बुधवार, 28 अगस्त 2013

मंदिरों में अलग अलग तरह से मनाई जाती है जन्माष्टमी

श्रीधाम वृंदावन आने का सौभाग्य प्राप्त होने पर भी यदि वृंदावन में बाँकेबिहारी के दर्शन न किये जाये तो तीर्थ करना अधूरा ही रह जाता है। 
बाँकेबिहारी के मंदिर का निर्माण लगभग संवत् 1921 में हुआ इस मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास जी के वंशजों के सामुहिक प्रयासों से हुआ। आरंभ में किसी धनी मानी व्यक्ति का धन इस मंदिर में नहीं लगाया गया। 
श्रीस्वामी हरिदास जी बाल्यकाल से ही संसार से विरक्त थे। वह एक मात्र श्यामाश्याम का ही गुणगान किया करते थे। यमुना के निकट निर्जन स्थान पर युगल छवि में ध्यान मग्न रहा करते थे। उन्होंने 25 वर्षों की अवस्था में विरक्तवेश ले लिया था।
आप ने जहां जिस स्थान पर निधिवन में युगल छवि का ध्यान किया था। वहीं पर श्रीविग्रह भूमि से बाहर निकाले जाने का स्वप्नादेशानुसार श्रीस्वामी जी की आज्ञा पाकर श्री विठल विपुल आदि शिष्यों ने बाँके बिहारी को भूमि से प्राप्त किया था। आज बाँके बिहारी अपनी रूप माधुरी से विश्व के तमाम लोगों को रिझाते हैं। यहां वर्ष में एक ही दिन हरियाली तीज को ठाकुर स्वर्ण हिंडोले में विराजते हैं जिसके दर्शनों को लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। चैत्र मास की एकादशी से श्रावण मास की हरियाली अमावस्या प्रतिदिन ठाकुर जी का फूल बंगला सजाया जाता है। 
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाँके बिहारी के मंदिर में कोई विशेष आयोजन तो नहीं होते है लेकिन यहां जन्माष्टमी का अभिषेक रात्री 2ः30 के करीब होता है। प्रातः 5 बजे से मंगला आरती के दर्शन होते हैं। यहां की एक विशेषता और है कि बाँके बिहारी जी की निकुंज सेवा होने के कारण आरती में कोई शंख घण्टा घडि़याल नहीं बजते शान्तभाव में आरती होती है।

गोविन्द देव जी का मंदिर
श्रीगोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर है। उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली का लाल पत्थर का बना प्राचीनतम मंदिर है वर्तमान स्वरूप में जो मंदिर दिखाई देता है यह भवन औरंगजेब के अत्याचारों एवं क्रूरता का साक्षी है। इसके ऊपर के हिस्से को तोड़ दिया गया था। आकाशचुम्बी इस मंदिर का निर्माण गौड़ीय गोस्वामी श्री रूप सनातन गोस्वामी के शिष्य जयपुर नरेश श्री मानसिंह ने सवंत् 1647 में कराया था। आताताइयों के आक्रमण करने से पूर्व ही राजा मानसिंह के जयपुर स्थित महल में यहां के श्री विग्रह को स्थानांतरित कर दिया गया था। आज भी जयपुर में गोविंददेव जी राजा के महल में विराजमान है तत्पश्चात संवत 1877 में पुनः बंगाल के भक्त श्री नंदकुमार वसु ने श्री गोविंददेव के नये मंदिर का निर्माण कराया यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन विधिविधान से पूजा अर्चना अभिषेक का कार्यक्रम होता है। 

श्रीरंगजी मंदिर
श्री वृंदावन का यह भव्य विशाल मंदिर के सामने वाली मुख्य सड़क पर बना हुआ है। दक्षिण भारतीय शैली का अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सेठ श्री राधाकृष्ण, उनके बड़े भाई सेठ लक्ष्मीचंद तथा छोटे भाई सेठ गोविंद दास जी ने कराया। श्रीरामानुज सम्प्रदाय का अति विशाल मंदिर स्थापत्थ कला की दृष्टि से भारत में एक अलग स्थान रखता है। यह मंदिर आकार में बहुत बड़े भूभाग को संजोये हुए है। इसमें पांच परिक्रमाएं हैं। जो ऊँचे-ऊँचे पत्थरों के परकोटों से विभक्त है। भीतरी परिक्रमा में श्री हनुमान जी, श्री गोपाल जी, श्रीनृसिंह जी के श्री विग्रह हैं। यहां एक पुष्करणी भी है जहां वर्ष में एक बार भाद्र पद मास में गजग्राह लीला का प्रदर्शन होता है। चैथे व प्रधानद्वार बैकुण्ठद्वार और नैवेद्य द्वार से तीन विशाल द्वार बने हुए है। इसी में 60 फुट ऊँचा स्वर्णमय विशाल गरूड़ स्तम्भ (सोने का खम्भा जिसे सोने के खम्भे का मंदिर भी कहा जाता है।) चैत्र मास में विशाल रथ यात्रा भी निकाली जाती है।

