मंगलवार, 2 मई 2023

हनुमान जी ने मुसीबत में कैसे मदद की


 मैं एक सच्ची घटना से आपको परिचय कराना चाहता हूँ

हनुमान जी ने मुसीबत में कैसे मदद की

इस घटना को हालांकि काफी समय हो चुका है और इस घटना के हम तीन मुख्य किरदार हैं, एक मैं और मेरे दो अन्य साथी पेशे से हम एक ही फील्ड से आते हैं, हालांकि एक मित्र अब इस दुनिया में नहीं है। हम तीनों दोस्त किसी कार्य से मथुरा से दिल्ली गये थे, मेरा एक मित्र जो कुछ धनी भी था, उसने उस समय एक पुरानी मारूति 800 खरीदी थी और उसी को कार चलाना भी आता था, और काम भी उसी का ही था दिल्ली में, हम दोनों तो उसके साथ तफरी करने के लिए चले गये थे। दिल्ली में सभी काम निपटाने के बाद, जब हम तीनों मथुरा के लिए चल दिये तो ठीक-ठाक फरीदावाद तक सही सलामत आ गये और करीब 8 या 8.30 का समय रहा होगा, हमारी कार अचानक ही खराब हो गई।

हम लोगों ने एक रेस्टोरेन्ट में कुछ खाना खाया और बापस आकर तीनों कार में बैठे, कुछ दूर चलने के बाद कार के बोनट से अचानक धुंआ निकलने लगा, बोनट खोलने पर उसमें होने वाला कूलेन्ट बुरी तरह से उबल रहा था। किसी तरह से उसे ठन्डा करने का प्रयास भी किया, फिर जब उसे स्टार्ट किया तो वह स्टार्ट ही नहीं हुई, काफी कोशिश करने पर भी जब वह चालू नहीं हुई तो पास ही में एक कार मैकेनिक को दिखाई गई। उसने देखने के वाद बताया कि इसका रेडीएटर खराब हो गया है और इसमें काफी खर्चा आयेगा बदलने में, हम तीनों ने फैसला किया कि इसे धक्का मार कर कुछ दूर ले जाकर किसी अन्य मिस्त्री को दिखाया जाये, रास्ते में पडने वाले कई कार मैकेनिक को दिखाया किसी ने उसे ठीक करने का कोई तरीका नहीं बताया। उधर धीरे-धीरे रात का अंधेरा भी बढ़ रहा था और नेशनल हाईवे पर भी धीरे-धीरे लोगों का आवागमन कम होता जा रहा था और सड़कें सुनसान होती जा रही थी। 

हमारे पास कोई भी दूसरा रास्ता नहीं था कि हम न तो कार को कहीं छोड़ सकते थे और न वह रात में ठीक हो सकती थी और न ही पास में इतने पैसे थे कि उसे ठीक कराया जा सके। हमें यही उचित लगा कि कार चलाने वाला तो कार में बैठ कर स्टेयरिंग संभाले और हम दो कार को पीछे से धक्का मारते रहें और हम तीनों ने यही किया कुछ दूर धक्का मारते और फिर थक जाते तो कुछ देर आराम करके फिर धक्का मारने में लग जाते यह करते-करते रात करीब ग्यारह बज चुके थे, समय भी कैसे निकल गया पता ही नहीं चला।

पलबल से पाँच किलोमीटर से भी पहले एक गाँव दिखाई दिया। गाँव के मुहाने से अन्दर तलक सन्नाटा छाया हुआ था कुछ हिम्मत करके अन्दर जाने का प्रयास किया तो गाँव में मौजूद कुत्तों ने हम अंजान लोगों को देख भौंकना शुरू किया जो वह बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहे थे, अचानक कुछ बुजुगों की आवाज उस अंधेरे के बीच से होकर आई ‘‘को ये’’ ‘‘को ये’’ हमने उन्हें अपनी बिना बुलाये आई मुसीबत को बताया तो उन्होंने कहा कि गाँव के बाहर ही एक बन्द दुकान में बल्व जल रहा होगा उससे पूछो। लौट कर उसके पास आये उसने अपनी दुकान खोली जो कि उसी में शायद रात में रहता होगा और रात्री में बाहन चालकों की मदद भी करता होगा, उसने भी काफी प्रयास किया लेकिन कार ठीक न हो सकी और अब हमारा आखिरी प्रयास भी बिफल हो गया। हम निराश और हताष होकर सड़क के किनारे बैठ गये। 

