बुधवार, 9 अप्रैल 2025

राधाकुण्ड और उसके रज का महात्म्य

श्री राधाकुण्ड को श्री राधारानी का ही स्वरूप माना गया है।
श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं राधाकुण्ड और श्यामकुण्ड की महिमा को प्रकट किया था। गौड़ीय संप्रदाय में इसे श्री राधा-कृष्ण की माधुर्य लीलाओं का सर्वोच्च स्थल माना जाता है।
बंगाली समाज में विशेष श्रद्धा
बंगाल के भक्त राधाकुण्ड को केवल तीर्थ नहीं, बल्कि प्रेम का जीवंत स्थल मानते हैं। रज को अपने में समाहित कर लेने के लिए भाव विभोर होकर इसको अपने मस्तक पर लगा कर अपने आपको धन्य मानते हैं। 
राधाकुण्ड के रज की महिमा और इसका बंगाली समाज तथा गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्व अत्यंत गूढ़ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष है। इसे समझने के लिए हमें राधाकुण्ड की उत्पत्ति, उसकी लीला-महिमा और विभिन्न भक्त-सम्प्रदायों की दृष्टि को जानना होगा।
राधाकुण्ड की महिमाः
राधाकुण्ड ब्रजधाम में स्थित एक पवित्र कुण्ड है, जिसे श्री राधारानी का प्रिय स्थान माना जाता है। इसकी महिमा श्री चैतन्य महाप्रभु, श्रील रूप गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी जैसे महान संतों द्वारा वर्णित की गई है।
शास्त्रीय प्रमाणः
पद्मपुराण और स्कंदपुराण में राधाकुण्ड की महिमा का वर्णन आता है।
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी ने राधाकुण्ड को “प्रियतम स्थानों में सर्वाधिक प्रिय“ बताया हैः
“कृष्णस्य प्रियतमा राधिकायास्तदापि सः।
प्रियतमा तदा तस्याः कुंडं राधा समं स्मृतम् ।।“
“राधा कृष्ण के लिए जितनी प्रिय हैं, उतना ही प्रिय राधा को राधाकुण्ड है।“
राधाकुण्ड रज की महिमाः
राधाकुण्ड की रज (धूल) को अत्यंत पावन और मुक्तिदायिनी माना जाता है।
वैष्णव भक्तगण इस रज को मस्तक पर लगाकर स्वयं को राधारानी की दासी मानते हैं।
रज का एक कण भी आत्मा को शुद्ध करके भक्ति में अग्रसर कर सकता है।
बंगाली समाज के लिए राधाकुण्ड का महत्वः
बंगाली समाज के लोग राधारानी को ब्रज की स्वामिनी मानते हैं, और राधाकुण्ड को उनका हृदयस्थल।
उनके लिए यह कुण्ड केवल जल नहीं, बल्कि स्वयं श्रीराधा स्वरूप है।
यहाँ प्रतिदिन गोपियाँ, साधक, ब्रजवासी, बंगाली समाज व महिलाएँ-सभी सेवा, स्नान व परिक्रमा करते हैं।
गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्वः
गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय, जिसकी स्थापना श्री चैतन्य महाप्रभु ने की थी, राधाकुण्ड को सर्वोच्च तीर्थ मानते हैं।
श्री चैतन्य महाप्रभु की दृष्टिः
जब श्री चैतन्य महाप्रभु ब्रज यात्रा पर आए, तो उन्होंने गोवर्धन के निकट इस कुण्ड की पहचान की और उसमें स्नान कर कहाः
“यह स्थान राधारानी के प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक है।“
रघुनाथ दास गोस्वामी की सेवाः
उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राधाकुण्ड के तट पर तपस्या और सेवा में लगाया।
वे प्रतिदिन कुण्ड की परिक्रमा और रज से तिलक किया करते थे।
भक्तों की साधना का केंद्रः
आज भी गौड़ीय वैष्णव साधुजनों के लिए राधाकुण्ड साधना, सेवा और राधा-कृष्ण की भावनाओं में लीन होने का सर्वोत्तम स्थान है।
यह कुण्ड माधुर्यमयी लीलाओं का साक्षी है (राधा-कृष्ण की मधुर भाव भक्ति) की चरम अवस्था को प्रकट करता है।
राधाकुण्ड, गोवर्धन के निकट
श्रीराधा की भाव-समाधि, प्रेम की चरम अवस्था
रज की महिमा मुक्ति, भक्ति व राधा-कृष्ण सेवा की पात्रता देती है
ब्रजवासी दृष्टिकोण राधाकुण्ड = राधा स्वरूप, सेवा और श्रद्धा का केंद्र
गौड़ीय दृष्टिकोण सर्वोच्च साधना-भूमि, माधुर्य रस की चरम अनुभूति का केन्द्र बिन्दु है।

