सोमवार, 1 अगस्त 2011

यमुना के बिना कैसे होगी मुक्ति

यमुना के बिना कैसे होगी मुक्ति

सुनील शर्मा 
मथुरा। मोक्ष की प्राप्ति और मृत आत्माओं की शान्ति के लिये यमुना किनारे शवों के दाह संस्कार की परम्परा आदि काल से चली आ रही है। लेकिन आज इन मृत आत्माओं के शरीर की दाहक्रिया किये जाने के वाद अवशेषों के लिये यमुना जल भी नसीब नहीं हो रहा है। यमुना नदी में शहर के गंदे नाले तो जाकर मिल सकते है लेकिन मृत आत्माओं के शरीर के अवशेष यमुना में नही जा सकते है। इन आत्माओं की शान्ति के लिए पुनः किसी भागीरथ जैसे के आने की आवश्यकता है जो कि मोक्षधाम के आस-पास इकट्ठा हो रहे मृत शरीर के अवशेषों के लिये यमुना को यहां तक ला सके।

राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की मुक्ति के लिये भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया जिसके कारण उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्थ हो सका, वहीं आज तक यमुना हमारे जीवन और संस्कृति का अंग है। लेकिन जहां मथुरा भी धार्मिक स्थानों में से एक है जहां यदि किसी की मृत्यु हो जाती है और उसे यमुना नदी का जल मिल जाय तो उसकी पूर्ण मुक्ति मानी जाती है। नारद पुराण के अनुसार ‘‘अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, ह्यवन्तिका, पुरी, द्वारावती, चैव सप्तैता मोक्षदायिका’’ भारत की सात मोक्ष दायिनी पुरियों में से मथुरा भी एक पुरी मानी गयी है। जिसका आम जनमानस में बड़ा महत्व हैं। लेकिन शहर के बीचों-बीच बने दो शवदाह गृह ऐसे हैं। जिनमें अब तक लाखों मृत शरीरों को जलाया जा चुका होगा। लेकिन मजबूरी में परिवारी जन अपने इष्ट मित्र परिजनों आत्मीय जनों की दाह क्रिया तो करते है लेकिन दाह क्रिया के बाद क्या उनके शरीर के बचे अवशेष यमुना नदी में प्रवाहित कर पाते हैं। यह कोई न तो सोचता है न ही देखता है।

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मान्यता है कि मृत शरीर की दाह क्रिया के बाद बचे अवशेष को निकट नदी में प्रवाहित किया जाय तभी मृत आत्मा को मुक्ति मिल पाती है। लेकिन आज तक लाखों आत्माएं मुक्ति की बाट जोह रही है शायद इन्हें मुक्ति नहीं मिली हो क्योंकि इनके अवशेषों को यमुना नदी में तो बहाया ही नहीं जाता है।
करोंड़ों रुपया खर्च करने के बाद नगर के धन्नासेठों ने पुण्यलाभ की कामना से मोक्षधाम का निर्माण तो कराया लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया कि मृत शरीर के अवशेष यमुना तक कैसे पहुंचेंगे। न ही यमुना इनके निकट आ सकती है ओर न ही मोक्षधाम यमुना के निकट जा सकता है। मोक्षधाम व यमुना के बीच भी यमुना में सौन्दर्यीकरण के नाम पर लाखों वृक्ष तो लगाये गये हैं लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि इन मृत आत्माओं के शरीर के अवशेष यमुना नदी तक कैसे जायेंगे। मोक्षधाम के पीछे की जमीन किसी की निजी सम्पत्ति बताई जाती है या इस पर भी अतिक्रमण किया गया है, वह अपनी जमीन से किसी प्रकार की नाली को यमुना तक नहीं निकालने देता है। इससे अवशेषों को किसी तरह से भी यमुना में प्रवाहित नहीं किया जा सकता है। 

आज स्थिति यह है कि मोक्षधाम के नीचे से मथुरा की पंचकोसी परिक्रमा का मार्ग भी है या तो परिक्रमा मोक्षधाम के अन्दर से होकर जाती है या मोक्षधाम के नीचे से जाती है। मोक्षधाम में जलने वाले शवों के अवशेष इसी सड़क पर या उससे आगे बनाये गये छोटे से गड्डे में जाकर जमा हो रहे हैं। परिक्रमाथियों को इन्हीं अवशेषों के उपर से होकर गुजरना पड़ता है। मोक्षधाम से एक नाली के जरिये इन अवशेषों को इसी गड्डे में जमा किया जा रहा है। लेकिन मोक्षधाम में जलाई जाने वाली चिताओं की अग्नि शान्त होने पर न तो यमुना का जल ही मिल रहा है न ही यह अवशेषों को यमुना तक ले जाने कोई व्यवस्था की गई है।
हजारों लाखों की संख्या में ब्रज में मरने वाले मुक्ति के लिये भटक रहे है उनके मृत शरीर के अवशेष यमुना में मिलने को तड़फ रहे है तथा परिवारीजनों के मन में हमेशा मलाल ही रहता है, कि उनके परिजनों व आत्मीयजनों को यमुना का जल नहीं मिल पा रहा है। आज यमुना नदी की स्थिति क्या है यह किसी से छुपी नही है। इसमें शहर का गंदा पानी, नालों का पानी, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से गिर सकता है, मिल सकता है, लेकिन शवदाह गृहों में मृत शरीर के अवशेष को यमुना में नहीं बहाया जा सकता है।

यमुना नदी नहीं है यह मोक्ष दायिनी है ऐसा मन में भाव लिए गांव देहात से लोग यमुना पल्लीपार, यहां तक कि हाथरस जनपद तक से लोग अपने परिजनों को यमुना नदी के जल के किनारे दाहक्रिया करने के लिए मथुरा तक आते हैं। यही कारण है कि पुराने शहर यानी चौक बाजार या उसके आसपास के लोग भी दूसरे शमशान स्थल नये पुल के पास आज भी जाते हैं क्यों कि वहां यमुना का किनारा नजदीक होने के चलते अपने प्रियजनों की दाह क्रिया को करना उचित मानते हैं।

मोक्षधाम स्थल पर ही इस पर चर्चा करते हुए भागवताचार्य विष्णु आचार्य ‘‘विराट’’ ने कहा कि किस प्रकार से इन अवशेषों की दुर्गति हो रही है, इसके लिए कुछ किये जाने की आवश्यकता है।
वहीं कथा वाचक रमाकान्त गोस्वामी ने कहा कि ब्रज में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है यह तो यहीं की रज में मिल जायेंगे। उनका भाव ऐसा था।
दूसरी तरफ हिन्दूवादी नेता गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने कहा कि इस प्रकार का दृश्य देखकर कष्ट होता है जल्द इसके लिए सार्थक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। मोक्षधाम से यमुना नदी तक के लिए एक पाइप लाइन डाल कर इन अवशेषों को यमुना तक पहुंचाया जा सकता है।
शमशान घाट पर उपस्थित सभी उपस्थित लोगों का भाव यही था कि मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए उनके शरीर के अवशेषों को सद्गति के लिए यमुना जल तो मिलना ही चाहिए।
कैसे होगी ब्रजवासियों की मुक्ति कौन पुनः भागीरथ की तरह आयेगा और इन मृत आत्माओं की मुक्ति के लिये यमुना को यहां तक लायेगा। यमुना के बिना कैसे होगी इन मृत आत्माओं की मुक्ति।

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