कुछ समय के बाद मुझे पास में ही एक मंदिर दिखाई दिया जो कि सड़क से कुछ उंचाई पर था यानी कि कुछ सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर में कुछ चार पांच फुट के हनुमान जी बिराजमान थे, मैंने उनके दर्शन किये और जो कुछ जेब में था वह चढ़ाया और प्रार्थना की कि प्रभु इस मुसीबत के समय हमारी मदद करें और कोई रास्ता सुझायें। यह कह कर जब में नीचे आया तो सुनसान सड़क पर अचानक एक बड़ी सी गाड़ी जो कि आगरा नम्बर की थी आकर रुकी, चूंकी हमारी गाड़ी का नम्बर भी आगरा का ही था तो उस गाड़ी में बैठे व्यक्ति जो शायद किसी फैक्टरी के मालिक या कोई बहुत बड़े व्यवसायी थे। वह गाड़ी और पहनावे के अनुसार काफी धनी व्यक्ति प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने पहले हमारा परिचय जाना फिर हमसे हमारे काम के विषय में जानकारी की, जब हमने उन्हें तीनों ही पत्रकार होना बताया तो उन्होंने आगरा के तमाम अखवारों के मालिक व उसमें काम करने वाले प्रमुख लोगों के नाम आदि पूछे और पूरी तस्ल्ली कर ली, वह गाड़ी का नम्बर आगरा का होने के चलते रुक गये थे, शायद आगरा का नम्बर न होता तो वह नहीं रुकते।

अब हमारे साथ समस्या थी कि गाड़ी को सुनसान सड़क पर कैसे छोड़ा जाये तो उस व्यवसायी ने सुझाब दिया कि पास के पेट्रोल पम्प पर कार को छोड दिया जाये और आप तीनों मेरे साथ मेरी गाड़ी में मथुरा तक चलें, मैं मथुरा तक छोड़ दूंगा। अब हमारे साथ समस्या थी कि गाड़ी को कैसे ले जाया जाये तो उन्होंने कहा कि कोई रस्सी हो तो मेरी गाड़ी के साथ बांध कर पेट्रोल पम्प तक छोड़ा जाये। मगर न तो हमारे पास कोई रस्सी थी न ही उनके पास रस्सी थी, कुछ समय तक सोच विचार कर ही रहे थे कि अचानक एक चमत्कार सा हुआ देखते ही देखते सड़क के बीचों बीच एक सस्सी का बंडल बंधा हुआ और वह भी बिलकुल नया गिरा हुआ देखाई दिया, हम सभी उस रस्सी के बंडल को देख आश्चर्य चकित रह गये कि अचानक हमारे ही सामने इतना बड़ा रस्सी का बंड़ल आखिर आया कहां से खेर जो भी हो शायद हनुमान जी महाराज ने हमारी सुन ली और शायद यह उन्हीं का चमत्कार था। हम लोगों ने उस व्यवसाई की एसयूवी गाड़ी के पीछे मारूति 800 को बांधा और कुछ दूरी पर ही पेट्रोल पम्प पर उसे छोड़ कर पेट्रोल पम्प मालिक को बता कर कि कल सुबह गाड़ी ले जायेंगे। हम उस व्यवसाई की गाड़ी में बैठ कर लगभग तीन बजे के आसपास मथुरा तक पहुंचे थे।


अगर हनुमान जी से प्रार्थना मन से न की होती तो शायद हमें रात भर उस गाड़ी के चक्कर में सुनसान सड़क पर ही गुजारनी पड़ती और न जाने क्या अनहोनी होती पता नहीं, मगर हनुमान जी महाराज बजरंग बली की कृपा कि एक गाड़ी वाले महानुभाव उस समय देवदूत बन कर आये और दूसरा वह रस्सी का बंडल जो कि बीच सड़क पर उसी समय गिरा दोनों घटना ने मुझे हमेशा-हमेशा के लिए हनुमान जी के प्रति आस्थावान बना दिया। जय बजरंग बली की, ।। जय श्रीराम।।


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