"श्याम कुण्ड, राधा कुण्ड, गिरी गोवर्धन।
मधुर मधुर वंशी बाजे, ऐई से वृन्दावन॥"

ये एक अत्यंत मधुर और भावपूर्ण भजन/कीर्तन की पंक्तियाँ हैं, जो वृंदावनधाम की दिव्यता और रसमयी लीलाओं का सार संजोए हुए हैं।
भावार्थ: श्याम कुण्ड और राधा कुण्ड:
श्रीकृष्ण और श्रीराधा के प्रीतिस्थल, जहाँ उनके प्रेम की सबसे गहन लीलाएँ प्रकट हुईं।

गिरी गोवर्धन:
श्रीकृष्ण का वह दिव्य पर्वत जिसे उन्होंने अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था और जो ब्रजवासियों का रक्षक बना।

मधुर मधुर वंशी बाजे:
श्रीकृष्ण की बंसी की वह तान जो गोपियों के हृदय को खींच लाती थी, ब्रह्मांड को मोहिनी कर देती थी।

"ऐई से वृन्दावन":
यही है असली वृंदावन – लीलामय, रसमय, कृष्णमय। जहाँ हर कण में प्रेम है, और हर ध्वनि राधे-श्याम का गुणगान।

मंगलवार, 11 मार्च 2025

गधा एक बुद्धिमान प्राणी था और आज भी है

यह एक दिलचस्प और प्रेरणादायक दृष्टिकोण है! अक्सर गधे को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन वास्तव में वह एक बेहद व्यावहारिक और समझदार प्राणी है। पहाड़ी रास्तों के निर्माण में उसका ऐतिहासिक योगदान रहा है जिसे सुनकर आश्चर्य होता है।


गधों की यह सहज नेविगेशन क्षमता और सुरक्षित मार्ग खोजने की प्रवृत्ति वास्तव में प्रशंसनीय है। आधुनिक तकनीकों के अभाव में हमारे पूर्वजों ने गधों की इसी स्वाभाविक बुद्धिमत्ता का उपयोग किया, और आज भी कई स्थानों पर गधे दुर्गम इलाकों में यातायात का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।


इससे हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी चीज़ को सतही नजरिए से आंकने की बजाय उसके वास्तविक गुणों और विशेषताओं को समझना चाहिए। क्या आपने कभी पहाड़ी क्षेत्रों में गधों के इस व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से देखा है?

आज के बाद कोई आपको गधा वोले तो आप वुरा न मानिए किन्तु आप गर्व महसूस करिए क्यों कि एक समय में पृथ्वी के पवर्तीय इलाकों में रास्तों की खोज, पहचान व उन्हें डिजायन करने का कार्य गधे ही किया करते थे। 


