी। इसी बीच 18 वर्ष की आयु में कई बार नौकरी से स्थानान्तरण भी हुआ। आपके अन्दर तीव्र प्रकट ज्योति होते देखकर कितने ही तान्त्रिकों एवं ओझाओं को आपके पतिदेव ने दिखाया किन्तु सभी नतमस्तक होकर वापस चले जाते थे। तब कहीं पतिदेव को भी ज्ञान हुआ कि यह पूर्व अर्जित भावदशा ईश्वरीय प्रदत्त महत स्थिती है। सन् 1922 ई. श्रावण झूलन पूर्णिमा को स्वतः दीक्षा सम्पन्न हुई। एवं योगिक, तांत्रिक क्रियाओं के साथ संस्कार आदिक मंत्र जप करना चलता रहा।
आपने कोई सम्प्रदाय नहीं चलाया। हिन्दू सभी देवी देवताओं में आस्था और उनका समान करती थी। इसी बीच सन् 1924 ई. में पुनः नौकरी छूट गई। अबकी बार नवाब के द्वारा ढाका मैनेजरी मिली। आप यहाँ शाहबाग में अपने देवर ’माखन’ एवं भतीजे ’आशु’ के साथ रहती थीं। यहीं पर आपकी अनन्य उपासिका गुरूप्रिया दीदी से भी प्रथम भेंट हुई। आगे चलकर माँ के चरणों में आजीवन बनी रहीं। इनके द्वारा मूलतः बंगाल में छपी ’श्री श्री माँ आनन्दमयी’ नामक संस्मरणात्मक रचनाएँ सन् 1964 ई. तक की अनुभूतियाँ 20 खण्डों में छपी है। इन रचनाओं की हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। माँ की बाहरी यात्रा सन् 1927 ई. से हरिद्वार तीर्थो के कुम्भ मेले से प्रारम्भ हुई। लौटते समय मथुरा वृन्दावन आई। फिर तो काशी आदि विभिन्न तीर्थों की यात्राएँ होती रहीं। बंगीय परिवेश के कारण आप शक्ति की विशेष उपासिका थीं। किंतु साथ में गौड़ीय सम्प्रदाय चैतन्य महाप्रभु के प्रति निष्ठा थी। माँ के सम्पर्क में आने में आगे चलकर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, आचार्य जे. पी. कृपलानी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. गोविन्दबल्लभ पंत, युगल किशोर विड़ला, यमुनालाल बजाज, श्रीमती अपर्णा रे, श्रीमती कमला नेहरू, श्री दिलीप कुमार राय, श्री महादेव देसाई, श्रीगोपाल स्वरूप पाठक, श्रीमती सुचेता कृपलानी, जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इन्द्रा गाँधी आदि थे।
वृन्दावन धाम आश्रम में एक बार मैंने भी साक्षात् दर्शन किये थे। उस समय उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था मैंने दर्शन किये और फिर 27 अगस्त सन् 1982 ई. 96 वर्ष की आयु में माँ ने देहरादून स्थित अपने किशनपुरा आश्रम में इस धाम को छोड़ कर हमेशा के लिए सभी को छोड़ कर चलीं गयीं। चमत्कार की वात तो यह थी कि इतनी वृद्धावस्था होने पर भी आपके एक भी बाल सफेद नहीं बल्कि स्याह काले ही बने रहे।
आपके आश्रम वृन्दावन में छलिया राधाकृष्ण की सेवा पूजा होती है
मन्दिर का निर्माण सन् 1950 ई. के लगभग सुश्री माँ आनन्दमयी जी के द्वारा किया गया। मंदिर में ठाकुर छलिया राधाकृष्ण विराजते हैं। बगल में गौर निताई भी है। मंदिर एक विशालकाय अहाते के में बना हुआ है। ठाकुर के छलिया नाम पड़ने का कारण बड़ा विचित्र है एकबार ग्वालियर के महाराज जियाजी राव सिंधिया ने अपने लिए अष्टधातु निर्मित एक भव्य मूर्ति बनवायी। स्थापना उत्सव में माँ को भी बुलवाया किन्तु उत्सव के पहले ही अचानक महाराज परलोकवासी हो गये। घटना से पत्नी जियाजी राव सिंधिया बड़ी मर्माहत हो गयीं। माँ के समझाने बुझाने पर अचानक यह आया कि छलिया यह वृन्दावन धाम में ही वसना चाहते है। माँ से वार्तालाप हुयी। माँ ने स्वीकार कर लिया। और वृन्दावन स्थित रामकृष्ण मिशन हास्पीटल के सामने आनन्दमयी माँ का आश्रम है। जहां राधारानी विग्रह, छलिया ठाकुर के साथ गौर निताई विग्रह भी स्थापित किये गए। तभी से ठाकुर का नाम छलिया पड़ गया।
एकबार काशी पक्के मोहल्ले में कोई बंगीय भक्त जमींदार का गोपाल मंदिर था। गरीबी के कारण आने वाला खर्च बन्द हो गया। भक्तराज तीन बार गोपालजी को गंगाजी में पधराने का प्रयास किया। दो बार व्यवधान पड़ने से गोपाल रुक गये। तीसरी बार ठाकुर ने स्वप्न दिया मुझे आनन्दमयी माँ को भेंट कर दो। माँ के आश्रम का पता लगाते हुए भक्त पहुँच गया। और घटना सुनाते हुए माँ को भेंट कर दिया। माँ ने वहीं काशीपुरी में गंगा के तट पर आनन्द ज्योति नामक मंदिर का निर्माण कराकर वहीं लड्डू गोपाल का विग्रह विराजित कर दिया। माँ के जीवन की ऐसी ही अनेक घटनाऐं है। राधाकृष्ण एवं गौर निताई विग्रह पूना आश्रम, उत्तरकाशी एवं देहरादून आदि सभी आश्रमों में विराजमान है। दीपावली कृष्णाष्टमी, एवं राधाष्टमी पर्व पर वृन्दावन में धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।
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