श्री राधाकुण्ड को श्री राधारानी का ही स्वरूप माना गया है।
श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं राधाकुण्ड और श्यामकुण्ड की महिमा को प्रकट किया था। गौड़ीय संप्रदाय में इसे श्री राधा-कृष्ण की माधुर्य लीलाओं का सर्वोच्च स्थल माना जाता है।
बंगाली समाज में विशेष श्रद्धा
बंगाल के भक्त राधाकुण्ड को केवल तीर्थ नहीं, बल्कि प्रेम का जीवंत स्थल मानते हैं। रज को अपने में समाहित कर लेने के लिए भाव विभोर होकर इसको अपने मस्तक पर लगा कर अपने आपको धन्य मानते हैं।
राधाकुण्ड के रज की महिमा और इसका बंगाली समाज तथा गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्व अत्यंत गूढ़ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष है। इसे समझने के लिए हमें राधाकुण्ड की उत्पत्ति, उसकी लीला-महिमा और विभिन्न भक्त-सम्प्रदायों की दृष्टि को जानना होगा।
राधाकुण्ड की महिमाः
राधाकुण्ड ब्रजधाम में स्थित एक पवित्र कुण्ड है, जिसे श्री राधारानी का प्रिय स्थान माना जाता है। इसकी महिमा श्री चैतन्य महाप्रभु, श्रील रूप गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी जैसे महान संतों द्वारा वर्णित की गई है।
शास्त्रीय प्रमाणः
पद्मपुराण और स्कंदपुराण में राधाकुण्ड की महिमा का वर्णन आता है।
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी ने राधाकुण्ड को “प्रियतम स्थानों में सर्वाधिक प्रिय“ बताया हैः
“कृष्णस्य प्रियतमा राधिकायास्तदापि सः।
प्रियतमा तदा तस्याः कुंडं राधा समं स्मृतम् ।।“
“राधा कृष्ण के लिए जितनी प्रिय हैं, उतना ही प्रिय राधा को राधाकुण्ड है।“
राधाकुण्ड रज की महिमाः
राधाकुण्ड की रज (धूल) को अत्यंत पावन और मुक्तिदायिनी माना जाता है।
वैष्णव भक्तगण इस रज को मस्तक पर लगाकर स्वयं को राधारानी की दासी मानते हैं।
रज का एक कण भी आत्मा को शुद्ध करके भक्ति में अग्रसर कर सकता है।
बंगाली समाज के लिए राधाकुण्ड का महत्वः
बंगाली समाज के लोग राधारानी को ब्रज की स्वामिनी मानते हैं, और राधाकुण्ड को उनका हृदयस्थल।
उनके लिए यह कुण्ड केवल जल नहीं, बल्कि स्वयं श्रीराधा स्वरूप है।
यहाँ प्रतिदिन गोपियाँ, साधक, ब्रजवासी, बंगाली समाज व महिलाएँ-सभी सेवा, स्नान व परिक्रमा करते हैं।
गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्वः
गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय, जिसकी स्थापना श्री चैतन्य महाप्रभु ने की थी, राधाकुण्ड को सर्वोच्च तीर्थ मानते हैं।
श्री चैतन्य महाप्रभु की दृष्टिः
जब श्री चैतन्य महाप्रभु ब्रज यात्रा पर आए, तो उन्होंने गोवर्धन के निकट इस कुण्ड की पहचान की और उसमें स्नान कर कहाः
“यह स्थान राधारानी के प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक है।“
रघुनाथ दास गोस्वामी की सेवाः
उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राधाकुण्ड के तट पर तपस्या और सेवा में लगाया।
वे प्रतिदिन कुण्ड की परिक्रमा और रज से तिलक किया करते थे।
भक्तों की साधना का केंद्रः
आज भी गौड़ीय वैष्णव साधुजनों के लिए राधाकुण्ड साधना, सेवा और राधा-कृष्ण की भावनाओं में लीन होने का सर्वोत्तम स्थान है।
यह कुण्ड माधुर्यमयी लीलाओं का साक्षी है (राधा-कृष्ण की मधुर भाव भक्ति) की चरम अवस्था को प्रकट करता है।
राधाकुण्ड, गोवर्धन के निकट
श्रीराधा की भाव-समाधि, प्रेम की चरम अवस्था
रज की महिमा मुक्ति, भक्ति व राधा-कृष्ण सेवा की पात्रता देती है
ब्रजवासी दृष्टिकोण राधाकुण्ड = राधा स्वरूप, सेवा और श्रद्धा का केंद्र
गौड़ीय दृष्टिकोण सर्वोच्च साधना-भूमि, माधुर्य रस की चरम अनुभूति का केन्द्र बिन्दु है।
"श्याम कुण्ड, राधा कुण्ड, गिरी गोवर्धन।
मधुर मधुर वंशी बाजे, ऐई से वृन्दावन॥"
ये एक अत्यंत मधुर और भावपूर्ण भजन/कीर्तन की पंक्तियाँ हैं, जो वृंदावनधाम की दिव्यता और रसमयी लीलाओं का सार संजोए हुए हैं।
भावार्थ: श्याम कुण्ड और राधा कुण्ड:
श्रीकृष्ण और श्रीराधा के प्रीतिस्थल, जहाँ उनके प्रेम की सबसे गहन लीलाएँ प्रकट हुईं।
गिरी गोवर्धन:
श्रीकृष्ण का वह दिव्य पर्वत जिसे उन्होंने अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था और जो ब्रजवासियों का रक्षक बना।
मधुर मधुर वंशी बाजे:
श्रीकृष्ण की बंसी की वह तान जो गोपियों के हृदय को खींच लाती थी, ब्रह्मांड को मोहिनी कर देती थी।
"ऐई से वृन्दावन":
यही है असली वृंदावन – लीलामय, रसमय, कृष्णमय। जहाँ हर कण में प्रेम है, और हर ध्वनि राधे-श्याम का गुणगान।
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