क्यों आपको विश्वास नहीं हो रहा है न तो चलिए देखते हैं। पहाडी इलाकों में रास्ता बनाना बहुत ही कठिन कार्य होता था, हम यदि एक दम नीचे से पहाड़ के सिरे तक एक रास्ता बनाते है तो ढ़ाल इतना अधिक होगा कि बैल गाड़ी, घोड़ा गाड़ी यहाँ तक कि बस व ट्रक आदि का जाना-आना अति कठिन होगा वह आसानी से आ व जा नहीं सकेंगे, रास्ते का ढाल लगभग 10 डिग्री से कम रखना होगा क्यों कि अगर एकदम सुरक्षित रास्ता बनाते हैं या एकदम कम स्लोप में रास्ता बनाते हैं तो ऊपर चढ़ने में काफी समय लग सकता है, इसके लिए इन दोनों के बीच में एक ऑप्टीमल पाथ निकालने के लिए एक गधे का उपयोग किया जाता था। गधे को पहाडी इलाकों में छोड दिया जाये तो वह इन्स्टैंटली अपना रास्ता निकाल कर चलना शुरू कर देगा। वह किसी दुर्गम या खराब रास्ते पर भी नहीं चढ़ेगा और वह एक दम कम खराब रास्ते पर भी नही जागेगा, जिसमें समय अधिक लगेगा।


एक समय था जब सेटेलाइट, मेप, फेन्सी मेजरिंग उपकरण इत्यादि की व्यवस्था नही थी, जिससे सहज ही पहाड पर्वत के मेप बनाये जा सकते, तब क्या करते थे, एक गधे को छोड़ देते थे और उसके पीछे-पीछे लोग चला करते थे और देखते थे कि गधा किस रास्ते से पहाड़ में चढ़ रहा है और उसी के अनुसार इन्सान ने रास्ते बनाये हैं।


इसी लिए कोई गधा बोलने या गाली देने पर किसी भी प्रकार से अपना मन खराब न करें, गधा एक बुद्धिमान प्राणी था और आज भी है।


मथुरा में युवा गायकों, कलाकारों को एक मंच पर लाने का श्रेय नम्रता सिंह को जाता है।

        कलाकार होना एक यात्रा है। एक ऐसी यात्रा जो कल्पना, जुनून और निरंतर अभ्यास से संवरती है। यदि आप एक उदीयमान कलाकार हैं, तो याद रखें कि हर महान कलाकार कभी न कभी इसी मुकाम पर था जहाँ आज आप हैं। सृजन की शक्ति आपके भीतर एक अनूठी दृष्टि है, एक कहानी है जिसे दुनिया तक पहुँचाना आपका कर्तव्य है। अपनी कला के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त करें, विचारों को आकार दें और अपने भीतर छुपी संभावनाओं को उजागर करें। 

        संघर्ष और धैर्य के साथ हर कलाकार को संघर्षों से गुज़रना पड़ता है। अस्वीकृति और कठिनाइयाँ इस राह के अभिन्न अंग हैं। लेकिन याद रखें, हर कठिनाई आपको और मजबूत बनाती है। धैर्य रखें, अभ्यास करें और अपनी कला में निरन्तर निखार लाने के लिए हर दिन कुछ नया सीखें। प्रेरणा और अनुशासन में प्रेरणा महत्वपूर्ण है, लेकिन अनुशासन के बिना यह अधूरी है। 

        अपनी कला को नियमित रूप से निखारें, एक रूटीन बनाएं और उसे पूरी ईमानदारी से निभाएं। महानता एक दिन में नहीं मिलती, लेकिन निरंतर प्रयास इसे संभव बनाती है। अपनी आवाज़ खोजें दूसरों से प्रेरणा लें लेकिन उनकी नकल न करें। अपनी शैली विकसित करें, अपने अंदर की आवाज़ को पहचानें और उसे अपनी कला में उकेरें। यही आपको सबसे अलग और विशिष्ट बनाएगा। 

        साझा करें और सीखें अपनी कला को दूसरों के साथ साझा करें, प्रतिक्रिया लें और उसे सुधारने का प्रयास करें। नए विचारों और नई तकनीकों के प्रति खुले रहें। प्रत्येक कलाकार हर सीखने की प्रक्रिया में होता है और यही उसे विकसित करता है। सपनों को मत छोड़िए जोश और समर्पण के साथ आगे बढ़ते रहें। जब भी संदेह हो, यह याद करें कि आपकी कला किसी न किसी के लिए प्रेरणा बन सकती है। इस सफर में आत्मविश्वास और जुनून बनाए रखें, क्योंकि एक न एक दिन आपकी कला ही आपकी पहचान बनेगी। 

