"Bhaav" Sunil Sharma Mathura
सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया.....
बुधवार, 9 अप्रैल 2025
राधाकुण्ड और उसके रज का महात्म्य
मंगलवार, 11 मार्च 2025
गधा एक बुद्धिमान प्राणी था और आज भी है
यह एक दिलचस्प और प्रेरणादायक दृष्टिकोण है! अक्सर गधे को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन वास्तव में वह एक बेहद व्यावहारिक और समझदार प्राणी है। पहाड़ी रास्तों के निर्माण में उसका ऐतिहासिक योगदान रहा है जिसे सुनकर आश्चर्य होता है।
गधों की यह सहज नेविगेशन क्षमता और सुरक्षित मार्ग खोजने की प्रवृत्ति वास्तव में प्रशंसनीय है। आधुनिक तकनीकों के अभाव में हमारे पूर्वजों ने गधों की इसी स्वाभाविक बुद्धिमत्ता का उपयोग किया, और आज भी कई स्थानों पर गधे दुर्गम इलाकों में यातायात का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।
इससे हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी चीज़ को सतही नजरिए से आंकने की बजाय उसके वास्तविक गुणों और विशेषताओं को समझना चाहिए। क्या आपने कभी पहाड़ी क्षेत्रों में गधों के इस व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से देखा है?
आज के बाद कोई आपको गधा वोले तो आप वुरा न मानिए किन्तु आप गर्व महसूस करिए क्यों कि एक समय में पृथ्वी के पवर्तीय इलाकों में रास्तों की खोज, पहचान व उन्हें डिजायन करने का कार्य गधे ही किया करते थे।
क्यों आपको विश्वास नहीं हो रहा है न तो चलिए देखते हैं। पहाडी इलाकों में रास्ता बनाना बहुत ही कठिन कार्य होता था, हम यदि एक दम नीचे से पहाड़ के सिरे तक एक रास्ता बनाते है तो ढ़ाल इतना अधिक होगा कि बैल गाड़ी, घोड़ा गाड़ी यहाँ तक कि बस व ट्रक आदि का जाना-आना अति कठिन होगा वह आसानी से आ व जा नहीं सकेंगे, रास्ते का ढाल लगभग 10 डिग्री से कम रखना होगा क्यों कि अगर एकदम सुरक्षित रास्ता बनाते हैं या एकदम कम स्लोप में रास्ता बनाते हैं तो ऊपर चढ़ने में काफी समय लग सकता है, इसके लिए इन दोनों के बीच में एक ऑप्टीमल पाथ निकालने के लिए एक गधे का उपयोग किया जाता था। गधे को पहाडी इलाकों में छोड दिया जाये तो वह इन्स्टैंटली अपना रास्ता निकाल कर चलना शुरू कर देगा। वह किसी दुर्गम या खराब रास्ते पर भी नहीं चढ़ेगा और वह एक दम कम खराब रास्ते पर भी नही जागेगा, जिसमें समय अधिक लगेगा।
एक समय था जब सेटेलाइट, मेप, फेन्सी मेजरिंग उपकरण इत्यादि की व्यवस्था नही थी, जिससे सहज ही पहाड पर्वत के मेप बनाये जा सकते, तब क्या करते थे, एक गधे को छोड़ देते थे और उसके पीछे-पीछे लोग चला करते थे और देखते थे कि गधा किस रास्ते से पहाड़ में चढ़ रहा है और उसी के अनुसार इन्सान ने रास्ते बनाये हैं।
इसी लिए कोई गधा बोलने या गाली देने पर किसी भी प्रकार से अपना मन खराब न करें, गधा एक बुद्धिमान प्राणी था और आज भी है।
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रविवार, 8 सितंबर 2024
अपने मुकुट को कहाँ रखोगे, वंशी को कहाँ छिपाओगे? काले से गौर कैसे होओगे? कृष्ण
रविवार, 24 मार्च 2024
मथुरा लोकसभा सीट के साथ कई दिलचस्प किस्से भी जुड़े हुए हैं
मथुरा लोकसभा सीट में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 19 लाख है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या जाट मतदाताओं की मानी जाती है। उनकी वोटर संख्या करीब साढ़े तीन लाख के साथ प्रथम स्थान पर बताई जाती है। इनके अलावा 3 लाख ब्राह्माण, 3 लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, डेढ़ लाख मुस्लिम हैं. जबकि वैश्यों की संख्या 1 लाख और यादवों की संख्या करीब 80 हजार बताई जाती है। अन्य में बाकी बची छोटी जातियां शामिल हैं। जाट बहुल सीट होने के बावजूद आरएलड़ी का