श्रीकृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन मंदिर)
इसका निर्माण श्री एसी भक्तिवेदान्त स्वामी द्वारा स्थापित श्रीकृष्ण भावनात्मक संघ के तत्वावधान में सन् 1975 में हुआ था। प्रभुपाद के अनेक विदेशी कृष्ण भक्तों की देख-रेख में सेवा पूजा आदि समस्त व्यवस्थाएं सम्पन्न होती हैं यह मन्दिर अंग्रेज मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन सुंदर कक्षों में बायी ओर निताई गौरांग महाप्रभु मध्य में श्रीकृष्ण बलराम के अति मनोहारी छवि विराजमान है तो दायीं ओर श्रीराधाश्यामसुंदर युगल किशोर सुशोभित हैं। सभी श्री विग्रह अद्भुद वस्त्र आभूषण पुष्प मालाओं तथा मणिमय अलंकारों से श्रृंगारित होकर दर्शकों के मन को आकर्षित करते है। यहांँ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भजन कीर्तन तथा प्रसाद वितरण होता है। रात्रि में अभिषेक का कार्यक्रम होता है, लाखों तीर्थ यात्री मंदिर में आते हैं।

मथुरा में द्वारकाधीश मन्दिर
मथुरा में असकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर सांस्कृतिक वैभवकला और सौंदर्य के लिये अनुपम है। इस मन्दिर का निर्माण सन् 1814-15 में ग्वालियर राज्य के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने कराया था। इनकी मृत्यु के उपरांत इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचंद ने मंदिर के निर्माण को पूर्ण कराया था। 1930 में इस मंदिर की सेवा पूजा पुष्टिमार्गीय वैष्णव आचार्य गोस्वामी गिरधर लाल जी कांकरौली को भेंट स्वरूप दे दिया था। यहाँ सेवा पूजा अर्चना पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार ही होती है। श्रावण मास में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां सोने व चाँदी से निर्मित हिंडोले को देखने आते है। यहां जन्माष्टमी के दिन 108 सालिगराम का पंचामृत अभिषेक होता है तथा यहां अष्टभुजा द्वारकानाथ के श्रीविग्रह का भी पंचामृत अभिषेक किया जाता है। 

श्रीकृष्ण जन्मस्थान
यह मथुरा का एक मात्र पवित्र धार्मिक स्थल है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी स्थान पर स्थित कंस के कारागार में हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य मंदिर स्थापित है जिसे देखने वर्ष भर लाखों तीर्थ यात्री श्रद्धालु पर्यटक आते हैं।
देश-विदेश से लाखों यात्री प्रतिवर्ष तो आते ही है लेकिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहां जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ के विशाल मंच पर रासलीला नाटक, कथा प्रवचन आदि उत्सव नित्य प्रति होते रहते हैं।
जन्माष्टमी के दिन रात्रि के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय श्रीविग्रह का पंचामृत अभिषेक होता है। इसके बाद श्रद्धालु नाचते, गाते, कीर्तन करते हुए भाव विभोर हो जाते हैं। 
इस मंदिर का निर्माण महामना मदन मोहन मालवीय जी की सद्प्रेरणा से जुगल किशोर विड़ला व जय दयाल डालमियो ने कराया था विशाल भागवत भवन का निर्माण भी उन्हीं के द्वारा कराया गया था।