        नम्रता ने भी एक ऐसे मंच की कल्पना की जिसमें ब्रज के उदीयमान कलाकारों को प्रोत्साहित किया जा सके। प्रत्येक रविवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम व ब्रज तराना में हिन्दी गीत कला साहित्य से सम्बन्धित प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। जिसमें स्थानीय प्रतिभावान गायक कलाकारों को अपनी प्रस्तुति देने का अवसर प्रदान किया जाता है। इसमें ऐसे कलाकार जो अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर पा सकते हैं। यहां स्थानीय कलाकारों द्वारा शानदार प्रदर्शन कर मधुर संगीत के मध्य गायकी का प्रदर्शन करने का अवसर पा कर दर्शकों को मुत्रमुग्ध कर सकते हैं। 

        हाल ही में मथुरा वृन्दावन की सांसद श्रीमती हेमा मालिनी व उ0 प्र0 ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष शैलजा कान्त मिश्र जी ने ब्रजकला चौपाल के मंच पर पहंच कर नम्रता सिंह के प्रयास को सराहा। ब्रज कला चौपाल संस्था की संस्थापिका नम्रता सिंह ने बताया कि मथुरा में ब्रज कला चौपाल की स्थापना कलाकारों को दुनिया के सामने लाने का एक प्रयास है। लम्बे समय से नम्रता ने प्रत्येक छोटे बड़े मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। 

        भगवान श्रीकृष्ण के 5251 वें जन्मोत्सव, ब्रजरज उत्सव, या रंगोत्सव के मंच से नम्रता ने अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। जिसमें उभरती हुई गायक कलाकार नम्रता सिंह की प्रस्तुति सभी के मन को भा गयी। नम्रता गरीब, असहाय व वृद्ध, बीमार लोगों की मदद करने के साथ-साथ वृद्ध महिलाओं के प्रति भी दया व उनके बीच में जाकर उनकी हर सम्भव मद्द करने का कार्य भी करती है। पशुओं  के प्रति भी दया का भाव रखती है। 

        नम्रता ने बताया कि इस मंच पर बहुत सारे बच्चे, बड़े, बूढ़े जिनका सपना था कि वे कला क्षेत्र में कुछ करें, उनको यहां एक मंच मिल गया है। जिस पर वे स्वतंत्र रूप से अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल मथुरा-वृन्दावन शहर में प्रत्येक रविवार शाम 5 बजे से जवाहर बाग, (ब्रज तीर्थ ऑफिस के पास) में यह कार्यक्रम होता है। इस रोमांचक मंच पर बच्चे युवा अपनी प्रतिभा को निखार सकते है। नम्रता सिंह ने बताया कि संस्था का उद्देश्य समाज को मानसिक स्वस्थ्य बनाया जा सके। इसके लिए लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है। 

        ‘‘सफलता मिलना आसान है, किन्तु उसको बनाये रखना कठिन है’’ किसी ने ठीक ही कहा है, किसी-किसी की उम्र गुजर जाती है प्रसिद्धि पाने में, यह जितनी जल्दी मिलती है, उतनी ही तेज़ी से वापस भी चली जाती है। हर किसी व्यक्ति के बस में नहीं है इसे संजोकर रखना। किसी भी परिस्थिति में सफलता को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देना चाहिए। आप कितने भी सफल व्यक्ति क्यूँ ना बन जाएं परन्तु आपको अपनी वास्तविकता कभी नहीं भूलनी चाहिए। समय और परिस्थिति के साथ आगे जरूर बढ़ना चाहिए, किन्तु इस बीच सफलता दिमाग़ पर नहीं बैठनी चाहिए। व्यक्ति का अहम्, घमंड उसको कहीं का नहीं छोड़ता। आप जितने अपने पैरों को ज़मीन पर रखकर चलेंगे, आपको उतनी ही क़ामयाबी की राह मजबूती से मिलेगी।