बुधवार, 12 अप्रैल 2023

पौराणिक महत्व का प्रतीक सप्त समुद्री कूप आज उपेक्षित

धार्मिक परम्पराओं को निभाने के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों की जलापूर्ति करता कूप आज सूख गया है 

मथुरा। (सुनील शर्मा) सनातन धर्म का पालन करने बाले सभी अपने यहां किसी भी मांगलिक कार्य में सभी देवताओं का आवाहान करते हैं इसके लिए देवताओं को आमंत्रण करने के उपरान्त उनकी प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व माना जाता है। जब भी कोई शुभ कार्य किया जाता है, जैसे गृह प्रवेश, बच्चे का नामकरण, विवाह संस्कार मांगलिक कार्य आदि में सभी देवताओं को आमंत्रित कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा पुराहितों के द्वारा कराई जाती है। जब देवता के आगमन और उनकी प्राण प्रतिष्ठा किसी न किसी मनोरथ की पूर्ति के लिए की जाती है जिससे भगवान हम पर प्रसन्न हों और हमारा मनोरथ पूर्ण हो, जिसके लिए हवन-यज्ञ भी किये जाने का विधान है। आज के दौर में लोग मनोरथ तो करते हैं पर उसमें धार्मिक प्रक्रियाओं का पालन पूरी तरह नहीं करते हैं जिसके कारण मनोरथ के श्रेष्ठ फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है। प्राण प्रतिष्ठा के लिए सप्त समुद्रों के जल, सप्त नदियों का जल, सप्त तीर्थों की मिट्टी आदि की आवश्यकता पड़ती है। जो कि न उपलब्ध हो पाने की स्थिति में किये गये मनोरथ का पूर्ण होना भी संभव नहीं होता है। ब्रजवासियों के मनोरथ की पूर्ति हेतु समुद्रदेव ने भी वनखंडी क्षेत्र में एक कुएं में यह शक्ति प्रदान कर दी थी। ऐसा एक सप्त समुद्र कूप (कुआं) वनखंडी क्षेत्र स्थित डैम्पीयर नगर में पड़ने वाले राजकीय संग्रहालय स्थित है। यहां लोग कभी अपने-अपने धार्मिक परम्पराओं को निभाने थे, अब राजकीय संग्रहालय ने सुरक्षा की दृष्टि से इसे ढ़कवा दिया हैं।
यह एक सदियों से चली आ रही परंपरा का एक हिस्सा हैं, आज के आधुनिक युग में मनुष्य इन सभी प्राचीन परम्पराओं से दूर होता चला जा रहा है और हर कार्य शीघ्रता में और कम समय में होने लगे हैं। इन प्राचीन परम्पराओं के प्रति आस्था भी घटती चली गयी और लोग इन स्थानों को भी भूलते चले गये नतीजा यह कि प्राचीन धरोहर भी हमसे दूर हो गये या हमें मालुम ही नहीं कि कहां क्या छुपा हुआ है धीरे-धीरे एतिहासिकता भी कोसों दूर होती चली जायेगी। आज घर, मंदिर, आश्रम सहित अन्य प्रतिष्ठानों पर देवताओं को बैठा तो दिया जाता है पूजा भी की जाती है मगर इन देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अनुष्ठान में कई तरह की सामग्रियों का उपयोग नहीं हो पाता है और हर कार्य शोर्टकट से किया जाता है। इन आयोजनों में सात समुद्र, सात नदियां, सात मेवा, सात फल, सात पेड़ों के पत्ते, सात कुओं का पानी आदि की आवष्यकता के अनुसार व्यवस्था होती है। ऋषियों मुनियों ने लोगों के सात समुद्र के जल को न ला पाने की दुविधा को दूर करते हुए भारतवर्ष के सात स्थानों पर ऐसे कुपों की स्थापना की जिनके जल का स्त्रोत समुद्रों के जल से मिला हो और इनका जल कभी सूखे नहीं, गर्ग संहिता, पदम पुराण, वराहपुराण आदि में इस तरह के कूपों का उल्लेख मिलता है, उन्हीं में से एक कूप मथुरा के क्षेत्र में होना माना गया है, कई ग्रंथों में इसे मथुरा के वनखंडी क्षेत्र में होना बताया जाता है। यह वही क्षेत्र है जहां आज राजकीय संग्रहालय बना हुआ है। ब्रज मंडल में यही एकमात्र ऐसा स्त्रोत है जो समुद्रों से जुड़ा है, इसका पानी पहले बहुत ही अच्छा था तथा आसपास के पूरे क्षेत्र की जलापूर्ति इससे होती थी आज इसका स्त्रोत सूख गया है तथा इसके सूख जाने के कारण यह बन्द पड़ा है और सुरक्षा की दृष्टि से इसे पाट दिया गया है।