वर्चस्व कभी नहीं रहा जाटों की संख्या सबसे ज्यादा होने के कारण ही आरएलडी मथुरा को महत्वपूर्ण सीट मानती रही है। इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती ने चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें भी हार देखनी पड़ी थी। हालांकि बीजेपी से गठबंधन होने पर जयंत चौधरी वर्ष 2009 में इस सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे उन्हें 243890 वोट मिले थे। इसके बाद 2014 और 2019 से हेमा मालिनी लगातार 2 बार से इस सीट से सांसद हैं। बीजेपी ने फिर तीसरी वार हेमा मालिनी पर दांव खेलने जा रही है। बीजेपी की ओर से घोषित उम्मीदवारों की पहली सूची में मथुरा से हेमा मालिनी के नाम का ऐलान किया गया है। बसपा ने इस सीट से उम्मीदवाद की घोषणा कर दी है, बसपा ने 1999 में बसपा से ही चुनाव लड़ चुके पं. कमल कान्त उपमन्यु को अपना प्रत्याषी बनाया है। 1999 में कमल कान्त उपमन्यु को 1,18,720 वोट मिले थे। और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। यहां यह बताना जरूरी है कि इस वार जयन्त चौधरी आरएलडी को लेकर बीजेपी की नैया पार लगाने में सहायक बने हुए हैं। मथुरा लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास मथुरा लोकसभा सीट शुरु से ही जाट बाहुल्य मानी जाती रही है। इसकी पुष्टि इस सीट से जीत हांसिल करने वाले उम्मीदवारों से होती है। इस सीट पर अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट बिरादरी से आते रहे हैं। पिछले 10 सालों से मथुरा से बीजेपी नेत्री व प्रख्यात सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी यहां सांसद हैं। उन्होंने पंजाब के जट और प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र से शादी की है। इस नाते भी लोग उन्हें भी जाट ही मानते हैं। हालांकि मूल रूप से वह तमिलनाडु से आती हैं। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एक महत्वपूर्ण सीट की लोकसभा सीट है। आजादी के बाद पहला चुनाव साल 1952 में हुआ। और इस सीट पर भी पहली बार चुनाव 1952 में ही हुआ। पहले और दूसरे दोनों चुनावों में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस सीट पर वर्ष 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को हार देखनी पड़ी और भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की। साल 1980 में यह सीट जनता दल के खाते में गई। जबकि 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर से वापसी की, लेकिन कांग्रेस को अगले चुनाव में फिर से हार का सामना करना पड़ा था। उत्तर प्रदेश का यह मथुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत की चुनावी राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2019 के आम चुनावों में, यहाँ बहुत मजेदार चुनावी मुकाबला देखने को मिला था। भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी ने पिछले चुनाव में 2,93,471 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ की थी। उन्हें 6,71,293 वोट मिले थे। हेमा मालिनी ने अपने निकटतम रालोद प्रत्याषी कु0 नरेन्द्र सिंह को हराया जिन्हें 3,77,822 वोट मिले थे। मथुरा सांस्कृतिक विविधताओं चलते और यहां के चुनावी नतीजे भी उत्तर प्रदेश की यह लोकसभा सीटं रोचक और अहम होती है। इस निर्वाचन क्षेत्र में विगत 2019 के लोक सभा चुनाव में 60.48 प्रतिषत मतदान हुआ था। इस बार यानी कि 2024 में मतदाताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है और वे लोकतंत्र में वोटों की ताकत दिखाने को और ज़्यादा जागरुक और तैय्यार हैं। इस वर्ष यानी कि 2024 में मथुरा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से श्रीमती हेमा मालिनी प्रमुख उम्मीदवार हैं।