केशवदेव में जन्माष्टमी एक दिन पूर्व मनाई गई
मथुरा। प्राचीन केशव मंदिर में एक दिन पूर्व मनाई गई जन्माष्टमी पंचामृत अभिषेक के पश्चात आकर्षक झांकियों में हुए दर्शन हजारों की संख्या में दर्शनार्थियों ने देर रात को भगवान केशव देव के अभिषेक के दर्शन किए। 
जन्म के दर्शन से पूर्व भजन-कीर्तन चलते रहे। महिला-पुरुष नाचते-गाते रहे। पुराने केशवदेव की प्रतिमा को जगमोहन से बाहर लाया गया। रात्रि ठीक 12 बजे गोस्वामियों ने अभिषेक कराया। दही, मधु, शक्कर, दूध, जल से अभिषेक कराने के बाद भव्य दर्शन हुए। बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते ही सभी दोनों हाथ उठाकर जय कन्हैया लाल की, कह उठे। शंख, घंटा, घडि़याल बज उठे चारों ओर रोशनी की गई थी मंदिर में विद्युत सजावट से जगमगा रहा था। 
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श्रीकृष्णा जन्माष्टमी पर समूचा ब्रज जय कन्हैया लाल की के उद्घोषों से गूंजा
चैतरफा रही भण्डारों की धूम
तीर्थ विकास परिषद द्वारा यमुना पैलेस व कृष्णानगर में बेरीवाल कॉम्पलैक्स पर रही तीर्थयात्रियों की भीड़
मथुरा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर सुबह से ही लोग बंदरवार, फूलमाला, केला के पत्ते आदि सामान खरीदते नजर आये। वहीं बाहर से आए श्रद्धालु श्रीकृष्ण जन्मस्थान और द्वारकाधीश मंदिर की ओर बढ़ते नजर आए टोल के टोल राधे-राधे का कीर्तन करते बोल कृष्ण कन्हैया लाल की जयकारा लगा कर मंदिरों की ओर जा रहे थे। 
नगर के चारों तरफ के रास्तों को जिला प्रशासन ने सुरक्षा के लिहाज से वाहनों को बेरीकेटिंग करके बंद करा दिया था। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को मीलों पैदल चलकर मंदिरों तक पहुंचना पड़ा। जगह-जगह भण्डारा पूड़ी, हलवा, खीचड़ी तथा व्रत का प्रसाद वितरण किया जा रहा था। 
श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मनोहारी विद्युत लाइटों से सजावट किया गया। नगर में हर तरफ सजावट मंदिरों में जन्माष्टमी की धूम दिखाई दे रही थी। विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर जन्माष्टमी देखने पहुंचे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को लेकर आज समूचे बृजमण्डल में आपार श्रद्धा और भक्ति का वातावरण बना हुआ है। शहर के बाजार और घर-घर पर लगे वंदनवार और सजाबट देखते ही बनती है। समूचे बृज में कान्हा के जन्मोत्सव की धूम मची हुई है। मंदिर द्वारिकाधीश, श्रीकृष्णजन्मस्थान को जाने वाले सभी मार्ग सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ से भरे पड़े थे। सुदूर प्रांतों से कान्हा के जन्मोत्सव में शामिल होने आये भक्तों के स्वागत सत्कार में बृजवासियों ने भी कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। मुख्य बाजारों में स्थान-स्थान पर पूड़ी सब्जी और व्रत से जुड़े आहार के वितरण में समाजसेवी और व्यवसायिक संस्थान अग्रणी भूमिका निभा रहे थे। तीर्थ यात्रियों की सुख सुविधा के लिए स्थान-स्थान पर लगाये गये भण्डारे और ठण्डे पानी के प्याऊ के अलावा चाय का वितरण भी जगह जगह किया जा रहा था। जन्माष्टमी एवं नन्दोत्सव के मौके पर फलाहारी प्रसाद तीर्थयात्रियों एवं भक्तों में वितरित किया गया। शहर के कैन्ट रेलवे स्टेशन के निकट टैम्पू स्टैण्ड, क्वालिटी तिराहे, पुराने बस स्टैण्ड, जवाहर हाट, पुराने डाक खाने के निकट आगरा रोड व्यवसायी समिति द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के छप्पनभोगों के दर्शनों के साथ भण्डारे का आयोजन किया गया। कृष्णा नगर स्थित गोवर्धन चैराहे के निकट समाजसेवी अशोक बेरीवाल द्वारा विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया। इसके अलावा अप्सरा सिनेमा के सामने जीएमसी सर्राफा मार्केट गुरूद्वारे के निकट मुकुंद कॉम्पलेक्स, होलीगेट चैराहे, कोतवाली रोड, भरतपुर गेट, दरेसीरोड, डीगगेट, आर्य समाज रोड, छत्ताबाजार, विश्राम बाजार, स्वामी घाट, डोरीबाजार, चैकबाजार, वृंदावन दरबाजा, घीयामण्डी क्षेत्रों में भण्डारों के आयोजन किये गये। भण्डारों के आयोजनों के कारण आज बृजभूमि में अधिकांश खान-पान की दुकाने या तो बंद रही अथवा उन पर सन्नाटा छाया रहा। इस बार  अन्ना हजारे के समर्थकों ने भी अन्ना हजारे के पोस्टर वेनर लगा कर भण्डारे का आयोजन किया और श्रद्धालुओं को प्रसाद का वितरण किया तथा जगह जगह प्याऊ भी लगाई। 

मथुरा के स्कूलों में भी मनाई गई जन्माष्टमी
मथुरा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व वेला में स्थानीय लोग ब्रजवासियों ने लाला कन्हैया का जन्म-गीत, नृत्य, कृष्ण-झांकी और आरती के साथ हर्षोल्लास पूर्वक मनाया। घर घर  में वंदनवार बांधी गई थीं, हल्दी के मंगलसूचक थापे लगाए गये थे और कृष्णजन्म के लोकगीत गूंजते रहे। यहां स्कूल काॅलेजों में भी बाल-कलाकारों ने सामूहिक रूप से गायन किया-मथुरा में जमंन भयौ कन्हैया जू कौ हरे-हरे, कन्हैया जू कौ जनंम भयौ। ‘‘दुस्ट कंस के कारागृह में कटे देवकी फंद, कारे कजरारे मेघों में उदित भयौ एक चंद’’, अमृत रस बरस उठा। जगह जगह श्रीकृष्ण जन्म की कथाओं का वर्णन किया जा रहा था जगह जगह लोग नाच गा रहे थे। विभिन्न लीलाओं को रास के माध्यम से लोगों का मनोरंजन किया जा रहा था। 

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