सप्तसमुद्र कूप अन्य जगह पर भी हैं पौराणिक महत्व के प्रतीक सप्त समुद्रीय कूप भारत में ही मौजूद हैं। इनमें काषी, प्रयाग, पाटलीपुत्र में ऐसे सप्त समुद्री कूप हैं, जिनके स्त्रोत कभी सूखते नहीं। इनका स्त्रोत समुद्र तल के साथ मिला हुआ माना जाता है। इस कूप से भगवान की मूर्तियां भी मिलीं सन् 1930 में जब कर्जन आर्कोलॉजिकल म्युजियम जो वाद में राजकीय संग्रहालय मथुरा का निर्माण हुआ तो परिसर में मौजूद इस सप्त समुद्रिक कूप की साफ सफाई कराई गई थी। कूप में से भगवान विष्णु, शिव आदि की मूर्तियां निकलीं थीं। इस आधार पर भी ये कूप पुरातत्व महत्व माना जाता है। आज से करीब 30 साल पहले ये कूप सूख गया तो इसकी सफाई नहीं कराई गई। बाद में इसको पाट दिया गया। 20 वर्ष पहले टोरंटो के एक प्रोफेसर भी इस कूप पर रिसर्च करने आए थे। उन्होंने अन्य सप्तसमुद्रीय कूप का अवलोकन किया था। वीथिका सहायक हरि बाबू ने बताया कि यह कूप सप्तसमुद्रीय कूपों में एक माना जाता है। पहले इसका स्त्रोत बहुत गहरा था। संग्रहालय प्रशासन ने बताया कि कूप को सुरक्षा की दृष्टि से बंद करा दिया गया था। लगभग 2000 वर्ष पुराना है यह कूप राजकीय संग्रहालय, मथुरा स्थित यह कूप गुप्तकाल का है और लगभग 2000 वर्ष पुराना यह कूप यहाँ के स्थानीय लोगों के सामाजिक धार्मिक आस्था का केन्द्र था और सभी के लिए यह बहुत पूजनीय था। माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों के परिवार में नव विवाहित दम्पत्ति को इस कूप की पूजा करने के लिए यहां लाते थे। शादी होने पर बहू को यहीं पूजन के लिए लाते थे। पुराने लोग तो आज भी कुआं पूजन के लिए आते हैं। सन् 1917 ई. के लगभग मथुरा में उत्तर प्रदेश की पहली आधुनिक कॉलोनी डैम्पियर पार्क के नाम से बनी जिसका गेट आज भी अपनी प्राचीनता को वयां कर रहा है जिसके दोनों ओर एक शिलालेख आज भी मौजूद है जिसमें एक तरफ उर्दू और एक तरफ अंग्रेजी में इस ग्रेट के निर्माण का प्रमाण मिलता है। 1930 ई. में कर्जन आर्कोलॉजिकल म्युजियम का निमार्ण शुरू हुआ जिसके परिसर में यह मथुरा का ऐतिहासिक सप्त समुद्री कूप आज भी मौजूद है। इस कूप से मथुरा कला की कई महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ मुर्तियां बरामद हुई हैं, जो आज राजकीय संग्रहालय, मथुरा में संरक्षित व सुरक्षित हैं। परन्तु आज यह सप्त समुद्री कूप सूख चुका है और आम जनमानस के जहन से भी विस्मृत हो चुका है। संग्रहालय प्रशासन ने इसे सुरक्षा की दृष्टि से इसका पटाव कराकर ढ़क कर बन्द करा दिया है।
चतुर्वेदी समाज के लोगों की राय गोपाल चतुर्वेदी ने बताया कि धार्मिक कार्यों में सात समुद्र, सात नदियां, सात घुड़साल की मिट्टी आदि का विशेष महत्व है। देव स्थान, प्राण प्रतिष्ठा, विग्रह स्थापित, हवन, यज्ञ आदि में इस कूप से पानी लिया जाता था। संग्रहालय स्थित इस कुएं का चतुर्वेदी समाज में विशेष महत्व है। जब भी कोई बेटी शादी के बाद पहली बार मायके आती थी तो भाई के साथ यहां पूजन करने यहां आती थी। 
प्रस्तुति- सुनील शर्मा, मथुरा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें